Wednesday, November 6, 2013

सम्पूर्ण धर्म का मूल वेद

                                सम्पूर्ण धर्म का मूल वेद

वेदों की महता के सन्दर्भ में विभिन्न पुरातन वैदिक विद्वानों ने अपने विचार अपने ग्रंथों में अंकन किया है । मनुस्मृति के स्मृतिकार मनु महाराज वेद के विषय में अपने विचार प्रकट करते हुए कहते हैं -
वेदोSखिलो धर्ममूलं ..... - मनुस्मृति 2 -6
अर्थात् पूर्ण धर्म का मूल वेद में है।
धर्म्जिग्यसमानानाम् प्रमाणं परमं श्रुतिः ।  - मनुस्मृति 2 - 13
अर्थात् धर्म के जिज्ञासुओं के लिए श्रुतिः (वेद) प्रमाण हैं।
मनु महाराज आगे कहते हैं -
पित्रिदेवमनुष्याणाम् वेदश्चक्षु: सनातनम् ।
अशक्यं चाSप्रमेय च वेद्शास्त्र्मिति स्थितिः ।। -
                              मनुस्मृति 12 -94
पितरों , देवों और मनुष्यों के लिए अनादि वेद नेत्र के समान हैं।
वेदों के सन्दर्भ में वृहदारण्यक उपनिषद् में भी अंकित है -
अरेSअस्य महतो भूतस्य निश्वसितमेतद् यदृग्वेदो यजुर्वेदः सामवेदोSथर्वान्गिरस । - वृहदारण्यक उपनिषद् 4 - 5 - 11
ऋग्वेद , यजुर्वेद , सामवेद और अथर्ववेद परमात्मा के जी श्वास मात्र हैं ।
महाभारतकार कृष्णद्वैपायन वेदव्यास कहते हैं -
अनादिनिधना विद्या वागुत्सृष्टा स्वयम्भुवा ।
    - महाभारत शांतिपर्व 233 - 24
अर्थात् आदि , अन्तरहित नित्य वाणी को परमात्मा ने प्रकट किया ।
वेदों के महान विद्वान् यास्काचार्य वेदों के विषय में कहते हैं -
स्थानुरण्यं भारहार : किलाभूदधीत्य वेदं न विजनाति योसSअर्थज्ञ इत्सकलं भद्रमश्नुते नाकमेति ज्ञानबिधूतपाप्मा ।।
           - निरूक्त 1 -18
अर्थात् जो वेद को पढता है , बिना अर्थ जाने , वह (मनुष्य नहीं) भार उठाने वाला खम्भा होता है । (और) जो अर्थ को जानता है,(वह) सपूर्ण कल्याण को प्राप्त करता है।
महर्षि दयानंद सरस्वती ने सत्यार्थ प्रकाश में कहा है कि जिस व्यापक अविनाशी सर्वोत्कृष्ट परमेश्वर में सब ब्रह्माण्ड और पृथ्वी आदि सब लोक स्थित हैं और जिसको सब वेद वर्णन करते हैं , उसको न जान कर , वेद पढने से भी कुछ नहीं होगा।
प्राचीन वैदिक ज्ञानियों ने वेदार्थ समझने और उसके अनुसार व्यवहार करने की महता के सन्दर्भ में वास्तविक ज्ञान का वैदिक ग्रन्थों में बृहत् वर्णन किया है , परन्तु मध्यकालीन वेद के भाष्यकारों ने अज्ञानवश अथवा जान - बुझकर वेद के ऐसे भाष्य किये जिससे वेदों के सन्दर्भ में मिथ्या धारणाओं को बल मिला।

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