Saturday, June 27, 2015

मन, बुद्धि और आत्मा सम्बन्धी शिक्षा राष्ट्र के लिये श्रेयस्कर -अशोक “प्रवृद्ध”

नॉएडा से प्रकाशित होने वाली समाचार पत्र दैनिक उगता भारत के सम्पादकीय पृष्ठ पर दिनांक- २७ जून २०१५ को प्रकाशित लेख -मन, बुद्धि और आत्मा सम्बन्धी शिक्षा राष्ट्र के लिये श्रेयस्कर -अशोक “प्रवृद्ध”
उगता भारत, दिनांक - २७ जून २०१५ 
मन, बुद्धि और आत्मा सम्बन्धी शिक्षा राष्ट्र के लिये श्रेयस्कर
-अशोक “प्रवृद्ध”
मानव शरीर में एक अंग है मन। यह स्मृत्ति यन्त्र होने के साथ ही कल्पना और मनन का भी स्थान है। ये कल्पना और मनन मन की स्मरण शक्ति के ही कारण हैं। ईश्वर प्रदत्त मन पर नियन्त्रण रखने वाला एक यन्त्र बुद्धि मन के संकल्प-विकल्प को नियन्त्रण में रखने का कार्य करती है। मन जीवात्मा की इच्छाओं की पूर्ति के लिये कल्पनाएँ अर्थात योजनायें बनाता है और बुद्धि उन योजनाओं को धर्म-अधर्म की दृष्टि से जाँच-पड़ताल करती है,और वह जीवात्मा को सम्मति देती है कि मन की अमुक कल्पना धर्मानुकूल है और अमुक कल्पना अधर्मयुक्त। और जब बुद्धि की चेतावनी की अवहेलना की जाती है तो मन की चंचलता को उच्छृंखलता  करने का अवसर सुलभ हो जाता है। अतः जातीय उत्थान अथवा राष्ट्रोत्थान के लिए जातीय अथवा राष्ट्र के घटकों में बुद्धि को इतना बलवान बनाया जाए कि वह आत्मा की कामनाओं को उचित दिशा देने में समर्थ हो। इसके साथ ही आत्मा के स्वभाव को बदला जाए जिससे वह इच्छाओं और कामनाओं में बह न सके ।यह शिक्षा का विषय है। पाठशालाओं, विद्यालयों,महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में इस प्रकार की शिक्षा का प्रबन्ध होना चाहिए।
शिक्षा वस्तुतः जीवात्मा का स्वभाव बनाने, मन को शिव संकल्प करने और बुद्धि को सुदृढ़ करने का नाम है। इनके साथ ही इन्द्रियों को मन और बुद्धि के अधीन कार्य करने अभ्यास कराने का नाम है।भाषा, इतिहास, भूगोल, गणित इत्यादि विषय उक्त अवयवों को सन्मार्ग पर चलाने में सहायता देने के लिए होते हैं। स्वतः ये शिक्षा में किसी प्रकार का योगदान नहीं करते ।
ज्ञान-विज्ञान मन, बुद्धि और जीवात्मा को ठीक मार्ग पर ले जाने में सहायक तो हो सकता है, परन्तु यथार्थ ज्ञान और विज्ञान से तकनीकी शिक्षा ज्ञान-विज्ञान नहीं कहाती। तकनीकी शिक्षा वास्तव में ज्ञान से पेशा कराना है, जैसे किसी स्त्री से वेश्यावृति कराना। स्त्री कर्म का उचित उद्देश्य से भी होता है, परन्तु यही कर्म वेश्यावृत्ति भी हो सकता है, जबकि इसके वास्तविक प्रयोग को छोड़कर इसे धनोपार्जन का साधन बना लिया जाए। ठीक यही बात ज्ञान-विज्ञान में तकनीकी ज्ञान की है। ज्ञान-विज्ञान का धर्मयुक्त प्रयोग भी है, परन्तु जब वासना-तृप्ति के लिए इस ज्ञान- विज्ञान की प्राप्ति का प्रयोग किया जाए तो यह वेश्यावृत्ति के समान हो जाता है। कहने का अभिप्राय यह है कि तकनीकी उन्नति जीवन को सुखमय बनाने के लिए वेश्यावृत्ति है, परन्तु यदि जीवन के धर्मयुक्त कार्यों में सहायता के लिए इसका प्रयोग किया जाए तो यह सत्ती-साध्वी महिला के व्यवहार के समान हो जायेगा । शिक्षा में ज्ञान-विज्ञानं के योगदान का अभिप्राय यह है कि प्राणियों, वस्तुओं और प्राकृतिक शक्तियों का वास्तविक ज्ञान प्राप्त किया जाए और उस ज्ञान का उपयोग जीवन की आवश्यकताओं को व्यवहार में लाने के लिए हो।

ध्यातव्य है कि मन शिव संकल्प करने वाला हो, बुद्धि को प्रबल युक्ति करने योग्य बनाने से और जीवात्मा का विवेक पूर्ण स्वभाव बनाने से मन की चंचलता को स्थिर बनाया जा सकता है। साहित्य, कला और व्यवहार सब शिक्षा के अनुरूप होनी चाहिए, इस कार्य से जाति अथवा राष्ट्र के अस्तित्व की रक्षा हो सकती है। इस महती कार्य के लिए सर्वप्रथम योग्य शिक्षकों को तैयार करने के पश्चात इसी में मन्दिरों, सभा स्थलों,धर्मिक पर्वों, जातीय अथवा राष्ट्रीय महापुरुषों के जीवन चरित्रों तथा उनके मतों के मानने अथवा न मानने का उपयोग शामिल है। भारतीय राष्ट्र के घटकों अर्थात देश के बहुसंख्यक समाज को उसकी वर्तमान पतितावस्था से निकालने के लिए प्रथम कर्म है इसके धार्मिक स्थलों, प्रतीक स्थलों, धार्मिक पर्वों, जातीय अथवा राष्ट्रीय महापुरुषों की कृतियों और लेखों तथा उनके जीवन से सम्बंधित स्थानों का पुनरूद्धार करना।

देश की वर्तमान अवस्था ऐसी हो गई है कि हम कोई भी व्यक्तिगत अथवा जातीय अर्थात सामाजिक-सामूहिक कार्य बिना राज्य की सहमति के कर ही नहीं सकते। यही कारण है कि विश्व हिन्दू परिषद, विराट हिन्दू समाज,हिन्दू जागृति संगठन एवं बहुसंख्यकों के अन्य संस्थाओं के अध्यक्षों को भारत सरकार के समक्ष यह याचना करनी पड़ती है कि देश के बहुसंख्यकों के जातीय एवं सामाजिक, धार्मिक पर्वों के आयोजनों के लिए अनुमति दी जाए अथवा उन अवसरों पर सरकारी अवकाश के दिनों में वृद्धि की जाए, परन्तु सरकार धर्मनिरपेक्ष अर्थात सेकुलर होने के साथ-साथ दूकानदार, ठेकेदार और व्यापार-वृत्ति वाली भी है। जब सरकार वर्ष के अवकाश के दिन न्यूनाधिक करती है तो, जब देश के बहुसंख्यक हिन्दुओं को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, या रामनवमी या फिर दशहरे की का अवकाश दिया जाता है, तो उसकी ही भान्ति मुसलमानों, ईसाईयों, पारसियों, बौद्धों, जैनों आदि- आदि के किस-किस पर्व पर अवकाश में वृद्धि की जा सकती है, इस पर विचार करने लगती है , और हाल के वर्षों में तो हिन्दुओं के पर्वों में अवकाश को न्यून कर दिया गया है और दूसरी ओर अल्पसंख्यकों की अवकाश में वृद्धि कर दी गई है।

एक ओर तो सरकार मुसलमानों को अतिरिक्त रूप से प्रत्येक शुक्रवार को आधा दिन और कुछेक मामलों में प्रतिदिन कार्यालय अवधि में तीन बार नमाज अदा करने के लिए अवकाश देती नजर आती है और दूसरी ओर सरकार अपने कर्मचारियों के एक-एक घंटे के अवकाश के विषय में भी विचार करती है कि इससे कितनी आर्थिक हानि होने की सम्भावना है? सरकार यह भी अनुभव करती है कि जातीय अथवा राष्ट्रीय जीवन में एक भी अवकाश का दिन बढाने पर राष्ट्रीय आय में कितनी कमी होगी अथवा सरकार इस बात का विचार करने और निर्णय लेने में एक सौ एक बाधाएं देखती हैंl कारण स्पष्ट है कि सरकार एक दूकानदार, भिन्न-भिन्न समाजों की पत्नी और सबसे बड़ी बात यह है कि पत्नी बने रहने की लालसा में जोड़-तोड़ लगाने वाली चतुर नारी का रूप ग्रहण कर चुकी है। वस्तुतः प्रजातांत्रिक सरकार तो वेश्या के समान ही होती है। ऐसी प्रजातांत्रिक सरकार पर उस पति का आतंक होता है जो सर्वाधिक आक्रान्त और उत्पात मचाने की क्षमता रखता है। यह है वर्तमान प्रजातांत्रिक पद्धत्ति का स्वरुप। इसलिए होना यह चाहिए कि जातीय अथवा राष्ट्रीय निर्माण-कार्यों को इस प्रजातांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष अर्थात सेकुलर और दूकानदार सरकार से स्वतंत्र किया जाए। व्यक्तिगत अथवा जातीय, सामूहिक, धार्मिक आयोजन अथवा समारोह आयोजित किये जाएँ अथवा नहीं या फिर जातीय अथवा सामजिक  धार्मिक पर्व के दिन सरकारी कार्य चलेगा अथवा नही, इसका निर्णय यह वेश्या सरकार नहीं कर सकती। इसका निर्णय करने का अधिकार जातीय, धार्मिक एवं बौद्धिक नेताओं को दिया जाना चाहिएl उनके निर्णय से सरकार को यदि किसी प्रकार कि असुविधा हो तो सरकार को चाहिए कि वह उन नेताओं से सम्पर्क स्थापित कर अपनी असुविधा का बखान करे और उसे दूर करने का निवेदन करे न कि विश्व हिन्दू परिषद, विराट हिन्दू सम्मलेन, हिन्दू जागृति संगठन, हिन्दू जागरण मंच  अथवा किसी भी हिन्दुत्ववादी संगठन के नेता सरकार से आग्रह करें।

पुरातन भारतीय ग्रंथों के अध्ययन से इस सत्य का सत्यापन होता है कि जातीय अथवा धार्मिक निर्माण कार्य राजनीतिक कार्य नहीं हैं । जाति के हिताहित कार्य को छद्म धर्मनिरपेक्ष अर्थात सेकुलर, व्यापारी, दूकानदार, कारखानेदार अथवा मूर्खों, अनपढों के मतों की भिक्षा मांगने वालों के हाथों में सौंपना उचित नहीं समझा जा सकता।  जातीय निर्माण अर्थात राष्ट्रोत्थान के कार्यों के लिए राष्ट्र के सभी घटकों के मन बुद्धि और जीवात्मा के सुशिक्षित कर्मों से सुसंपन्न होना आवश्यक है और उनको ठीक दिशा देने के लिए एक ऐसा सामाजिक संस्था होना चाहिए जो स्वयं धर्म निरपेक्ष, सबसे बड़े सेवकों की स्वामी,सबसे अधिक धनोपार्जन का संयंत्र और अनपढ़, सामान्य बुद्धि, आचार-विचार के लोगों के मत से प्रभावित न हो। इसका अभिप्राय यह है कि शिक्षा, धर्मस्थान, समाजों और जातीय धार्मिक पर्वों का प्रबंध विद्वानों के अधीन होना चाहिए।
समाज में किसी एक सम्प्रदाय के लिये कोई प्रयास अथवा उपाय नहीं कर बहुसंख्यक समाज के जागृति और समुन्नयन के लिये करना उत्तम होगा। भारतीय समाज में अनेक मत-मतान्तर हैं। इसमें यह आवश्यक है कि बहुसंख्यक समाज की साँझी मान्यताओं का विरोध कहीं नहीं हो। साँझी मान्यताओं के समर्थन के साथ अपने-अपने इष्टदेव तथा सम्प्रदाय की बात भी होती रहेl इस्लाम और ईसाईयत के अनुयायियों की बात तो हम नहीं करते लेकिन हिन्दू समाज से इसका विरोध नहीं हो सकता क्योंकि हिन्दुओं के सब सम्प्रदाय वेदमूलक हैंl इस प्रकार यह स्पष्ट है कि मन, बुद्धि और आत्मा सम्बन्धी शिक्षा पूर्णरूप से देश के राज्य से असम्बद्ध होना ही राष्ट्र के लिये श्रेयस्कर होगाl

एक अन्य शीर्षक-मन, बुद्धि और आत्मा सम्बन्धी शिक्षा देश के राज्य से असम्बद्ध होना ही राष्ट्र के लिये श्रेयस्कर


Friday, June 26, 2015

मानसून की अस्थिरता के कारण सूखे की आशंका -अशोक “प्रवृद्ध”

नॉएडा से प्रकाशित होने वाली समाचार पत्र दैनिक उगता भारत के सम्पादकीय पृष्ठ पर दिनांक- २६ जून २०१५ को प्रकाशित लेख -मानसून की अस्थिरता के कारण सूखे की आशंका
-अशोक “प्रवृद्ध”
उगता भारत, दिनांक- २६ जून २०१५ 

मानसून की अस्थिरता के कारण सूखे की आशंका 
-अशोक “प्रवृद्ध”
प्राकृतिक अर्थात मौसमीय मार सिर्फ किसानों को नहीं वरन समस्त देश अथवा संसार को रूलाने की क्षमता रखती है और समय-समय पर इसने सबों को रूलाया भी है ।यह एक सर्वविदित तथ्य है कि कभी सूखा, कभी बाढ़ और अन्य प्राकृतिक आपदायें न केवल फसलों को क्षति पहुँचाते है, बल्कि गाँव के गाँव और शहर के शहर को उजाड़ देते हैं और गाँव, शहर, राज्य और देश की अर्थव्यवस्था की तस्वीर ही बिगाड़ देते हैं। जब प्रतिवर्ष एक ही स्थान पर सूखा अथवा बाढ़ आती है और सरकार उसके निदान के लिए कोई सार्थक और प्रभावी पहल नहीं करती तो सम्बंधित क्षेत्र के समाज की वह क्षति अर्थात नुकसान स्थायी हो जाता है ।इस वर्ष अभी तक देश में भीषण गर्मी का दौर जारी है और देश में सामान्य से कम वर्षा होने अर्थात मानसून की अस्थिरता के कारण सूखे की आशंका व्यक्त की जा रही है। एक ओर जहाँ सूर्यदेव भीषण अग्नि बरसा रहे हैं, वहीं मानसून को लेकर बेचैनी मायूसी में तब्दील होती जा रही है। पन्द्रह जून तक देश में सर्वत्र मानसून आने के पूर्वानुमान ध्वस्त हो चुके हैं और अब जनता से लेकर सरकार के माथे तक पर चिन्ता के बल पड़ने आरम्भ हो गए हैं। कारण यह है कि अभी किसान गेहूँ व अन्य रवि की फसल में हुए नुकसान से उबरे भी नहीं हैं कि एक और बड़े खतरे की चेतावनी आ गई है। भारतीय मौसम विभाग ने इस वर्ष मानसून सामान्य से कम रहने की आशंका जतलाई है। मौसम विभाग के इस वर्ष के प्रथम पूर्वानुमान के मुताबिक लम्बी अवधि के औसत के अनुसार मानसून के दौरान औसत की 93 फीसदी बारिश होगी। जो सामान्य से कम है। परिपाटी के अनुसार दूसरा पूर्वानुमान जून में होता है, जो काफी सटीक होता है। मौसम विभाग ने 2014 के अपने पहले अनुमान में मानसून के सामान्य से 95 फीसदी रहने का अनुमान लगाया था, लेकिन बारिश 88 फीसदी ही हुई थी।बांग्लादेश में सम्पन्न साउथ एशियन क्लामेट फोरकॉस्ट की बैठक के निष्कर्षों में भी दक्षिण एशिया में मानसून सामान्य से कम रहने की बात बतलाई गई है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली की निदेशक डॉ रविन्द्र कौर ने बतलाया कि बैठक में नतीजा निकला कि दक्षिण एशिया में मानसून सामान्य से कम रहेगा, और इस बार अल-नीनो का प्रभाव पडऩे की आशंका ज्यादा है ।मौसम विज्ञान के अनुसार प्रशान्त महासागर क्षेत्र में अलनीनो का प्रभाव इस बार दक्षिण एशिया के देशों में भारत, पाकिस्तान व श्रीलंका में वर्षा को बिगाड़ सकता है और आशंका है कि सूखे की स्थिति खेती में आ सकती है.। इस बीच एक अमेरिकी एजेंसी एक्यूवेदर ने भी भारत में भीषण सूखा पड़ने की आशंका जताई है। एजेंसी का आकलन है कि प्रशांत महासागर में बन रही परिस्थितियों के चलते इस बार मानसून कमजोर रहेगा। महासागर से कई बड़े तूफान उठने वाले हैं जो मानसून को भटका देंगे। इसका असर न केवल भारत बल्कि पाकिस्तान पर भी पड़ेगा।
मौसम विभाग का कहना है कि मानसून सामान्य से कम रहने का सर्वाधिक असर देश के उत्तरी, पश्चिमी और मध्य भारत की कृषि पर पड़ेगा, लेकिन आगे होने वाली कम वर्षा को ध्यान में रखते हुए किसान इसके अनुरूप खेती की तैयारी कर सकते हैं। समस्या के त्वरित निदान के लिए वैज्ञानिकों की सलाह है कि ऐसे में किसान कम समय में पैदा होने वाली धान की फसलें लगायें और फसलोपज में होने वाली क्षति को कम करने की कोशिश करें, परन्तु देश के कृषि परम्परा के जानकार अनुमान व्यक्त करने लगे हैं कि कम बारिश के अनुमान की वजह से सम्भव है कि इस साल धान की फसल की बुआई ही कम हो। ऐसे लोगों का कहना है कि भले ही केन्द्र व राज्य सरकारें मौसम की मार से निपटने के लिए युद्धस्तर पर तैयारी कर रही है,लेकिन खराब मानसून की आशंका का ढिंढोरा पीटने से इसका सीधा खराब असर देश के किसानों के मनःस्थिति, मनोदशा व मनोविज्ञान पर हुआ है और किसानों के साथ ही देश की जनता में घबराहट बनी हुई है। किसान कम वारिश की स्थिति में जान-बुझकर धान की बुआई का जोखिम क्यों लेगा?
उल्लेखनीय है कि केन्द्र सरकार के द्वारा मौसम की मार से निपटने के लिए युद्धस्तर पर की जाने वाली तैयारियों के मद्देनजर आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी ने अकेले चीनी मिल मालिकों के लिए छह हजार करोड़ रुपए के ब्याज मुक्त कर्ज का ऐलान और अनाजों की जमाखोरी रोकने और जरूरी अनाजों का आयात बढ़ाने का भी फैसला किया है। परन्तु प्रश्न उत्पन्न होता है कि मौसम की मार से निपटने की जो तैयारी सरकार के स्तर से की गई है, उसका देश के किसानों को क्या फायदा होगा, और होगा तो कितना होगा? क्या देश का किसान इस भरोसे में, विश्वास में आ गया है कि सरकार उसका ख्याल रख रही है और अगर इस वर्ष भी मानसून ने धोखा दिया तब भी उनके सामने कोई संकट नहीं आएगा? दरअसल किसान इस बार पूर्व की वर्षों के अपेक्षा ज्यादा आशंकित हैं। कारण यह है कि इस बार खराब मानसून होने का हल्ला समय के पूर्व ही आरम्भ हुआ है और घर-घर तक पहुँच गया है। चौबीसों घंटे चलने वाले खबरिया चैनलों तथा हाल में केन्द्र सरकार के द्वारा शुरू किए गये किसान चैनल से लोगों को सारी सूचनायें शीघ्रातिशीघ्र मिल रहीं हैं और देश की जनता के कान यह सुन-सुन कर पक चुके हैं कि मानसून की रफ्तार बहुत धीमी है और यह तेजी से आगे नहीं बढ़ रहा है। मानसून की अस्थिरता के कारण किसान खरीफ की फसल को लेकर आशंका में है और कयाश लगाया जा रहा है कि कम बारिश के अनुमान की वजह से इस वर्ष धान की फसल की बुवाई करने का जोखिम उठाने की कोशिश नहीं करेगा।
ध्यातव्य है कि है धान की सर्वाधिक खेती उत्तर, पूर्वी और मध्य भारत के राज्यों में अधिक होती है और इन्हीं राज्यों में बारिश कम होने का अनुमान जतलाया गया है। किसानों को पता है कि अगर बारिश कम होगी तो उनके पास सिंचाई का दूसरा साधन उपलब्ध नहीं है। वैकल्पिक साधन इतना महँगा है कि हर किसान उसका इस्तेमाल नहीं कर सकता। इसलिए बुआई की क्षेत्रफल घट सकती है। जो किसान बुआई करेंगे उनकी भी निर्भरता मानसून की वर्षा पर ही होगी। हालाँकि सरकार यह भरोसा दिला रही है कि कम बारिश हुई तो वैकल्पिक साधनों से सिंचाई करने में सरकार किसानों की मदद करेगी। किसानों के लिए बिजली और डीजल की अलग सब्सिडी पर भी विचार हो सकता है। सरकार की सक्रियता और तैयारियों से किसानों को इतना भरोसा मिला है कि उन्हें खाद, बीज समय पर मिल जाएगा। हो सकता है कि कर्ज भी थोड़ी आसानी से मिल जाए और बीमा रकम के दावे का निपटारा भी जल्दी हो। सरकार जरूरी अनाज आयात करने वाली है, ताकि अनाज की कमी देश में पैदा न हो। चूँकि रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने मौसम विभाग के हवाले से ही कहा है कि कम बारिश के बाद महँगाई बढ़ सकती है इसलिए सरकार को कीमतों की भी चिन्ता करनी है। खराब मानसून की वजह देश के अर्थव्यवस्था पर भी बुरा असर पड़ने की संभावना है। ऐसे में सिर्फ भारतीय मौसम विभाग के इस वक्तव्य से उम्मीद जगती है जिसमें कहा गया है कि जब पिछले वर्ष १२ फीसदी कम बारिश हुई थी तो हालात को सम्भाल लिया गया था, तब इस वर्ष भी ऐसा किया जा सकता है। किन्तु भावी सूखे की हालात को देखते हुए सरकार एवं अन्य संस्थाओं को अभी से ही भविष्य की रणनीति बनानी शुरू कर देनी चाहिए वरना सूखे से हालात और बुरे हो सकते हैं। जनता को भी भविष्य के अनुमानित खतरे को भांपते हुए जल संचय करना चाहिए और अपने आस-पास पर्यावरण संरक्षण के कार्य को बढ़ावा देना चाहिए ताकि इस सम्भावित सूखे की स्थिति से निपटा जा सके। इस समय सूखे की आशंका के मध्य कच्चे तेल के दाम भी बढ़ रहे हैं। जिससे अर्थव्यवस्था पर दोहरी मार पडे़गी और जनता बेहाल हो जाएगी। इस स्थिति के त्वरित निदान के साथ ही इनका स्थायी समाधान का प्रबन्ध भी होना चाहिए, ताकि ऐसी प्राकृतिक विपदायें फसल के साथ ही जान-माल को ज्यादा नुकसान न पहुँचा पायें। भूकम्प, सूखा, बाढ़, सुनामी, कटरीना आदि प्राकृतिक आपदायें कई बार इतनी विकराल होती हैं कि संसार की कोई भी शक्ति अथवा सरकार उनका मुकाबला नहीं कर सकती। नेपाल ही नहीं, चीन, जापान और अमरीका भी अकसर प्रकृति के प्रकोप के आगे बेबस नजर आते हैं, लेकिन नुकसान हो जाने के बाद की सक्रियता और राहत भी जनता में एक खास तरह का संदेश देती है। इसलिए सरकार को प्राकृतिक आपदाओं के दौरान उत्पन्न होने वाली सम्भावित खतरों से निपटने के लिए सदैव तत्पर रहना ही श्रेयस्कर है।
उगता भारत , साप्ताहिक में प्रकाशित

Tuesday, June 23, 2015

म्यांमार में सैनिक अभियान से पाक में भय और बेचैनी का आलम -अशोक “प्रवृद्ध”

नॉएडा से प्रकाशित होने वाली हर राष्ट्रवादी की पहली पसन्द दैनिक उगता भारत के सम्पादकीय पृष्ठ पर दिनांक- २३ जून २०१५ को प्रकाशित लेख - म्यांमार में सैनिक अभियान से पाक में भय और बेचैनी का आलम - अशोक "प्रवृद्ध"
उगता भारत, दिनांक - २३ जून २०१५ 

म्यांमार में सैनिक अभियान से पाक में भय  और बेचैनी का आलम 
-अशोक “प्रवृद्ध”

चोरी-छुपे छद्म रूप से घात लगाकर मणिपुर के चंदेल जिले में भारतीय सेना के अठारह जवानों की हत्या करने वाले आतंकवादियों का भारतीय सेना ने म्यांमार में घुसकर साहसिक कमांडो कार्रवाई के माध्यम से जो दुर्गति की है,उससे न केवल भारतीय सेना की सक्रियता और विदेशी धरती में उसके साहस और शक्ति का अदम्य प्रदर्शन हुआ है, बल्कि उससे पडोसी देश पाकिस्तान थर्राया हुआ है और दोनों देशों में प्रतिक्रियाओं का एक नया दौर चल पडा है। भारतवर्ष में जहाँ मणिपुर में भारतीय सैनिकों के हत्यारों को म्यांमार में मार गिराए जाने से देश की जनता और सेना का मनोबल ऊँचा हुआ है, वहीं भारतीय मंत्रियों के बयान और भारतीय सेना के बुलन्द हौसले के समक्ष पाकिस्तानी सेना, वहाँ की सरकार के नेताओं और हुक्मरानों में भारी भय, बेचैनी, हताशा व थरथराहट व्याप्त है। भय, हताशा व थरथराहट का आलम यह है कि पाकिस्तान के आन्तरिक मामलों से जूझ रही पाकिस्तानी सेना और जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान के छद्म अभियान से जुड़े आतंकवादियों, विघटनकारियों में बड़ी अफरा-तफरी और खलबली मच गई है और पाक को अपना सुरक्षित शरणगाह बनांये हुए उग्रवादी संगठन अपने ठिकाने बार-बार बदलने लगे हैं। म्यांमार में सैनिक कार्रवाई से पाकिस्तान बौखलाया हुआ है और उसके सामने यह संकट आन खड़ा हुआ है कि वह अपने देश और अपनी सेना के धराशायी मनोबल को कैसे ऊपर उठाये? पाकिस्तान मान रहा है कि भारतवर्ष उसके यहाँ भी म्यांमार जैसी सैनिक कार्रवाई कर सकता है, और इस बेचनी में पाकिस्तानी नेता भारत को परमाणु बम इस्तेमाल करने की धमकी देने लगे हैं।
म्यांमार में उग्रवादियों के विरूद्ध भारतीय सैनिक अभियान के पश्चात् पाकिस्तानी नेताओं और हुक्मरानों के बयानों में बौखलाहट स्पष्ट देखी जा सकती है। भारतवर्ष की इस सैनिक कार्रवाई ने पाकिस्तान को झकझोर कर रख दिया है, जिसकी प्रतिक्रिया में पाकिस्तान के रक्षा मंत्रालय से जुड़े मंत्री राणा तनवीर हुसैन ने एक आधिकारिक बयान में भारत को चेतावनी देते हुए कहा है कि हम म्यांमार नहीं हैं, क्या आपको हमारी सैन्य शक्ति का एहसास नहीं है? पाकिस्तान एक न्यूक्लियर नेशन है, इस कारण भारत को दिन में सपने देखना बन्द कर देना चाहिए। उधर पाकिस्तान के गृहमंत्री चौधरी निसार अली खान ने भी तिलमिलाकर चेतावनी भरे लहजे में कहा कि पाकिस्तानी सुरक्षा बल विदेशी हमलों का जवाब देने में पूरी तरह सक्षम है। पाकिस्तान की थरथराहट का ही यह परिणाम है कि म्यांमार में सैनिक कार्रवाई के पश्चात् वहाँ के हुक्मरान, पाकिस्तानी मंत्री, नेताओं के साथ ही पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने चेतावनी देते हुए कहा कि भारत का एजेन्डा पाकिस्तान को दबाने का है। अगर भारत से बराबरी करके मुकाबला नहीं किया जाएगा तो वो और दबाएगा। भारत हमारी सीमा में ना घुसे क्योंकि हम छोटी ताकत नहीं बल्कि न्यूलियर पॉवर हैं। अगर हमारा वजूद खतरे में आता है तो ये किसलिए रखे हैं? हम पर हमला नहीं कीजिए क्योंकि हम एक बड़ी और परमाणु शक्ति हैं। इस कमाण्डो अभियान अर्थात आपरेशन ने चीन और पाकिस्तान समेत शेष भारतवर्ष विरोधी उग्रवादी संगठनों के संरक्षक विदेशी संसार को चौकन्ना कर चिंतित कर दिया है कि भारतवर्ष आतंकवाद के विरूद्ध इस पराकाष्ठा तक भी जा सकता है। जबकि चीन आज तक म्यांमार में ऐसा आपरेशन करने में नाकाम रहा है, हालाँकि वहाँ के कोकांग विद्रोही अतिवादियों ने चीन की नाक में दम कर रखा है।


पाकिस्तान की थरथराहट, तिलमिलाहट व बौखलाहट का एक कारण यह भी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतवर्ष के विरूद्ध खड़े सभी उग्रवादी गुटों पर सख्त कार्रवाई के लिए सेना को छूट दे दी है। उस पर तुर्रा यह कि भारतीय सेना को इधर प्रधानमंत्री ने तत्काल म्यांमार में आतंकवादियों के खिलाफ सैनिक कार्रवाई की मंजूरी दी और उधर सेना ने अपने चालीस मिनट के उग्रवाद विरोधी अभियान में न सिर्फ सौ से अधिक उग्रवादियों को मौत के घाट उतार दिया, अपितु उग्रवादियों के म्यांमार में दूर तक फैले दो बड़े शिविरों को भी पूरी तरह से तहस-नहस और ध्वस्त कर दिया। सम्पूर्ण संसार के समक्ष यह सैनिक कार्रवाई इसलिए और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंयकि माना यह जाता है कि इन सशस्त्रक उग्रवादियों को चीन का समर्थन प्राप्त है और ये उग्रवादी चीन में निर्मित घातक हथियारों का इस्तेमाल करते हैं। विदेशी भूमि पर भारतीय सैनिक कार्रवाई के संदेश का एक संकेत यह भी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसा कोई भी बड़ा और अहम फैसला कभी भी ले अथवा कर सकते हैं, जो भारतवर्ष की पूर्ववर्ती सरकारें नहीं कर पाईं। सरकार की इसमें एक कूटनीतिक सफलता यह भी है कि उसने न केवल म्यांमार सरकार का इस सैनिक अभियान के लिए समर्थन हासिल किया, वरन म्यांमार सरकार ने भी मोदी की पहल पर सुर ताल मिलाते हुए सम्पूर्ण संसार को यह दिखला दिया कि वह किसी भी तरह के आतंकवाद के सख्त खिलाफ है,और वह अभी भी उग्रवादियों के सफाए के लिए अभियान चलाने लगा है, इससे चीन की भी काफी किरकिरी हो रही है। विदेशी भूमि पर सैनिक कार्रवाई से भारतवर्ष के विरूद्ध सक्रिय पाकिस्तान सहित सभी विदेशी उग्रवादी गुटों में डर. भय और दहशत का स्पष्ट संदेश गया है कि भारतीय सेना कहीं भी और कभी भी ऐसी सफल कमाण्डो कार्रवाई कर सकती है तथा आतंकवादियों के सफाए के लिए उसे अपनी सीमाओं से आगे जाने में कोई हिचक नहीं होगी। यह पूरी तरह से राष्ट्रीय प्रतिक्रियावादी आपरेशन था।

उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान की डर, भय व दहशत में केन्द्रीय रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर और केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण राज्य मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर के द्वारा म्यांमार में सैनिक अभियान के पश्चात् दिए उन वयानों ने आग में घी काम किया जिनमें मंत्रीद्वय ने अलग-अलग वक्तव्यों में म्यामांर में सेना के अभियान की प्रशंसा करते हुए कहा था कि यह एक शुरुआत है और इस अभियान को विशेष बलों ने पूरी तरह से स्वयं अंजाम दिया। केन्द्रीय रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने म्यामांर अभियान को बदली सोच का परिचायक करार देते हुए पाकिस्तान पर चुटकी लेते हुए कहा था कि जो लोग भारत के नए रूख से भयभीत हैं, उन्होंने प्रतिक्रिया व्यक्त करनी शुरू कर दी है। अगर सोच के तरीके में बदलाव आता है, तब कई चीजें बदल जाती हैं, आपने पिछले दो-तीन दिनों में ऐसा देखा है कि उग्रवादियों के खिलाफ एक सामान्य कार्रवाई ने देश में सम्पूर्ण सुरक्षा परिदृश्य के बारे में सोच को बदल दिया है। केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण राज्य मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर का कहना था कि यह आतंकवाद से निपटने में भारतवर्ष की रणनीति में बदलाव का प्रतीक है और मेरा मानना है कि यह समय की जरूरत है और पूरा देश यह चाहता था और इसी कारण से लोगों ने केन्द्र में एक मजबूत सरकार को मतदान किया है। राठौर का कहना था कि तुम्हारी यह सोच है कि आतंकी कारवाई कर तुम अपने क्षेत्र में चले जाओगे तो तुम्हें कोई पकड़ेगा नहीं, यह संदेश बहुत महत्वपूर्ण है कि हम तुम्हें निशाना बनायेंगे चाहे तुम कहीं भी रहो। हमें विश्व के किसी भी स्थान पर भारतीयों पर हमले अस्वीकार्य हैं और प्रभावी गुप्तचरी के आधार पर हम अपने चुने हुए स्थान और समय पर सर्जिकल स्ट्राइक हमले करेंगे। सेना के पास मजबूत क्षमता है और उसे एक मजबूत नेता की जरूरत थी, जो ऐसे कड़े निर्णय कर सके और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसे सख्त और कड़े निर्णय लेने में सक्षम व मजबूत नेता हैं।उन्होंने स्पष्टतः कहा कि प्रधानमंत्री की मंजूरी के बाद सेना ने म्यांमार में यह कार्रवाई की है। यह उग्रवादियों की आदत बन गई थी कि वे सेना या अर्द्धसैनिक बलों अथवा देश के नागरिकों पर हमले करते थे और उसके बाद भागकर सीमापार स्थित अपने सुरक्षित पनाहगाह में शरण ले लेते थे, क्योंकि उन्हें इस बात का भरोसा था कि भारतीय सशस्त्र बल वहाँ तक उनका पीछा नहीं करेंगे। उन सभी के लिए अब बिल्कुल स्पष्ट संदेश है, जो हमारे देश में आतंकवादी इरादे रखते हैं, यह यद्यपि अभूतपूर्व है, तथापि हमारे प्रधानमंत्री ने एक बहुत ही साहसिक कदम उठाया और म्यांमार में कार्रवाई के लिए मंजूरी दी ।यह नि:संदेह तौर पर उन सभी देशों को एक संदेश है, जो आतंकवादी इरादे रखते हैं, चाहे वे पश्चिम हों या वह विशिष्ट देश जहाँ हम वर्तमान समय में गए। यदि देश में भी ऐसे समूह हैं, जो आतंकवादी इरादे रखते हैं तो हम उन्हें निशाना बनाने के लिए सही समय और स्थान का चयन करेंगे।
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी मणिपुर के चंदेल जिले में सेना के जवानों पर हुए आतंकी हमले की कड़े शब्दों में निन्दा की है. और सरकार की कारर्वाई पर पूर्ण सहमति व्यक्त करते और सैनिकों की प्रशंसा व उत्साहवर्द्धन करते हुए जनरल दलबीर सिंह को भेजे अपने संदेश में कहा है कि मुझे आतंकी हमले से गहरा दुःख पहुँचा है। ड्यूटी पर तैनात सुरक्षा बलों पर बारम्बार होने वाले ऐसे हमलों से कड़ाई से निपटा जाना चाहिए, मैं सभी सम्बंधित प्राधिकरणों का इस जघन्य हमले के जिम्मेदार लोगों को न्याय के कटघरे तक लाने और मणिपुर राज्य में कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए मिलकर काम करने का आह्वान करता हूँ।

पूर्णतः सफल इस सैनिक कारर्वाई से भारतीय सैनिकों का मनोबल भी निश्चित रूप से बढ़ा है। सैन्य अभियान के महानिदेशक मेजर जनरल रणबीर सिंह ने कहा कि कि यह पहली बार हुआ है कि भारतीय सेना ने सीमा पार कमाण्डो कार्रवाई की है, जो आतंकवाद के खिलाफ सक्रिय पहल का द्योतक है। उन्होंने कहा कि सीमा और सीमावर्ती राज्यों पर अमन चैन सुनिश्चित करते हुए हमारी सुरक्षा, संरक्षा व राष्ट्रीय एकता के प्रति किसी भी खतरे से कड़ाई से निबटा जाएगा।

Saturday, June 20, 2015

हास्यास्पद है योग का विरोध -अशोक “प्रवृद्ध”

राँची झारखण्ड से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र राष्ट्रीय खबर के सम्पादकीय पृष्ठ पर दिनांक- १५ जून २०१५ को प्रकाशित लेख - हास्यास्पद है योग का विरोध -अशोक “प्रवृद्ध”
राष्ट्रीय खबर , दिनाँक- २० जून २०१५ 

हास्यास्पद है योग का विरोध
 -अशोक “प्रवृद्ध”

एक ओर जहाँ केन्द्र सरकार ने इक्कीस जून को आहूत अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में से कई मुस्लिम संगठनो के विरोध के बाद सूर्य नमस्कार को हटाने का निर्णय कर लिया है वहीँ दूसरी ओर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की आनुसंगिक संस्था संस्कार भारती ने केन्द्र सरकार से भारतवर्ष के सभी विद्यालयो मे सूर्य नमस्कार और योग को अनिवार्य करने का आग्रह कर वैदिक सनातन धर्म के समर्थकों के दिलों में गहरे तक पैठ बनाने का काम किया है। मुस्लिम परस्त संगठनों द्वारा सूर्य नमस्कार और योग के विरोध के मध्य संस्कार भारती ने विद्यालयों में सूर्य नमस्कार और योग शिक्षा को अनिवार्य करने की माँग कर प्राचीन भारतीय साभ्यता-संस्कृति के पुनरुत्थान की दिशा में प्राचीन गौरवमयी भारतवर्ष के समर्थकों की आवाज को एक नई ऊँचाई प्रदान करने की कोशिश की है ।गौरवमयी प्राचीन भारतवर्ष की सभ्यता-संस्कृति, साहित्य-इतिहास के उत्कृष्ट मूल्यों के प्रतिस्थापन करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा स्थापित की गई संस्कार भारती की अखिल भारतीय उपाध्यक्ष माधवी ताई कुलकर्णी ने 14 मई रविवार को कहा कि केन्द्र सरकार को भारतवर्ष के सभी विद्यालयो मे योग के पाठ्यक्रम और अभ्यास को अनिवार्य कर देना चाहिए। माधवी ताई कुलकर्णी कहती है कि आज के समय मे लोगो की स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याये बढ़ती जा रही है। यह गम्भीर चिंता की बात है कि बीमार बच्चो की संख्या भी बढ़ रही है। कंप्यूटर, मोबाईल, फोन, टीवी की वजह से बच्चो का खेलना कम हो रहा है। इसलिए विद्यालयों मे योग शिक्षा अनिवार्य करने से बच्चो का शारिरिक-मानसिक विकास होगा। उनमे तनाव कम होगा साथ ही उनका चारित्रिक विकास भी होगा।

गौरतलब है कि भारतवर्ष में कुछ मुस्लिम परस्त संगठन योग को धार्मिक कर्मकाण्ड बताकर इसका विरोध करते रहे हैं, और पिछले दिनों देश के कई हिस्सों से इस तरह की खबरें आ रही थी कि मुस्लिम समुदाय को सूर्य नमस्कार के बारे मे कुछ आपत्तियाँ है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने विद्यालयों में कराए जा रहे योग से भी सूर्य नमस्कार को हटाने की माँग की है। मुस्लिम समुदाय के विरोध को देखते हुए सरकार ने अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के कार्यक्रम से सूर्य नमस्कार को हटाने का फैसला कर लिया है। यह कितनी हास्यास्पद स्थिति है कि जो योग भारतवर्ष की प्राचीन गौरवमयी सभ्यता-संस्कृति की अनमोल देन व पुरातन गौरवमयी अस्मिता की पहचान है और जिसके महत्व को आज सम्पूर्ण विश्व स्वीकार कर रहा है अर्थात जिसको वैश्विक स्वीकृति प्राप्त हो चुकी हो, उस योग के राष्ट्रीय कार्यक्रम का विरोध उसके मूल जन्मदातृ देश में ही किया जा रहा है। योग की आध्यात्मिकता को छोड़ भी दिया जाये तो भी योग के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ के लिए उपयोगी होने से किसी की भी कोई असहमति नहीं हो सकती है। यह बात सभी जानते हैं कि योग बिना आर्थिक व्यय के ही अनेक व्याधियों को नष्ट अर्थात दूर करने की क्षमता रखता है। परन्तु यह जानकर भी अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के दिन सामूहिक योग करने का व इसके ही एक आसन सूर्य नमस्कार के बहाने कुछ मुस्लिम नेता और उनकी सहयोगी तथाकथित धर्मनिरपेक्ष संस्थाएँ इसका विरोध कर रहे हैं और मोदी सरकार इस मामले में देश में सर्वमान्य स्थिति बनाने में असमर्थ , असफल होकर विरोधियों के सामने झुकती नजर आ रही है ।
यह कितनी हैरत की बात है कि भारतवर्ष में मुस्लिम और अन्य तथाकथित धर्म निरपेक्ष संगठनों के द्वारा सूर्य नमस्कार का विरोध किये जाने के समक्ष देश के प्रधानमंत्री जहाँ झुकते नजर आ रहे हैं वहीँ दूसरी ओर भारतीय योग पद्धत्ति को वैश्विक स्वीकृति मिल रही है। भारतवर्ष में योग को धार्मिक कर्मकाण्ड से जुड़ी प्रक्रिया बताने की भले ही कितनी कोशिशें होती हों, लेकिन एक अमेरिकी अदालत ने ऐसे दावों को बेबुनियाद करार दिया है। कैलिफोर्निया की अपीलीय अदालत का कहना है कि योग साम्प्रदायिक नहीं बल्कि एक धर्मनिरपेक्ष प्रक्रिया है और इसे करने या सिखाने से किसी भी तरह से धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन नहीं होता। अमेरिका के सैन डियागो के एक विद्यालय इंकिनिटास डिस्टि्रक्ट स्कूल में योग की कक्षा को लेकर दो छात्रों और उनके अभिभावकों ने आपत्ति जताई थी और मुकदमा दायर करते हुए दावा किया था कि योग कार्यक्रम से हिन्दू और बौद्ध मत को बढ़ावा दिया जा रहा है और ईसाई धर्म के लिए असुरक्षा पैदा हो रही है। इस मामले में  डिस्टि्रक्ट कोर्ट ने एक निचली अदालत का फैसला बरकरार रखते हुए अभिभावकों के दावे को खारिज कर दिया। यह अप्रैल के पहले सप्ताह की बात है। अदालत ने कहा कि योग कुछ सन्दर्भों में धार्मिक हो सकता है लेकिन ऐसा कोई प्रमाण नहीं है कि विद्यालय में सिखाए जा रहे योग में ऐसा कोई प्रयास हो रहा है। डिस्टि्रक्ट कोर्ट ने कहा कि विद्यालय में सिखाया जा रहा योग किसी धार्मिक या आध्यात्मिक कर्मकाण्ड से सम्बद्ध नहीं है। योग शरीर और मन को शान्ति  देने की पाँच हजार से भी अधिक वर्ष पुरानी भारतीय शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक प्रक्रिया है। अदालत ने अपना फैसला देने से पहले योग विशेषज्ञों द्वारा पारम्परिक जिम की कक्षाओं की बजाय योग की कक्षाएँ संचालित करने का वीडियो भी देखा। अदालत ने कहा, सभी तथ्यों को देखते हुए हमने पाया कि योग प्रशिक्षण अपने उद्देश्य के स्तर पर पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष है। इसके माध्यम से किसी भी धर्म को प्रचारित या प्रसारित नहीं किया जा रहा। अमेरिका के कई स्कूलों में इन दिनों योग की कक्षाएँ संचालित की जा रही हैं।

भारतवर्ष की प्राचीन विधा योग को संयुक्त राष्ट्र की भी स्वीकृति मिल चुकी है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की-मून ने इस बात की स्वीकृति प्रदान करते हुए कहा कि योग भेदभाव नहीं करता है । जब अपनी भारत यात्रा के दौरान उन्होंने अपना पहला आसन करने की कोशिश की तो इससे उन्हें एक संतुष्टि की अनुभूति हुई। योग शारीरिक एवं आध्यात्मिक सेहत और तंदुरूस्ती के लिए एक सरल, सुलभ और समावेशी साधन उपलब्ध करवाता है ।बान ने कहा कि 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में प्रमाणित करते हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इस शाश्वत अभ्यास के लाभों और संयुक्त राष्ट्र के सिद्धांतों एवं मूल्यों के साथ इसके निहित तालमेल को मान्यता दी है। योग शारीरिक एवं आध्यात्मिक सेहत और तंदुरूस्ती के लिए एक सरल, सुलभ और समावेशी साधन उपलब्ध करवाता है। यह साथी इंसानों और हमारे इस ग्रह के प्रति सम्मान को बढ़ावा देता है। बान ने अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का विचार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मस्तिष्क की उपज बताते हुए कहा कि योग को जन स्वास्थ्य में सुधार लाने, शांतिपूर्ण संबंधों को बढ़ावा देने और सभी के लिए सम्मानजनक जीवन में प्रवेश के रूप में ही देखें ।गत वर्ष संयुक्त राष्ट्र में अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विश्व समुदाय से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर योग को प्रसारित करने की अपील करते हुए अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की पैरवी की थी। दिसम्बर में संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष सैम कुटेसा ने 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की। भारत द्वारा लाए गए इस प्रस्ताव के समर्थन में 170 देशों ने मत दिया था।

भारतवर्ष में योग का प्रचार-प्रसार कोई नई बात नहीं है। आपातकाल अर्थात इमरजैंसी में उभरे धीरेन्द्र ब्रह्मचारी उस दौरान नियमित रूप से दूरदर्शन अर्थात सरकारी टीवी पर योग प्रशिक्षण देते थे जिसे टीवी की कम व्याप्ति के बाबजूद बहुत से लोग देखा करते थे। यद्यपि आपातकाल में श्रीमती इंदिरा गाँधी का साथ देने के कारण बहुत लोग उनसे नाराज थे परन्तु उस नाराजगी की स्थिति में भी योग कभी निशाना नहीं बना, परन्तु जैसे ही भारतीय जनता पार्टी ने योग की लोकप्रियता से प्राचीन भारतीय सभ्यता- संस्कृति को मिलती वैश्विक स्वीकृति को नेतृत्व देने की कोशिश शुरू की कीं तो समाज के एक हिस्से को योग से भी अरुचि होने लगी। और योग के नाम पर वे लोग अभी नाक भों सिकोड़ रहे हैं और अपनी मजहबी आस्थाओं में से तर्क तलाशने लगे हैं।


21 जून को विश्व भर मे आयोजित होने जा रही अन्तरराष्ट्रीय योग का मुख्य कार्यक्रम संयुक्त राष्ट्र संघ के न्यूयार्क स्थित मुख्यालय एवं भारतवर्ष मे राजपथ पर होगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी समेत करीब 45 हजार लोग दिल्ली के राजपथ पर योग करेंगे। संयुक्त राष्ट्र ने 21 जून को विश्व योग दिवस घोषित किया है। केन्द्र सरकार इस अवसर पर भव्य आयोजन करने जा रही है। प्रधानमंत्री चालीस हजार लोगों के साथ योग कर विश्व रिकॉर्ड भी बनायेंगे । कार्यक्रम के आयोजनकर्ता आयुष मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार अंतरराष्ट्रीय योग दिवस को 192 देशों की तरफ से समर्थन मिला है। देश के 651 जिलों में  योग कैंप लगवाए जा रहे हैं। लगभग 11 लाख एनसीसी कैडेट्स देश भर में योग करेंगे। राजपथ पर आयोजित होने वाले मुख्य कार्यक्रम में सूरक्षा बलो के भी 5 हजार जवान योग करेंगे। अमेरिका में योग दिवस 21 जून पर आयोजित होने जा रही कई कार्यक्रमों की तैयारी के बीच एक वरिष्ठ भारतीय राजनयिक न्यूयॉर्क में भारत के महावाणिज्यदूत दयानेश्वर मुलय ने कहा है कि पहले अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का मकसद इस प्राचीन भारतीय सांस्कृतिक धरोहर को आधुनिक समय का मंत्र बनाना है। योग दिवस इस बात की स्वीकारोक्ति है कि योग भारत से शुरू हुई सभ्यता-संस्कृति की विरासत है।

Friday, June 19, 2015

राष्ट्र के कामकाज और व्यवहार की भाषा ही देश की भाषा हो -अशोक “प्रवृद्ध”

दैनिक उगता भारत के सम्पादकीय पृष्ठ पर दिनांक- १९ जून २०१५ को प्रकाशित लेख -राष्ट्र के कामकाज और व्यवहार की भाषा ही देश की भाषा हो
-अशोक “प्रवृद्ध”
उगता भारत, दिनांक- १९ जून २०१५ 


राष्ट्र के कामकाज और व्यवहार की भाषा ही देश की भाषा हो 
-अशोक “प्रवृद्ध”

जातीय अर्थात राष्ट्रीय उत्थान और सुरक्षा के लिये किसी भी देश की भाषा वही होना श्रेयस्कर होता है,जो जाति अर्थात राष्ट्र के कामकाज और व्यवहार की भाषा होl समाज की बोल-चाल की भाषा का प्रश्न पृथक् हैlजातीय  सुरक्षा हेतु व्यक्तियों के नामों में समानता अर्थात उनके स्त्रोत में समानता होने या यों कहें कि नाम संस्कृत भाषा अथवा ऐतिहासिक पुरुषों एवं घटनाओं और जातीय उपलब्धियों से ही सम्बंधित होने का सम्बन्ध समस्त हिन्दू समाज से है, चाहे वह भारतवर्ष में रहने वाला हिन्दू हो अथवा किसी अन्य देश में रहने वाला होlहिन्दू समाज किसी देश अथवा भूखण्ड तक सीमित नहीं है वरन यह भौगोलिक सीमाओं को पार कर वैश्विक समाज बन गया है lइस कारण समाज की भाषा,नित्यप्रति के व्यवहार का माध्यम तो अपने-अपने देश की भाषा ही होनी चाहिये और होगी और अपने समाज का साहित्य और इतिहास उस देश की भाषा में अनूदित करने का प्रयत्न करना चाहिये, ताकि भावी पीढ़ी अपने मूल भारतीय समाज से कट कर रह न जायेl जातीय भाषा उस देश की भाषा ही होनी चाहिये जिस देश में समाज के घटक निवास करते होंlयद्यपि यह निर्विवाद सत्य है कि संस्कृत भाषा और इसकी लिपि देवनागरी सरलतम और पूर्णतः वैज्ञानिक हैं और यह भी सत्य है कि यदि मानव समाज कभी समस्त भूमण्डल की एक भाषा के निर्माण का विचार करेगी तो उस विचार में संस्कृत भाषा और देवनागरी लिपि अपने-अपने अधिकार से ही स्वतः स्वीकृत हो जायेंगीlजैसे किसी भी व्यवहार का प्रचलित होना उसके सबके द्वारा स्वीकृत किया जाना एक प्रबल युक्ति हैlइस पर भी व्यवहार की शुद्धता,सरलता और सुगमता उसके स्वीकार किये जाने में प्रबल युक्ति हैlसंसार कि वर्तमान परिस्थितियों में भिन्न-भिन्न देशों में रहते हुए भी हिन्दू समाज अपने-अपने देश की भाषा को अपनी देश मानेंगे और भारतवर्ष के हिन्दू समाज का यह कर्तव्य है कि अपना मूल साहित्य वहाँ के लोगों से मिल कर उन देशों की भाषा में अनुदित कराएं जिन-जिन देशों में हिन्दू-संस्कृति के मानने वाले लोग रहते हैंl

समस्त संसार की एकमात्र भाषा व उसकी लिपि का प्रश्न तो अभी भविष्य के गर्भ में है, जब कभी इस प्रकार का प्रश्न उपस्थित होगा तब संस्कृत भाषा व देवनागरी लिपि का दावा प्रस्तुत किया जायेगा और भाषा के रूप में संस्कृत भाषा और देवनागरी लिपि अपनी योग्यता के आधार पर विचारणीय और अन्ततः सर्वस्वीकार्य होगीl जहाँ तक हमारे देश भारतवर्ष का सम्बन्ध है यह प्रश्न इतना जटिल नहीं जितना कि संसार के अन्य देशों में हैlभारतवर्ष की सोलह राजकीय भाषाएँ हैंlइन भाषाओँ में परस्पर किसी प्रकार का विवाद भी नहीं हैlहिन्दी के समर्थकों ने कभी भी यह दावा नहीं किया कि किसी क्षेत्रीय भाषा के स्थान पर उसका प्रचलन किया जाये,ना ही कभी इस बात पर विवाद हुआ कि किसी क्षेत्रीय भाषा को भारतवर्ष की राष्ट्रभाषा बनाने में बाधा उत्पन्न की जायेlस्वराज्य के आरम्भिक काल में किसी मूर्ख हिन्दी भाषी श्रोत्ता ने किसी के तमिल अथवा बँगला बोलने पर आपत्ति की होगी,यह उसके ज्ञान की शून्यता और बुद्धि की दुर्बलता के कारण हुआ होगाlहिन्दी का किसी भी क्षेत्रीय भाषा से न कभी किसी प्रकार का विवाद रहा है और न ही अब हैlवास्तविक विवाद तो अंग्रेजी और हिन्दी भाषा के मध्य है, और यह विवाद इंडियन नॅशनल काँग्रेस की देन हैlजब १८८५ में मुम्बई तत्कालीन बम्बई में काँग्रेस का प्रथम अधिवेशन हुआ था तब उसमें ही यह कहा गया था कि इस संस्था की कार्यवाही अंग्रेजी भाषा में हुआ करेगीlउस समय इसका कोई विकल्प नहीं था, क्योंकि उस काँग्रेसी समाज में केवल अंग्रेजी पढ़े-लिखे लोग ही थेlवहाँ कॉलेज अर्थात महाविद्यालय अथवा विश्वविद्यालयों के स्नात्तकों के अतिरिक्त अन्य कोई नहीं थाl न ही इस संस्था को किसी प्रकार का सार्वजनिक मंच बनाने का ही विचार थाl और न ही उस समय कोई यह सोच भी सकता था कि कभी भारवर्ष से ब्रिटिश साम्राज्य का सफाया भी होगाlकारण चाहे कुछ भी रहा हो किन्तु यह निश्चित है कि तब से ही अंग्रेजी की महिमा बढती रही है और यह निरन्तर बढती ही जा रही हैlबाल गंगाधर तिलक ने दक्षिण में और आर्य समाज ने उत्तर में इसका विरोध किया,परन्तु आर्य समाज का विरोध तो १९०७ में जब ब्रिटिश सरकार का कुठाराघात हुआ तो धीमा पड़ गया और बाल गंगाधर तिलक के आन्दोलनकी समाप्ति उनके पकड़े जाने और छः वर्ष तक बन्दी-गृह में बन्द रहकर गुजारने के कारण हुयीlजहाँ तिलक जी बन्दी-गृह से मुक्त होने के उपरान्तमोहन दास करमचन्द गाँधी की ख्याति का विरोध नहीं कर सके वहाँ आर्य समाज भी गाँधी के आंदोलन के सम्मुख नत हो गयाlगाँधी प्रत्यक्ष में तो सार्वजनिक नेता थे,परन्तु उन्होंने अपने और काँग्रेस के आंदोलन की जिम्मेदारी अर्थात लीडरी अंग्रेजी पढ़े-लिखे के हाथ में ही रखने का भरसक प्रयत्न कियाlपरिणाम यह हुआ कि काँग्रेस की जन्म के समय की नीति कि अंग्रेजी ही उनके आंदोलन की भाषा होगी,स्थिर रही और वही आज तक भी बिना विरोध के अनवरत चली आ रही हैl
स्वाधीनता आन्दोलनके इतिहास की जानकारी रखने वालों के अनुसार १९२०-२१ में जवाहर लाल नेहरु की प्रतिष्ठा गाँधी जी के मन में इसी कारण थी कि काँग्रेस के प्रस्तावों को वे अंग्रेजी भाषा में भली-भान्ति व्यक्त कर सकते थेlकालान्तर में तो नेहरु ही काँग्रेस के सर्वेसर्वा हो गये थे,किन्तु यह सम्भव तभी हो पाया था जबकि गाँधी ने आरम्भ में अपने कन्धे पर बैठाकर उनको प्रतिष्ठित करने में सहायता की थीlनेहरु तो मन से ही अंग्रेजी के भक्त थे और अंग्रेजी पढ़े-लिखों में उन्हें अंग्रेजी का अच्छा लेखक माना जाता थाlउनका सम्बन्ध भी अंग्रेजीदाँ लोगों से ही अधिक थाl१९२० से लेकर १९४७ तक गाँधीजी ने प्रयास करके नेहरु को काँग्रेस की सबसे पिछली पंक्ति से लाकर ना केवल प्रथम पंक्ति में बिठा दिया,अपितु उनको काँग्रेस का मंच भी सौंप दिया सन १९२० में जब पँजाबमें मार्शल लॉ लागू किया गया था तो काँग्रेस ने इसके लिये एक उप-समिति का गठन किया थाlउस समय एक बैठक में जवाहर लाल नेहरु की विचित्र स्थिति थेlलाहौर में नकेल की हवेली में जवाहर लाल नेहरु का भाषण आयोजित किया गया थाlउस समय नेहरु की करिश्माई व्यक्तित्व और वाकपटुता की ऊँचाई की स्थिति यह थी कि नेहरु को सुनने के लिये पन्द्रह-बीस से अधिक श्रोतागण वहाँ पर उपस्थित नहीं थेlसन १९२९ में लखनऊ के गंगाप्रसाद हॉल में काँग्रेस कमिटी का अधिवेशन हो रहा थाlउस बैठक के अध्यक्ष मोतीलाल नेहरु थेlउसी वर्ष लाहौर में सम्पन्न होने वाले काँग्रेस के अधिवेशन के लिये अध्यक्ष का निर्वाचन किया जाना था,उसके लिये मोहनदास करमचंद गाँधी और डाक्टर पट्टाभि सितारामैय्या के नाम थेlसितारामैय्या ने गाँधी के पक्ष में अपना नाम वापस ले लियाlऐसी सबको आशा थी और ऐसा सर्वसम्मत निर्णय माना  जा रहा था कि अध्यक्ष पद के लिये गाँधी के नाम की घोषणा हो जायेगी,परन्तु तभी कुछ विचित्र स्थिति उत्पन्न हो गयीlपहले तो कानाफूसी होती रही और फिर जब घोषणा करने का समय आया तो उससे कुछ ही क्षण पूर्व गाँधी और मोतीलाल नेहरु मंच से उठकर बराबर वाले कमरे में विचार-विमर्श करने के लिये चले गयेlपाँच-दस मिनट वहाँ मंत्रणा के उपरान्त जब दोनों वापस आये और अधिवेशन के अध्यक्ष मोतीलाल नेहरु ने घोषणा करते हुए कहा कि गाँधी जी ने जवाहर लाल नेहरु के पक्ष में अपना नाम वापस ले लिया हैlइस प्रकार लाहौर काँग्रेस के अध्यक्ष पद के लिये जवाहर लाल नेहरु के नाम की घोषणा हो गयीlअधिवेशन में उपस्थित सभी सदस्य और दर्शक यह सुन अवाक रह गयेlकुछ मिनट तो इस घोषणा का अर्थ समझने में ही लग गये और जब बात समझ में आयी तो तब किसी ने ताली बजायी और फिर सबने उसका अनुकरण कियाlवहाँ से उठने पर कानाफूसी होने लगी कि यहाँ जवाहर लाल का नाम किस प्रकार आ गया?कसीस ने कहा कि कदाचित एक भी मत उसके पक्ष में नहीं थाl
इसी प्रकार सन १९३६ की लखनऊ काँग्रेस के अवसर पर गाँधीजी के आग्रह पर ही जवाहर लाल नेहरु को काँग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया थाlइसकी पुंरावृत्ति सन १९४६ में भी हुयी थीlउस समय किसी भी प्रांतीय कमिटी की ओर से जवाहर लाल के नाम का प्रस्ताव नहीं आया था,तदपि गाँधी के आग्रह पर श्री कृपलानी की कूटनीति के कारण जवाहर लाल नेहरु को काँग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया और फिर संयोग से भारतवर्ष विभाजन के पश्चात उन्हीं को भारतवर्ष का प्रधानमंत्री बनाया गयाlइस प्रकार स्पष्ट है कि गाँधी तो स्वयं हिन्दी के समर्थक थे,किन्तु सन १९२० से आरम्भ कर अपने अन्तिम क्षण तक वे अंग्रेजी भक्त नेहरु का ही समर्थन करते रहे थे,और जवाहरलाल का भरसक प्रयत्न था कि अंग्रेजी यहाँ की राष्ट्रभाषा बन जायेlइस प्रकार यह ऐतिहासिक सत्य है कि अपने आरम्भ से लेकर अन्त तक काँग्रेस हिन्दी को भारतवर्ष की राष्ट्रभाषा बनने नहीं देना चाहती थीlउसका कारण यह नहीं था कि क्षेत्रीय भाषायें हिन्दी का विरोध करती थीं या करती हैंlभारतवर्ष विभाजन के पश्चात केन्द्र व अधिकाँश राज्यों में सर्वाधिक समय तक काँग्रेस ही सत्ता में रही है और उसने निरन्तर अंग्रेजी की ही सहायता की है,उसका ही प्रचार-प्रसार किया हैlवर्तमान में भी हिन्दी का विरोध किसी क्षेत्रीय भाषा के कारण नहीं वरन गुलामी का प्रतीक अंग्रेजी के पक्ष के कारण किया जा रहा हैlऐसे में स्वाभाविक रूप से यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि इस देश की भाषा वही होगी जो देश की बहुसंख्यक हिन्दू समाज की भाषा होगी अथवा कि उसके स्थान पर बैठी अंग्रेजी ही वह स्थान ले लेगी?लक्षण तो शुभ नहीं दिखलायी देते क्योंकि १८८५ में स्थापित काँग्रेस ने स्वयं तो बिना संघर्ष के मजे का जीवन जिया है, और जहाँ तक भाषा का सम्बन्ध है,काँग्रेस सदा ही अंग्रेजी के पक्ष में रही हैlइसमें काँग्रेस के नेताओं का भी किसी प्रकार का कोई दोष नहीं है,हिन्दी के समर्थक ही इसके लिये दोषी हैंlस्पष्ट रूप से कहा जाये तो देश का बहुसंख्यक समाज इसके लिये दोषी हैlआज तक बहुसंख्यक हिन्दू समाज के नेता रहे हैं कि राज्य के विरोध करने पर भी हिन्दू समाज के आधारभूत सिद्धान्तों का चलन होता रहेगाl
काँग्रेस हिन्दू संस्था नहीं है वर्ण यह कहा जाये कि अपने आधारभूत सिद्धान्तों काँग्रेस हिन्दू विचारधारा का विरोध करने वाली संस्था है तो किसी प्रकार की कोई अतिशयोक्ति नहीं होगीlकाँग्रेस न केवल अंग्रेजियत को ही अपना कंठाभरण बनाये हुए है अपितु यह ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की शिक्षा के आधार पर ईसाईयत के प्रचार को भी पाना कंठाभरण बनाये हुए हैlइस मानसिकता को ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की मानसिकता का नाम दिय जाता है,क्योंकि इस यूनिवर्सिटी की स्थापना ही ईसाईयत के प्रचार के लिये ही की गयी थीlअधिकांश समय तक सत्ता में बैठी भारतवर्ष के काँग्रेस सरकार की मानसिकता यही रही है और इसके लिये जवाहरलाल नेहरु और नेहरु खानदान का काँग्रेस पर वर्चस्व ही मुख्य कारण हैlजवाहर लाल नेहरु की मानसिकता वही थीl

किसी भी प्रकार शिक्षा सरकारी हाथों में नहीं रहनी चाहियेlस्वाभाविक रूप में शिक्षा उअर फिर भाषा का प्रश्न राजनीतिक लोगों के हाथों से निकलकर शिक्षाविदों के हाथ में आ जाना चाहियेlशिक्षा का माध्यम जन साधारण की भाषा होनी चाहियेlविभिन्न प्रदेशों में यह क्षेत्रीय भाषाओँ में दी जानी चाहियेlऐसी परिस्थिति में हिन्दी और हिन्दू-संस्कृति का प्रचार-प्रसार क्षेत्रीय भाषाओँ का उत्तरदायित्व हो जायेगाlअपने क्षेत्र में हिन्दी भी ज्ञान-विज्ञान की वाहिका बन जायेगीlभारतीय संस्कृति अर्थात हिन्दू समाज का प्रचार क्षेत्रीय भाषाओँ के माध्यम से किया जाना अत्युत्तम सिद्ध होगाlशिक्षा का माध्यम क्षेत्रीय भाषा होlसरकारी कामकाज भी विभिन्न क्षेत्रों में उनकी क्षेत्रीय भाषा में ही होनी चाहियेlअंग्रेजी अवैज्ञानिक भाषा है और इसकी लिपि भी पूर्ण नहीं अपितु पंगु हैlक्षेत्रीय भाषाओँ के पनपने से यह स्वतः ही पिछड़ जायेगी अंग्रेजी के विरोध का कारण यह है कि अंग्रेजी का साहित्य संस्कृत उअर वैदिक साहित्य की तुलना में किसी महत्व का नहीं हैlहिन्दू मान्यताओं की भली-भान्ति विस्तार सहित व्याख्या कदाचित अंग्रेजी में उस सुन्दरता से हो भी नहीं सकती जिस प्रकार की संस्कृत में की जा सकती हैlसंस्कृत भाषा में वर्णित उद्गारों अथवा भावों का प्रकटीकरण हिन्दी में बड़ी सुगमता से किया जा सकता हैlइसके अतिरिक्त हिन्दी का अगला पग संस्कृत ही है कोई अन्य भाषा नहींlसंस्कृत के उपरान्त वेद भाषा उसका अगला पग हैlअतः भारतीय अर्थात बहुसंख्यक हिन्दू सुरक्षा का प्रश्न पूर्ण रूप से भाषा के साथ जुड़ा हुआ है क्योंकि मानव मनके उत्थान के लिये हिन्दी और संस्कृत भाषा में अतुल साहित्य भण्डार विद्यमान हैl

Wednesday, June 17, 2015

किसान और मनरेगा अधिनियम -अशोक “प्रवृद्ध”

साप्ताहिक से दैनिक समाचार पत्र में परिणत दैनिक उगता भारत के प्रथम अंक में दिनांक - १७ जून २०१५ को सम्पादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित -किसान और मनरेगा अधिनियम -अशोक “प्रवृद्ध”
दैनिक उगता भारत, दिनाँक- १७ जून २०१५ 
किसान और मनरेगा अधिनियम 
-अशोक “प्रवृद्ध”
गोंदल सिंह गाँव का एक लघु कृषक था और अपने गाँव में रहकर खेती एवं पशुपालन करते हुए अपनी आजीविका मजे में चला रहा था। संपन्न नही था फिर भी खुशहाल जीवन जी रहा था। गोंदल सिंह को खेती से बहुत प्यार था और किसान होने पर उसे गर्व था। वह कहता था - हम किसान अनाज न पैदा करें तो दुनिया भूख से मर जायेगी, जीवन में भोजन की आवश्यकता सबसे पहले और बाकी चीजें बाद में होती है। सत्य ही है, इतनी बडी दुनिया को अगर अनाज न मिले तो लोग पेट की आग शान्त करने के लिये एक दूसरे को मार कर खाने लगेंगे । गोंदल सिंह स्वयं अपनी और बच्चों की तरक्की के लिये नित नये सपने देखता रहता था। कहता बच्चों को पढा लिखा कर बडा आदमी बनाउंगा, चाहे मुझे जितनी मेहनत करनी पडे लेकिन मुझे अपनी गरीबी दूर करना ही है, बच्चों को पढ़ा - लिखाकर शिक्षित करना है।
सन 2006 में भारतवर्ष की कांग्रेसी सरकार ने विदेशियों के इशारे पर महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना (मनरेगा) अधिनियम देश में लागू की तो गोंदल सिंह बडा प्रसन्न हुआ कि अब गाँव के लडकों को शहरों मे मजदूरी करने और ईंट - भट्ठा में काम करने जाने की बजाय गाँव में ही रोजगार मिल सकेगा और गाँव की उन्नति भी होगी, लेकिन मनरेगा धरातल पर आते ही अन्य सरकारी योजनाओं की तरह भ्रष्टाचार की भेंट चढ गयी । गाँव के लोग पंचायत सचिव , ग्राम प्रधान और मुखिया की मिली भगत से योजना में अपना नाम लिखवा लेते और बिना काम किये ही आधी मजदूरी झटक लेते और केन्द्र सरकार का गुणगान करते न थकते।
इधर योजना के दुष्प्रभाव के कारण गोंदल सिंह जैसे किसानों को खेती के लिये मजदूर मिलना मुश्किल होता जा रहा था, गाँव के मजदूर अब मनरेगा के बराबर मजदूरी व काम में ज्यादा सहूलियत माँग रहे थे । मरता क्या न करता ? गोंदल सिंह ने भी मजदूरों की बात मानते हुए उन्हे ज्यादा मजदूरी देनी शुरु कर दी । जिससे खेती की लागत तो बढ ही गयी, समय से काम भी न हो पाता। खेती में लगातार घाटा होने से गोंदल सिंह जैसे न जाने कितने किसान मनरेगा की भेंट चढ गये। मजदूरों की दिनानुदिन बढती हुई माँगो से तंग आ गोंदल सिंह और बहुत से अन्य किसानों ने अपने - अपने खेत साझा अधबटाई ( खेत को दुसरे कृषक को खेती करने के लिए दे देने पर किसान के द्वारा फसलोपाज में से आधा फसल अथवा उसका बाजार मूल्य जमीन मालिक को देने की प्रथा अधबटाई कहते हैं।)पर दे दिये। जब खेती बंद हुई तो जानवरों के लिये भूसा-चारा मिलना भी महंगा हो गया, लिहाजा गोंदल सिंह ने अपने पालतू जानवरों को भी एक -एक कर बेच दिया।
गोंदल सिंह के पास अब कोई विशेष काम नहीं था, तो उसकी संगति भी गाँव के नेता टाईप लोगों से हो गयी, उन लोगों ने कुछ ले - दे कर गोंदल सिंह का नाम पहले मनरेगा में निबंधन करवाया और फिर बीपीएल सूची में दर्ज करवा दिया । अब बिना कुछ किये आधी मजदूरी और लगभग मुफ्त मिलने वाले अनाज से उसके जीवन की गाडी चलने लगी थी। जो गोंदल सिंह अपने परिवार की उन्नति बच्चों की तरक्की की बात करता था, वह अब सरकारी योजनाओं से कैसे लाभ लिया जाये इसकी बात करता था। बच्चों को उसने उनके हाल पर छोड दिया था, कहता इनके भाग्य में लिखा होगा तो कमा-खा लेंगे।
मनरेगा ने गोंदल सिंह जैसे लाखों किसानों का जीवन जीने का तरीका बदल दिया ,जो गोंदल सिंह पहले मेहनत से अपने परिवार का जीवन बदलना चाहता था, वह अब भाग्य भरोसे बैठ गया था।

Monday, June 15, 2015

मेादी की लोकप्रिय योजनायें -अशोक “प्रवृद्ध”

साप्ताहिक से दैनिक समाचार पत्र में परिणत दैनिक उगता भारत के प्रथम अंक दिनांक - १७ जून २०१५ को प्रकाशित लेख -ऐतिहासिक नव कीर्तिमान रचतीं मेादी सरकार की सर्वलोकप्रिय योजनायें
-अशोक “प्रवृद्ध”
दैनिक उगता भारत, दिनाँक- १७ जून २०१५ 


राँची झारखण्ड से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र राष्ट्रीय खबर के सम्पादकीय पृष्ठ पर दिनांक- १५ जून २०१५ को प्रकाशित लेख - मोदी की लोकप्रिय योजनायें -अशोक “प्रवृद्ध”
राष्ट्रीय खबर , दिनांक- १५ जून २०१५ 
मेादी की लोकप्रिय योजनायें
-अशोक “प्रवृद्ध”

विगत वर्ष लोकसभा चुनाव में प्रचण्ड बहुमत से विजयी होकर केन्द्र की सत्ता में सत्तासीन हुई नरेन्द्र मोदी  सरकार की दो सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक यह हैं कि वर्षों बाद ऐसा एक वर्ष आया जब हमें पूरे वर्ष में एक बार भी सरकार या उसके किसी मंत्री पर भ्रष्टाचार का एक भी आरोप देखने-सुनने को नहीं मिला और दूसरी उपलब्धि के रूप में सरकार ने विकास योजनाओं के साथ-साथ समाज से सीधे सम्बन्ध अर्थात समाज से सरोकार रखने वाली योजनायें जैसे बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ अभियान की सुकन्या योजना,बिना पैसे की अर्थात शून्य बैलेंस पर बैंकों में खाता खुलवाने की प्रधानमन्त्री जनधन योजना , तथा स्वच्छ भारत अभियान की साफ़-सफाई व पेयजल एवं स्वच्छता सम्बन्धी योजनायें और सामाजिक सुरक्षा से सम्बंधित वीमा एवं पेंशन सम्बन्धी योजनाओं को प्रारम्भ कर हर भारतीय के जीवन से जुड़ने का सराहनीय प्रयास किया है ।
इसमें कोई शक नहीं कि मोदी सरकार की सामाजिक सुरक्षा से सम्बंधित मोदी सरकार की सभी योजनायें बैकिंग के क्षेत्र में एक नया आकषण पैदा कर रही हैं। अभी तक देश की जनता व साधारण जनमानस में यह भावना व्याप्त रही थी कि बैंक सिर्फ धनी लोगों, अमीरों के लिए बनी हैं और उनके लिए ही काम करती है। मोदी सरकार की इन योजनाओं के कार्यान्वयन के पूर्व ग्रामीण , कस्बाई भारतवर्ष की भेाली- भाली जनता को यह तक नहीं पता था कि बैंक खाता कैसे खुलवाया जाता है? मोदी सरकार ने सामाजिक सुरक्षा से सम्बंधित इन योजनाओं का प्रारम्भ कर देश की जनता को आर्थिक साक्षर करने अर्थात आर्थिक शिक्षा देने, शिक्षित करने का एक अहम् कार्य भी किया है । यही कारण है कि भारतीय जनता पार्टी की नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा प्रारम्भ की गई सामाजिक योजनायें देश के सभी वर्गों में अत्यंत लोकप्रिय होती जा रही हैं और अभी से ही यह कयाश लगाया जाने लगा है कि ये योजनायें देश के आर्थिक स्वावलम्बन की दिशा में मील का पत्थर साबित होंगी और देश के लोगों की भविष्य को सुरक्षित करने के मामले में एक नया इतिहास रच सफलता की नवीन कीर्तिमान गढ़ेंगी। सबका साथ सबका विकास नारे को सम्पूर्णता प्रदान करते हुए ये योजनायें देश के सभी नागरिकों के लिए कल्याणप्रद साबित होंगी।लोगों का कहना है कि प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी के द्वारा प्रधानमन्त्री जन धन योजना की अपार सफलता के बाद सामाजिक सुरक्षा से सम्बंधित तीन महत्वाकांक्षी योजनाओं यथा प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना,जीवन ज्योति बीमा योजना और अटल पेंशन योजना का शुभारम्भ किया जाना प्रशंसनीय कदम है । जन धन योजना के बाद समस्त देश के लिए दूसरी लाभकारी इन योजनाओं को शुरू कर केन्द्र सरकार ने देश के सभी लोगों की सुरक्षा का बीड़ा उठाया है। ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों का कहना है कि इतनी बढ़िया योजनायें अभी तक कोई सरकार नहीं ला सकी। यह प्रधानमंत्री मोदी का ही कमाल है, जो मात्र 12 रूपये में सुरक्षा बीमा योजना भारतीय जनता को उपलब्ध करा रहे हैं। यह कितनी सुखद बात है कि प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना योजना के तहत बीमा धारक को मात्र 12 रुपये की सालाना बीमा पर दो लाख रुपये की निजी दुर्घटना बीमा सुरक्षा प्रदान की जाएगी । मध्यम व अल्प आय वर्ग के लोगों को इस बात की बेहद खुशी हो रही हे कि यदि उन्हें कुछ हो जाता है तो उसके बाद उनके परिवार के सदस्यों को कुछ न कुछ अवश्य मिलेगा।


विगत नौ मई को जब पश्चिम बंगाल के कोलकाता मे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सामाजिक सुरक्षा से सम्बंधित तीन योजनाओं प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना,जीवन ज्योति बीमा योजना और अटल पेंशन योजना को जनता व देश को समर्पित किया था उस समय स्वयं प्रधानमंत्री मोदी और उनके वित्तमंत्री अरूण जेटली ने भी यह सोचा नहीं होगा कि ये योजनायें देश में इस प्रकार आर्थिक जागरूकता लायेंगी और इस हद तक लोकप्रिय हो जायेंगी। आज इन योजनाओं की लोकप्रियता का आलम यह है कि इन योजनाओं के बारे में अल्प आय वर्ग का हो या फिर मध्यम आय वर्ग का या फिर बहुसंख्यक हो या फिर अल्पसंख्यक या फिर किसी अन्य समुदाय या समाज में बंटे फिरके का, हर व्यक्ति इन योजनाओं का लाभ लेने के लिए लालायित व आकर्षित हो रहा है। मुस्लिम परिवारों में भी इन योजनाओें के प्रति खासा आकर्षण देखा जा रहा है। बेटी बचाओ अभियान की सुकन्या योजना की सर्वलोकप्रियता की स्थिति तो यह है कि देश के मुस्लिम परिवार भी जिनके परिवारों में दो बेटियाँ व उससे अधिक भी हैं तो ऐसे लोगों को डाकघर में योजना का आवेदन के लेने के लिए आतुर होते देखा जा रहा है। सुकन्या योजना के साथ ही आर्थिक स्थिति सुदृढ करने सम्बन्धी सरकार की बैंक खाता खुलवाने, वीमा, पेंशन आदि योजनाओं के प्रति आम जनता में गजब का उत्साह देखा जा रहा है। भाजपा समर्थकों का कहना है कि ये योजनायें एक प्रकार से मोदी सरकार व भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में सम्पूर्ण देश में एक शान्त व सुदृढ़ माहौल की अन्तरंगता को प्रवृद्ध कर भाजपा के लिए उपयुक्त स्थिति का निर्माण भी कर रही हैं, जो भविष्य में भाजपा के लिए तुरूप का पत्ता साबित हो सकती हैं।

उल्लेखनीय है कि मोदी सरकार की वित्तीय समावेश और सामाजिक सुरक्षा योजनायें काफी सफल रहीं हैं। इस दौरान बैंकों में 15 करोड़ जनधन खाते खोले गये और 7.5 करोड़ लोगों ने जन सुरक्षा और जीवन ज्योति बीमा योजना के तहत जीवन बीमा और दुर्घटना बीमा कवर अपनाया है। सामाजिक सुरक्षा से सम्बंधित इन योजनाओं की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दो लाख रूपये कवर वाली सुरक्षा बीमा योजना व प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना के अब तक लगभग दस करोड़ से कुछ अधिक लोग इससे जुड़ चुके हैं। अटल पेंशन योजना के प्रति भी जनता में खासा आकर्षण हैं लेकिन इसमें अतिंम उम्र सीमा यदि लगभग पचास वर्ष कर दी जाये तो यह भी और अधिक लोकप्रिय हो जायेगी । वैसे भी अब जनता को यह विश्वास हो रहा है कि अभी मोदी सरकार के पिटारे में से कई और योजनायें साकार रूप ले रही हैं व लेने वाली हैं अतः इन सभी योजनाओं के बल पर कम से कम भविष्य तो अच्छा हो ही जायेगा।

दूसरी ओर प्रधानमंत्री मोदी की सरकार में गैस सब्सिडी योजनान्तर्गत के लोगों के खाते में जहाँ रसोई गैस सब्सिडी की रकम पहुँचने लगी है वहीं कुछ सीमा तक गैस की सब्सिडी की बर्बादी व कालाबाजारी पर रोकथाम भी हुई है। यदि यह गैस सब्सिडी योजना थेाड़ा और अधिक प्रभावी ढंग से लाग की जाये तो गैस के क्षेत्र में व्याप्त हर प्रकार के भ्रष्टाचार से मुक्ति मिलने की संभावना बढ़ जायेगी। प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी व पेट्रोलियम मंत्री ने दिखा दिया है कि यदि आप में इच्छाशक्ति हो तो किसी भी कठिन से कठिन योजना को देशहित में समुचित तरीके से लागू करके दिखाया जा सकता है। यह बात सही है कि गैस सब्सिडी योजना पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार लेकर आयी थी लेकिन आज उसको लागू करने का श्रेय तो नरेन्द्र मोदी की ही सरकार को जाता है।

सरकार की अटल पेंशन योजना की प्रमुख विशेषता यह भी है कि इस योजना से जुड़ने वाले ग्राहक को 60 वर्ष की आयु के बाद उनकी जमा राशि के अनुरूप प्रति माह एक हजार, तीन हजार व पाँच हजार रूपये की पेंशन प्राप्त होगी। सरकार भी इस योजना में शामिल होने वाले उपभोक्ताओं की ओर से जमा की जाने वाली राशि का 50 प्रतिशत हिस्सा अथवा 1000 रूपये प्रतिवर्ष उसके खाते में पाँच वर्ष तक जमा करायेगी। सरकार यह सुविधा उन्हीं उपभोक्ताओं को देगी जो 31 दिसम्बर 2015 तक इस राष्ट्रीय पेंशन योजना में शमिल होंगे। इसी प्रकार जीवन ज्योति बीमा योजना के अंतर्गत उपभोक्ता को दो लाख रूपये की वार्षिक बीमा योजना के लिए केवल 330 रूपये सालाना देना होगा। यह योजना 18 से 50 वर्ष तक के लोगों के लिए उपलब्ध है जिनके पास अपना बैंक खाता उपलब्ध है।

इसमें कोई सन्देह नहीं कि मोदी सरकार की बैंकों के प्रति आम जन को आकर्षित करने वाली सामाजिक योजनायें भारतीय जनता के मध्य अत्यंत लोकप्रिय हो रही हैं, तथा मोदी सरकार गरीब और मजदूरों के कल्याण के प्रति समर्पित नजर आती है और यह देख खुशी भी होती है कि अपने पहले ही वर्ष में सरकार ने गरीब और मजदूरों को जीविका देने के साथ ही सामाजिक सुरक्षा देने का भी प्रयास किया है।परन्तु इन योजनाओं की लोकप्रियता व सर्वस्वीकार्यता को अधिकाधिक बढ़ाने के लिए योजनाओं के सञ्चालन प्रक्रिया को और भी सरल ,सुगम ,लचीला बनाने , जनता को जागरूक करने की नितान्त आवश्यकता है ताकि देश की समस्त जनसँख्या इन योजनाओं का लाभ लेकर आर्थिक स्वावलंबन की दिशा में सुदृढ़ कदम बढाकर भविष्य की चिन्ता से कुछ हद तक मुक्त हो सके ।

Wednesday, June 10, 2015

आद्य सृष्टा, पितामह अर्थात प्रजापति -अशोक “प्रवृद्ध”

राँची, झारखण्ड से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र राष्ट्रीय खबर के सम्पादकीय पृष्ठ पर दिनांक- १० जून २०१५ को प्रकाशित लेख - आद्य सृष्टा, पितामह अर्थात प्रजापति -अशोक “प्रवृद्ध”
राष्ट्रीय खबर , दिनांक- १० जून २०१५ 

आद्य सृष्टा, पितामह अर्थात प्रजापति 

-अशोक “प्रवृद्ध”

वैदिक ग्रंथों के अनुसार ब्रह्मा प्रजापति को कहते हैंl शतपथ ब्राह्मण के षष्ठ काण्ड के प्रथम अध्याय में प्रजापति की उत्पति के सम्बन्ध में उल्लेख करते हुए कहा गया है -
पहले सब असत् अर्थात अव्यक्त ही थाl वह असत् क्या था? असत् ऋषि ही थेl अव्यक्त रूप परमाणु थेl उनको ही ऋषि कहा हैl वे ऋषि कौन थे ? वे प्राण थेl इन्होने पहले इस सृष्टि को चाहा (परमाणुओं ने ही सृष्टि रचना चाही) l
प्राण मध्य में इन्द्र है l (परमाणुओं के मध्य में त्रिगुणात्मक शक्ति को इन्द्र कहा हैl) इन्द्र ने अपने पराक्रम से प्राणों को दीप्त (सक्रिय) किया lइन्द्र छिपा बैठा थाl दीप्त हुए प्राणों ने सात पुरुष बनाएl
उन्होंने (ऋषियों अर्थात परमाणुओं ने) कहा, इस प्रकार हम सृष्टि रचना नहीं कर सकेंगेl तब सात पुरूष मिलकर एक हो गए और एक पुरुष बना l
-शतपथ ब्राह्मण -6-1-1-1,2,3,4,,5,6,7

यह पुरुष प्रजापति हुआl आगे कहा है-
सोऽयं पुरुषः प्रजापतिरकामयत l भूयान्त्स्यां प्रजायेयेति सोऽश्राम्यत्सl तपोऽतप्यत स श्रान्तस्तेपानो, बहेव प्रथममसृजत त्रयीमेव विद्याँसै वास्मै प्रतिष्ठाऽभवत्तस्मादाहुर्ब्रह्मास्य सर्वस्यप्रतिष्ठेति तस्मादनूच्य प्रतितिष्ठति प्रतिष्ठा ह्येषा यद्ब्रह्म तस्यां प्रतिष्ठायां प्रतिष्ठतोऽतप्यतl l l
शतपथ ब्राह्मण 6-1-1-8
अर्थात- इस प्रजापति ने चाहा,  मैं बहुत हो जाऊँ, मैं प्रजा को उत्पन्न करूँl उसने श्रम किया l उसने तप कियाl उसने श्रान्त और तप्त होकर ब्रह्मा अर्थात त्रयी विद्या (वेद) को उत्पन्न किया lवही उसकी प्रतिष्ठा (आधार) हुईl इसलिए कहते हैं इस सब (संसार) का आधार ब्रह्मा (प्रजापति ब्रह्माण्ड) हैl इससे मनुष्य प्रतिष्ठित होता हैlइससे प्रतिष्ठित हो उसने तप (परिश्रम) किया है l
इस ब्राह्मण का अभिप्राय है कि प्रकृति के परमाणुओं की त्रिगुणात्मक शक्ति से यह जगत बना है और वह जगत के बनाने वाला तत्व प्राण है जो पहले सात रूपों में था और फिर एक होकर रचना कार्य करता रहा हैl यह पुरुष प्रजापति अर्थात ब्रह्मा बनाl अर्थात जगत को बनाने वाली (त्रिगुणात्मक) शक्ति ही ब्रह्मा हैl वह चार वेदों को  बोलती है, इसी कारण पुराणों में कहा है कि ब्रह्मा के चारों मुखों से चार वेद स्त्रवित हो रहे हैं l
अलंकार रूप में ब्रह्मा को चार मुख वाला बतलाते हुए कहा गया है कि उसके मुख से वेद निकल रहे हैंl
मनुस्मृति में स्मृतिकार मनु महाराज ने ब्रह्मा का अर्थ इस प्रकार किया है -
यत्तत्कारणं अव्यक्तं नित्यं सदसदात्मकम् ।
तद्विसृष्टः स पुरुषो लोके ब्रह्मेति कीर्त्यते । ।
-मनुस्मृति  1-11
 वह जो अत्यंत प्रसिद्ध, सबका कारण,सत्-असत् रूप वाला है , उससे उत्पन्न पुरूष लोक में ब्रह्मा कहा जाता है l
प्रसिद्ध प्रकृति है जो दो रूपों में पायी जाती है l सत् (व्यक्त) और असत् (अव्यक्त) रूप में l इन प्रकृतियो से जो पुरूष उत्पन्न हुआ,वह ब्रह्मा है l
यहाँ पुरुष से अभिप्राय शक्तिमान तत्व है l
इस प्रकार ब्रह्मा,जैसा कि शतपथ ब्राह्मण भी पुष्टि करता है, त्रिगुणात्मक शक्ति है जो परमाणु के भीतर विद्यमान है और जो इस पूर्ण संसार के रचने में कारण है l

पुराणों ने  इसे चार मुख वाला,मनुष्य की रूप-राशि युक्त शरीरधारी बना दिया गया हैl यह आलंकारिक वर्णन हैl यह इसी प्रकार है जैसे कोई चतुर कार्टूनिस्ट किसी विदेशी राजनीतिक को लोमड़ी के रूप में चित्रित कर देता है l
ब्रह्मा और कमल के विषय में महाभारत में इस प्रकार वर्णन मिलता है-
मानसों नाम विख्यातः श्रुतपूर्वों महर्षिभिःl
अनादिनिधनो देवस्तथाभेद्योऽजरामरःll
-महाभारत शान्तिपर्व 182-11
महर्षियों ने सुना था कि पहले एक मानस नाम का विख्यात पुरुष था, वह अनादि, अनन्त, अजर और अमर थाl यह परमात्मा के विषय में कहा हैl उसके आगे महाभारत शान्ति पर्व 182-13, 14 में कहा है कि उस मानस देव ने पहले (प्रकृति) से महत तत्व उत्पन्न कियाl उससे पञ्च महाभूत उत्पन्न हुएl
जब यह हो गया तो क्या हुआ इसका वर्णन भी महाभारत में है-
ततस्तेजोमयं दिव्यं पद्मं सृष्टं स्वयम्भुवा l
तस्मात् पद्मात समभवद् ब्रह्मा वेदमयो निधिः ll
अहंकार आईटीआई ख्यातः सर्वभूतात्मभूतकृत l
ब्रह्मा वै स महातेजा य एते पञ्च धातवःl l
-महाभारत शान्ति पर्व -182-15, 16
अर्थात- तब उस तेजोमय स्वयम्भुः (परमात्मा) ने एक पद्म (कमल) उत्पन्न किया और उससे ब्रह्मा उत्पन्न हुआ जो वेदों का निधि थाl
यह अहंकार नाम से विख्यात है ,जिससे ब्रह्मा उत्पन्न हुआ, जो सब पदार्थों और भूतों को बनाने वाला हैl
इस प्रकार स्पष्ट है कि महाभारत में भी, मनुस्मृति की भान्ति, निरामानाधीन जगत के बनाने वाले को ब्रह्मा कहा हैl इस प्रकार यह प्रमाणित हो जाता है कि पुराणों में सृष्टि रचना की चमत्कारिक घटना का वर्णन पुराणों में अलंकार रूप में किया गया है, और पुराणों में इन वर्णनों में एकरूपता भी हैl इन अलंकारों को न समझ कर कुछ लोगों के द्वारा पुराणों को गल्प मान हँसी उड़ाया जाना मुर्खता का ही परिचायक हैl l पुराणों में प्रक्षिप्त अंश वैसे भी बहुत हैं ,परन्तु इन प्रक्षिप्त अंशों को चिह्नित करने के पश्चात् उन्हें छोड़ इनमे जो इतिहास का अंश है,वह सत्य ही प्रतीत होता हैl पुराणों में पाँच विषय वर्णित किये गये हैं, उनमे एक विषय इतिहास भी हैl
पुराण उस काल के इतिहास का वर्णन करते हैं, जिस काल का अन्य कहीं इतिहास नहीं मिलताl अभिप्राय है जब अमैथुनीय सृष्टि हुईlयह स्पष्टतः प्रमाणित बात है कि जिस समय मनुष्य का निर्माण हुआ, उसी समय वेद जो पहले ही उर्जा की तरंगों में उच्चारित हो रहे थे, ऋषियों ने सुने और मनुष्यों को बतलाये l(इस सम्बन्ध में पृथक रूप से राँची, झारखण्ड से प्रकाशित दैनिक राष्ट्रीय खबर के सम्पादकीय पृष्ठ पर दिनाँक-17 और 18 नवम्बर 2014 को लेख – ‘वैदिक मान्यतानुसार ऐसे हुई छंदों की उत्पत्ति’ प्रकाशित हो चुके हैं) l इससे यह स्पष्ट है कि उस समय वेद की भाषा और मानवी भाषा अर्थात राष्ट्री भाषा एक ही थीl दूसरे शब्दों में, वैदिक काल मानव सृष्टि के आरंभ से ही कहा जाता है l

पुरातन ग्रंथों के अनुसार सर्वश्रेष्ठ त्रिदेवों में ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव की गणना होती है lइनमें ब्रह्मा का नाम सर्वप्रथम आता है, क्योंकि वे विश्व के आद्य सृष्टा, प्रजापति, पितामह तथा हिरण्यगर्भ हैं l पुराणों में जो ब्रह्मा का रूप अंकित मिलता है वह अलंकारिक रूप में है और वह वैदिक प्रजापति के रूप का विकास है l पुराणों में प्रजापति ब्रह्मा को मानव रूप प्रदान किया जाना विचित्रता का द्योत्तक है l पुराणों में प्रजापति की समस्त वैदिक गाथाएँ ब्रह्मा पर आरोपित कर ली गयी हैं l प्रजापति और उनकी दुहिता की कथा पुराणों में ब्रह्मा और सरस्वती के रूप में वर्णित हुई है l सावित्री इनकी पत्नी, सरस्वती पुत्री और हंस वाहन है l पौराणिक ग्रंथों के अनुसार क्षीरसागर में शेषशायी विष्णु के नाभिकमल से ब्रह्मा की स्वयं उत्पत्ति हुई, इसलिए ये स्वयंभू कहलाते हैं l घोर तपस्या के पश्चात इन्होंने ब्रह्माण्ड की सृष्टि की थी l वास्तव में सृष्टि ही ब्रह्मा का मुख्य कार्य है l ब्राह्म पुराणों में ब्रह्मा का स्वरूप विष्णु के सदृश ही निरूपित किया गया है l ये ज्ञानस्वरूप, परमेश्वर, अज, महान तथा सम्पूर्ण प्राणियों के जन्मदाता और अन्तरात्मा बतलाये गये हैं l कार्य, कारण और चल, अचल सभी इनके अन्तर्गत हैं l समस्त कला और विद्या इन्होंने ही प्रकट की हैं l ये त्रिगुणात्मिका माया से अतीत ब्रह्म हैं lये हिरण्यगर्भ हैं और सारा ब्रह्माण्ड इन्हीं से निकला है l वैदिक ग्रंथो और प्रक्षिप्त अंशों को छोड़ कर शेष बचे समस्त पुराणों तथा स्मृतियों में सृष्टि-प्रक्रिया में सर्वप्रथम ब्रह्मा के प्रकट होने का वर्णन मिलता है l वे मानसिक संकल्प से प्रजापतियों को उत्पन्न कर उनके द्वारा सम्पूर्ण प्रजा की सृष्टि करते हैं l इसलिये वे प्रजापतियों के भी पति कहे जाते हैं l पौराणिक ग्रंथों के अनुसार मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु, भृगु, वसिष्ठ, दक्ष तथा कर्दम- ये दस मुख्य प्रजापति हैं l

Monday, June 8, 2015

लुप्त सरस्वती आखिर मिल ही गई -अशोक “प्रवृद्ध”

राँची झारखण्ड से प्रकाशित दैनिक स अमाचार पत्र राष्ट्रीय खबर के सम्पादकीय पृष्ठ पर दिनांक - ८ जून २०१५ को प्रकाशित लेख - लुप्त  सरस्वती आखिर मिल ही गई  -अशोक “प्रवृद्ध”
राष्ट्रीय खबर , दिनांक- ६ जून २०१५ 

लुप्त  सरस्वती आखिर मिल ही गई 
-अशोक “प्रवृद्ध”

ऋग्वेदादि वैदिक व पौराणिक ग्रंथों में अब तक सिमटी प्राचीनतम और हजारों वर्ष पूर्व लुप्त हो चुकी सरस्वती नदी का आदिबद्री के गाँव मुगलवाली (हरियाणा के महेंद्रगढ़ /यमुनानगर जिला का मुगलावाली गाँव) में उद्गम होना ऐतिहासिक, पुरातात्विक और भौगोलिक दृष्टि से एक अत्यंत महत्वपूर्ण घटना है और इस खोज से भारतीय इतिहास की कई महत्वपूर्ण लुप्त कड़ियों के फिर से जुड़ सकने की आशा बलवती हो गई हैं। मुगलवाली के इस क्षेत्र में भू-जल स्तर काफी नीचे है और उसके आसपास लगे पानी के कई ट्यूबवैलों में भूमिगत जलस्तर 85 फुट से नीचे है, परन्तु यह एक हैरतअंगेज बात है कि जहाँ पर सरस्वती नदी मिली है वहाँ मात्र आठ फुट नीचे ही खुदाई करने पर सरस्वती का जल निकल आने से सरस्वती नदी के  इस क्षेत्र में विराजमान होने की पुष्टि हो गई है । इससे क्षेत्र के लोगों में उत्साह के साथ एक नया विश्वास भी पैदा हो गया और उनका कहना है कि जिस सरस्वती के बारे में कहानियों में सुनते थे, वैदिक-पौराणिक ग्रंथों में पढ़ते थे, अब उस सरस्वती के साक्षात दर्शन भी हो गए हैं।उत्साहित जन कहते हैं सरस्वती आखिर मिल ही गई।  पुरातन भारतीय संस्कृति के विद्वानों का कहना है कि यमुना नगर के मुगलावाली में जिस तरह के ऐतिहासिक, पुरातात्विक और भूगर्भशास्त्रीय प्रमाण मिले हैं, उनसे यह बात सिद्ध हो जाती है कि वैदिक सरस्वती इसी क्षेत्र की विशाल नदी थी, जो भूगर्भीय हलचलों के कारण  विलुप्त-प्राय हो गई थी , जिसके साक्ष्य वैदिक-पौराणिक ग्रंथों में मिलते हैं । सरस्वती की भौगोलिक स्थिति , भारतीय संस्कृति में महता और सभ्यता-संस्कृति में इसके सहयोग का विस्तृत उल्लेख ऋग्वेद, महाभारत, ऐतरेय ब्राह्मण, भागवत पुराण, विष्णु पुराण आदि पुरातन ग्रंथों में अंकित है। ऋग्वेद में सप्तसिंधु क्षेत्र की महिमा को प्रस्तुत करते हुए जिन सात नदियों का वर्णन किया गया है, उनमें से एक सरस्वती है।परन्तु विगत एक शताब्दी से भी ज्यादा पुराना एक विचार यह भी है कि हाकरा घघ्घर नदी ही प्राचीन वैदिक सरस्वती है, जो कभी एक विशाल नदी थी और हिमालय से शुरू होकर राजस्थान में समुद्र में मिल जाती थी। किसी समय राजस्थान और गुजरात का रेगिस्तानी इलाका हरा-भरा था, परन्तु भूगर्भीय हलचलों से यह इलाका धरती के नीचे आ गया और बाद में रेगिस्तान में परिवर्तित हो गया। भूकंपों की वजह से सरस्वती का अपने उद्गम से सम्बन्ध कट गया और वह सूख गई, जो आज भी भूगर्भ के भीतर बह रही है।(इस सम्बन्ध में दिनांक- 23 मार्च 2015 को राँची झारखण्ड से प्रकाशित दैनिक राष्ट्रीय खबर के सम्पादकीय पृष्ठ पर एक पृथक व विस्तृत लेख – सरस्वती आखिर कहाँ गई? प्रकाशित हो चुका है।)
वैदिक कालीन नदी सरस्वती के अस्तित्व और उसकी भूगर्भ में अंगड़ाई ले रही जलधारा को लेकर भूगर्भशास्त्री, पुरातत्ववेत्ता और इतिहासकारों में लम्बे समय से मतभेद बना हुआ है , और यह भी सर्वविदित है कि भारतवर्ष में इतिहास और संस्कृति विचारधारा की लड़ाई के अति संवेदनशील मैदान हैं, जहाँ  सदैव ही वामपंथी और दक्षिणपंथी अपनी धींगामुश्ती की लड़ाई लड़ते रहते हैं। सरस्वती नदी भी भारतवर्ष की धर्म=अध्यात्म, इतिहास व संस्कृति से जुड़ा एक ऐसा ही मुद्दा है, जिसके बारे में वामपंथियों का कहना और मानना है कि यह हिन्दुत्ववादियों का षड्यंत्र है। इसके ठीक विपरीत दक्षिणपंथियों का मानना है कि भूगर्भीय हलचलों से जमीन में सदियों पूर्व समा चुकी वैदिक सरस्वती को वे फिर से बहाकर ही दम लेंगे। नई खबर यह है कि हरियाणा की भारतीय जनता पार्टी सरकार ने वैदिक सरस्वती के लुप्त प्रवाह को खोजने की मुहिम शुरू कर दी है और यमुना नगर जिले के मुगलवाली गाँव में जमीन में आठ फीट नीचे ही मीठे पानी की धारा मिली है। भूगर्भ विज्ञानी मानते हैं कि जहाँ खोदा गया है, वहाँ जमीन के अंदर मिट्टी-पानी इन इलाकों के मिट्टी-पानी से अलग है, इसलिए बहुत सम्भव है कि यह प्राचीन सरस्वती की ही धारा हो।



सदियों पूर्व लुप्त हो चुकी एक मृतप्राय सरस्वती नदी का खुदाई करके नदी का प्रवाह मार्ग ढूँढने का यह काम प्रारम्भ तो हुआ मनरेगा के तहत, परन्तु इसकी महता को देखते हुए शीघ्र ही यह काम कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के पुरातत्व विभाग की देखरेख में आगे बढ़ा। अब इसमें भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण, इसरो और तेल और प्राकृतिक गैस आयोग के शामिल होने की आशा है। कुरुक्षेत्र में इस परियोजना पर छह साल से काम हो रहा है। दिलचस्प यह भी है कि 1886 में आर.डी. ओल्डहम सहित अनेक इतिहासकारों की भी सरस्वती परियोजना में दिलचस्पी थी। इस शोध और उत्खनन से जुडे़ जानकार ए.के. चौधरी सहित कई अन्य जानकारों का कहना है कि इस इलाके में जहाँ मात्र छह से दस फुट की गहराई पर पानी का एक आंतरिक प्रवाह दिखता है उससे लुप्त हो चुकी वैदिक सरस्वती की पुष्टि होती है। वैदिक सरस्वती की खोज में अकबर कालीन दस्तावेजों का भी सहारा लिया गया है। सरस्वती नदी को लेकर किए गए सर्वेक्षण में कई आश्चर्यजनक तथ्य भी सामने आए हैं। सरस्वती नदी को धरातल पर लाने के चलते जब राजस्व अभिलेख अर्थात रिकॉर्ड खंगाला गया तो भू अभिलेखों में सरस्वती नदी के बहने का स्थान मौजूद मिला। सर्वेक्षण में राजस्व विभाग, पंचायती विभाग और सिंचाई विभाग की मदद ली गई। इसके अतिरिक्त उपग्रह व अन्य तकनीकी सुविधाओं से भी जमीन को खंगाला गया। इस दौरान रिकॉर्ड में पाया गया कि जिले के कई गाँवों में सरस्वती के लिए आज भी रास्ता छोड़ा गया है। जहाँ से होकर प्राचीन समय में सरस्वती नदी गुजरती थी। स्थानीय अधिकारियों ने समाचार माध्यमों को दिए गए जानकारी में बताया कि सरस्वती नदी का सर्वेक्षण उद्गम स्थल से जिला यमुनानगर के कुरुक्षेत्र के साथ लगते अंतिम गाँव तक किया गया है। इसरो के मुताबिक सरस्वती की जलधारा अब भी जमीन के नीचे बहती है, जिसका नक्शा उपग्रह के माध्यम से गूगल पर देखा जा सकता है। अगर ऐसा है तो यह बिल्कुल नई चीज है। इन सबकी वैज्ञानिक जाँच से विभिन्न सतहों और कंकड़-पत्थर-बजरी की उम्र का पता करना मुश्किल नहीं है।

ध्यातव्य है कि सरस्वती नदी शोध संस्थान के अध्यक्ष दर्शनलाल जैन ने सरस्वती नदी के महत्व को वर्षों पूर्व समझा और इसे धरा पर लाने का संकल्प लिया था । यह कार्य उन्होंने 1999 के दौरान अपने हाथ में लिया था, जब केन्द्र में राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठ्बन्धन की सरकार थी और जगमोहन केन्द्रीय पर्यटन मंत्री हुआ करते थे, तो करोड़ों रुपया खर्च करके देश के कई भागों में सरस्वती की खोज में खुदाई का कार्य प्रारम्भ हुआ था। लेकिन संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन सरकार ने सता में आते ही इस नेक कार्य को ठंडे बस्ते में डाल दिया।  इससे भारतीय सभ्यता-संस्कृति को समझने की एक सार्थक कार्य ही नहीं रुक गया बल्कि करोड़ों रुपए का खर्च बेकार हो गया। अब केन्द्र व प्रदेश में सरकार बदली और भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी तो यह काम देहरादून की एक प्रयोगशाला और अन्य संस्थाओं के सहयोग से फिर से शुरू हो गया तथा उसके सार्थक परिणाम भी शीघ्र मिलने शुरू हो गए हैं, और न केवल हरियाणा के यमुनानगर जिले के आदिबद्री में सरस्वती का उद्गम स्थल खोज लिया गया है, बल्कि मुगलवाली गाँव में धरातल से सात फीट नीचे तक खुदाई करने से नदी की जलधारा भी फूट पड़ी है। इस धारा का रेखामय प्रवाह तीन किलोमीटर की लम्बाई में नदी के रूप में सामने आया है और आगे खुदाई का कार्य अभी जारी है। एक मृत पड़ी नदी के इस पुनर्जीवन से उन सब अटकलों पर विराम लगा है, जो वेद-पुराणों में वार्णित इस नदी को या तो मिथकीय ठहराने की कोशिश करते थे या इसका अस्तित्व अफगानिस्तान की हेलमन्द  नदी के रूप में मानते थे। इससे एक बार फिर यह सिद्ध हुआ है कि ऋग्वैद आदि ग्रंथों में उल्लेखित सरस्वती का भूगोल आधारहीन कल्पना नहीं है।  इस सम्बंध में दर्शनलाल जैन ने कहा कि यह पहला कदम है, और अभी काफी काम होना है। सरस्वती नदी संजीवनी बनेगी, इससे पानी की कमी तो पूरी होगी ही, साथ ही बरसात के दिनों में बाढ़ का प्रकोप कहर नहीं बरपा पाएगा। उन्होंने इसके लिए केन्द्र व राज्य सरकार की कार्यशैली की सराहना की।

Friday, June 5, 2015

आर्यावर्त: विशेष : पुण्यसलिला सरित्श्रेष्ठ सरस्वती आखिर कहाँ गई ?-अशोक "प्रवृद्ध"

आर्यावर्त: विशेष : पुण्यसलिला सरित्श्रेष्ठ सरस्वती आखिर कहाँ गई ?



विशेष : पुण्यसलिला सरित्श्रेष्ठ सरस्वती आखिर कहाँ गई ?

Edited By Rajneesh K Jha on सोमवार, 18 मई 2015



भारतीय जीवन एवं साधना में अप्रतिम महत्व रखने वाली सरस्वती भारतीय सभ्यता के उषाकाल से लेकर अद्यपर्यन्त अपने आप में ही नहीं,प्रत्युत अपनी अर्थ,परिधि एवं सम्बन्धों के विस्तार के कारण भी अत्यन्त महत्वपूर्ण रही हैlसरस्वती शब्द की व्युत्पति गत्यर्थक सृ धातु से असुन प्रत्यय के योग से निष्पन्न होता है शब्द सरस,जिसका अर्थ होता है गतिशील जलlसरस का अर्थ गतिशीलता के कारण जल भी हो सकता है,लेकिन केवल जल ही गतिशील नहीं होता,ज्ञान भी गतिशील होता हैlसूर्य-रश्मि भी गतिशील होती हैlअतः सरस का अर्थ ज्ञान, वाणी (अन्तःप्रेरणा की वाणी), ज्योति, सूर्य-रश्मि, यज्ञ ज्वाला, आदि भी किया गया हैlज्ञान के आधार पर सरस्वती का अर्थ सर्वत्र और सर्वज्ञानमय परमात्मा भी हो जाती हैlआदिकाव्य ऋग्वेद में सरस्वती नाम देवता (विभिन्न वैदिक देवता एक ही देव के भिन्न-भिन्न दिव्यगुणों के कारण अनेक नाम अर्थात सरस्वती मात्र देवता,परमात्मा का सूचक नाम मात्र है,दृश्य रूप भौतिक नदी विशेष नहीं है) तथा नदी वत दोनों ही रूपों में प्रयुक्त हुआ हैlसरस्वती शब्द का अर्थ करते हुए यास्क ने निरुक्त में लिखा है-

वाङ नामान्युत्तराणि सप्तपञ्चाशत् वाक्क्स्मात् वचेः l तत्र सरस्वतीत्येत्स्य नदीवद् देवतावच्चा निगमा भवन्ति l
तद्यद् देवतावदुपरिष्टातद् व्याख्यास्यामः l अथैतन्न्दीवत ll
-निरूक्त २/७/२३ 
अर्थात- वाक् शब्द के सत्तावन रूप कहे गये हैंlवाक् के उन सत्तावन रूपों में एक रूप सरस्वती हैlवेदों में सरस्वती शब्द का प्रयोग देवतावत् और नदीवत् आया हैlनदीवत् अर्थात नदी की भान्ति (नदी नहीं) बहने वालीlसायन एवं निघण्टुकार ने भी सरस्वती के नदी एवं देवता दोनों दोनों रूप स्वीकार किये हैंlयास्काचार्य की उक्ति सरस्वती – सरस इत्युदकनाम सर्तेस्तद्वती (निरूक्त ९/३/२४) से यह स्पष्ट नहीं होता कि उनका अभिप्राय नदी विशेष है अथवा सामान्य नदियों से अथवा जलाशयों से परिपूर्ण भूमि सेl फिर कतिपय विद्वानों ने इसे सरस्वती नाम की नदी विशेष अर्थ (रूप) में स्वीकार किया हैlऋग्वेद में यास्कानुसार केवल छः मन्त्रों में ही सरस्वती नदी रूप में वर्णित है,शेष वर्णन उसके देवता रूप विषयक हैंlऋग्वेद में सरस्वती का नाम प्रथम वाक् देवता के रूप में प्रयुक्त हुआ है या नदी के लिये यह आज भी विद्वानों के मध्य विवाद के विषय बना हुआ हैlयद्यपि मनुस्मृति १/२१ के अनुसार सरस्वती के देवता रूप की कल्पना ही पहले होनी चाहिये तथापि कतिपय विद्वानों के अनुसार बाद में देवता रूप के आधार पर ही नदी विशेष के लिये सरस्वती नाम प्रचलित हुआlउनके अनुसार ऋग्वेद की सरस्वती मात्र एक दिव्य अन्तःप्रेरणा की देवी, वाणी की देवी ही नहीं वरन प्राचीन आर्य जगत की सात नदियों में से एक भी हैl

वैदिक विचार 
विद्वानों का विचार है कि ऋग्वैदिक काल में सिन्धु और सरस्वती दो नदियाँ थींlऋग्वेद में अनेक स्थलों पर दोनों नदियों का साथ-साथ वर्णन तो उल्लेख है ही विशालता में भी दोनों एक सी कही गईं हैंlफिर भी सिन्धु के अपेक्षतया सरस्वती को ही अधिक महिमामयी एवं महत्वशालिनी माना गया हैlऋग्वेद के अनुसार सरस्वती की अवस्थिति यमुना और शतुद्रि (सतलज) के मध्य (यमुने सरस्वति शतुद्रि) थीlऋग्वेद में सरस्वती के लिये प्रयुक्त विशेषण सप्तनदीरूपिणी, सप्तभगिनीसेविता, सप्तस्वसा, सप्तधातु आदि हैंlसरस्वती से सम्बद्ध ऋग्वेद में उल्लिखित स्थान अथवा व्यक्ति सभी भारतीय हैंlऋग्वेद ७/९५/२ में सरस्वति का पर्वत से उद्भूत हो समुद्रपर्यन्त प्रवाहित होने का उल्लेख मिलता हैlभूमि सर्वेक्षण के कई प्रतिवेदनों अर्थात रिपोर्टों से प्रमाणित होता है कि लुप्त सरस्वती कभी पँजाब, हरियाणा और उत्तरी राजस्थान से प्रवाहित होने वाली विशाल नदी थीlस्पेस एप्लीकेशनसेंटर और फिजिकल लेबोरेट्री द्वारा प्रस्तुत लैंड सैटेलाईट इमेजरी एरियल फोटोग्राफ्स से भी सरस्वती की ऋग्वैदिक स्थिति की पुष्टि होती हैl

ऋग्वेद में सरस्वती के उल्लेखों वाले मन्त्रों को दृष्टिगोचर करने से इस सत्य का सत्यापन होता है कि ऋग्वैदिक सभ्यता का उद्भव एवं विकास सरस्वती के काँठे में ही हुआ था,वह सारस्वत प्रदेश की सभ्यता थीlबाद में यह सभ्यता क्षेत्र विस्तार के क्रम में मुख्यतः पश्चिमाभिमुख होकर एवं कुछ दूर तक पूर्व की ओर बढती हैlसभ्यता का केन्द्र सरस्वती तट से सिन्धु एवं उसके सहायिकाओं के तट पर पहुँचता है और इस सिलसिले में इसकी व्यापारिक गतिविधियों का व्यापक विस्तार होता हैlकहा जाता है कि सारस्वत प्रदेश के अग्रजन्माओं की आधिभौतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति का श्रेय सरस्वती नदी को ही थाlपशुपालक व कृषिजीवी जहाँ सरस्वती के तटीय वनों और उपजाऊ भूमि से आधिभौतिक उन्नति कर रहे थे,वहीँ ऋषि-मुनिगण इसके तट पर सामगायन कर याजिकीय अनुष्ठानों द्वारा आध्यात्मिक उत्कर्ष कर रहे थेl

ऋग्वेद के सूक्तों से इस सत्य का सत्यापन होता है कि सरस्वती नदी नाहन पहाड़ियों से आगे आदिबदरी के निकट निकलकर पँजाब, हरियाणा, उत्तरी-पश्चिमी राजस्थान में प्रवाहित होती हुई समुद्र में प्रभाष क्षेत्र में मिलती हैlइसकी स्थिति यमुना और शतुद्रि के मध्य (ऋग्वेद १०/७५/५) किन्तु दृषद्वती (चितांग) के पश्चिम (ऋग्वेद ७/९५/२) कही गई हैlइसकी उत्पति दैवी (असुर्या ऋग्वेद ७/९६/१) भी मानी गई हैlब्राह्मण ग्रन्थों,श्रौतसूत्रों एवं पुराणादि ग्रन्थों में सरस्वती का उद्गम स्थान प्लक्ष प्राश्रवण कहा गया हैlयमुना नदी के उद्गम स्थल को प्लाक्षावतरण कहा गया हैlऋग्वेद में सरस्वती सम्बन्धी (करीब) पैंतीस मन्त्र अंकित हैं,जिनमें से तीन ऋग्वेद ६/६१,ऋग्वेद ७/९५ और ७/९६ स्तुतियाँ हैंlविविध मन्त्रों में सरस्वती की अपरिमित जलराशि,अनवरत बदलती रहने वाली प्रचण्ड वेगवती धारा,भयंकर गर्जना,उससे होने वाले संभावित खतरों,महनीयता आदि के भी जीवन्त वर्णन हैंl(ऋग्वेद ६/६१/३, ६/६१/८, ६/६१/११,६/६१/१३)सरस्वती प्रचण्ड वेगवाली होने के साथ ही सर्वाधिक जलराशि वाली होने के कारण बाढ़ के समय इसका पाट इतना चौड़ा और विस्तृत हो जाता है कि यह आक्षितिज फैली हुई प्रतीत होती हैlऋग्वेद६/६१/७ में अंकित है कि सरस्वती कूल किनारों को तोड़ती हुई बहुधा अपना प्रवाह बदल लेती हैl

प्रसविणी सरस्वती 
ऋग्वेद १०/६४/९ में में सरस्वती,सरयू सिन्धु की गणना बड़े नदों में हुई है जिसमें ऋग्वेद ७/३६/३ में सरस्वती ही सरिताओं की प्रसविणी कही गई हैlऋग्वेद ६/६१/१२ में अंकित है कि सरस्वती में सात नदियों के मिलने के कारण सप्तधातु एवं ऋग्वेद ६/६१/१० में सप्तस्वसा कही गई हैlऋग्वेद ७/९६/३ के अनुसार सरस्वती सदा कल्याण ही करती हैlसरस्वती का जल सदा और सबको पवित्र करने वाला हैlयह पूषा की तरह पोषक अन्न देने वाली हैlअन्यान्य नदियों की तुलना में यह सबसे अधिक धन-धान्य प्रदायिनी हैlऋग्वेद ७/९६/३ में यह अन्नदात्री, अन्न्मयी एवं वाजिनीवती कही गई हैlधन, समृद्धि, ज्ञान प्रदायिनी होने के कारण ही सरस्वती को वाजिनीवती कहा गया हैlसरस्वती के माध्यम से नहुष ने अकूत धन-सम्पदा अर्जित की थीlइसी कारण धन-धन्य प्राप्ति के लिये सरस्वती की प्रार्थना करने की परिपाटी बाद में चल पड़ीlसरस्वती का जल स्वच्छ एवं सुस्वादु होने के कारण अन्नोत्पादिका होने के परिणामस्वरूप यह कल्याणकारिणी एवं धन-धान्य प्रदायिनी कही गई हैlसरस्वती अग्रजन्माओं की भूमि प्रदायिनी कही गई हैlऋग्वेद ६/६१/३ एवं ८/२१/१८ के अनुसार सारस्वत प्रदेश की प्राचीनता सिद्ध होती हैlसरस्वती के तट पर एक प्रसिद्द राजा और पञ्चजन निवास करते हैं जिन तटवासियों को सरस्वती स्मृद्धि प्रदान करती हैlऋग्वेद ६/६१/७ के अनुसार वृत्र का संहार सरस्वती तट पर हुआ था जिसके कारण इसकी नाम वृत्रघ्नी भी हुईlसर्वप्रथम यज्ञाग्नि सरस्वती तट पर प्रज्वलित हुई थीlतटवासी भरतों ने सर्वप्रथम अग्नि जलाई थीlइसी कारण सरस्वती का एक नाम भारती भी हुईlसरस्वती तट से ही अग्नि का अन्यत्र विस्तार भी हुआlफलतः सरस्वती के साथ ही दृषद्वती और आपया के तटों पर भी यज्ञों का संपादन होने लगाlनदियों में सरस्वती की इतनी महिमा मणि गई है कि इसे नदीतमे ही नहीं अम्बितमे और देवितमे भी घोषित करते हुए कहा गया है – 
अम्बितमे नदीतमे देवितमे सरस्वती l
प्रशस्ता इव स्मसि प्रशस्तिम्ब नस्कृधि ll
-ऋग्वेद २/४१/६

ऋग्वेद ७/९६/१ में सरस्वती की महता गायन करने वशिष्ठ को आदेश देते हुए ऋषि कहते हैं, हे वशिष्ठ! तुम नदियों से बलवती सरस्वती के लिये वृहद स्तोत्र का गायन करोlऋग्वेद ६/६१/१० के अनुसार सरस्वती के स्तुतिगायकों ने अपने पूर्वजों द्वारा भी इसके स्तुति का उल्लेख किया है l इससे भी सरस्वती तट पर वैदिकों के निवास की प्राचीनता का संकेत मिलता हैlकतिपय विद्वान कहते हैं, भरतों की आदिम वासभूमि सरस्वती तटवर्त्ती भूमि (सारस्वत प्रदेश) ही थी जहाँ उन्होंने सर्वप्रथम यज्ञाग्नि जलाई थीlमैकडानल के अनुसार भी सूर्यवंशियों की प्राचीन वासभूमि भी जलाई थी, किन्तु विद्वानों के अनुसार सरस्वती के उद्गम स्थान पर हिमराशि का गलकर समाप्त हो जाने, जलग्रहण क्षेत्र से ही अन्य नदियों के द्वारा सरस्वती के जल का कर्षण कर लिये जाने आदि भौगोलिक कारणों से ख्य्यातिप्राप्त और पुण्यतमा सरस्वती का प्रवाह बहुधा परिवर्तित होता रहता थाlसम्भवतः उद्गम स्थल से सरस्वती का जल यमुना ने ही सबसे अधिक कर्षित किया होगाlइसी कारण यह मान्यता बनी कि प्रयाग में यमुना के साथ ही गुप्त रूप से सरस्वती भी गंगा में मिलती हैlभौगोलिक कारणों से सरस्वती वैदिक काल में ही क्षीण होते-होते सूखने भी लगी थीlफलतः उस समय तक उसका जो धार्मिक-आध्यात्मिक महत्व कायम हो चुका था वह तो आगे भी मान्य रहा,परन्तु उसका सामाजिक-आर्थिक,आधिभौतिक महत्व घटता गयाlउत्तर वैदिक कालीन साहित्यों में धार्मिक-आध्यात्मिक दृष्टियों से सरस्वती एवं उसके तटवर्ती स्थानों के उल्लेख अंकित हैं,लेकिन आधिभौतिक महत्व के साक्ष्यों का प्रायः अभाव ही हैlलाट्टायानी श्रौतसूत्र में कहा है –

सरस्वती नाम नदी प्रत्यकस्त्रोत प्रवहति, तस्याः प्रागपर भागौसर्वलोके प्रत्यक्षौ ,
मध्यमस्तभागः भूम्यन्तःनिमग्नः प्रवहति,नासौ केनचिद् तद्धिनशनमुच्यते ll
- लाट्टायन श्रौतसूत्र १०/१५/१
अर्थात - सरस्वती पश्चिमोभिमुख हो प्रवाहित होती हैlउसका आरम्भिक एवं अन्तिम भाग सबके लिये दृश्य हैlमध्यभाग पृथ्वी में अन्तर्निहित है जो किसी को भी दिखलाई नहीं पड़ताlलाट्टायन श्रौतसूत्र में उद्धृत इस सन्दर्भ से सरस्वती के लुप्त होने का संकेत मिलता हैlसरस्वती के मरुभूमि में समाहित होने अथवा सूखने के काल के सम्बन्ध में विद्वानों का अनुमान है कि ब्राह्मण ग्रन्थों के काल में रेतीले स्थलों में अन्तर्निहित हो गईlकुछ विद्वान यह भी कहते हैं कि ऐतरेय ब्राह्मण के काल में अथवा उसके पूर्व ही सरस्वती सुख चुकी थीlविज्ञान के अनेकानेक नवीन सोच भी इस तथ्य की पुष्टि करते हैंlब्राह्मण ग्रन्थों एवं श्रौत सूत्रों से ज्ञात होता है कि सरस्वती के तट पर धार्मिक-आध्यात्मिक कृत्यों का संपादन भी किया जाता है,थाlसरस्वती एवं दृषद्वती (चिनांग)के संगम पर भी अपां नपात इष्टि में पक्वचरू की आहुति देने का विधान भी अंकित हैlकात्यायन श्रौतसूत्र २४/६/६ के अनुसार सरस्वती दृषद्वती का संगम दृशद्वात्याय्यव कहा जाता थाlकात्यायन श्रौतसूत्र के ही २३/१/१२-१३ में अंकित है कि उक्त संगम पर ही अग्निकाम इष्टि भी संपादित होती थीlताण्ड्य ब्राह्मण २५/१६/११-१२ आपस्तम्ब के अनुसार सरस्वती तट पर तीन सारस्वत सत्र मित्र एवं वरुण के सम्मान में, इन्द्र एवं मित्र के सम्मान में, अर्यमा के सम्मान में किये जाते थेl

उद्गम स्थान 
सरस्वती का उद्गम स्थान जैमिनीय ब्राह्मण ४/२६/१२ के अनुसार प्लक्ष प्रास्त्रवन, एवं आश्वलायन श्रौतसूत्र १२/६/१ के अनुसर प्लाक्ष प्रस्त्रवन कहा जाता हैlयमुना का उद्गम स्थल प्लाक्षावतरणभी इसके पास ही थाlमहाभारत वनपर्व १२९/१३-१४-२१-२३ से स्पष्ट भाष होता है कि यमुना क्ले उद्गम स्थल प्लाक्षातरण के निकट ही सरस्वती भी प्रवाहित थी, जसी स्थान पर सरस्वती भूमि के गर्त्त में अन्तर्निहित हुई वह ताण्डय ब्राह्मण २५/१०/६ के अनुसार विनशन (सम्प्रति कोलायत, बीकानेर के दक्षिण-पश्चिम-दक्षिण) कहा जाता थाlसरस्वती-प्रवाह के लुप्त होने को विनशन तथा कई बार इसकी धारा पुनः प्रकट हो जाती थी,जिसे उद्भेद कहा जाता थाlसरस्वती प्रवाह के लुप्त हो जाने की स्थिति में सरस्वती के सूखे तट पर विनशन में किसी धार्मिक अनुष्ठन अथवा यज्ञादि के दीक्षा लेने का विधान थाlकात्यायन श्रौतसूत्र में अंकित है कि दीक्षा शुक्ल पक्ष की सप्तमी को होती थीlसरस्वती के लुप्त होने के स्थान विनाशन से प्लक्ष प्रास्त्रवन की दूरी उन दिनों घुड़सवारी के माध्यम से चौवालीस दिनों में पूरी की जाती थीlअनुष्ठान करने वाले प्लक्ष प्रास्त्रवन पहुँच कर ही अनुष्ठान समाप्ति एवं कारपचव देश में प्रवाहित यमुना में (सरस्वती में जल होने पर भी उसमें नहीं) अवभृथ स्नान करने का विधान थाlकात्यायन श्रौतसूत्र १०/१०/१ के अनुसार कुरुक्षेत्र के परीण नामक समुद्रतटीय स्थान पर श्रौतयज्ञ किये जाते थेlआश्वलायन श्रौतसूत्र के अनुसार विनशन से प्रक्षिप्त शय्या की दूरी पर यजमानों के द्वारा एक दिन में व्यतीत किया जाता थाlऐतरेय ब्राह्मण ८/१ की गाथानुसार सरस्वती तट विनशन पर ऋषियों द्वारा सम्पादित सत्र से  जन्म लिये (उत्पन्न) कवष नामक दासीपुत्र को प्यास से तड़प-तड़प कर मर जाने के लिये मरुभूमि में छोड़ दिए जाने पर कवष ने अपां नपात (ऋग्वेद १०/३०) स्तुति की जिससे प्रसन्न होकर उसके रक्षार्थ सरस्वती उसे घेरते हुए प्रकट हुई उसे परिसरक नाम से जाना जाता हैlमहाभारत वनपर्व ८३/७५ एवं वामन पुराण सरोवर महात्म्य १५/२० में सरक कहा गया हैlमहाराज मनु के समय में सरस्वती एवं दृषद्वती के मध्य का प्रदेश देवकृतयोनि के नाम से जाना जाता हैl

पुराणादि ग्रन्थों में सरस्वती के नदी रूप की अपेक्षा देवतारूप को अत्यधिक महत्व प्रदान करते हुए कहा गया है कि सरस्वती का प्रवाह हालाँकि सूख गया था फिर भी उसका परम्परागत महत्व पौराणिक काल में भी कायम थाlभौगोलिक कारणों से सरस्वती के प्रवाह क्रम में हुए परिवर्तन को पुराणादि ग्रन्थों में शाप तथा वरदान की कथाओं से महिमामण्डित करने के साथ ही धार्मिक स्वरुप प्रदान किया गया हैlसरस्वती तटवर्ती कई स्थानों को तीर्थ रूप में वर्णन करते हुए उनके यात्राओं का जिक्र किया गया हैlमहाभारत में धौम्य पुलस्त्य, पाण्डव और बलराम की तीर्थयात्राएँ भी पुराणों की साक्ष्यता को ही प्रमाणित एवं पुष्ट करती हैlसरस्वती के नदी रूप का वर्णन महभारत वनपर्व अध्याय ८३, ८४, १२९ एवं शल्य पर्व अध्याय ३५-५५, एवं वामन पुराण सरोवर महात्म्य, ब्रह्म पुराण,कूर्म पुराण , पद्म पुराण, वृह्न्नारदीय पुराण, स्कन्द पुराण, वृह्द्धर्म पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण (प्रकृति खण्ड) आदि ग्रन्थों में अंकित हैंlमहभारत में पाण्डव तीर्थयात्रा के क्रम में कहा गया है कि यमुना के उद्गम स्थल प्लाक्षवतरण से पुण्यसलिला सरस्वती दिखलाई पडती हैlइससे स्पष्ट पत्ता चलता है कि सरस्वती का उद्गम स्थल प्लक्ष प्रास्त्रवण यमुना के उद्गम स्थल प्लाक्षावतरण के नजदीक ही थीlवामन पुराण सरोवर महात्म्य ११/३ एवं महाभारत वनपर्व ८४/७ एवं शल्य पर्व ५४/११ के अनुसार सरस्वती की उत्पति के सम्बन्ध सौगन्धिक वन के आगे प्लक्ष (पांकड़) वृक्ष की जड़ की बांबी प्लक्ष प्रास्त्रवण से कही गई हैl महाभारत शल्य पर्व ४२/३० एवं वामन पूर्ण सरोवर महात्म्य १९/१३ में सरस्वती को ब्रह्मा की सरोवर से उत्पन्न होना भी कहा हैl

पुराणों में वेदों की भान्ति प्लक्ष प्रास्त्रवण तीर्थरूप में स्वीकृत है लेकिन ब्रह्मा का सरोवर इस रूप में मान्य न हो सका हैlब्रह्म पुराण में सरस्वती नदी को अग्नि ने स्पष्टतः ब्रह्मा की कन्या तान्देवान्कन्या कहा है इसके साथ ही ब्रह्मा ने इसे स्वीकार भी किया हैl(ब्रह्म पुराण १०/२०१, २०३, २०४) l महाभारत शल्य पर्व ३५/७७ एवं वन पर्व ८२/६० के अनुसर ब्रह्मा के सरोवर से उद्भुत पश्चिमाभिमुख हो प्रवाहित होती हुई सरस्वती पश्चिमी समुद्र में जिस स्थान पर मिलती थी,वह सरस्वती समुद्र संगम तीर्थ के नाम से विख्यात थाlब्रह्म पुराण १०१/२१० के अनुसार भी अग्नि को समुद्र तक ले जाने की पौराणिक आख्यान से भी सरस्वती का समुद्र से मिलना सिद्ध होता हैlसरस्वती के द्वारा अग्नि को समुद्र तक पहुँचाये जाने की यह कथा थोड़े अन्तर से ब्रह्मपुराण में भी अंकित है तथा सरस्वती के सूखने का एक कारण अग्नि को समुद्र तक पहुँचाया जाना भी माना गया हैl

ऋग्वेद की भान्ति ही पुराणों में भी सरस्वती को महानदी,हजारों पर्वतों को विदीर्ण करने वाली,सर्व लोगों की माता आदि कहा गया हैlमहाभारत शल्य पर्व ३८/२२ एवं वृहन्नारदीय पुराण १/८४/८० के अनुसार सरस्वती का उद्गम स्थल हिमालय किवां हिमालय का रमणीय शिखर हैlवामन पुराण सरोवर महात्म्य १३/६-८ एवं वृहन्नारदीय पुराण २/६४/१९ मे अंकित है कि सरस्वती पहाड़ों से उत्तर द्वैतवन से होती हुई कुरुक्षेत्र के रन्तुक नामक स्थान से पश्चिमोभिमुख होकर प्रवाहित होती हैlकुरुक्षेत्र में प्रवाहित होने वाली अन्य नदियाँ बरसाती हैं लेकिन सरस्वती में सालों भर जल प्रवाहित रहता हैlविद्वानों के अनुसार कुरुक्षेत्र से पश्चिमी समुद्र के बीच सरस्वती का प्रवाह रेगिस्तान में खो चुका था,फिर भी अनेकानेक स्थलों पर उपलब्ध उसके अवशेषों को तीर्थों की मान्यता मिल चुकी थीlप्राचीन समय में द्वारावती से कुरुक्षेत्र तक जाने का प्रमुख मार्ग सरस्वती तट के साथ-साथ ही थाlभागवतपुराण में दो बार श्रीकृष्ण के हस्तिनापुर से द्वारिका और दूसरी बार द्वारिका से हस्तिनापुर आने के समय इस मार्ग का वर्णन अंकित हैlबलराम की द्वारिका से कुरुक्षेत्र की तीर्थयात्रा का मार्ग भी यही रहा हैlइन यात्राओं के क्रम में प्रभास तीर्थ, चमसोद्भेद, शिवोद्भेद, नागोद्भेद, शशयान,उद्पान अथवा सरस्वती कूप,विनशन, सुभूमिक अथवा गन्धर्ववती तीर्थ, गर्गस्त्रोत, शंखतीर्थ, द्वैतवन,नागधन्वा, द्वैपायन सरोवर तीर्थ आदि का नाम महाभारत के वनपर्व एवं शल्य पर्व में अंकित हैंlइन तीर्थों में चमसोद्भेद,शिवोद्भेद और नागोद्भेद ऐसे स्थल हैं जहाँ लुप्त सरस्वती पुनः प्रकट हुई थीlविद्वान कहते हैं, सरस्वती का पराचिन मार्ग यही है जो सूख जाने पर भी कतिपय विशिष्टताओं के कारण तीर्थ रूप में मान्य हो गयेlउद्पान अथवा सरस्वती कूपतीर्थ के सम्बन्ध में महाभारत शल्य पर्व ३५/९० के अनुसार वहाँ औषधियाँ (वृक्ष लताओं) की स्निग्धता और भूमि आर्द्रता से सरस्वती का अनुमान होता हैl शल्य पर्व के अध्याय ४२ के अनुसार वशिष्ठोद्वाह (सरस्वती-अरुणा संगम) से सरस्वती तीर्थ (विश्वामित्र आश्रम) तक सरस्वती द्वारा वशिष्ठ को प्रवाहित कर ले जाने से इसके वेगवती होने का प्रमाण मिलता है लेकिन विश्वामित्र के शाप से वशिष्ठोद्वाह में सरस्वती का जल एक वर्ष के लिये अपवित्र एवं रक्तयुक्त हो जाता हैlमहाभारत शल्यपर्व ४३/१६ एवं वामन पुराण (स० म०) १९/३० के अनुसार ऋषियों के वरदान से सरस्वती नदी पुनः पवित्र और शुद्ध हो गईlइसी प्रकार महाभारत शल्य पर्व ४३/६ एवं वमन पुराण सरोवर महात्म्य १९/३० में पश्चिम-दक्षिण अभिमुखी सरस्वती के वैसे ही किसी घटना के कारण नागधन्वा तीर्थ से पूर्वाभिमुख होने की कथा भी अंकित हैlइसे आलंकारिक रूप में नैमिषारण्यवासी ऋषियों पर सरस्वती की कथा के रूप में महाभारत शल्य परत्व ३७/३६-६० में कहा गया हैl 


विद्वानों के अनुसार सरस्वती-प्रवाह के किन्हीं भौतिक कारणों के परिणामस्वरुप सूख जाने, दूषित एवं शुद्ध होने की कथाओं को पुराणों में शाप एवं वरदान की कथाओं से महिमामण्डित किया गया हैlब्रह्मपुराण १०१/११ के अनुसार उर्वशी के आग्रह पर ब्रह्मसुता सरस्वती पुरुरवा से मिलीlपुरुरवा के साथ सरस्वती के मेल-जोल और उनके घर आने-जाने की बात ब्रह्मा )पिता को अनुचित लगीlइस पर उन्होंने सरस्वती को महानदी होने का शाप दे दियाlइसी अध्याय के सोलहवें श्लोक में ब्रह्मा के शाप से शाप-मोचन हेतु प्राप्त वरदान के कारण सरस्वती के दृश्य एवं अदृश्य दो रूपों की हो जाने की कथा हैlब्रह्मवैवर्त पुराण में अंकित है कि देवी सरस्वती को गंगा के शाप के कारण नदी रूप में अवतरित होना पद थाlमहाभारत शल्य पर्व ३७/१-२ में विनशन तीर्थ के वर्णन में सरस्वती-प्रवाह के सूखने का कारण दुष्कर्म परायण शूद्रों और आभीरों के प्रति द्वेष की कथा अंकित हैlशान्ति पर्व १८५/१५ में सरस्वती के चारों वर्णों के लिये एकमात्र देवी कहा गया हैlमहाभारत में ही अन्यत्र सरस्वती के सूखने का कारण उतथ्य ऋषि का शाप भी कहा हैlमहाभारत पुराणादि ग्रन्थों में ऋषियोंके आह्वान पर विभिन्न स्थानों पर सरस्वती के प्रकट होने की कथा कही गई हैlइसके साथ ही विविध स्थानों प्रकट उन छोटी नदी-कल्याओं को सरस्वती नदी की पवित्रता, महता आदि के साथ जोड़ा गया हैlमहाभारत शल्य पर्व अध्याय ३८ एवं वामन पुराण सरोवर महात्म्य अध्याय १६ में ब्रह्मा के आह्वान पर पुष्कर में सुप्रभा,सत्रयाजी मुनियों के कहने पर नैमिशारण्य में कांचनाक्षी, गय के आह्वान पर गया में विशाला, उद्दालक आदि ऋषियों के आह्वान पर उत्तर कोशल में मनोरमा, कुरु के आह्वान पर कुरुक्षेत्र में सुरेणु तथा दक्ष के आह्वान पर गंगाद्वार, वाशिष्ठ के आह्वान पर कुरुक्षेत्र में ओधवती तथा ब्रह्मा के आह्वान पर हिमालय में विमलोदका नाम से सरस्वती के प्रकट होने की कथा अंकित हैlमंकणक ऋषि ने उपर्युक्त सातों सरस्वतियों (नदियों) को कुरुक्षेत्र में आह्वान कर जिस स्थान पर स्थापित किया था वह सप्त सरस्वती तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध हैl

वैदिक साहित्यों में अंकित सरस्वती नदी को पौराणिक काल में सूख जाने के पश्चात पुराणादि ग्रन्थों में अनेकानेक स्थानों पर पुण्यसलिला एवं सरित्श्रेष्ठ कहते हुए अत्यन्त महता प्रदान की गई है तथा पुराणों में ही सरस्वती के देवी रूप में मान्यता भी पूर्णता को प्राप्त होती हैlअनेक ऋषियों के स्तुति इसके प्रमाण ही हैंlमहाभारत शल्य पर्व अध्याय ४२ एवं वामन पुराण सरोवर महात्म्य अध्याय १९ में वशिष्ठ ऋषि सरस्वती नदी को स्तुति करते हुए उसे पुष्टि,कीर्ति, धृत्ति, बुद्धि, उमा,वाणी और स्वाहा,क्षमा, कान्ति,स्वधा आदि जगत् को अपने अधीन रखने वाली एवं सभी प्राणियों में चार रूपों- परा, पश्यन्ति, मध्यमा और बैखरी में निवास करने वाली कहा हैlयह स्तुति सरस्वती को नदी रूप की अपेक्षा देवता रूप को ही महिमामण्डित करता हैl

वेद-पुराणादि ग्रन्थों में अंकित इन वर्णनों से कतिपय विद्वानों के अनुसार सरस्वती मूलतः नदी थी जो हिमालय से निकलकर  पश्चिमी समुद्र में जा मिलती थीlकालान्तर में भौगोलिक कारणों से सरस्वती सूख गई फिर भी उसकी दृश्य भौतिक नदी रूप से होने वाले अनगिनत लाभों को देखते हुए वैदिक एवं पौराणिक श्लोकों में उसे नदीतमे और अम्बितमे ही नहीं देवितमे भी स्वीकार किया गया हैlधीरे-धीरे सरस्वती नदी रूप की अपेक्षा देवता रूप में ही अधिक स्वीकृत, अंगीकृत और आत्मार्पित की गई,इसके साथ ही सरस्वती की देवी रूप ही प्रमुखता प्राप्त कर लोक आराध्या बन गई और वर्तमान में मार्ग शीर्ष अर्थात माघ मास के पञ्चमी,जिसे वसन्तपञ्चमी के नाम से जाना जाता है, को अत्यन्त धूम-धाम के साथ समारोहपूर्वक देवी सरस्वती की प्रतिमा स्थापित कर पूजा-अर्चा की जाती है l

अधिसूचना जारी होने के साथ देश में आदर्श चुनाव संहिता लागू -अशोक “प्रवृद्ध”

  अधिसूचना जारी होने के साथ देश में आदर्श चुनाव संहिता लागू -अशोक “प्रवृद्ध”   जैसा कि पूर्व से ही अंदेशा था कि पूर्व चुनाव आयुक्त अनू...