Showing posts with label छद्म स्वाधीन भारतवर्ष. Show all posts
Showing posts with label छद्म स्वाधीन भारतवर्ष. Show all posts

Sunday, March 30, 2014

भारतवर्ष के विभाजन की जनक खान्ग्रेस अर्थात कांग्रेस पार्टी विरोधी भी अपनी पसंद की अपने आप ही चुन रही है - अशोक "प्रवृद्ध"

भारतवर्ष के विभाजन की जनक खान्ग्रेस अर्थात कांग्रेस पार्टी विरोधी भी अपनी पसंद की अपने आप ही चुन रही है 
अशोक "प्रवृद्ध"

"अहंकार की चरम सीमा होती है जब कोई व्यक्ति या संस्था या फिर पार्टी अपना विरोधी भी अपनी पसंद के ही बनाना चाहता हो , चुनना चाहता हो " , जैसे कि भारतवर्ष के विभाजन की जनक खान्ग्रेस अर्थात कांग्रेस पार्टी विरोधी भी अपनी पसंद की अपने आप ही चुन रही है l भ्रष्टाचार की सत्ता की मलाई चाटने वाले कांग्रेसी और उसके सहयोगी इस डर में जी रहे है कि कहीं उनके सत्ता में से किसी कारण से नहीं आ पाने अर्थात हटने पर उनको सच में कोई फांसी पर ही न लटका दे, इसलिए पहले से ही इंतजाम कर लिया कि कम से कम सजा से तो बचा जाये l


मित्रो ! खान्ग्रेस की सोच है कि यदि विरोधी भी कोई गाँधीवादी ब्रांड होगा तो फिर वह माफ़ करने में भी अपनी "गाँधीवादी नीति" दिखाएगा l जिस नीति के तहत अंग्रेजो ने अपने विरोधी के रूप में शहीद भगत सिंह ,  नेताजी सुभाष चन्द्र बोस , चंद्रशेखर आजाद , वीर सावरकर जी के स्थान पर अपनी ही पसंद के "महात्मा ढोंगी गाँधी" और "चरित्रहीन जवाहर लाल नेहरू" को विरोधी चुना था l और उन्ही को भारत देश की तथाकथित स्वाधीनता दिलाने के ढोल पीटे गए थे. एक बार जरा सोचिए कि ऊपर बताये नामो में से यदि किसी राष्ट्रवादी और भारत माता प्रेमी को देश की स्वाधीनता  दिलाने का सेहरा बंध जाता तो क्या आज देश की यह हालत होती ? नहीं , कदापि नहीं  l  मित्रो ! अंग्रेजो ने भी सुविधा के हिसाब से अपना विरोधी चुना और उसी के बल पर आज तक "परदे के पीछे से" भारतवर्ष पर अपना कब्ज़ा जमाये हुए है l  देश को गाँधी आतंकवाद और खांग्रेस गेंग की वजह से न तो सच्ची स्वाधीनता मिली और न ही देशवासियों के मन और मस्तिष्क से हजारों वर्षों की परतंत्रता से उपजी हीनता का ही बोध हट पाया l इसी प्रकार से आप अन्ना हजारे और उसके भ्रष्टाचार के विरूद्ध दिखावे की लड़ाई से उपजे  रणछोड़दास खाँसड़ उर्फ अरविन्द केजरीवाल की आम अराजकता पार्टी अर्थात आम आदमी पार्टी नामक मुखोटा देख ले l मित्रो ! हर आदमी में कहीं न कहीं "बड़ा और प्रसिद बनाने की इच्छा रह ही जाती है" और  अन्ना हजारे तथा उनके अप्रत्यक्ष चेले रणछोड़दास खाँसड़ इस भ्रष्टाचार के विरुद्ध क्रांति की धार को कुंद कर रहे है और छद्म स्वाधीन भारतवर्ष में अनाचार , व्यभिचार और भ्रष्टाचार तथा भारत माँ के विभाजन की जनक खान्ग्रेस को एक तरह से राहत ही पहुंचा रहे है l मित्रो इसका भी कारण है उनके तथाकथित चेले  मीडिया की रचना (क्रियेशन) रणछोड़दास खाँसड़ उर्फ अरविन्द केजरीवाल जी , जो कि  इस देशद्रोही , राष्ट्र्घातक कुकृत्य को क्रांति का नाम दे रहे है परन्तु उन्हें यह नहीं मालूम अथवा जान -बूझकर क्रांति के नाम पर टाट के पैबन्द लगा रहे है l


मित्रों ! कहीं और कोई राष्ट्रवादी संस्था देश में फैले भ्रष्टाचार के बहाने इस फसल को न काटले इसलिए खान्ग्रेस ने अपना इंतजाम कर दिया है l खान्ग्रेस ने सदैव ही अपने विरोधियों की विभिन्न मनगढंत मामलों में फंसाकर नीवें हिला कर रख दी हैं ऐसे में अन्ना हजारे और उसके चेले केजरीवाल और अन्य सहयोगियों की किसी भी मामले में नाम ण आना , उनके बैंक खतों अर्थात अकाउंट की जांच की बात किसी भी खांग्रेसी के द्वारा अभी तक नहीं सुना जाना खान्ग्रेस की इस साजिश के मूर्तरूप होने के संदेह को ही पुष्टि क्या करता है l उल्टे खान्ग्रेस के द्वारा कुछ इस प्रकार का व्यवहार किया जा रहा है , कुछ ऐसा प्रचार किया जा रहा है कि अन्ना हजारे ब्रांड के आम अराजकता पार्टी की उनचास दिनी रणछोड़दास खाँसड़ उर्फ केजरीवाल की खुजली सरकार  को संघ का घोषित कर दिया मतलब चोर की दाड़ी में तिनका , और उस पर तुर्रा अर्थात बड़ा कमाल यह है कि जो भ्रष्टाचार की अखंड प्रतिमा "दस जनपथ" में विराजित है उसको मीडिया में ऐसा निरुपित किया जा रहा है जैसे कि के लिए उसके प्राण पखेरू हो रहे हैं l  हाल के दिनों में ही मीडिया ने देश में क्रांति का ऐसा वातावरण तैयार कर दिया कि बस इस आम अराजकता पार्टी के सत्ता में आने के बाद देश में से भ्रष्टाचार ऐसे गायब हो जायेगा जैसे की गधे के सर से सींग l मित्रों ! अन्ना हजारे ब्रांड के आम अराजकता पार्टी की उनचास दिनी रणछोड़दास खाँसड़ उर्फ केजरीवाल की खुजली सरकार  ने यह साबित कर दिया कि राज्य अर्थात सरकार चलाना उसके वश की बात नहीं भले ही वह कुछ दिनों तक भारतीय जनता को बरगलाकर बेवकूफ बना ले l

Saturday, November 30, 2013

भारतवर्ष में गलत राजनीति के अवलम्बन से भारतवासी आज भी मानसिक , आत्मिक दासतावद्ध - अशोक "प्रवृद्ध"

भारतवर्ष में गलत राजनीति के अवलम्बन से भारतवासी आज भी मानसिक , आत्मिक दासतावद्ध
अशोक "प्रवृद्ध"


भारतवर्ष में आङ्ग्ल काल से ही गलत राजनीति का अवलम्बन हो रहा है । इसके परिणामों की भयंकरता तो छद्म स्वाधीन प्राप्त भारतवर्ष में स्पष्ट रूप से प्रकट होने लगी है । खाङ्ग्रेस अर्थात काङ्ग्रेस की नीति जो 1916 से आरम्भ हुई और जिसको मोहनदास करमचंद गाँधी की दूषित दृष्टि ने 1920 से अपना रंग चढ़ाया था और जिसके साथ पंडित जवाहरलाल नेहरू ने समाजवाद की पैबन्द लगाई थी , देश को अपार हानि पहुँचाने वाली सिद्ध हुई है ।

छद्म स्वाधीन भारतवर्ष में देश के भाग्य की बागडोर उन शक्तियों के हाथ में नहीं आई जो स्वाधीनता - संग्राम काल में राष्ट्रवादी विचारधारा के अनुसार संघर्ष कर रहे थे , बल्कि छद्म स्वाधीन भारतवर्ष में काङ्ग्रेस , गाँधी और जवाहर लाल के द्वारा निर्मित शक्तियाँ राजनीतिक प्रभुत्व प्राप्त कर गईं (लीं) । जिससे देश घोर विपत्ति में पड़ गया है और देश में मुसीबत के बादल आते रहे हैं । दूसरी ओर जनता को चिकनी - चुपड़ी बातों से बरगलाकर पथभ्रष्ट किया जा रहा है ।

यह एक सर्वविदित तथ्य है कि देश में स्वाधीनता - संग्राम काल से लेकर अब तक हिन्दू जाति ही स्वराज्य चाहती रही है । कुछ , जिनकी गणना उँगलियों पर की जा सकती है , मुसलमान और ईसाई भी हिन्दुओं का साथ दे रहे हैं । इस पर भी हिन्दुओं को हानि पहुंचाने के लिए पूर्ण खाङ्ग्रेस अर्थात समूचा काङ्ग्रेस और उसके नेताओं तथा उसके छद्म धर्मनिरपेक्ष सहयोगियों का यह प्रयास चल रहा है । खाङ्ग्रेस अंग्रेज नीतिज्ञों की उपज थी । इसमें केवल एक विशेष शिक्षा - दीक्षा के लोग ही शामिल हो सकते थे । उन्होंने इस संस्था को एक ऐसे मार्ग पर चलाया कि हम धर्म , संस्कृति और देश - प्रेम से भी विहीन होकर देश को स्वतंत्र कराने के लिए संघर्ष करते रहे । लेकिन लम्बे संघर्ष के पश्चात् खाङ्ग्रेस की अदूरदर्शिता स्वार्थपरक राजनीति के कारण देश - विभाजन की शर्त पर स्वतंत्रता के नाम पर छद्म स्वाधीनता प्राप्त कर मन मसोसकर रह बैठे ।

1947 में छद्म स्वाधीनता की प्राप्ति हुई , उन कोटि - कोटि भारतीयों के प्रयत्न से , जो इसके लिए प्रत्येक प्रकार का त्याग कर रहे थे , परन्तु उन कोटि - कोटि भारतीयों का नेतृत्व प्राप्त हुआ उनको , जो न तो हिन्दू थे , न ही देशभक्त । जिनकी सहानुभूति उनके साथ थी , जो देश के धर्म और देश की संस्कृति के घोर शत्रु थे । ऑक्सफोर्ड , कैम्ब्रिज और अलीगढ के स्नातकों के षड्यंत्र से देश तथाकथित स्वतंत्र होकर भी मानसिक -आत्मिक दासता की श्रृंखलाओं में आज भी बंधा हुआ है ।रतवर्ष में गलत राजनीति के अवलम्बन से भारतवासी आज भी मानसिक , आत्मिक दासतावद्ध
अशोक "प्रवृद्ध"


भारतवर्ष में आङ्ग्ल काल से ही गलत राजनीति का अवलम्बन हो रहा है । इसके परिणामों की भयंकरता तो छद्म स्वाधीन प्राप्त भारतवर्ष में स्पष्ट रूप से प्रकट होने लगी है । खाङ्ग्रेस अर्थात काङ्ग्रेस की नीति जो 1916 से आरम्भ हुई और जिसको मोहनदास करमचंद गाँधी की दूषित दृष्टि ने 1920 से अपना रंग चढ़ाया था और जिसके साथ पंडित जवाहरलाल नेहरू ने समाजवाद की पैबन्द लगाई थी , देश को अपार हानि पहुँचाने वाली सिद्ध हुई है ।

छद्म स्वाधीन भारतवर्ष में देश के भाग्य की बागडोर उन शक्तियों के हाथ में नहीं आई जो स्वाधीनता - संग्राम काल में राष्ट्रवादी विचारधारा के अनुसार संघर्ष कर रहे थे , बल्कि छद्म स्वाधीन भारतवर्ष में काङ्ग्रेस , गाँधी और जवाहर लाल के द्वारा निर्मित शक्तियाँ राजनीतिक प्रभुत्व प्राप्त कर गईं (लीं) । जिससे देश घोर विपत्ति में पड़ गया है और देश में मुसीबत के बादल आते रहे हैं । दूसरी ओर जनता को चिकनी - चुपड़ी बातों से बरगलाकर पथभ्रष्ट किया जा रहा है ।

यह एक सर्वविदित तथ्य है कि देश में स्वाधीनता - संग्राम काल से लेकर अब तक हिन्दू जाति ही स्वराज्य चाहती रही है । कुछ , जिनकी गणना उँगलियों पर की जा सकती है , मुसलमान और ईसाई भी हिन्दुओं का साथ दे रहे हैं । इस पर भी हिन्दुओं को हानि पहुंचाने के लिए पूर्ण खाङ्ग्रेस अर्थात समूचा काङ्ग्रेस और उसके नेताओं तथा उसके छद्म धर्मनिरपेक्ष सहयोगियों का यह प्रयास चल रहा है । खाङ्ग्रेस अंग्रेज नीतिज्ञों की उपज थी । इसमें केवल एक विशेष शिक्षा - दीक्षा के लोग ही शामिल हो सकते थे । उन्होंने इस संस्था को एक ऐसे मार्ग पर चलाया कि हम धर्म , संस्कृति और देश - प्रेम से भी विहीन होकर देश को स्वतंत्र कराने के लिए संघर्ष करते रहे । लेकिन लम्बे संघर्ष के पश्चात् खाङ्ग्रेस की अदूरदर्शिता स्वार्थपरक राजनीति के कारण देश - विभाजन की शर्त पर स्वतंत्रता के नाम पर छद्म स्वाधीनता प्राप्त कर मन मसोसकर रह बैठे ।

1947 में छद्म स्वाधीनता की प्राप्ति हुई , उन कोटि - कोटि भारतीयों के प्रयत्न से , जो इसके लिए प्रत्येक प्रकार का त्याग कर रहे थे , परन्तु उन कोटि - कोटि भारतीयों का नेतृत्व प्राप्त हुआ उनको , जो न तो हिन्दू थे , न ही देशभक्त । जिनकी सहानुभूति उनके साथ थी , जो देश के धर्म और देश की संस्कृति के घोर शत्रु थे । ऑक्सफोर्ड , कैम्ब्रिज और अलीगढ के स्नातकों के षड्यंत्र से देश तथाकथित स्वतंत्र होकर भी मानसिक -आत्मिक दासता की श्रृंखलाओं में आज भी बंधा हुआ है ।

Tuesday, November 19, 2013

मोहनदास करमचंद गाँधी देश के लिए उचित नेता नहीं थे। महात्मा जी एक भीरू नेता थे। नेता तो साहसी व्यक्ति होना चाहिए । - अशोक "प्रवृद्ध"

मोहनदास करमचंद गाँधी देश के लिए उचित नेता नहीं थे। महात्मा जी एक भीरू नेता थे। नेता तो साहसी व्यक्ति होना चाहिए ।
अशोक "प्रवृद्ध"


अहिंसा सर्वदा और सर्वत्र मिथ्या सिद्धांत है । यह व्यापक धर्मों में नहीं है । योग साधना करने वालों के लिए अहिंसा एक व्रत है , परन्तु जन साधारण के लिए यह नहीं है । इसके अतिरिक्त भी प्रत्येक धर्म - कर्म में भी धर्म उद्देश्य होना चाहिए ।
"शान्तिः शान्तिरेव च ।"
शान्ति शान्ति स्थापित करने के लिए हो ।

यदि किसी समय शान्त रहने से अशान्ति फैलती है तो शान्ति अशान्ति का साधन बन जाती है । इसी प्रकार अन्य धर्मों की बात है । जैसे - सत्य । सत्य सत्यवक्ताओं की रक्षा के लिए है । जो सत्य रक्षा नहीं कर सकता , वह धर्म नहीं हो सकता ।
जैसे सदा हिंसा नहीं चल सकती , वैसे ही सदा अहिंसा भी एक मिथ्या नीति है । इस कारण कम से कम मैं तो अहिंसा का भक्त नहीं हूँ और कोई भी बुद्धिमान व्यक्ति सर्वदा और सर्वत्र अहिंसा का भक्त नहीं हो सकता ।

यह प्रायः देखा जाता है कि हिंसा - अहिंसा का सम्बन्ध आत्मा के साथ है । यह स्वभाव से चलती है । अतः जिस व्यक्ति का स्वभाव हिंसा करना नहीं , वह हिंसा नहीं कर सकेगा । इसी प्रकार अहिंसा करने का स्वभाव सबका नहीं हो सकता । 
हमारी सामाजिक व्यवस्था में ब्राह्मण और क्षत्रिय स्वभाव से भिन्न - भिन्न श्रेणियां मानी गई हैं । क्षत्रिय वर्ग के लोग जब धर्म की स्थापना के लिए हिंसा करते हैं , तो वे पाप नहीं करते । 

अब प्रश्न उत्पन्न होता है कि किस प्रकार जाना जाये कि अमुक परिस्थिति में हिंसा करना ठीक है अथवा अहिंसा ?
यह एक अति दुस्तर कार्य है । इस पर भी इसका निर्णय विपक्षी को देखकर किया जा सकता है । विपक्षी का निर्णय करना कठिन है । विपक्षी असुर जो है , जो " आत्मवत सर्व भूतेषु " के सिद्धांत को नहीं मानता , वह अपने दैवी पक्ष का नहीं हो सकता । वह असुर है और शत्रु है । धर्म , शत्रु को पराजित कर अपने अधीन रखने में है । इसके लिए साम , दाम , दंड , भेद नीति समय - समयानुसार चलाये जा सकते हैं । जो शत्रु को पराजित करने के लिए उचित नीति का अवलम्बन करते हैं , वे नेता कहाते हैं । मोहनदास करमचंद गाँधी देश के लिए उचित नेता नहीं थे। महात्मा जी एक भीरू नेता थे। नेता तो साहसी व्यक्ति होना चाहिए । महात्मा जी दस - बीस कांस्टेबलों की हत्या होते देख , भयभीत हो उठते थे । एक बार हत्याएं हुई थी उत्तरप्रदेश में और गाँधी ने सत्याग्रह बंद कर दिया था मद्रास प्रान्त में । इसके अतिरिक्त वे अपने कार्यों से आदर्श अहिंसा न तो विपक्षी में उत्पन्न कर सके थे  और न ही अपने पक्ष में । इस कारण हत्याओं के दर्शन से देश - व्यापी आन्दोलन को बंद कर देना उनमें साहसहीनता प्रकट करता है । 
यदि तो वे कांस्टेबल शान्तिपूर्वक उनको पकड़ने आये होते  और तब उनकी हत्या होती , तब भी कोई बात थी। वे तो लाठी चलाने की नीयत से आये थे । 

इस प्रकार यदि देश पर शत्रु आक्रमण कर दे तो उनके सामने अहिंसा की नीति अशुद्ध होगी । यह धर्म नहीं हो सकता ।
स्वाधीनता - संग्राम में हिंसक क्रान्तििकारी अपना कार्य कर रहे थे और गाँधी जी इस कार्य के लिए स्वभाव से अयोग्य थे । वे शांतिमय ढंग पर आन्दोलन चला सकते थे और कुछ लोग थे जो इतना कुछ भी नहीं कर सकते थे । वे तत्कालीन ब्रिटिश सरकार को सम्मतिमात्र दे सकते थे । ऐसा ही सन् 1901से 1919 तक नरम दल के लोग करते रहे थे । तीनों प्रकार के लोग अपने - अपने स्वभावानुसार कार्य सकते थे । तीनों के कार्यों का उद्देश्य एक होना चाहिए था और वह होना चाहिए था देश में स्वराज्य उत्पन्न करना । इन तीनों ही को एक - दुसरे की निंदा और दूसरों का मार्ग अवरूद्ध नहीं करना चाहिए था । ये तीनों समानांतर रेखा में कार्य कार्य सकते थे । 

दोष हिंसात्मक आन्दोलन में नहीं , प्रत्युत हिंसावादियों के विरोध करने में था । एक ऐसा भी काल अर्थात समय आया था जब नरम दल वाले गोखले , फिरोज शाह मेहता इत्यादि गरम दल के तिलक , लाला लाजपत राय , इत्यादि को देश का शत्रु कहते थे । फिर ऐसा समय भी आया था और गांधीवादी बाल गंगाधर तिलक इत्यादि की निंदा करने लगे । गाँधीवादियों ने एनीबिन्सेंट की निंदा करते हुए उसको क्षेत्र से बाहर कर दिया था । गाँधी जी ने भगत सिंह की भी निंदा की थी । ये सब घटनाएँ स्पष्टतः गाँधी के दोषयुक्त व्यवहार को दरशाता है । 

जब गाँधी जी ने सब वृद्ध और अनुभवी नेता की सम्मति के विरूद्ध खिलाफत को भारतवर्ष की राजनीति में सम्मिलित की थी , तब कुछ नेताओं ने इसको नहीं माना था । तब न मानने वालों को क्षेत्र से बाहर कर दिया गया था । यह अनुचित था और पाप - कर्म था । परन्तु उस समय नरम दल के नेताओं को और गाँधी जी को समझाने वाला कोई दिखाई नहीं देता था । इसका कारण था , देश में ब्राह्मण वर्ग अर्थात विद्वान वर्ग का अभाव था , अन्यथा वे देश में इस विषमता को सुलझा देते । 
मित्रों ! 

वर्तमान में भी भारतवर्ष में विद्वान अर्थात ब्राह्मण - वर्ग का अभाव है , यही कारण है कि धूर्तों और चापलूसों की बन आई है , और विदेशी मानसिकता वाली खाङ्ग्रेस पार्टी और उसके धर्मनिरपेक्ष सहयोगी भारतवासियों को मूर्ख बना देश को लूटने , बेचने और अपमानित करने का राष्ट्रविरोधी गतिविधियों को खुलेआम अंजाम देने की साहस अर्थात हिमाकत कर रहे हैं ।

Sunday, November 17, 2013

जो उस देश के धर्मयुक्त हितों को समझ उसको संपन्न करने में लगे रहते हैं , वही राष्ट्रवादी हैं और जो राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करते , वे अराष्ट्रवादी हैं । - अशोक "प्रवृद्ध"

जो उस देश के धर्मयुक्त हितों को समझ उसको संपन्न करने में लगे रहते हैं , वही राष्ट्रवादी हैं और जो राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करते , वे अराष्ट्रवादी हैं ।
अशोक "प्रवृद्ध"


जो राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करते , वे अराष्ट्रवादी हैं । राष्ट्र एक भौगोलिक क्षेत्र में रहने वाले लोगों के समुदाय का नाम है । जो उस देश के धर्मयुक्त हितों को समझ उसको संपन्न करने में लगे रहते हैं , वही राष्ट्रवादी हैं ।

आत्मनः प्रतिकुलानि परेषां न समाचरेत्  ।

यह राष्ट्रवाद है। यही धर्मयुक्त हित भी है ।

केवल मुसलमानों को प्रभुता मिलेगी अथवा राष्ट्र में बहुसंख्य्स्क के हितों की अनदेखी कर सिर्फ मुसलमानों को प्रश्रय देना , और उनके सुख - सुविधा और मजहबी कृत्यों को बढ़ावा देना , अनुदान उपलब्ध कराना , यह राष्ट्रीयता के अनुकूल नहीं है । यह सिर्फ और सिर्फ राष्ट्रीयता विरोधी कृत्य है , अन्य कुछ नहीं । परन्तु अत्यंत दुखद और खेद की बात है कि छद्म स्वाधीन भारतवर्ष में अधिकांश समय तक केंद्र की सत्ता में काबिज रहने वाली खाङ्ग्रेस पार्टी खुल - ए - आम राष्ट्रीयता - विरोधी कृत्य करते हुए मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति के तहत बहुसंख्यकों के मुकाबले मुस्लिमों को अतिरिक्त मजहबी छूट के साथ ही अनुदान और अन्यान्य सुविधाएँ उपलब्ध करा रही है और बहुसंख्यक तालाब किनारे मछली के इन्तजार में खड़े बगुले की भांति टुकुर - टुकुर देखने में ख़ुशी महसूस कर रहे हैं ।
मुसलमानों ने भारतवर्ष में कभी भी अपने व्यवहार से अपना राष्ट्रवादी हाेना सिद्ध नहीं किया अर्थात राष्ट्र के अंग होने का परिचय नहीं दिया । इक्के - दुक्के अप्रख्यात मुसलमानों को छोड़ बहुसंख्यक मुसलमानों ने कभी भी एक जाति के रूप में देश में देशवासियों सा व्यवहार नहीं किया । मुसलमान सदा राष्ट्रविरोधी व्यवहार चलाते रहते हैं ।

अठारह सौ संतावन के स्वतन्त्रता - संग्राम में मुसलमान सम्मिलित हुए । वह केवल इसी कारण कि बहादुर शाह जफ़र को वे पुनः भारतवर्ष का सम्राट बनाना चाहते थे । 1921 - 22 के आन्दोलन में भी मुसलमान सम्मिलित हुए थे , परन्तु वह भी एक ओर मुसलमानों के लिए विशेषाधिकार की शर्त करके और दूसरे खिलाफत को बहाल कराने के लिए । इन दो अवसरों के अतिरिक्त मुसलमानों ने भारतवर्ष में स्वराज्य - प्राप्ति के लिए कुछ भी यत्न नहीं किया । इसके बाद भी अंग्रेजों के द्वारा भारतवर्ष छोड़ भागने के समय मुसलमानों को भारतवर्ष का विभाजन करके पुरस्कारस्वरूप अलग इस्लाम राष्ट्र दिया गया और फिर शेष भारतवर्ष को भी इस्लामी राष्ट्र के रूप में तब्दील करने का अघोषित ठेका अंग्रेजों ने और फिर छद्म स्वाधीन भारतवर्ष में अंग्रेजों के आत्मज काले अंग्रेजों , खान्ग्रेसियों ने दे दिया ।

Sunday, November 10, 2013

वह दिन दूर है पर एक दिन अवश्य आएगा जब कोई ऐसा माई का लाल अवश्य आएगा जो दूध का दूध पानी का पानी करेगा ।

वह दिन दूर है पर एक दिन अवश्य आएगा जब कोई ऐसा माई का लाल अवश्य आएगा जो दूध का दूध पानी का पानी करेगा ।

खान्ग्रेस का राज स्वराज्य नहीं , स्वराज्य हमारा परम - पवित्र अधिकार है।
स्वराज्य स्थापन के लिए हरसंभव प्रयास करना हमारा परम कत्तव्य है ।।


छद्म स्वाधीन भारतवर्ष में अधिकांश समय तक भारतवर्ष की सत्ता में सत्तासीन रहने वाली खान्ग्रेस का राज्य स्वराज्य नहीं है और न कभी स्वराज्य हो सकता है । एक अंग्रेज द्वारा स्थापित खान्ग्रेस पार्टी न तो कभी राष्ट्रवादी संस्था थी , न है और न कभी राष्ट्रवादी संस्था बन (हो) पायेगी । यह विदेशी द्वारा स्थापित काले अंग्रेजों की विदेशी मानसिकता वाले लोगों की पार्टी है। भारतवर्ष पर इनका अर्थात खान्ग्रेसियों का राज्य स्वराज्य कदापि नहीं हो सकता ।  स्वराज्य हमारा परम - पवित्र अधिकार है, जिसे प्राप्त करने के लिए प्रत्येक जाति को कटिवद्ध रहना चाहिए । साथ ही हमें अपना प्रयत्न ऐसे ढंग से चलाना चाहए कि हम उन भूलों की पुनरावृति न कर सकें , जिनके कारण अंग्रेजों के भारतवर्ष छोड़ कर भागने के दौरान वह प्रयास असफल हुआ था।
 इसलिए इस बार संगठित हो हमें अपना सम्पूर्ण बल लगाकर स्वराज्य स्थापन की दिशा में प्रयत्न करना और इन्हें सत्ताच्युत करने के लिए सदैव हरसंभव प्रयास करना हमारा परम कर्तब्य होना चाहिए।जय श्रीराम मित्रों !
इस्लामी और अंग्रेज राज्य की भांति छद्म स्वाधीन भारतवर्ष में भारत , भारतीय और भारतीयता अर्थात् हिन्दी ,हिन्दू (हिंदुत्व) और हिन्दुत्व पर चतुर्दिक हमले निरन्तर जारी हैं। भारतवर्ष में हिन्दू बचें हैं तो अंग्रेजों अथवा उनके आत्मज काले अन्ग्रेज खान्ग्रेसियों के कारण अथवा उनकी करनी से नहीं , प्रत्युत अपनी विशाल जनसँख्या और आर्य सनातन वैदिक धर्म में अपनी दृढ़ता , आस्था व विश्वास के कारण।
मित्रों!
जो भी भारतवर्ष से कटा अर्थात भारतवर्ष के मूल सनातन वैदिक धर्म से दूर हुआ , वह गया काम से। आर्यावर्त के पुरातन प्राकृतिक सीमाओं के इतिहास के अध्ययन से इस तथ्य की संपुष्टि होती है कि भारतवर्ष के मूल वैदिक से दूर होकर उनकी कैसी दीन - हीन स्थिति हो गई ? इसलिए आर्य सनातन वैदिक धर्म के मूल सिद्धांतों पर दृढ़ता से डटे रहकर इसका प्रचार - प्रसार करना हमारा परम कर्तव्य , परम धर्म और परम अधिकार है इस कार्य में आने वाली हर विघ्न -बाधाओं को दूर कर अपने परम अधिकार के लिए मार्ग बनाकर अपने लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु निरंतर संघर्षशील रहना नितांत आवश्यक है ।
भारतीय मित्रों !
हिम्मत नहीं हारना है । भारतवर्ष के मूल वैदिक धर्म से दूर होने वाले अस्तित्व हीन हो गए और हम सदियों से विधर्मियों से प्रताड़ित , राष्ट्र्घातकों से शोषित - पीड़ित होकर भी अपने पुरातन सनातन वैदिक धर्म से सांस्कृतिक - आध्यात्मिक लगाव के परिणामस्वरूप ही हम आज भी अपने मूल धर्म व संस्कृति पर दृढ़ता से कायम हैं , तो इसका कारण यह है कि भारतवर्ष पुनः विश्वगुरू के पद को प्राप्त कर विश्वपटल पर चमकेगा । वह दिन दूर है पर एक दिन अवश्य आएगा जब कोई ऐसा माई का लाल अवश्य आएगा जो दूध का दूध पानी का पानी करेगा ।
जय श्रीराम ।

Wednesday, October 2, 2013

2 दो अक्टूबर का दिन


2 (दो) अक्टूबर का दिन ।

तथाकथित मोहनदास करमचंद गाँधी उर्फ़ राष्ट्रपिता महात्मा गांधी (2 अक्टूबर, 1869 – 30 जनवरी, 1948) और देश के दूसरे प्रधानमंत्री स्वर्गीय लालबहादुर शास्त्री (2 अक्टूबर, 1904 – 11 जनवरी, 1966) की जन्मतिथि । दोनों का स्मरण करने और दोनों से किंचित् प्रेरणा लेने का दिन ।

जहां तक शास्त्रीजी का सवाल है उन्हें उनकी निष्ठा, देशभक्ति और सादगी के लिए सदैव स्मरण किया जाता है, प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू की काबिना के एक ईमानदार मंत्री के तौर पर उनकी पहचान भी रही है । किंतु प्रधानमंत्री के रूप में उनका कार्यकाल संक्षिप्त ही रहा, उन्हें देशघातक , राष्ट्र्विरोधियों ने एक षड्यंत्र के तहत एक विमान दुर्घटना में मार दिया।अगर प्रधानमंत्री की भूमिका में वे लम्बे अवधि तक राष्ट्र की सेवा कर पाते तो आज देश की स्थिति कुछ अलग अवश्य होती ।

महात्मा गांधी की तो बात ही कुछ अलग है । छद्म स्वाधीनता प्राप्ति के पश्चात्  वे राष्ट्र्विघातक , देशभंजक ,अधर्मी तत्वों के समूहों के कंधे पर सवार हो अहिंसावादी नायक के तौर पर विराजमान हो चुके हैं और छद्म स्वाधीन भारतवर्ष में सर्वाधिक अवधि तक केंद्र की सत्ता में स्तासीन रहने वाली खान्ग्रेस पार्टी और खान्ग्रेसियों के लिए वोट हासिल करने की लाइलाज रोग के इलाज के के लिए अचूक औषधि के तौर पर राष्ट्रपिता अहिंसावादी, महात्मा ब्रांड के रूप में सर्वत्र व सदैव प्रस्तुत प्रतिस्थापित होकर पूजित हो बेचे जा रहे हैं। महात्मा के रूप में अंग्रेजों के आत्मजों के मध्य उन्हें विश्व में अहिंसा के पुजारी के तौर पर जाना जाता है । भारत , भारतीय और भारतीयता के दुश्मन खान्ग्रेस और उसके धर्मनिरपेक्ष सहयोगियों की मिलीभगत से संयुक्त राष्ट्र संगठन (UNO) ने तो आज के दिन (2 अक्टूबर) को ‘अहिंसा दिवस’ (Non-Violence Day) घोषित कर रखा है । सभी गांधीवादी , मोहनदास करमचन्द्र गाँधी उर्फ़ महात्मा गांधी (??) को अहिंसा का पुजारी मानते हैं जिसने कभी भी किसी तरह की हिंसा नहीं की परन्तु इतिहास के अध्ययन से इस सत्य का सत्यापन होता है कि तथा वास्तविकता भी यह है कि बीसवी सदी के सबसे पहले हिन्दुओं के नरसंहांर का नेतृत्व इसी मोहनदास करमचन्द्र गांधी ने 1919 - 1921 में खिलाफत आन्दोलन के समय किया था | भारत , भारतीय और भारतीयता के सबसे बड़े दुश्मन गाँधी आज वोट बैंक के सबसे बड़े अलमबरदार खान्ग्रेसियों के लिए बन गए हैं और मैकाले की आङ्ग्ल शिक्षा नीति से शिक्षित भारतीय वास्तविक इतिहास से अनभिज्ञ हो भेड़ की चाल में खान्ग्रेस को सत्ता सौंप राष्ट्र की हत्या करने में भागीदार हो रहे हैं।

सरल बाल सत्यार्थ प्रकाश

  सरल सत्यार्थ प्रकाश ओ३म् सरल बाल सत्यार्थ प्रकाश (कथा की शैली में सत्यार्थ प्रकाश का सरल बालोपयोगी संस्करण) प्रणेता (स्वर्गीय) वेद प्रकाश ...