हिन्दू - मुस्लमान में मुख्य अंतर - विचार - स्वतन्त्रता और विचार प्रतिवंध का है
भारतीय मुस्लमान अपने को भारतीय अर्थात हिंदुस्तान का नागरिक नहीं मानते हैं , अपितु अपने को विदेशी समझते हैं । इससे वे विदेशी भाषा में नाम रखते हैं , परन्तु नाम से कोई हिन्दू अथवा मुस्लमान नहीं होता। हिन्दू और मुस्लमान अपने कर्मों से होते हैं । खुदा अर्थात् परमात्मा को मानना और नेक , पाक- साफ़ बनना तो हिन्दू - मुसलमानों में एक जैसी बातें हैं । परन्तु कुछ अन्य बातें हैं , जिनसे हिन्दू और मुस्लमान में अन्तर आता है । हिन्दू - मुस्लमान में एक मुख्य अन्तर यह है कि किसी भी विषय में मतभेद जहाँ हिन्दुओं में एक स्वाभाविक बात मानी जाती हैं , वहाँ मुसलमानों में इसका सहन नहीं किया जाता ।
मुसलमानों में जो खुदा पर ईमान नहीं लाता है अथवा लाता है पर मुहम्मद साहब को रसूल नहीं मानता , वह काफ़िर समझा जाता है और उसके साथ घटिया सलूक किया जाता है ।
दूसरी ओर हिन्दुओं में विचार पर प्रतिवंध नहीं है । कोई कुछ भी मान सकता है । केवल व्यवहार से वह मानवों में दो श्रेणियाँ ही मानता है । एक दैवी प्रवृति वाले और दूसरे आसुरी प्रवृति वाले । प्रवृति का अर्थ विचार भेद से नहीं , प्रत्युत व्यवहार - भेद से है । अतः कोई मुहम्मद साहब को पैगम्बर माने अथवा न माने , इससे किसी प्रकार का झगडा नहीं । झगडा तब होता है जब कोई आसुरी व्यवहार अपनाता है ।
दैवी प्रवृति वाले वे लोग हैं जो निडर - मन तथा शरीर से शुद्ध होते हैं , जिनके कर्म ज्ञान के अधीन होते हैं , दानी , संयमी , लोक कल्याण में रत्त , तपस्वी और अपनी आजीविका मेहनत से उत्पन्न करने वाले , दूसरों को दुःख न देने वाले , सत्यवादी , क्रोध न करने वाले , त्यागी , शांत - स्वभाव और उदार आदि गुण रखने वाले होते हैं ।
इनके विपरीत आसुरी प्रवृति वाले होते हैं । साथ ही वे कर्तब्य और अकर्तव्य में भेद नहीं कर सकते । क्रूर - कर्मी , जगत् का नाश करने वाले , कामी , विषयी , दम्भी ,अभिमानी , सैंकड़ों आशा - पाशों से जकड़े हुए , लोभी , क्रोधी , इत्यादि दुर्गुणों वाले होते हैं ।
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