Wednesday, January 22, 2020

शंकर और गंगा

                                                           शंकर और गंगा 




जो परिवार में, राष्ट्र में और फिर समस्त संसार में शान्ति लाये, समृद्धि लाये,वही शंकर है। ऐसा व्यक्ति ही परिवार, राष्ट्र और फिर समस्त संसार का शंकर हो सकता है। उसकी व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए जो परिवार, राष्ट्र और संसार में सुख - शान्ति की वर्षा कर सके। ऐसा व्यक्ति ही सत्य अर्थों में शंकर है। शंकर का एक प्रतीक है उसकी जटाओं में बहने वाली गंगा। इसके सम्बन्ध में प्रचलित बहुत सी प्रचलित भ्रांतियों के मध्य. किम्बदन्तियों व कथाओं, लोकोक्तियों के मध्य यह पौराणिक मान्यता है कि शंकर की जटाओं से गंगा निकली है। परन्तु वेद वेदोत्तर ग्रन्थों के समीचीन अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि यह मात्र कल्पना है वास्तव में ऐसा नहीं है। उसकी जटाओं में गंगा का प्रवाहित होना इस बात का प्रतीक है कि वही व्यक्ति शंकर हो सकता है जिसके मस्तिष्क में ज्ञान की गंगा बहती हो। जिस प्रकार गंगा का पानी निर्मल और पवित्र है उसी प्रकार उसके मस्तिष्क में उपजे ज्ञान से प्रदत्त व्यवस्था निर्मल हो पवित्र हो उसमें अन्याय अथवा पक्षपात का धब्बा कहीं नहीं हो। जिस प्रकार गंगा का जल अपना ऊंचा स्थान छोडक़र नीचे खड्डे में गिरने में संकोच नहीं करता यह उसकी बलिदान की भावना को दर्शाता है यही गुण उस व्यक्ति में होना चाहिए जो शंकर बनना चाहता है। साथ ही यह शंकर गंगा का जल अपनी मूक भाषा में कहता है कि गंगा का जल जब तक आगे नहीं चलता तब तक वह खड्डे के जल स्तर को अपने समान नहीं कर सकता। अर्थात उसकी व्यवस्था में समानता होनी चाहिए ऊंच नीच, अपना पराया, जाति, धर्म क्षेत्र नहीं होना चाहिए। इससे बड़ा समाज वाद का उदाहरण कोई हो नहीं सकता।
यह शंकर के सहिष्णुता से पूर्ण होने का भी परिचायक है। उल्लेखनीय है कि जितने नदी- नाले गंगा में गिरते अर्थात पड़ते हैं इतने भारत अथवा संसार के किसी और नदी में नहीं पड़ते। गंगा किसी से मुख नहीं मोड़ती अपितु सबको साथ लेकर अपने गले से लगाकर समुद्र में समाहित हो जाती है। प्रतीक स्वरूप शंकर की जटाओं में बहने वाली गंगा जिन दिव्य गुणों की द्योत्तक है उन्हीं के कारण शंकर का व्यक्तित्व अद्वितीय, अभिनंदनीय व वंदनीय है।




जय शंकर !


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