वेद अर्थात ज्ञान से संयुक्त हैं सभी भारतीय सम्प्रदाय व पन्थ
वेद का शाब्दिक अर्थ ज्ञान है और सृष्टि के आरम्भिक काल में सभी मानव सनातन वैदिक धर्म पद्धति पर ही आलम्बित थे अर्थात परमेश्वरोक्त ग्रन्थ वेद में कहे अनुसार ही चलते थे। आदिकाल से ही शाश्वत्त रूप से चली आ रही इस सनातन वैदिक धर्म का ही सत्प्रभाव है कि भारत के वैदिक धर्म में से धर्म के जितने सम्प्रदाय, पंथ अथवा मजहब निकले अर्थात जन्म हुए, वे सब आज भी स्वयं को वेद के शाब्दिक अर्थ ज्ञान से सम्बद्ध रखा है और अपने आपको किसी न किसी प्रकार से ज्ञान से बांधे हुए रखा हुआ है। जैन धर्म का मूल जैन शब्द ज्ञान का ही अपभ्रंश रूप है अर्थात ज्ञान से ही बिगड़कर बना है । ध्यातव्य है कि संस्कृत में ज्ञान शब्द ज्यांन बोला जाता है, संस्कृत के जानकार विद्वान उसे ग्यान नहीं बोलते । ज्यांन और जैन में बहुत समरूपता को देखते हुए आसानी से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि इसी ज्यांन से जैन शब्द बना है । इसी प्रकार बौद्ध धर्म में बोध अर्थात ज्ञान से ही बौद्ध शब्द बना है, और फिर बुद्ध । बोधगया नामक स्थान में प्रयुक्त शब्द बोध यह स्पष्ट करता है कि यहीं पर अहिंसा के गुण गाने वाले महात्मा बुद्ध को बोध प्राप्त हो गया था। स्पष्ट है कि इसी लिए इस स्थान का नाम बोधगया नाम रखा । इससे यह भी स्पष्ट ही है कि बोध अर्थात महात्मा बुद्ध को इस स्थान पर ज्ञान हुआ था , और ज्ञान होते ही उन्होंने अपने धर्म का नाम भी ज्ञान के समानार्थक बौद्ध ही रखा। इसी प्रकार पंजाब में ज्ञान से ही सिक्ख अर्थात शिष्य धर्म की उत्पत्ति हुई है। शिष्य और ज्ञान का परस्पर अन्योन्याश्रित संबंध है । इसका अभिप्राय है कि ज्ञान की देवी की पूजा करना और ज्ञानार्जन कर संसार का उपकार करना प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति का मौलिक उद्देश्य रहा है । यही कारण रहा कि हमारे सभी प्राचीन भारतीय शासक ज्ञान के उपासक रहे ।
हमारे गौरवमयी भारत के इन ऐतिहासिक तथ्यों को, उनकी सनातनता को, उनके वैदिक रहस्यों को हमें समझने की आवश्यकता है, पुरातन भारत की सनातन वैदिक धर्मिता को समझाने के लिए अर्थात प्राचीन भारतीय इतिहास के गौरवपूर्ण पक्ष को स्पष्ट करने के लिए कोई विदेशी या भारत से द्वेष भाव रखने वाला विधर्मी इतिहासकार या लेखक हमें समझाने नहीं आएगा कि इन वैदिक ज्ञान का अर्थ क्या है ?