Monday, June 16, 2014

एकात्मता मंत्र

एकात्मता मंत्र

प्राचीन किताबों के ढेर में से मेरे स्व .पितामह के हस्तलेख में एक
पुरानी पीली पड़ चुकी कागज में किसी अज्ञात कवि की संस्कृत
में लिपिबद्ध पंक्तियाँ प्राप्त हुई ,जिसमें उसका मत्रार्थ
भी किया हुआ है , वह आपके साथ साझा करता हूँ -
एकात्मता - मंत्र
यं वैदिक मन्त्रदृश: पुराना
इन्द्रं यमं मातरिश्वानामाहु:
वेदान्तिनोस्निर्वचनीयमेकं
यं ब्रह्मशब्देन विनिर्दिश्न्ति !! (१)

शैवा यमिशं शिव इत्यवोचन यं वैष्णवा विष्णुरिति स्तुवन्ति !
बुद्ध स्तथा ह्र्न्निती बौद्धजैना: सत-श्री-अकालेती च सिक्ख संत: !! (२)

शास्तेति केचित कतिचित कुमार: स्वामीति मातेति पिटती भक्त्या !
यं प्रार्थयन्ते जग्दीशितारम स एक एव प्रभुर्द्वितीय: !! (३)

अर्थात -प्राचीन काल के मंत्र द्रष्टा ऋषियों ने जिसे इन्द्र, यम,
मत्रिश्वान कहकर पुकारा और जिस एक अनिर्वचनीय
का वेंदंती ब्रह्म शब्द से निर्देश करते हैं !

शैव जिसकी शिव और विष्णु जिसकी विष्णु कहकर स्तुति करते हैं,
बौद्ध और जैन जिसे बुद्ध और अरहंत कहते हैं, ठाठ सिक्ख जिसे सत
श्री अकाल कहकर पुकारते हैं !

जिस जगत के स्वामी को कोई शास्ता, तो कोई कुमार
स्वामी कहतें हैं, कोई जिसको स्वामी, माता, पिता कहकर
भक्तिपूर्वक प्रार्थना करते हैं, वह प्रभु एक ही है, और अद्वितीय
है, अर्थात उसका कोई जोड़ नहीं है !!!
ॐ शांति: शांति: शांति:

Saturday, June 14, 2014

विवाह , परस्पर मैत्री सम्बन्ध एवं वेश्यावृति में वासना तृप्ति

विवाह , परस्पर मैत्री सम्बन्ध एवं वेश्यावृति में वासना तृप्ति

भारतीय समझ में और पुरातन भारतीय ग्रंथों में पुरूष - स्त्री के श्वास के लिए विवाह की अवस्था सर्वोत्तम मानी गई है । विवाह में पति - पत्नी में सामंजस्य आवश्यक है । दोनों में जीवन उद्देश्य में समानता होनी आवश्यक है । जीवन कार्य भिन्न - भिन्न हो सकते हैं  , परन्तु उन दोनों कार्यों में भी जीवन का उद्देश्य एक होना चाहिए । विवाह वासना - तृप्ति से कही अधिक विस्तृत योजना है । यह मनुष्य और पालतू कुत्ते की बात - मात्र नहीं ।

विवाह से उतारकर वासना - तृप्ति के लिए केवल मैत्री - सम्बन्ध भी क्षम्य है । इसमें भी एक शर्त है । वह है एक - दूसरे से मोह। मोह का अर्थ है अटैचमेंट । यह मोह अर्थात्  अटैचमेंट ऐसा होना चाहिए की कोई भी एक - दूसरे आधिपत्य ज़माने अथवा आर्थिक या किसी अन्य प्रकार का लाभ उठाने की भावना न रखे ।

इससे निकृष्ट है वेश्यावृति । इसमें वासना लाभ उठाने की साधन बन जाती है ।

विवाह में वासना एक विवशता है । विवाह सम्बन्ध समाज का ऋण उतारने के लिए है । मैत्री में वासना मुख्य है और परस्पर निर्भरता है । वेश्यावृति में वासना भी कम से कम एक अक्ष के लिए गुण हो जाती है । आर्थिक अथवा अन्य स्वर्तमय लाभ मुख्य हो जाते हैं ।

अधिसूचना जारी होने के साथ देश में आदर्श चुनाव संहिता लागू -अशोक “प्रवृद्ध”

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