Saturday, November 30, 2013

भारतवर्ष में गलत राजनीति के अवलम्बन से भारतवासी आज भी मानसिक , आत्मिक दासतावद्ध - अशोक "प्रवृद्ध"

भारतवर्ष में गलत राजनीति के अवलम्बन से भारतवासी आज भी मानसिक , आत्मिक दासतावद्ध
अशोक "प्रवृद्ध"


भारतवर्ष में आङ्ग्ल काल से ही गलत राजनीति का अवलम्बन हो रहा है । इसके परिणामों की भयंकरता तो छद्म स्वाधीन प्राप्त भारतवर्ष में स्पष्ट रूप से प्रकट होने लगी है । खाङ्ग्रेस अर्थात काङ्ग्रेस की नीति जो 1916 से आरम्भ हुई और जिसको मोहनदास करमचंद गाँधी की दूषित दृष्टि ने 1920 से अपना रंग चढ़ाया था और जिसके साथ पंडित जवाहरलाल नेहरू ने समाजवाद की पैबन्द लगाई थी , देश को अपार हानि पहुँचाने वाली सिद्ध हुई है ।

छद्म स्वाधीन भारतवर्ष में देश के भाग्य की बागडोर उन शक्तियों के हाथ में नहीं आई जो स्वाधीनता - संग्राम काल में राष्ट्रवादी विचारधारा के अनुसार संघर्ष कर रहे थे , बल्कि छद्म स्वाधीन भारतवर्ष में काङ्ग्रेस , गाँधी और जवाहर लाल के द्वारा निर्मित शक्तियाँ राजनीतिक प्रभुत्व प्राप्त कर गईं (लीं) । जिससे देश घोर विपत्ति में पड़ गया है और देश में मुसीबत के बादल आते रहे हैं । दूसरी ओर जनता को चिकनी - चुपड़ी बातों से बरगलाकर पथभ्रष्ट किया जा रहा है ।

यह एक सर्वविदित तथ्य है कि देश में स्वाधीनता - संग्राम काल से लेकर अब तक हिन्दू जाति ही स्वराज्य चाहती रही है । कुछ , जिनकी गणना उँगलियों पर की जा सकती है , मुसलमान और ईसाई भी हिन्दुओं का साथ दे रहे हैं । इस पर भी हिन्दुओं को हानि पहुंचाने के लिए पूर्ण खाङ्ग्रेस अर्थात समूचा काङ्ग्रेस और उसके नेताओं तथा उसके छद्म धर्मनिरपेक्ष सहयोगियों का यह प्रयास चल रहा है । खाङ्ग्रेस अंग्रेज नीतिज्ञों की उपज थी । इसमें केवल एक विशेष शिक्षा - दीक्षा के लोग ही शामिल हो सकते थे । उन्होंने इस संस्था को एक ऐसे मार्ग पर चलाया कि हम धर्म , संस्कृति और देश - प्रेम से भी विहीन होकर देश को स्वतंत्र कराने के लिए संघर्ष करते रहे । लेकिन लम्बे संघर्ष के पश्चात् खाङ्ग्रेस की अदूरदर्शिता स्वार्थपरक राजनीति के कारण देश - विभाजन की शर्त पर स्वतंत्रता के नाम पर छद्म स्वाधीनता प्राप्त कर मन मसोसकर रह बैठे ।

1947 में छद्म स्वाधीनता की प्राप्ति हुई , उन कोटि - कोटि भारतीयों के प्रयत्न से , जो इसके लिए प्रत्येक प्रकार का त्याग कर रहे थे , परन्तु उन कोटि - कोटि भारतीयों का नेतृत्व प्राप्त हुआ उनको , जो न तो हिन्दू थे , न ही देशभक्त । जिनकी सहानुभूति उनके साथ थी , जो देश के धर्म और देश की संस्कृति के घोर शत्रु थे । ऑक्सफोर्ड , कैम्ब्रिज और अलीगढ के स्नातकों के षड्यंत्र से देश तथाकथित स्वतंत्र होकर भी मानसिक -आत्मिक दासता की श्रृंखलाओं में आज भी बंधा हुआ है ।रतवर्ष में गलत राजनीति के अवलम्बन से भारतवासी आज भी मानसिक , आत्मिक दासतावद्ध
अशोक "प्रवृद्ध"


भारतवर्ष में आङ्ग्ल काल से ही गलत राजनीति का अवलम्बन हो रहा है । इसके परिणामों की भयंकरता तो छद्म स्वाधीन प्राप्त भारतवर्ष में स्पष्ट रूप से प्रकट होने लगी है । खाङ्ग्रेस अर्थात काङ्ग्रेस की नीति जो 1916 से आरम्भ हुई और जिसको मोहनदास करमचंद गाँधी की दूषित दृष्टि ने 1920 से अपना रंग चढ़ाया था और जिसके साथ पंडित जवाहरलाल नेहरू ने समाजवाद की पैबन्द लगाई थी , देश को अपार हानि पहुँचाने वाली सिद्ध हुई है ।

छद्म स्वाधीन भारतवर्ष में देश के भाग्य की बागडोर उन शक्तियों के हाथ में नहीं आई जो स्वाधीनता - संग्राम काल में राष्ट्रवादी विचारधारा के अनुसार संघर्ष कर रहे थे , बल्कि छद्म स्वाधीन भारतवर्ष में काङ्ग्रेस , गाँधी और जवाहर लाल के द्वारा निर्मित शक्तियाँ राजनीतिक प्रभुत्व प्राप्त कर गईं (लीं) । जिससे देश घोर विपत्ति में पड़ गया है और देश में मुसीबत के बादल आते रहे हैं । दूसरी ओर जनता को चिकनी - चुपड़ी बातों से बरगलाकर पथभ्रष्ट किया जा रहा है ।

यह एक सर्वविदित तथ्य है कि देश में स्वाधीनता - संग्राम काल से लेकर अब तक हिन्दू जाति ही स्वराज्य चाहती रही है । कुछ , जिनकी गणना उँगलियों पर की जा सकती है , मुसलमान और ईसाई भी हिन्दुओं का साथ दे रहे हैं । इस पर भी हिन्दुओं को हानि पहुंचाने के लिए पूर्ण खाङ्ग्रेस अर्थात समूचा काङ्ग्रेस और उसके नेताओं तथा उसके छद्म धर्मनिरपेक्ष सहयोगियों का यह प्रयास चल रहा है । खाङ्ग्रेस अंग्रेज नीतिज्ञों की उपज थी । इसमें केवल एक विशेष शिक्षा - दीक्षा के लोग ही शामिल हो सकते थे । उन्होंने इस संस्था को एक ऐसे मार्ग पर चलाया कि हम धर्म , संस्कृति और देश - प्रेम से भी विहीन होकर देश को स्वतंत्र कराने के लिए संघर्ष करते रहे । लेकिन लम्बे संघर्ष के पश्चात् खाङ्ग्रेस की अदूरदर्शिता स्वार्थपरक राजनीति के कारण देश - विभाजन की शर्त पर स्वतंत्रता के नाम पर छद्म स्वाधीनता प्राप्त कर मन मसोसकर रह बैठे ।

1947 में छद्म स्वाधीनता की प्राप्ति हुई , उन कोटि - कोटि भारतीयों के प्रयत्न से , जो इसके लिए प्रत्येक प्रकार का त्याग कर रहे थे , परन्तु उन कोटि - कोटि भारतीयों का नेतृत्व प्राप्त हुआ उनको , जो न तो हिन्दू थे , न ही देशभक्त । जिनकी सहानुभूति उनके साथ थी , जो देश के धर्म और देश की संस्कृति के घोर शत्रु थे । ऑक्सफोर्ड , कैम्ब्रिज और अलीगढ के स्नातकों के षड्यंत्र से देश तथाकथित स्वतंत्र होकर भी मानसिक -आत्मिक दासता की श्रृंखलाओं में आज भी बंधा हुआ है ।

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