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Monday, July 13, 2015

कहानी लंगड़ा आम की

कांगड़ा हिमाचल प्रदेश से प्रकाशित होने वाली दैनिक समाचार पत्र दिव्य हिमाचल के प्रतिविम्ब पृष्ठ , पृष्ठ संख्या 9 पर दिनांक - 5 जुलाई 2015 को प्रकाशित लेख -कहानी लंगड़ा आम की
दिव्य हिमाचल , दिनांक- ५ जुलाई २०१५ 


कहानी लंगड़ा आम की
यूं तो बनारस आज भी बहुत सी चीजों के लिए लोकप्रिय है, मशहूर है, तथापि जिस चीज के लिए वह सारे उत्तर भारत में प्रसिद्ध है, वह है बनारस का लंगड़ा आम, जिसे देखते ही लोगों के मुंह में पानी आ जाता है। लोग उसे किसी भी कीमत पर खरीदने को तैयार हो जाते हैं। बनारस के लंगड़ा आम की जन्म कथा भी रोचक है।लंगड़ा आम की नामकरण कथालगभग अढ़ाई सौ वर्ष पूर्व की घटना है। कहते हैं बनारस के एक छोटे से शिव मंदिर में एक साधु आया और मंदिर  के पुजारी से वहां कुछ दिन ठहरने की आज्ञा मांगी। मंदिर परिसर में लगभग एक एकड़ जमीन थी, जो चार दीवारियों से घिरी हुई थी । साधु के पूछने पर पुजारी ने कहा, मंदिर परिसर में कई कक्ष हैं, किसी में भी ठहर जाएं। साधु ने एक कमरे में अपनी धूनी रमा दी।साधु के पास आम के दो छोटे-छोटे पौधे थे, जो उसने मंदिर के पीछे अपने हाथों से रोप दिए। सुबह उठते ही वह सर्वप्रथम उनको पानी दिया करता, जैसा कि कण्व ऋषि के आश्रम में रहते हुए कालिदास की शकुंतला नित्यप्रति  किया करती थी। साधु ने बड़े मनोयोग के साथ उन पौधों की देखरेख की। वह चार साल तक वहां ठहरा। इन चार वर्षों में पेड़ काफी बड़े हो गए। चौथे वर्ष आम की मंजरियां भी निकल आईं, जिन्हें तोड़कर उस साधु ने भगवान शंकर को अर्पित कर दी। फिर वह पुजारी से बोला, मेरा काम पूरा हो गया। मैं तो रमता जोगी हूं, कल सुबह ही बनारस छोड़ दूंगा। तुम इन पौधों की देखरेख करना और इनमें फल लगें तो उन्हें कई भागों में काटकर भगवान शंकर पर चढ़ा देना। फिर प्रसाद के रूप में भक्तों में बांट देना,लेकिन भूलकर भी समूचा आम किसी को मत देना।  किसी को न तो वृक्ष की कलम लगाने देना और न ही गुठली देना। गुठलियों को जला डालना वरना लोग उसे रोपकर पौधे बना लेंगे और वह साधु बनारस से चला गया। मंदिर के पुजारी ने बड़े चाव से उन पौधों की देखरेख की। कुछ समय पश्चात पौधे पूरे वृक्ष बन गए। हर साल उनमें काफी फल लगने लगे। पुजारी ने वैसा ही किया, जैसा कि साधु ने कहा था। जिन लोगों ने उस आम को प्रसाद के रूप में खाया, वे लोग उस आम के स्वाद के दीवाने हो गए। लोगों ने बार-बार पुजारी से पूरा आम देने की याचना की, ताकि उसकी गुठली लाकर वे उसका पौधा बना सकें, परंतु पुजारी ने ऐसा करने से साफ इनकार कर दिया। इस आम की चर्चा काशी नरेश के कानों तक पहुंची और वह एक दिन स्वयं वृक्षों को देखने रामनगर से मंदिर में आ पहुंचे। उन्होंने श्रद्धापूर्वक भगवान शिव की पूजा की और वृक्षों का निरीक्षण किया। फिर पुजारी के समक्ष यह प्रस्ताव रखा कि इनकी कलमें लगाने की अनुमति प्रधान माली को दे दें। पुजारी ने कहा, आपकी आज्ञा को मैं भला कैसे टाल सकता हूं? मैं आज ही सांध्य-पूजा के समय भगवान शंकर से प्रार्थना करूंगा और उनका संकेत पाकर स्वयं कल महल में आकर महाराज का दर्शन करूंगा और मंदिर का प्रसाद भी लेता आऊंगा। इसी रात भगवान शंकर ने स्वप्न दिया काशी नरेश के अनुरोध को मेरी आज्ञा मानकर वृक्षों में कलम लगवाने दो। वह जितनी भी कलमें चाहते हैं उतनी कलमें दे दो।  तुम इसमें रुकावट मत डालना। वह काशीराज हैं और एक प्रकार से इस नगर में हमारे प्रतिनिधि स्वरूप हैं। दूसरे दिन प्रातःकाल की पूजा समाप्त कर प्रसाद रूप में आम के टोकरे लेकर पुजारी काशी नरेश के पास पहुंचा। राजा ने प्रसाद को तत्काल ग्रहण किया और उसमें एक अलौकिक स्वाद पाया। काशी नरेश के प्रधान माली ने जाकर आम के वृक्षों में कई कलमें लगा दीं, जिनमें वर्षाकाल के बाद काफी जड़ें निकली हुई पाई गईं। कलमों को काटकर महाराज के पास लाया गया और उनके आदेश पर उन्हें महल के परिसर में रोप दिया गया। कुछ ही वर्षों में वे वृक्ष बनकर फल देने लगे। कलम द्वारा अनेक वृक्ष पैदा किए गए। महल के बाहर उनका एक छोटा सा बाग बनवा दिया गया। कालांतर में इनसे अन्य वृक्ष उत्पन्न हुए और इस तरह रामनगर में लंगड़े आम के अनेकानेक बड़े-बड़े बाग बन गए। आज भी जिन्हें बनारस के आसपास या शहर के खुले स्थानों में जाने या घूमने का अवसर प्राप्त हुआ होगा, उन्हें लंगड़े आम के वृक्षों और बागों की भरमार नजर आई होगी। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के विस्तृत विशाल प्रांगण में लंगड़े आम के सैकड़ों पेड़ हैं। साधु द्वारा लगाए हुए पौधों की समुचित देखरेख जिस पुजारी ने की थी, वह लंगड़ा था और इसीलिए इन वृक्षों से पैदा हुए आम का नाम लंगड़ा पड़ गया। आज तक इस जाति के आम सारे भारतवर्ष में इसी नाम से अर्थात लंगड़ा आम के नाम से प्रसिद्ध हैं।

Saturday, July 11, 2015

दालों का आयात दीर्घकालिक उपाय नहीं - अशोक "प्रवृद्ध"

राँची झारखण्ड से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र राष्ट्रीय खबर के सम्पादकीय पृष्ठ पर दिनांक- ११ जुलाई २०१५ को प्रकाशित लेख - दालों का आयात दीर्घकालिक उपाय नहीं - अशोक "प्रवृद्ध"
राष्ट्रीय खबर , दिनांक - ११ जुलाई २०१५ 

 दालों का आयात दीर्घकालिक उपाय नहीं
 - अशोक "प्रवृद्ध"


देश में दालों की उपलब्धता सुनिश्चित करने और कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए सरकार 5,000 टन उड़द और 5,000 टन तुअर दाल का आयात करने जा रही हे। उड़द दाल के साथ 5,000 टन तुअर के आयात के लिए सरकार पहले ही निविदा जारी कर चुकी है। उपभोक्ता मामलों के सचिव सी विश्वनाथ ने महंगाई पर राज्यों के खाद्य मंत्रियों के साथ इस सम्बन्ध में हुई बैठक में कहा कि कुछ आवश्यक वस्तुओं में हम महंगाई बढ़ते हुए देख रहे हैं। देश में दालों की आपूर्ति बढ़ाने के लिए हमने 500 टन उड़द दाल का आयात करने पर विचार कर रहे हैं। हमने 5000 टन तुअर आयात के लिए जो निविदा जारी की थी, वह इसी सिंतबर तक हमारे पास आ जाएगी ऐसी हम उम्मीद करते हैं। दरअसल प्रतिकूल मौसम के कारण देश में दलहन उत्पादन 200 लाख टन के नीचे आ गया है। दालों की कीमत पिछले वर्ष के मुकाबले 64 प्रतिशत तक मंहगी हो गई है। बाजार में अधिकतर दालों के खुदरा भाव अभी 100 रूपए किलोग्र्राम हो गया है, और दालों की बढ़ती कीमतों से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चिंतित है। प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में गत दिनों हुई कैबिनेट की बैठक में बड़ा फैसला लेते हुए निर्देश दिए गए थे कि दाल की बढ़ती कीमतों पर लगाम लगाने के लिए बड़े पैमाने पर आयात किया जाए। साथ ही राज्यों को जमाखोरों पर कार्रवाई करने को कहा गया । खाद्य और उपभोक्ता मामलों के मंत्री राम विलास पासवान का कहना है कि सरकार बढ़ती दालों की कीमतों पर बहुत गम्भीर है। देश में दालों का उत्पादन घटा है जिसके कारण कीमतें बढ़ गई है। ऐसे में जितनी आवश्यकता होगी हम दालों का आयात करेंगे। कैबिनेट की बैठक के बाद परिवहन मंत्री मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि कैबिनेट ने बढ़ती दालों की कीमतों के बारे में बातचीत की और चिंता व्यक्त की है, और दालों की कीमतों पर काबू पाने के लिए बड़े पैमाने पर आयात करने का निर्देश दिया है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2014-15 जुलाई-जून फसल वर्ष के दौरान देश में दलहन उत्पादन घटकर 173.8 लाख टन रहने का अनुमान है। कमजोर मानसून और इस साल मार्च-अप्रैल में हुए बेमौसम बारिश के कारण दलहन का उत्पादन गिरा है।

ध्यातव्य है कि हाल में ही केन्द्रीय मन्त्रीमण्डल में खाद्य वस्तुओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने और कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए यह निर्णय लिया गया था और उक्त निर्णयानुसार ही सरकार के द्वारा दाल की उपलब्धता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से ये उपाय किये जा रहे हैं। आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार के पास दालों का आयात करना ही फिलहाल सबसे कारगर विकल्प था, अतः इस बारे में केन्द्रीय मन्त्रीमण्डल का फैसला स्वागतयोग्य है। आम जन कहना है कि दालों की कीमतें हाल में तेजी से चढ़ी हैं। स्वयं सरकार ने भी माना है कि गत एक वर्ष में दालों के दाम में 64 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई। इस बात से चिंतित कैबिनेट के द्वारा बड़ी मात्रा में दालों के आयात का निर्णय लिया जाना जनहित में स्वागतयोग्य कदम है । भारत दालों की पैदावार के मामले में वैसे भी आत्मनिर्भर नहीं है और  देश में वैसे भी दलहन का उत्पादन खपत से बहुत कम है I इसलिए सामान्य स्थितियों में भी निजी व्यापार के तहत प्रतिवर्ष 40 लाख टन दलहन का आयात होता है। खेती के पिछले मौसम में पहले कमजोर मानसून और बाद में बेमौसमी बारिश की वजह से हालत ज्यादा बिगड़ गई। पिछले वर्ष खराब मौसम होने के कारण दलहन उत्पादन में भारी कमी आई। कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक अपने देश में दलहन की खेती अधिकतर वर्षा सिंचित क्षेत्रों में होती है। यानी मानसून की स्थिति से इसकी पैदावार सीधे प्रभावित होती है। कृषि वर्ष 2014-15 के दौरान सामान्य से कम मानसून के कारण दलहन का घरेलू उत्पादन गिरा। खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्री रामविलास पासवान के मुताबिक जुलाई 2014 से जून 2015 के बीच दलहन की पैदावार महज 1,73,80,000 टन रह गई, जबकि उसके पिछले एक वर्ष में 1,92,50,000 टन दालें देश में पैदा हुई थीं। नतीजतन, उड़द, तूअर, मसूर, चना और मूंग दालों के दामों में भारी उछाल देखा गया। उत्पादन कम हुआ तो जमाखोरों की भी बन आई। भंडार में पड़ी दालों को बाजार में लाने की बजाय उन्होंने कृत्रिम अभाव भी उत्पन्न किया है। नतीजतन, गरीब तबकों की बात तो दूर, निम्न मध्यम वर्ग की थाली से भी यह जरूरी खाद्य गायब होता गया है।
एक लम्बी उहापोह के बाद दालों की कीमत पर अंकुश लगाने लिए सरकार के द्वारा आयात करने का निर्णय लिए जाने से स्थिति अब स्पष्ट हो गयी। अभी तक बेमौसम बरसात से खराब हो गये दलहन व अन्य फसलों के कारण केन्द्र सरकार, राज्य सरकारों और आम उपभोक्ताओं , किसानों के बीच बड़ी उलझन, खींचतान और अनिश्चितता की स्थिति चल रही थी। जिससे अब निजात मिलने की उम्मीद बढ़ गई है । दरअसल पिछले एक वर्ष में दाल की कीमतों में लगातार हो रही बढ़ोत्तरी सरकार के लिए एक बड़ा सिरदर्द बनती जा रही हैं। पिछले एक वर्ष में अलग-अलग दाल की कीमतें 35 से 60 प्रतिशत तक बढ़ी हैं, और अब बड़े स्तर पर आयात कर दाल की उपलब्घता बाजार में बढ़ाने की तैयारी है। दरअसल दाल के दाम थामने में केन्द्र सरकार अब तक नाकाम रही है। स्वयं खाद्य मंत्रालय के ही आंकड़ों के अनुसार 26 मई 2014 को उड़द दाल की कीमत 71 रूपये किलोग्राम थी जो इस वर्ष 9 जून को 114 रूपये हो गई यानी 60 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी। इस दौरान अरहर दाल की कीमत 75 रुपये से बढ़कर 115 रुपये तक पहुँच गई, यानी एक साल में अरहर दाल 53 प्रतिशत महँगी हुई। इस एक साल में चना दाल भी 40 प्रतिशत महँगी हुई। मई 2014 में चना दाल का भाव 50 रुपये प्रति किलोग्राम था, जो 9 जून को बढ़कर 70 रुपये किलोग्राम हो गया, जबकि इस दौरान मसूर दाल की कीमत 70 रुपये प्रति किलोग्राम से बढ़कर 94 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुँच गई। बड़े बुजुर्गों का कहना है कि गत 40 -50 वर्षों में दाल की कीमतों में इतने लम्बे समय तक तेज़ी नहीं देखी जैसी पिछले एक वर्ष में दिखाई दी है ।

उल्लेखनीय है कि लम्बे समय से देश में दालों का अभाव बना ही हुआ है। देश का दाल उत्पादन हमारी जरूरत से 40 प्रतिशत कम पूर्व से ही चला ही आ रहा है और इस वर्ष फसलों पर बेमौसम बरसात, ओले, आंधी व हवा की मार से दालों का अभाव और बढ़ गया। अभी तक 40 प्रतिशत का अभाव चल रहा है और अब दालों के भावों में एक साल में 40 प्रतिशत भाव भी बढ़ गये हैं। अभाव और मूल्यों दोनों में 40 का आंकड़ा कदमताल कर रहा है। सभी दालों की कीमतें पिछले वर्ष की तुलना में 40 से 61 प्रतिशत तक बढ़ चुकी है। वजह भी यही है देश में उत्पादन और ज्यादा घट गया है और जिन देशों से न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया, म्यानमार से आयात होता है वहां भी दालों की फसल कमजोर आयी हैं और भाव ऊंचे चल रहे हैं।

बहरहाल भारत जैसे देश में, जहां आबादी के बहुत बड़े हिस्से को मांसाहार से परहेज है, दालें ही आम इंसान के लिए प्रोटीन का प्रमुख स्रोत हैं। ऐसे में दालों की महंगाई का मारक असर होता है। अफसोस की बात है कि सरकारों के इस तथ्य से परिचित रहने के बावजूद दालों की खेती का क्षेत्र बढ़ाने तथा दलहन की फसल को मौसम की मार से बचाने के पर्याप्त उपाय आज तक नहीं हुए। एनडीए सरकार के सामने इस लक्ष्य को हासिल करना बड़ी चुनौती है। आयात दीर्घकालिक विकल्प नहीं हो सकता। अतः फिलहाल उत्पन्न आपात स्थिति से निपटने के लिए दिखाई गई सरकारी तत्परता तो उचित है, मगर इसके साथ ही ऐसे प्रभावी कदम भी उठाए जाने चाहिए ताकि आने वाले वर्षों में आयात की आवश्यकता न पड़े।

Thursday, July 9, 2015

श्रीकृष्ण परमात्मा के अवतार नहीं वरन महान योगी थे -अशोक “प्रवृद्ध”

नॉएडा , गौत्तमबुद्ध नगर (उत्तरप्रदेश) से प्रकाशित साप्ताहिक उगता भारत के ताजा अंक में आज प्रकाशित लेख- श्रीकृष्ण परमात्मा के अवतार नहीं वरन महान योगी थे  -अशोक “प्रवृद्ध”

श्रीकृष्ण परमात्मा के अवतार नहीं वरन महान योगी थे 
-अशोक “प्रवृद्ध”
यह सर्वमान्य तथ्य है कि श्रीमद्भगवद्गीता का पूर्ण कथन उपनिषदादि ग्रंथों पर आधारित है। स्वयं श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवद्गीता के तेरहवें अध्याय के चौथे श्लोक में यह स्वीकार किया है कि जो कुछ भी इस प्रवचन में कहा गया है, वही वेदों में, ऋषियों ने बहुत प्रकार से गान किया है और ब्रह्मसूत्रों में भी उसे युक्तियुक्त ढंग से स्पष्ट किया गया है, परन्तु कुछ भाष्यकारों ने गीता प्रवचन के ऐसे अर्थ निकाले हैं जो वेदादि शास्त्रों के विरोधी हैं जो कदापि मान्य नहीं हो सकते। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि जो कुछ वेदादि सद्ग्रंथों में कहा गया है वही श्रीमद्भगवद्गीता में कहा गया है ।
इसकी पुष्टि हेतु श्रीमद्भगवद्गीता के तेरहवें अध्याय का चतुर्थ श्लोक का उद्धृत करना समीचीन होगा –
ऋषिभिर्बहुधा गीतं छंदोंभिर्विविधैः पृथक्।
ब्रह्मसूत्रपदैश्चचैव हेतुमद्भिर्विनिश्चितैः ।।
- श्रीमद्भगवद्गीता -13/4
अर्थात – इस क्षेत्र अर्थात शरीर और क्षेत्रज्ञ अर्थात आत्मत्त्वों के विषय में ऋषियों ने और वेदों ने विविध भान्ति से समझाया है। इसी प्रकार ब्रह्मसूत्रों में पृथक्-पृथक् शरीर, जीवात्मा और परमात्मा के विषय में युक्तियुक्त रीति से इसका वर्णन किया है ।
इस प्रकार श्रीकृष्ण ने स्वयं यह बात स्पष्ट कर दिया है कि वे वही बात कह रहे हैं जो हमारे वेद शास्त्रों में आदिकाल में ही कह दी गई है। श्रीमद्भगवद्गीता में श्रीकृष्ण तो केवल उसका स्मरण मात्र करा रहे हैं ।श्रीकृष्ण ने अपने कर्तव्य से विमुख अर्जुन को उसके कर्तव्य का भान कराने के लिए श्रीमद्भगवद्गीता का प्रवचन किया था ।इससे यह सिद्ध होता है कि श्रीमद्भगवद्गीता वैराग्य अर्थात भक्तिप्रधान अवतारवाद का ग्रन्थ नहीं अपितु कर्मयोग का ग्रन्थ है , हाँ इसमें अध्यात्म का समावेश अवश्य है ।
श्रीमद्भगवद्गीता के अनेक भाष्यकारों ने गीता के उपदेष्टा श्रीकृष्ण को साक्षात् भगवान् माना है, परन्तु श्रीकृष्ण अवतार तो हो सकते हैं किन्तु भगवान् अर्थात परमात्मा नहीं क्योंकि परमेश्वरोक्त वैदिक ग्रंथों के अनुसार अनादि, अजन्मा, सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान परमात्मा अर्थात भगवान तो एक ही है जिसके अनेक दिव्य गुणों के कारण असंख्य नाम हैं। हाँ श्रीमद्भगवद्गीता में जहाँ-जहाँ श्रीकृष्ण ने मैं , मेरा, मेरे द्वारा आदि शब्दों का प्रयोग किया है वह कथन ईश्वर के लिए है ।श्रीमद्भगवद्गीता 2/61 में श्रीकृष्ण के कहे अनुसार –
तानि सर्वाणि संयम्य युक्त आसीतमत्परः ।
वशे ही यस्येन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ।।- श्रीमद्भगवद्गीता 2/61
अर्थात -इससे उन सम्पूर्ण इन्द्रियों को वश में करके योगयुक्त हो मेरे (ईश्वर के) परायण कर दे । क्योंकि जिस पुरुष की इन्द्रिय वश में होती है, उसकी बुद्धि  स्थिर होती है ।
इस श्लोक में मत्परः का अर्थ है मेरे परायण। यह गीता की प्रवचन शैली है । इसका स्पष्टीकरण महाभारत अश्वमेधिक पर्व में भी किया गया है। वहाँ श्रीकृष्ण ने कहा है कि गीता का प्रवचन मैंने योगयुक्त अवस्था में किया था । उस समय मैं ऐसे गीता का प्रवचन कह रहा था मानो परमात्मा मुझमे बैठकर कह रहा हो ।


इस प्रकार यह स्पष्ट है कि जहाँ-जहाँ श्रीकृष्ण ने मैं, मेरा इत्यादि शब्द प्रयोग किये हैं , वहाँ उसका अभिप्राय परमात्मा का ही है ।अतः मेरे परायण का अर्थ ईश्वर के परायण समझना चाहिए । इससे यह स्पष्ट होता है कि श्रीकृष्ण स्वयं परमात्मा के अवतार नहीं थे बल्कि योगिराज श्रीकृष्ण का जीवात्मा दिव्य जन्म लेता हुआ भी दुसरे जीवात्माओं की श्रेणी का ही जीवात्मा था ।
महाभारत ,अश्वमेधिक पर्व के एक प्रसंग के अनुसार महाभारत के युद्धोपरांत जब अर्जुन ने एक बार पुनः श्रीमद्भगवद्गीता का उपदेश सुनने की इच्छा श्रीकृष्ण से व्यक्त की तो श्रीकृष्ण ने उससे कहा –
न च शक्यं पुनर्वक्तुं अशेषेण धनञ्जय ।- महाभारत ,अश्वमेधिक पर्व 16/11
अर्थात – हे अर्जुन !अब मैं उपदेश को ज्यों का त्यों नहीं कह सकता ।
इसी प्रकरण में श्रीकृष्ण आगे कहते हैं कि वह धर्म जो मैंने गीता में वर्णन किया है वह ब्रह्मपद को प्राप्त कराने की सामर्थ्य रखता था। वह सारा का सारा धर्म उसी रूप में दुहरा देना अब मेरे वश की बात नहीं है । उस समय तो मैंने योगयुक्त होकर परमात्मा की प्राप्ति का वर्णन किया था।



श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय चार के एक से तीन श्लोकों के अनुसार श्रीकृष्ण कहते हैं, इस अविनाशी योग का ज्ञान मैंने (ईश्वर ने) आदिकाल में विवस्वान को कहा और विवस्वान ने मनु को कहा था और मनु ने अपने पुत्र इक्ष्वाकु को कहा ।इस प्रकार परम्परा से (पुत्र को पिता से) चलता हुआ यह ज्ञान राजर्षियों ने जाना और हे अर्जुन! यह योग बहुत काल से लोप हो चुका था। वही पुरातन योग ही अब मैं तेरे लिए कह रहा हूँ। तू मेरा भक्त भी है और सखा भी है ।इस कारण यह अतिश्रेष्ठ तथा रहस्यमय बात तुमसे कहता हूँ ।
श्रीमद्भगवद्गीता – 4/1-3 में कहे अनुसार श्रीकृष्ण ने बताया है कि वह ज्ञान इस समय अर्थात आदि काल से ही  परम्परा के अनुसार चला आता है, परन्तु बीच काल में राजा तथा अन्य मनुष्य, कामनाओं में फँसकर इस योग ज्ञान को भूल गए ।श्रीकृष्ण के कहने का अभिप्राय यह है कि उनका अपना ज्ञान उनके कई जन्मों का संचित ज्ञान है ।
अब प्रश्न उत्पन्न होता है कि ज्ञान संचित कैसे होता है? ऐसा माना जाता है कि ज्ञान तो पाँच कर्मेन्द्रियों से ही प्राप्त होता है।वह ज्ञान मन पर अंकित हो जाता है।उस ज्ञान के संस्कार मात्र जीवात्मा पर अंकित होते हैं।सामान्य जीवन में तो एक जन्म का ज्ञान दूसरे जन्म में नहीं जाता क्योंकि ज्ञान मन पर अंकित होता है और मन प्रकृति का अंश होने के कारण शरीर के साथ ही विनष्ट हो जाता है ।जीवनकाल में मन पर अंकित ज्ञान का आभाष ही आत्मा पर पड़ता रहता है। सांख्य दर्शन में कहा है -
कुसुमवच्च मणिः।– सांख्य दर्शन 2-35
अर्थात- जैसे मणि के पास रंगदार फूल लाया जाए तो मणि भी उसी रंग में रंगी दिखाई देने लगती है।
यह मणि पर पुष्प का रंग जीवात्मा पर चित्त का प्रतिविम्ब सामान्य कर्म की अवस्था में होता है ।कुसुम के हट जाने पर रंग हट जाता है, परन्तु जब बार-बार एक कर्म किया जाये तो उसका प्रभाव जीवात्मा पर स्थिर हो जाता है। जब प्रभाव केवल रंग का ही हो तो संस्कार कहाता है, परन्तु यदि प्रभाव पुष्प की सुगन्धि का भी हो तो यह कर्म की स्मृति कहती है ।यह योग साधना से संभव है। योग क्रियाओं में समाधि अवस्था में चित्त की वृत्तियों का जीवात्मा पर चिर प्रभाव पड़ता है।
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि श्रीकृष्ण योगनिष्ठ आत्मा थे और वह अनेक जन्म लेते रहे हैं।वैसे तो अर्जुन का आत्मा भी अनगिनत जन्म ले चुका था, परन्तु श्रीकृष्ण का जीवात्मा योगनिष्ठ होने से उन जन्मों की बात को जानता था और वे उसे स्मरण थे। शरीर पञ्च-भौतिक है और कृष्ण का आत्मा योगनिष्ठ होने के कारण पंचभूतों (जिनसे शरीर बना है) का ईश्वर (स्वामी) है।वह जब चाहे उस पञ्च-भौतिक शरीर में आता है और जाता है ।इस प्रकार यह भी स्पष्ट है कि आदिकाल से संचित ज्ञान कृष्ण ने अर्जुन को दिया था। यदि एक वाक्य में कहा जाये तो यह ज्ञान था- धर्म की स्थापना के लिए हत्या क्षम्य है और धर्म का निश्चय करने के लिए स्थिर बुद्धि होनी चाहिए ।
भूत का अभिप्राय पञ्च-महाभूत है, जिससे शरीर बना है।योगी भूतों को अपने वश में कर लेता है। श्रीकृष्ण का अर्जुन को मैं,मया आदि के सम्बोधन से कहने का अभिप्राय यही है।योगी स्वेच्छा से जन्म लेता है, ऐसा ही कृष्ण ने अपने विषय में कहा है और इसी भाव को अध्याय चार के ही अगले श्लोकों 7-8 में स्पष्ट किया है । श्रीमद्भगवद्गीता 4/7-8 में श्रीकृष्ण कहते हैं कि जब जन धर्म की हानि होती है तब मैं (मुझ जैसी आत्माएं) धर्म को पुनः प्रतिष्ठित कराने के लिए जन्म लेता हूँ। योगीजन साधुओं का भय दूर करते हैं और दुष्टों का विनाश करते हैं तथा धर्मों की स्थापना करते हैं।
 कृष्ण में उपस्थित जीवात्मा योगी का आत्मा था।कदाचित वह मुक्त आत्मा था। जब कहा गया कि सम्भवामि युगे-युगे तो इसका अभिप्राय यही है कि मुक्त जीव समय-समय पर जन्म लेते हैं ।
भिन्न-भिन्न अवतारों में केवल एक श्रीकृष्ण का आत्मा होना संभव नहीं है । यह तभी संभव हो सकता है जब मुक्त आत्मा परमात्मा हो जाता है, परन्तु यह श्रीकृष्ण के अपने कथन से ही सिद्ध नहीं होता ।जिसका वैदिक ग्रन्थ भी समर्थन करते हैं।
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि श्रीकृष्ण का जीवात्मा जन्म-जन्मान्तर की योग-क्रियाओं के कारण ऐसी शक्ति प्राप्त कर चुका था कि वह अपने लिए पञ्च-भौतिक शरीर इच्छानुसार निर्माण कर सकता था और वह स्वेच्छा से जन्म में आता था।उसका मनुष्य जीवन में आना निष्प्रयोजन नहीं है।वह धर्म की स्थापना के लिए श्रेष्ठ व्यक्तियों के भय निवारण के लिए ही जन्म लेता है ।

Saturday, July 4, 2015

झारखण्ड में खुलेगा देश का पहला खेल विश्वविद्यालय -अशोक “प्रवृद्ध”

    हर राष्ट्रवादी की पहली पसन्द नॉएडा , गौतमबुद्धनगर (उत्तरप्रदेश)  से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र उगता भारत के सम्पादकीय पृष्ठ पर दिनांक- ४ जुलाई को प्रकाशित लेख -  झारखण्ड में खुलेगा देश का पहला खेल विश्वविद्यालय  -अशोक “प्रवृद्ध”
उगता भारत, दिनांक- ४ जून २०१५ 

                       झारखण्ड में खुलेगा देश का पहला खेल विश्वविद्यालय  
                                -अशोक “प्रवृद्ध”

देश में पहली बार झारखण्ड में खेल विश्वविद्यालय की स्थापना का मार्ग साफ और प्रशस्त हो गया है तथा आशा है राज्य स्थापना दिवस पन्द्रह नवम्बर तक ही झारखण्ड प्रदेश में शारीरिक शिक्षा एवं खेलों की शिक्षा, शोध व ज्ञान के विस्तार के साथ खिलाडिय़ों के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के प्रशिक्षण के उद्देश्य से राजधानी राँची में देश व राज्य का प्रथम खेल विश्वविद्यालय अस्तित्व में आ जायेगा । इसके लिए सत्रह जून बुधवार को राँची के होटल बीएनआर में राज्य सरकार और भारतीय कोयला निगम की आनुषांगिक कम्पनी सेन्ट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड (सीसीएल)  के मध्य झारखण्ड खेल विश्वविद्यालय एवं झारखण्ड खेल अकादमी स्थापित करने का समझौता अर्थात एम ओ यू हुआ, जिसके तहत सीसीएल निगमित सामाजिक दायित्व कोष से राष्ट्रीय खेलों के लिए बने विशाल खेल परिसर में इस विश्वविद्यालय की स्थापना करेगा।

मुख्यमंत्री रघुवर दास और सीसीएल के सीएमडी गोपाल सिंह की उपस्थिति में समझौते पर सीसीएल की ओर से सीएम (सीएसआर) जी तिवारी और राज्य की ओर से खेल सचिव अविनाश कुमार ने हस्ताक्षर किये। मुख्यमंत्री रघुवर दास ने इस समझौते को राज्य के सवा करोड़ से अधिक युवाओं के लिए एक बडा अवसर बतलाते हुए कहा कि इस राज्य में एकलव्य की कमी नहीं है। कमी थी, एक द्रोणाचार्य की। द्रोणाचार्य की वह कमी यह संस्थान पूरा करेगा। झारखण्ड खेल विश्वविद्यालय एवं अकादमी की स्थापना राज्य में खेल और खिलाडियों के लिए वरदान साबित होगा। राज्य में 1.32 करोड़ युवा हैं। यह उनके सपनों का संस्थान होगा। यहाँ अंतरराष्ट्रीय स्तर की सुविधा दी जायेगी । मुख्यमंत्री दास ने यह भी खुलासा किया कि उन्होंने केंद्रीय उर्जा एवं कोयला मंत्री पीयूष गोयल से राँची में झारखण्ड खेल विश्वविद्यालय की स्थापना में मदद माँगी थी और इतनी द्रुत गति से उनके मंत्रालय ने जो सहयोग किया है यह प्रशंसनीय है। खेल मंत्री अमर कुमार बाउरी ने इसे देश के लिए गौरव की बात बतलाते हुए कहा कि यह पूरे देश के लिए गर्व की बात है। देश में पहली बार खेल विश्वविद्यालय की स्थापना की जा रही है। राज्य में इसका वर्ल्ड क्लास इंफ्रास्ट्रक्चर होगा। इसका फायदा यहाँ के खिलाड़ियों को मिलना चाहिए। यहाँ के खिलाड़ियों में क्षमता की कमी नहीं है ।जिसे प्रशिक्षण देकर उच्च स्तर तक पहुँचाया जा सकता है। जो खिलाड़ी खेल में अपनी उम्र गुजार दे रहे हैं, उनके लिए रोजगार की व्यवस्था भी होनी चाहिए।


उल्लेखनीय है कि फरवरी, 2011 में राँची में चौंतीसवें राष्ट्रीय खेलों के आयोजन के लिए अरबों रूपये खर्च कर एक विशाल क्षेल परिसर का निर्माण किया गया था, परन्तु राष्ट्रीय क्षेलों के आयोजन के बाद से ही उस उद्देश्य से बना विशाल खेल परिसर लगभग अनुपयुक्त ही पड़ा था लेकिन अब इसका समुचित उपयोग खिलाडियों के प्रशिक्षण के लिए हो पाएगा। मुख्य सचिव राजीव गौबा ने कहा कि 2011 में राष्ट्रीय खेल के समय आधारभूत संरचना का निर्माण किया गया था। इसका उपयोग यदा-कदा ही हो रहा था। इसके रखरखाव के लिए कोई दीर्घकालीन व्यवस्था नहीं थी। इस कारण इसकी गुणवत्ता भी गिर रही थी ।इस समझौते से रखरखाव हो पायेगा और राज्य के खिलाडियों का प्रतिभा संवारने का काम भी हो पायेगा। सीसीएल के प्रबन्ध निदेशक गोपाल सिंह ने कहा कि खेल गाँव में उपलब्ध अधिसंरचना का इससे अच्छा सदुपयोग नहीं हो सकता था कि वहाँ देश और झारखंड के प्रतिभावान खिलाडियों को उनके खेलों में विशेष प्रशिक्षण दिया जाये। झारखण्ड में खेल और खिलाडियों को लेकर असीम क्षमता है और यहाँ कई धौनी, असुन्ताएँ और दीपिकाएँ पैदा हो सकती हैं, आवश्यकता मात्र उन्हें उचित प्रोत्साहन देने की है।


उल्लेखनीय है कि झारखण्ड के खिलाडियों ने देश और दुनिया में झारखण्ड का परचम लहराया है और अब इस तरह की आधारभूत संरचना खडी होने और अंतरराष्ट्रीय स्तर का प्रशिक्षण प्राप्त होने से राज्य के खिलाडियों को अपना कौशल दुनिया के सामने पेश करने का बडा अवसर प्राप्त होगा। सीसीएल के सीएमडी गोपाल सिंह का यह कहना भी आशा जगाता है कि यह प्रयास किया जायेगा कि कैसे खेल के माध्यम से गरीब ग्रामीणों का विकास हो? पूरे देश में ऐसा समझौता नहीं हुआ था। पहली बार ऐसा हुआ है । इसे देश का सबसे बेहतरीन संस्थान बनाया जायेगा। देश के लिए उदाहरण बनेगा ।
इसमें कोई शक नहीं कि झारखण्ड खेल विश्वविद्यालय के अस्तित्व में आ जाने से जहाँ झारखण्ड के युवा और देश के युवाओं को खेल के क्षेत्र में अपनी प्रतिभा को निखारने का अच्छात मौका मिल जायेगा वहीँ खेलों के लिए अनुकूल वातावरण तैयार कर खेल जगत में प्रदेश को देश में अग्रणी राज्य के रूप में स्थापित करने और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाए जाने के उद्देश्य से भी यह कारगर साबित होगी तथा खेल सुविधाओं के विकास एवं प्रतिभाशाली खिलाडिय़ों को पर्याप्त अवसर उपलब्ध होंगे।


उल्लेखनीय है कि झारखण्ड सरकार और सेन्ट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड के मध्य समझौते के शर्तों के अनुसार इसके लिए एक संयुक्त परियोजना कमेटी बनायी जायेगी, इसमें झारखण्ड खेल प्राधिकरण की भागीदारी 26 से 49 प्रतिशत तक होगी। इसमें 15 खेल विधाओं की खेल अकादमी की स्थापना की जायेगी और 1400 विद्यार्थियों का नामांकन होगा। 700 प्रतियोगिता से आयेंगे ।शेष 700 में 350 राज्य सरकार और 350 सीसीएल से चयनित बच्चे होंगे । इनका खर्च राज्य सरकार व सीसीएल उठायेंगे। समझौते के अनुसार लाभ में सरकार को हिस्सा मिलेगा और हानि की भरपाई भी सरकार करेगी। एकेडमी में नामांकन पानेवाले बच्चों की शिक्षा के लिए विद्यालय की भी स्थापना होगी। इसके संचालन के लिए प्रशासी परिषद का गठन होगा, जिसके अध्यक्ष सह संरक्षक मुख्य सचिव होंगे और सह संरक्षक सीसीएल के सीएमडी होंगे।कार्यकारिणी परिषद का गठन भी किया जायेगा, जिसके अध्यक्ष खेलकूद व कला संस्कृति विभाग के सचिव होंगे। 50 प्रतिशत राज्य के बच्चे होंगे और इनको वसूलनीय शुल्क में 50 प्रतिशत की छूट मिलेगी। शेष 50 प्रतिशत विद्यार्थियों का चयन पूरे देश से होगा।स्थापना में प्रारंभिक व्यय सीसीएल के सीएसआर फंड से होगा। अकादमी में नामांकन लेनेवाले बच्चों को प्लस टू तक की शिक्षा और 500 रु प्रतिमाह छात्रवृति अर्थात स्टाइपेंड भी दी जायेगी। हालाँकि इसके विरोधी भी पक्ष-विपक्ष में कई मौजूद हैं, और समझौते के पूर्व ही राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा के खेलकूद प्रकोष्ठ के अनिल कुमार ने राज्यपाल को पत्र लिख कर खेल यूनिवर्सिटी और खेल अकादमी के लिए होने वाले एमओयू को रोकने की माँग करते हुए लिखा है कि कमेटी में खेल से जुड़े लोगों को शामिल नहीं किया गया है। मुख्यमंत्री व खेल मंत्री भी कमेटी में नहीं हैं। कमेटी में सिर्फ खेल विभाग और सीसीएल के आला अधिकारियों को शामिल किया गया है।  इससे न तो खिलाड़ियों को और न सरकार को फायदा होगा।


उल्ल्लेख्न्नीय है कि देश में खेल विश्वविद्यालय स्थापित करने की पहल कोई नहीं है, इससे पूर्व भी राजस्थान में ऐसी पहल हो चुकी है,लेकिन राजस्थान सरकार की वह पहल परवान न चढ़ सकी। वर्ष 2011 में राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बजट में निजी जनसहभागिता मोड (पीपीपी) में प्रदेश के पहले खेल विश्वविद्यालय की घोषणा की थी। निजी फर्म ने सरकारी अनुदान प्रतिशत को लेकर मतभेद होने पर अपने हाथ वापस खींच लिए। तब दिसंबर 2012 में सरकार ने सरकारी खेल विश्वविद्यालय की घोषणा की, परन्तु यह मामला पाँच साल बाद भी मामला जमीन आंवटन से आगे नहीं बढ़ सका। जबकि विश्वविद्यालय के लिए लगाए गए कुलपति का बाकायदा वेतन उठ रहा है।

वर्र्तमान में विज्ञान ने बहुत उन्नति की है, मगर मानव के स्वास्थ्य के साथ बहुत खिलवाड़ भी हुआ है। आधुनिकता की दौड़ में अंतरराष्ट्रीय भाईचारा व मैत्री तो बहुत दूर की बात है, मनुष्य अपने परिवार को ही कलह से नहीं बचा पा रहा है। खेल जहाँ मनुष्य को स्वास्थ्य प्रदान करते हैं, वहीं मानव को सबके साथ मिलकर चलना भी सिखाते हैं। खेलकूद से हमारी कार्य क्षमता बढ़ती है, तो देश का विकास भी होगा और देश श्रेष्ठता की ओर बढ़ेगा। इसके लिए राज्य व देश में खेलों को बढ़ावा देना होगा, ताकि हम जहाँ प्रदेश व देश को चुस्त-दुरुस्त व सेहतमन्द नागरिक दे सकें। इसी से विश्व स्तर के कई खिलाड़ी भी निकाले जा सकते हैं। ओलंपिक जैसी संसार की सबसे बड़ी खेल प्रतियोगिता में भारत के लिए पदक जीतकर देश व झारखण्ड को गौरव दिला सकें।आशा है झारखण्ड में खेल विश्वविद्यालय और खेल अकादमी के स्थापन से इस उद्देश्य की पूर्ति अर्थात खेल और खिलाडियों के विकास और प्रतिभा निखारने के पर्याप्त अवसर अवश्य ही प्राप्त होंगे ।

Thursday, July 2, 2015

गरीबों के सपनों को नई उड़ान देने की पी एम की पहल -अशोक "प्रवृद्ध"

नॉएडा (बुद्धनगर) उत्तरप्रदेश से प्रकाशित दैनिक उगता भारत और राँची झारखण्ड से प्रकशित दैनिक समाचार पत्र राष्ट्रीय खबर के सम्पादकीय पृष्ठ पर दिनांक- २ जुलाई २०१५ को प्रकाशित लेख -
गरीबों के सपनों को नई उड़ान देने की पी एम की पहल -अशोक "प्रवृद्ध"
उगता भारत , दिनांक- २ जुलाई २०१५ 


सपनों को उड़ान देने की कोशिश 
-अशोक “प्रवृद्ध”
राष्ट्रीय खबर, दिनांक- २ जुलाई २०१५ 



शहरी भारत का कायाकल्प करने तथा हर परिवार को अपना घर और बेहतर जीवनशैली मुहैय्या कराने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 25 जून बृहस्पतिवार को 4 लाख करोड़ रुपये की लागत से 2022 तक सबको आवास योजना, बहुचर्चित 100 शहरों की स्मार्ट सिटी परियोजना, 500 शहरों में शहरी सुधार और पुनरुद्धार के लिए अटल मिशन (अमृत प्रोजेक्ट) नाम की तीन बड़ी योजनाओं का दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में प्रमोचन अर्थात शुरुआत कर देश के गरीबों के सपनों को नई उड़ान देने की कोशिश की है।स्मार्ट सिटी और अटल मिशन अर्थात अमृत प्रोटेक्ट योजना तो सिर्फ शहरों के कायाकल्प करने अर्थात स्मार्टनेस के लिए है, परन्तु सबको आवास योजना देश के कमजोर, निर्धन और निम्न आय वर्गों के परिवारों के लिए है, जिसके तहत वर्ष 2022 तक सबको आवास उपलब्ध कराये जायेंगे और इस पर सात वर्ष में तीन लाख करोड़ रुपये खर्च होंगे। योजना के तहत देश के सभी 4011 शहरों और कस्बों में 2 करोड़ सस्ते मकान बनाये जायेंगे। ये झुग्गियों में रहने वालों व आर्थिक रूप से कमजोर तबको (ईडब्ल्यूएस) के लिए होंगे। राज्यों को शहरी गरीबों के लिये मकान के निर्माण पर 6.5 प्रतिशत ब्याज अनुदान अर्थात सबसिडी दी जाएगी। जिसमें ईडब्ल्यूएस को आवास कर्ज पर सरकार 15 वर्ष के लिए ब्याज पर 6.5 फीसदी सबसिडी देगी। जिससे प्रत्येक को करीब 2.3 लाख रुपये का लाभ होगा।स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के अन्तर्गत 100 नगरों में चौबीसों घंटे बिजली-पानी, विश्वस्तरीय परिवहन व्यवस्था, बेहतर शिक्षा एवं मनोरंजन सुविधायें, ई-गवर्नेंस, पर्यावरण-सम्मत माहौल एवं अन्य सहूलियतें मुहैय्या कराये जाने का सपना है।स्वयं प्रधानमंत्री ने स्मार्ट सिटी की परिभाषा करते हुए प्रमोचन के अवसर पर कहा कि ये वैसे शहर होंगे जहाँ इसके पहले कि नागरिक कुछ चाहें, उससे पूर्व ही वह उन्हें उपलब्ध करा दिया जायेगा। अटल शहरी पुनरुद्धार एवं रूपांतरण मिशन का उद्देश्य अर्थात मकसद एक लाख से अधिक आबादी वाले 500 शहरों में बुनियादी आधारभूत ढाँचा तैयार करना है, ताकि आगे चलकर ये शहर भी स्वतः स्मार्ट सिटी में बदल जायें। स्पष्टतः सरकार ने ऊँचा सपना देखा है, इसीलिए उसके सामने चुनौतियाँ भी ऊँची ही हैं।


ध्यातव्य है कि इन योजनाओं के प्रमोचन के अवसर पर प्रधानमंत्री ने आवास योजना के लोगो का भी अनावरण किया। इन महत्वाकांक्षी योजनाओं के प्रति प्रधानमन्त्री की अभिरुचि व संजीदगी का पत्ता इस बात से चलता है कि इन सभी योजनाओं को तैयार करने में स्वयं प्रधानमंत्री भी शामिल रहे हैं और योजना के लोगो की डिजाइन को अन्तिम रूप देने में मोदी ने व्यक्तिगत तौर पर रुचि ली थी। ये तीनों योजनायें राज्यों, संघ शासित प्रदेशों व शहरी निकायों के साथ एक वर्ष तक चले गहन विचार-विमर्श के बाद तैयार की गई हैं।इन योजनाओं में केन्द्र 4 लाख करोड़ का केंद्रीय अनुदान देगा। शहरी विकास मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार तीनों योजनाओं के बारे में शहरी विकास, आवास व शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालय प्रधानमंत्री को नियमित प्रेजेंटेशन देते थे और मोदी उन्हें योजनाओं को अधिकाधिक परिणामदायी बनाने के निर्देश देते थे।
दरअसल इन योजनाओं के कार्यान्वयन के प्रति प्रधानमंत्री की यह सोच रही है जो उन्होंने प्रमोचन के अवसर पर व्यक्त करते हुए कहा कि देश की 40 प्रतिशत जनसंख्या या तो शहरों में रहती है अथवा जीवन-यापन के लिए शहरों पर निर्भर है। गाँव से लोग शहर में रोजी-रोजगार के लिए आते हैं। यहाँ लोगों को बेहतर सुविधाओं की जरूरत है। हमारा इन शहरों में जीवन की गुणवत्ता को बेहतर करने का लक्ष्य है और यदि आम लोगों को केन्द्र में रखकर हम काम करेंगे तो कोई परेशानी नहीं होगी।इन योजनाओं की आवश्यकता के कारणों का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि यदि हम 25-30 वर्ष पहले शहरीकरण के महत्व को पहचान लेते तो अच्छा होता। लेकिन पहले जो नहीं हुआ उसे लेकर चुपचाप नहीं बैठ सकते। पुराने अनुभवों के आधार पर निराश होकर बैठने की जरूरत नहीं है। हम सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। यदि कोई विधिक समस्या आती है हम उसका हल ढूंढेंगे। यदि आर्थिक मुद्दे सामने आते हैं तो उसे दूर करेंगे।ये योजनायें इस मामले में भी अनूठी हैं कि पहली बार ऐसा हो रहा है कि अपनी सिटी को स्मार्ट बनाने के लिए राज्य या केन्द्र सरकार नहीं, बल्कि नगर निगम और आम लोग मिलकर निर्णय लेंगे तथा राज्य सरकारों और आवास बोर्डों के पास खुद सस्ते घर बनाने का विकल्प होगा और इसके लिए वे केन्द्र सरकार की सहायता ले सकते हैं। परिणामतः स्मार्ट सिटी को लेकर एक शहर से दूसरे शहर में प्रतिस्पर्धा होगी और जो आगे निकल जाएगा वहीं स्मार्ट सिटी होगा। सबको घर योजना के सम्बन्ध में प्रमोचन के अवसर पर प्रधानमंत्री ने स्पष्ट रूप से कहा कि एक बार जब गरीब का खुद का घर हो जाता है तो फिर उसके इरादे बदलते हैं, वह सपने संजोने लगता है और उसे पूरा करने का प्रयास शुरू कर देता है। उसके सपने को उड़ान मिल जाती है।



उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस सपने को पूरा करने के लिए हाल ही में मोदी कैबिनेट ने सभी के लिए घर योजनान्तर्गत शहरी गरीबों तथा कम आय वर्ग के लोगों के लिए मकानों का निर्माण करने की योजना को मंजूरी दी है। इसके मद्देनज़र कैबिनेट ने सरदार पटेल नेशनल हाउसिंग मिशन के तहत 2022 तक सबका अपना घर के वादे को पूरा करने के लिए हॉउसिंग फॉर ऑल योजना को मंजूरी  दी है। योजना के तहत वर्ष 2022 तक देश के हर परिवार को उसका अपना घर देने की कार्ययोजना बनाई गई है जिसके लिए करीब 13 लाख करोड़ रुपए के निवेश की जरूरत होगी। तीन चरणों में कुल 500 शहरों में इस परियोजना को आगे बढ़ाने पर ध्यान दिया जाएगा। प्रथम चरण के तहत मार्च 2017 तक 100 शहर शामिल किए जायेंगे जबकि सभी के लिए आवास के तहत द्वितीय चरण में मार्च 2019 तक 200 और शहरों को शामिल किया जायेगा। तृतीय और अंतिम चरण में मार्च 2022 तक सभी बाकी बचे शहरों को शामिल किया जायेगा। कैबिनेट के निर्णय के अनुसार केन्द्र सरकार झुग्गी बस्तियों में प्रत्येक मकान के निर्माण पर एक लाख रुपए की मदद देगी। इस योजना में निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के साथ साझेदारी के जरिये भी मकान बनाने का विकल्प होगा। हालाँकि इस पूरी योजना अर्थात मोदी के इस सपने के कार्यान्वयन में और पूरा होने में कई प्रकार के रोड़े, बाधायें और परेशानियाँ हैं। इसके तहत दो करोड़ मकान बनाने के लिए तीन खरब रुपए खर्च होंगे। इसके लिए धन उपलब्ध कराने के साथ ही इतने मकानों के लिए जमीन की आवश्यकता होगी।सरकार की मंशा शहरों में स्लम्स के बाशिन्दों को किफायती आवास देने का है। यह सब्सिडी से होगा। मगर क्या इसका पूरा खर्च केन्द्र उठाएगा? या फिर राज्यों को भी जिम्मेदारी लेनी होगी? और जमीन वैसे भी राज्य सूची का विषय है। अर्थात राज्यों की उत्साहपूर्ण भागीदारी इस योजना की सफलता की अनिवार्य शर्त होगी। इसके अतिरिक्त आवास  योजना के पूरा होने में बाजारवाद एक अन्य प्रकार से बड़ा रोड़ा बनकर फिर भी सामने आयेगा । क्योंकि यह सर्वविदित है कि पूरे देश में घर निर्माण क्षेत्र में निजी मकान निर्माणकर्ताओं का बोलबाला है। ये निजी मकान निर्माणकर्ता मोटा मुनाफा कमाने के चक्क्र में सस्तेन घर का निर्माण करना ही नहीं चाहते। वहीं रियल एस्टेणट के लिए रेगुलेटर न होने का लाभ भी बिल्डतर उठाते हैं और वे घरों की कीमतें अपनी मर्जी से तय करते हैं। दूसरी ओर सरकार की जितनी भी निर्माण संस्थायें हैं, वे घर बनाने का काम छोड़ चुकी हैं। और अगर करती भी हैं तो इनकी कार्य-शैली के कारण समय-समय पर ज्यादातर निर्माण संस्थाओं पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगते रहते हैं।अतः इनसे कुछ उम्मीद करनी बेमानी है ।
मोदी के सपने की राह में एक और बड़ा रोड़ा है और वह है कीमतों का तय न होना। दरअसल, रियल एस्टेकट मार्केट में सस्ते  घर की कोई तय परिभाषा नहीं है। एक अन्य रोड़ा के रूप में बैंक और सरकारी कर्मियों की भ्रष्टाचार व घूसखोरी के जंगल में भी गरीब आदमी उलझेगा। सस्तेक घर के निर्माण के लिए सस्तीय कीमत पर जमीन मुहैया होनी चाहिए और इसके लिए स्वी कृति की प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी किया जाना चाहिए। यदि मोदी सरकार अपने इस महत्वाकांक्षी सपने को यथार्थ के पैमाने पर उतारना चाहती है तो उसे इस क्षेत्र की कमियों को दूर कर आमूल-चूल परिवर्तन करने होंगे। तभी सस्ते घर का सभी का सपना, हक़ और अधिकार पूरा और प्राप्त होगा।स्मार्ट सिटी योजना पर भी कई प्रश्न उठे हैं। सरकारों ने अपने संसाधनों का वहाँ अत्यधिक संकेंद्रित कर दिया तो यह शिकायत उभर सकती है कि कुछ शहरों को स्मार्ट बनाने की कीमत दूसरे शहर और कस्बों को उठानी पड़ रही है अथवा उठा रहे हैं। फिर स्मार्ट शहरों में वहाँ के गरीब,अल्प आय वर्ग के लोगों को तमाम महँगी सुविधायें कैसे और किस खर्च पर उपलब्ध कराई जायेंगी? यह भी आरोप है कि यह अटल मिशन जवाहर लाल नेहरु शहरी नवीनीकरण योजना का ही बदला रूप है।तो संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन की वह योजना जिन कारणों से असफल साबित हुई, क्या मोदी सरकार ने उनका हल ढूँढ लिया है? परन्तु ऐसा होने के प्रति भरोसा और मजबूत होता, अगर उन पर अमल की समग्र कार्ययोजना भी सरकार सामने रखती।

Saturday, June 20, 2015

हास्यास्पद है योग का विरोध -अशोक “प्रवृद्ध”

राँची झारखण्ड से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र राष्ट्रीय खबर के सम्पादकीय पृष्ठ पर दिनांक- १५ जून २०१५ को प्रकाशित लेख - हास्यास्पद है योग का विरोध -अशोक “प्रवृद्ध”
राष्ट्रीय खबर , दिनाँक- २० जून २०१५ 

हास्यास्पद है योग का विरोध
 -अशोक “प्रवृद्ध”

एक ओर जहाँ केन्द्र सरकार ने इक्कीस जून को आहूत अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में से कई मुस्लिम संगठनो के विरोध के बाद सूर्य नमस्कार को हटाने का निर्णय कर लिया है वहीँ दूसरी ओर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की आनुसंगिक संस्था संस्कार भारती ने केन्द्र सरकार से भारतवर्ष के सभी विद्यालयो मे सूर्य नमस्कार और योग को अनिवार्य करने का आग्रह कर वैदिक सनातन धर्म के समर्थकों के दिलों में गहरे तक पैठ बनाने का काम किया है। मुस्लिम परस्त संगठनों द्वारा सूर्य नमस्कार और योग के विरोध के मध्य संस्कार भारती ने विद्यालयों में सूर्य नमस्कार और योग शिक्षा को अनिवार्य करने की माँग कर प्राचीन भारतीय साभ्यता-संस्कृति के पुनरुत्थान की दिशा में प्राचीन गौरवमयी भारतवर्ष के समर्थकों की आवाज को एक नई ऊँचाई प्रदान करने की कोशिश की है ।गौरवमयी प्राचीन भारतवर्ष की सभ्यता-संस्कृति, साहित्य-इतिहास के उत्कृष्ट मूल्यों के प्रतिस्थापन करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा स्थापित की गई संस्कार भारती की अखिल भारतीय उपाध्यक्ष माधवी ताई कुलकर्णी ने 14 मई रविवार को कहा कि केन्द्र सरकार को भारतवर्ष के सभी विद्यालयो मे योग के पाठ्यक्रम और अभ्यास को अनिवार्य कर देना चाहिए। माधवी ताई कुलकर्णी कहती है कि आज के समय मे लोगो की स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याये बढ़ती जा रही है। यह गम्भीर चिंता की बात है कि बीमार बच्चो की संख्या भी बढ़ रही है। कंप्यूटर, मोबाईल, फोन, टीवी की वजह से बच्चो का खेलना कम हो रहा है। इसलिए विद्यालयों मे योग शिक्षा अनिवार्य करने से बच्चो का शारिरिक-मानसिक विकास होगा। उनमे तनाव कम होगा साथ ही उनका चारित्रिक विकास भी होगा।

गौरतलब है कि भारतवर्ष में कुछ मुस्लिम परस्त संगठन योग को धार्मिक कर्मकाण्ड बताकर इसका विरोध करते रहे हैं, और पिछले दिनों देश के कई हिस्सों से इस तरह की खबरें आ रही थी कि मुस्लिम समुदाय को सूर्य नमस्कार के बारे मे कुछ आपत्तियाँ है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने विद्यालयों में कराए जा रहे योग से भी सूर्य नमस्कार को हटाने की माँग की है। मुस्लिम समुदाय के विरोध को देखते हुए सरकार ने अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के कार्यक्रम से सूर्य नमस्कार को हटाने का फैसला कर लिया है। यह कितनी हास्यास्पद स्थिति है कि जो योग भारतवर्ष की प्राचीन गौरवमयी सभ्यता-संस्कृति की अनमोल देन व पुरातन गौरवमयी अस्मिता की पहचान है और जिसके महत्व को आज सम्पूर्ण विश्व स्वीकार कर रहा है अर्थात जिसको वैश्विक स्वीकृति प्राप्त हो चुकी हो, उस योग के राष्ट्रीय कार्यक्रम का विरोध उसके मूल जन्मदातृ देश में ही किया जा रहा है। योग की आध्यात्मिकता को छोड़ भी दिया जाये तो भी योग के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ के लिए उपयोगी होने से किसी की भी कोई असहमति नहीं हो सकती है। यह बात सभी जानते हैं कि योग बिना आर्थिक व्यय के ही अनेक व्याधियों को नष्ट अर्थात दूर करने की क्षमता रखता है। परन्तु यह जानकर भी अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के दिन सामूहिक योग करने का व इसके ही एक आसन सूर्य नमस्कार के बहाने कुछ मुस्लिम नेता और उनकी सहयोगी तथाकथित धर्मनिरपेक्ष संस्थाएँ इसका विरोध कर रहे हैं और मोदी सरकार इस मामले में देश में सर्वमान्य स्थिति बनाने में असमर्थ , असफल होकर विरोधियों के सामने झुकती नजर आ रही है ।
यह कितनी हैरत की बात है कि भारतवर्ष में मुस्लिम और अन्य तथाकथित धर्म निरपेक्ष संगठनों के द्वारा सूर्य नमस्कार का विरोध किये जाने के समक्ष देश के प्रधानमंत्री जहाँ झुकते नजर आ रहे हैं वहीँ दूसरी ओर भारतीय योग पद्धत्ति को वैश्विक स्वीकृति मिल रही है। भारतवर्ष में योग को धार्मिक कर्मकाण्ड से जुड़ी प्रक्रिया बताने की भले ही कितनी कोशिशें होती हों, लेकिन एक अमेरिकी अदालत ने ऐसे दावों को बेबुनियाद करार दिया है। कैलिफोर्निया की अपीलीय अदालत का कहना है कि योग साम्प्रदायिक नहीं बल्कि एक धर्मनिरपेक्ष प्रक्रिया है और इसे करने या सिखाने से किसी भी तरह से धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन नहीं होता। अमेरिका के सैन डियागो के एक विद्यालय इंकिनिटास डिस्टि्रक्ट स्कूल में योग की कक्षा को लेकर दो छात्रों और उनके अभिभावकों ने आपत्ति जताई थी और मुकदमा दायर करते हुए दावा किया था कि योग कार्यक्रम से हिन्दू और बौद्ध मत को बढ़ावा दिया जा रहा है और ईसाई धर्म के लिए असुरक्षा पैदा हो रही है। इस मामले में  डिस्टि्रक्ट कोर्ट ने एक निचली अदालत का फैसला बरकरार रखते हुए अभिभावकों के दावे को खारिज कर दिया। यह अप्रैल के पहले सप्ताह की बात है। अदालत ने कहा कि योग कुछ सन्दर्भों में धार्मिक हो सकता है लेकिन ऐसा कोई प्रमाण नहीं है कि विद्यालय में सिखाए जा रहे योग में ऐसा कोई प्रयास हो रहा है। डिस्टि्रक्ट कोर्ट ने कहा कि विद्यालय में सिखाया जा रहा योग किसी धार्मिक या आध्यात्मिक कर्मकाण्ड से सम्बद्ध नहीं है। योग शरीर और मन को शान्ति  देने की पाँच हजार से भी अधिक वर्ष पुरानी भारतीय शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक प्रक्रिया है। अदालत ने अपना फैसला देने से पहले योग विशेषज्ञों द्वारा पारम्परिक जिम की कक्षाओं की बजाय योग की कक्षाएँ संचालित करने का वीडियो भी देखा। अदालत ने कहा, सभी तथ्यों को देखते हुए हमने पाया कि योग प्रशिक्षण अपने उद्देश्य के स्तर पर पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष है। इसके माध्यम से किसी भी धर्म को प्रचारित या प्रसारित नहीं किया जा रहा। अमेरिका के कई स्कूलों में इन दिनों योग की कक्षाएँ संचालित की जा रही हैं।

भारतवर्ष की प्राचीन विधा योग को संयुक्त राष्ट्र की भी स्वीकृति मिल चुकी है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की-मून ने इस बात की स्वीकृति प्रदान करते हुए कहा कि योग भेदभाव नहीं करता है । जब अपनी भारत यात्रा के दौरान उन्होंने अपना पहला आसन करने की कोशिश की तो इससे उन्हें एक संतुष्टि की अनुभूति हुई। योग शारीरिक एवं आध्यात्मिक सेहत और तंदुरूस्ती के लिए एक सरल, सुलभ और समावेशी साधन उपलब्ध करवाता है ।बान ने कहा कि 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में प्रमाणित करते हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इस शाश्वत अभ्यास के लाभों और संयुक्त राष्ट्र के सिद्धांतों एवं मूल्यों के साथ इसके निहित तालमेल को मान्यता दी है। योग शारीरिक एवं आध्यात्मिक सेहत और तंदुरूस्ती के लिए एक सरल, सुलभ और समावेशी साधन उपलब्ध करवाता है। यह साथी इंसानों और हमारे इस ग्रह के प्रति सम्मान को बढ़ावा देता है। बान ने अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का विचार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मस्तिष्क की उपज बताते हुए कहा कि योग को जन स्वास्थ्य में सुधार लाने, शांतिपूर्ण संबंधों को बढ़ावा देने और सभी के लिए सम्मानजनक जीवन में प्रवेश के रूप में ही देखें ।गत वर्ष संयुक्त राष्ट्र में अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विश्व समुदाय से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर योग को प्रसारित करने की अपील करते हुए अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की पैरवी की थी। दिसम्बर में संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष सैम कुटेसा ने 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की। भारत द्वारा लाए गए इस प्रस्ताव के समर्थन में 170 देशों ने मत दिया था।

भारतवर्ष में योग का प्रचार-प्रसार कोई नई बात नहीं है। आपातकाल अर्थात इमरजैंसी में उभरे धीरेन्द्र ब्रह्मचारी उस दौरान नियमित रूप से दूरदर्शन अर्थात सरकारी टीवी पर योग प्रशिक्षण देते थे जिसे टीवी की कम व्याप्ति के बाबजूद बहुत से लोग देखा करते थे। यद्यपि आपातकाल में श्रीमती इंदिरा गाँधी का साथ देने के कारण बहुत लोग उनसे नाराज थे परन्तु उस नाराजगी की स्थिति में भी योग कभी निशाना नहीं बना, परन्तु जैसे ही भारतीय जनता पार्टी ने योग की लोकप्रियता से प्राचीन भारतीय सभ्यता- संस्कृति को मिलती वैश्विक स्वीकृति को नेतृत्व देने की कोशिश शुरू की कीं तो समाज के एक हिस्से को योग से भी अरुचि होने लगी। और योग के नाम पर वे लोग अभी नाक भों सिकोड़ रहे हैं और अपनी मजहबी आस्थाओं में से तर्क तलाशने लगे हैं।


21 जून को विश्व भर मे आयोजित होने जा रही अन्तरराष्ट्रीय योग का मुख्य कार्यक्रम संयुक्त राष्ट्र संघ के न्यूयार्क स्थित मुख्यालय एवं भारतवर्ष मे राजपथ पर होगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी समेत करीब 45 हजार लोग दिल्ली के राजपथ पर योग करेंगे। संयुक्त राष्ट्र ने 21 जून को विश्व योग दिवस घोषित किया है। केन्द्र सरकार इस अवसर पर भव्य आयोजन करने जा रही है। प्रधानमंत्री चालीस हजार लोगों के साथ योग कर विश्व रिकॉर्ड भी बनायेंगे । कार्यक्रम के आयोजनकर्ता आयुष मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार अंतरराष्ट्रीय योग दिवस को 192 देशों की तरफ से समर्थन मिला है। देश के 651 जिलों में  योग कैंप लगवाए जा रहे हैं। लगभग 11 लाख एनसीसी कैडेट्स देश भर में योग करेंगे। राजपथ पर आयोजित होने वाले मुख्य कार्यक्रम में सूरक्षा बलो के भी 5 हजार जवान योग करेंगे। अमेरिका में योग दिवस 21 जून पर आयोजित होने जा रही कई कार्यक्रमों की तैयारी के बीच एक वरिष्ठ भारतीय राजनयिक न्यूयॉर्क में भारत के महावाणिज्यदूत दयानेश्वर मुलय ने कहा है कि पहले अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का मकसद इस प्राचीन भारतीय सांस्कृतिक धरोहर को आधुनिक समय का मंत्र बनाना है। योग दिवस इस बात की स्वीकारोक्ति है कि योग भारत से शुरू हुई सभ्यता-संस्कृति की विरासत है।

Monday, June 15, 2015

मेादी की लोकप्रिय योजनायें -अशोक “प्रवृद्ध”

साप्ताहिक से दैनिक समाचार पत्र में परिणत दैनिक उगता भारत के प्रथम अंक दिनांक - १७ जून २०१५ को प्रकाशित लेख -ऐतिहासिक नव कीर्तिमान रचतीं मेादी सरकार की सर्वलोकप्रिय योजनायें
-अशोक “प्रवृद्ध”
दैनिक उगता भारत, दिनाँक- १७ जून २०१५ 


राँची झारखण्ड से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र राष्ट्रीय खबर के सम्पादकीय पृष्ठ पर दिनांक- १५ जून २०१५ को प्रकाशित लेख - मोदी की लोकप्रिय योजनायें -अशोक “प्रवृद्ध”
राष्ट्रीय खबर , दिनांक- १५ जून २०१५ 
मेादी की लोकप्रिय योजनायें
-अशोक “प्रवृद्ध”

विगत वर्ष लोकसभा चुनाव में प्रचण्ड बहुमत से विजयी होकर केन्द्र की सत्ता में सत्तासीन हुई नरेन्द्र मोदी  सरकार की दो सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक यह हैं कि वर्षों बाद ऐसा एक वर्ष आया जब हमें पूरे वर्ष में एक बार भी सरकार या उसके किसी मंत्री पर भ्रष्टाचार का एक भी आरोप देखने-सुनने को नहीं मिला और दूसरी उपलब्धि के रूप में सरकार ने विकास योजनाओं के साथ-साथ समाज से सीधे सम्बन्ध अर्थात समाज से सरोकार रखने वाली योजनायें जैसे बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ अभियान की सुकन्या योजना,बिना पैसे की अर्थात शून्य बैलेंस पर बैंकों में खाता खुलवाने की प्रधानमन्त्री जनधन योजना , तथा स्वच्छ भारत अभियान की साफ़-सफाई व पेयजल एवं स्वच्छता सम्बन्धी योजनायें और सामाजिक सुरक्षा से सम्बंधित वीमा एवं पेंशन सम्बन्धी योजनाओं को प्रारम्भ कर हर भारतीय के जीवन से जुड़ने का सराहनीय प्रयास किया है ।
इसमें कोई शक नहीं कि मोदी सरकार की सामाजिक सुरक्षा से सम्बंधित मोदी सरकार की सभी योजनायें बैकिंग के क्षेत्र में एक नया आकषण पैदा कर रही हैं। अभी तक देश की जनता व साधारण जनमानस में यह भावना व्याप्त रही थी कि बैंक सिर्फ धनी लोगों, अमीरों के लिए बनी हैं और उनके लिए ही काम करती है। मोदी सरकार की इन योजनाओं के कार्यान्वयन के पूर्व ग्रामीण , कस्बाई भारतवर्ष की भेाली- भाली जनता को यह तक नहीं पता था कि बैंक खाता कैसे खुलवाया जाता है? मोदी सरकार ने सामाजिक सुरक्षा से सम्बंधित इन योजनाओं का प्रारम्भ कर देश की जनता को आर्थिक साक्षर करने अर्थात आर्थिक शिक्षा देने, शिक्षित करने का एक अहम् कार्य भी किया है । यही कारण है कि भारतीय जनता पार्टी की नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा प्रारम्भ की गई सामाजिक योजनायें देश के सभी वर्गों में अत्यंत लोकप्रिय होती जा रही हैं और अभी से ही यह कयाश लगाया जाने लगा है कि ये योजनायें देश के आर्थिक स्वावलम्बन की दिशा में मील का पत्थर साबित होंगी और देश के लोगों की भविष्य को सुरक्षित करने के मामले में एक नया इतिहास रच सफलता की नवीन कीर्तिमान गढ़ेंगी। सबका साथ सबका विकास नारे को सम्पूर्णता प्रदान करते हुए ये योजनायें देश के सभी नागरिकों के लिए कल्याणप्रद साबित होंगी।लोगों का कहना है कि प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी के द्वारा प्रधानमन्त्री जन धन योजना की अपार सफलता के बाद सामाजिक सुरक्षा से सम्बंधित तीन महत्वाकांक्षी योजनाओं यथा प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना,जीवन ज्योति बीमा योजना और अटल पेंशन योजना का शुभारम्भ किया जाना प्रशंसनीय कदम है । जन धन योजना के बाद समस्त देश के लिए दूसरी लाभकारी इन योजनाओं को शुरू कर केन्द्र सरकार ने देश के सभी लोगों की सुरक्षा का बीड़ा उठाया है। ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों का कहना है कि इतनी बढ़िया योजनायें अभी तक कोई सरकार नहीं ला सकी। यह प्रधानमंत्री मोदी का ही कमाल है, जो मात्र 12 रूपये में सुरक्षा बीमा योजना भारतीय जनता को उपलब्ध करा रहे हैं। यह कितनी सुखद बात है कि प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना योजना के तहत बीमा धारक को मात्र 12 रुपये की सालाना बीमा पर दो लाख रुपये की निजी दुर्घटना बीमा सुरक्षा प्रदान की जाएगी । मध्यम व अल्प आय वर्ग के लोगों को इस बात की बेहद खुशी हो रही हे कि यदि उन्हें कुछ हो जाता है तो उसके बाद उनके परिवार के सदस्यों को कुछ न कुछ अवश्य मिलेगा।


विगत नौ मई को जब पश्चिम बंगाल के कोलकाता मे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सामाजिक सुरक्षा से सम्बंधित तीन योजनाओं प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना,जीवन ज्योति बीमा योजना और अटल पेंशन योजना को जनता व देश को समर्पित किया था उस समय स्वयं प्रधानमंत्री मोदी और उनके वित्तमंत्री अरूण जेटली ने भी यह सोचा नहीं होगा कि ये योजनायें देश में इस प्रकार आर्थिक जागरूकता लायेंगी और इस हद तक लोकप्रिय हो जायेंगी। आज इन योजनाओं की लोकप्रियता का आलम यह है कि इन योजनाओं के बारे में अल्प आय वर्ग का हो या फिर मध्यम आय वर्ग का या फिर बहुसंख्यक हो या फिर अल्पसंख्यक या फिर किसी अन्य समुदाय या समाज में बंटे फिरके का, हर व्यक्ति इन योजनाओं का लाभ लेने के लिए लालायित व आकर्षित हो रहा है। मुस्लिम परिवारों में भी इन योजनाओें के प्रति खासा आकर्षण देखा जा रहा है। बेटी बचाओ अभियान की सुकन्या योजना की सर्वलोकप्रियता की स्थिति तो यह है कि देश के मुस्लिम परिवार भी जिनके परिवारों में दो बेटियाँ व उससे अधिक भी हैं तो ऐसे लोगों को डाकघर में योजना का आवेदन के लेने के लिए आतुर होते देखा जा रहा है। सुकन्या योजना के साथ ही आर्थिक स्थिति सुदृढ करने सम्बन्धी सरकार की बैंक खाता खुलवाने, वीमा, पेंशन आदि योजनाओं के प्रति आम जनता में गजब का उत्साह देखा जा रहा है। भाजपा समर्थकों का कहना है कि ये योजनायें एक प्रकार से मोदी सरकार व भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में सम्पूर्ण देश में एक शान्त व सुदृढ़ माहौल की अन्तरंगता को प्रवृद्ध कर भाजपा के लिए उपयुक्त स्थिति का निर्माण भी कर रही हैं, जो भविष्य में भाजपा के लिए तुरूप का पत्ता साबित हो सकती हैं।

उल्लेखनीय है कि मोदी सरकार की वित्तीय समावेश और सामाजिक सुरक्षा योजनायें काफी सफल रहीं हैं। इस दौरान बैंकों में 15 करोड़ जनधन खाते खोले गये और 7.5 करोड़ लोगों ने जन सुरक्षा और जीवन ज्योति बीमा योजना के तहत जीवन बीमा और दुर्घटना बीमा कवर अपनाया है। सामाजिक सुरक्षा से सम्बंधित इन योजनाओं की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दो लाख रूपये कवर वाली सुरक्षा बीमा योजना व प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना के अब तक लगभग दस करोड़ से कुछ अधिक लोग इससे जुड़ चुके हैं। अटल पेंशन योजना के प्रति भी जनता में खासा आकर्षण हैं लेकिन इसमें अतिंम उम्र सीमा यदि लगभग पचास वर्ष कर दी जाये तो यह भी और अधिक लोकप्रिय हो जायेगी । वैसे भी अब जनता को यह विश्वास हो रहा है कि अभी मोदी सरकार के पिटारे में से कई और योजनायें साकार रूप ले रही हैं व लेने वाली हैं अतः इन सभी योजनाओं के बल पर कम से कम भविष्य तो अच्छा हो ही जायेगा।

दूसरी ओर प्रधानमंत्री मोदी की सरकार में गैस सब्सिडी योजनान्तर्गत के लोगों के खाते में जहाँ रसोई गैस सब्सिडी की रकम पहुँचने लगी है वहीं कुछ सीमा तक गैस की सब्सिडी की बर्बादी व कालाबाजारी पर रोकथाम भी हुई है। यदि यह गैस सब्सिडी योजना थेाड़ा और अधिक प्रभावी ढंग से लाग की जाये तो गैस के क्षेत्र में व्याप्त हर प्रकार के भ्रष्टाचार से मुक्ति मिलने की संभावना बढ़ जायेगी। प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी व पेट्रोलियम मंत्री ने दिखा दिया है कि यदि आप में इच्छाशक्ति हो तो किसी भी कठिन से कठिन योजना को देशहित में समुचित तरीके से लागू करके दिखाया जा सकता है। यह बात सही है कि गैस सब्सिडी योजना पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार लेकर आयी थी लेकिन आज उसको लागू करने का श्रेय तो नरेन्द्र मोदी की ही सरकार को जाता है।

सरकार की अटल पेंशन योजना की प्रमुख विशेषता यह भी है कि इस योजना से जुड़ने वाले ग्राहक को 60 वर्ष की आयु के बाद उनकी जमा राशि के अनुरूप प्रति माह एक हजार, तीन हजार व पाँच हजार रूपये की पेंशन प्राप्त होगी। सरकार भी इस योजना में शामिल होने वाले उपभोक्ताओं की ओर से जमा की जाने वाली राशि का 50 प्रतिशत हिस्सा अथवा 1000 रूपये प्रतिवर्ष उसके खाते में पाँच वर्ष तक जमा करायेगी। सरकार यह सुविधा उन्हीं उपभोक्ताओं को देगी जो 31 दिसम्बर 2015 तक इस राष्ट्रीय पेंशन योजना में शमिल होंगे। इसी प्रकार जीवन ज्योति बीमा योजना के अंतर्गत उपभोक्ता को दो लाख रूपये की वार्षिक बीमा योजना के लिए केवल 330 रूपये सालाना देना होगा। यह योजना 18 से 50 वर्ष तक के लोगों के लिए उपलब्ध है जिनके पास अपना बैंक खाता उपलब्ध है।

इसमें कोई सन्देह नहीं कि मोदी सरकार की बैंकों के प्रति आम जन को आकर्षित करने वाली सामाजिक योजनायें भारतीय जनता के मध्य अत्यंत लोकप्रिय हो रही हैं, तथा मोदी सरकार गरीब और मजदूरों के कल्याण के प्रति समर्पित नजर आती है और यह देख खुशी भी होती है कि अपने पहले ही वर्ष में सरकार ने गरीब और मजदूरों को जीविका देने के साथ ही सामाजिक सुरक्षा देने का भी प्रयास किया है।परन्तु इन योजनाओं की लोकप्रियता व सर्वस्वीकार्यता को अधिकाधिक बढ़ाने के लिए योजनाओं के सञ्चालन प्रक्रिया को और भी सरल ,सुगम ,लचीला बनाने , जनता को जागरूक करने की नितान्त आवश्यकता है ताकि देश की समस्त जनसँख्या इन योजनाओं का लाभ लेकर आर्थिक स्वावलंबन की दिशा में सुदृढ़ कदम बढाकर भविष्य की चिन्ता से कुछ हद तक मुक्त हो सके ।

Friday, June 5, 2015

आर्यावर्त: विशेष : पुण्यसलिला सरित्श्रेष्ठ सरस्वती आखिर कहाँ गई ?-अशोक "प्रवृद्ध"

आर्यावर्त: विशेष : पुण्यसलिला सरित्श्रेष्ठ सरस्वती आखिर कहाँ गई ?



विशेष : पुण्यसलिला सरित्श्रेष्ठ सरस्वती आखिर कहाँ गई ?

Edited By Rajneesh K Jha on सोमवार, 18 मई 2015



भारतीय जीवन एवं साधना में अप्रतिम महत्व रखने वाली सरस्वती भारतीय सभ्यता के उषाकाल से लेकर अद्यपर्यन्त अपने आप में ही नहीं,प्रत्युत अपनी अर्थ,परिधि एवं सम्बन्धों के विस्तार के कारण भी अत्यन्त महत्वपूर्ण रही हैlसरस्वती शब्द की व्युत्पति गत्यर्थक सृ धातु से असुन प्रत्यय के योग से निष्पन्न होता है शब्द सरस,जिसका अर्थ होता है गतिशील जलlसरस का अर्थ गतिशीलता के कारण जल भी हो सकता है,लेकिन केवल जल ही गतिशील नहीं होता,ज्ञान भी गतिशील होता हैlसूर्य-रश्मि भी गतिशील होती हैlअतः सरस का अर्थ ज्ञान, वाणी (अन्तःप्रेरणा की वाणी), ज्योति, सूर्य-रश्मि, यज्ञ ज्वाला, आदि भी किया गया हैlज्ञान के आधार पर सरस्वती का अर्थ सर्वत्र और सर्वज्ञानमय परमात्मा भी हो जाती हैlआदिकाव्य ऋग्वेद में सरस्वती नाम देवता (विभिन्न वैदिक देवता एक ही देव के भिन्न-भिन्न दिव्यगुणों के कारण अनेक नाम अर्थात सरस्वती मात्र देवता,परमात्मा का सूचक नाम मात्र है,दृश्य रूप भौतिक नदी विशेष नहीं है) तथा नदी वत दोनों ही रूपों में प्रयुक्त हुआ हैlसरस्वती शब्द का अर्थ करते हुए यास्क ने निरुक्त में लिखा है-

वाङ नामान्युत्तराणि सप्तपञ्चाशत् वाक्क्स्मात् वचेः l तत्र सरस्वतीत्येत्स्य नदीवद् देवतावच्चा निगमा भवन्ति l
तद्यद् देवतावदुपरिष्टातद् व्याख्यास्यामः l अथैतन्न्दीवत ll
-निरूक्त २/७/२३ 
अर्थात- वाक् शब्द के सत्तावन रूप कहे गये हैंlवाक् के उन सत्तावन रूपों में एक रूप सरस्वती हैlवेदों में सरस्वती शब्द का प्रयोग देवतावत् और नदीवत् आया हैlनदीवत् अर्थात नदी की भान्ति (नदी नहीं) बहने वालीlसायन एवं निघण्टुकार ने भी सरस्वती के नदी एवं देवता दोनों दोनों रूप स्वीकार किये हैंlयास्काचार्य की उक्ति सरस्वती – सरस इत्युदकनाम सर्तेस्तद्वती (निरूक्त ९/३/२४) से यह स्पष्ट नहीं होता कि उनका अभिप्राय नदी विशेष है अथवा सामान्य नदियों से अथवा जलाशयों से परिपूर्ण भूमि सेl फिर कतिपय विद्वानों ने इसे सरस्वती नाम की नदी विशेष अर्थ (रूप) में स्वीकार किया हैlऋग्वेद में यास्कानुसार केवल छः मन्त्रों में ही सरस्वती नदी रूप में वर्णित है,शेष वर्णन उसके देवता रूप विषयक हैंlऋग्वेद में सरस्वती का नाम प्रथम वाक् देवता के रूप में प्रयुक्त हुआ है या नदी के लिये यह आज भी विद्वानों के मध्य विवाद के विषय बना हुआ हैlयद्यपि मनुस्मृति १/२१ के अनुसार सरस्वती के देवता रूप की कल्पना ही पहले होनी चाहिये तथापि कतिपय विद्वानों के अनुसार बाद में देवता रूप के आधार पर ही नदी विशेष के लिये सरस्वती नाम प्रचलित हुआlउनके अनुसार ऋग्वेद की सरस्वती मात्र एक दिव्य अन्तःप्रेरणा की देवी, वाणी की देवी ही नहीं वरन प्राचीन आर्य जगत की सात नदियों में से एक भी हैl

वैदिक विचार 
विद्वानों का विचार है कि ऋग्वैदिक काल में सिन्धु और सरस्वती दो नदियाँ थींlऋग्वेद में अनेक स्थलों पर दोनों नदियों का साथ-साथ वर्णन तो उल्लेख है ही विशालता में भी दोनों एक सी कही गईं हैंlफिर भी सिन्धु के अपेक्षतया सरस्वती को ही अधिक महिमामयी एवं महत्वशालिनी माना गया हैlऋग्वेद के अनुसार सरस्वती की अवस्थिति यमुना और शतुद्रि (सतलज) के मध्य (यमुने सरस्वति शतुद्रि) थीlऋग्वेद में सरस्वती के लिये प्रयुक्त विशेषण सप्तनदीरूपिणी, सप्तभगिनीसेविता, सप्तस्वसा, सप्तधातु आदि हैंlसरस्वती से सम्बद्ध ऋग्वेद में उल्लिखित स्थान अथवा व्यक्ति सभी भारतीय हैंlऋग्वेद ७/९५/२ में सरस्वति का पर्वत से उद्भूत हो समुद्रपर्यन्त प्रवाहित होने का उल्लेख मिलता हैlभूमि सर्वेक्षण के कई प्रतिवेदनों अर्थात रिपोर्टों से प्रमाणित होता है कि लुप्त सरस्वती कभी पँजाब, हरियाणा और उत्तरी राजस्थान से प्रवाहित होने वाली विशाल नदी थीlस्पेस एप्लीकेशनसेंटर और फिजिकल लेबोरेट्री द्वारा प्रस्तुत लैंड सैटेलाईट इमेजरी एरियल फोटोग्राफ्स से भी सरस्वती की ऋग्वैदिक स्थिति की पुष्टि होती हैl

ऋग्वेद में सरस्वती के उल्लेखों वाले मन्त्रों को दृष्टिगोचर करने से इस सत्य का सत्यापन होता है कि ऋग्वैदिक सभ्यता का उद्भव एवं विकास सरस्वती के काँठे में ही हुआ था,वह सारस्वत प्रदेश की सभ्यता थीlबाद में यह सभ्यता क्षेत्र विस्तार के क्रम में मुख्यतः पश्चिमाभिमुख होकर एवं कुछ दूर तक पूर्व की ओर बढती हैlसभ्यता का केन्द्र सरस्वती तट से सिन्धु एवं उसके सहायिकाओं के तट पर पहुँचता है और इस सिलसिले में इसकी व्यापारिक गतिविधियों का व्यापक विस्तार होता हैlकहा जाता है कि सारस्वत प्रदेश के अग्रजन्माओं की आधिभौतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति का श्रेय सरस्वती नदी को ही थाlपशुपालक व कृषिजीवी जहाँ सरस्वती के तटीय वनों और उपजाऊ भूमि से आधिभौतिक उन्नति कर रहे थे,वहीँ ऋषि-मुनिगण इसके तट पर सामगायन कर याजिकीय अनुष्ठानों द्वारा आध्यात्मिक उत्कर्ष कर रहे थेl

ऋग्वेद के सूक्तों से इस सत्य का सत्यापन होता है कि सरस्वती नदी नाहन पहाड़ियों से आगे आदिबदरी के निकट निकलकर पँजाब, हरियाणा, उत्तरी-पश्चिमी राजस्थान में प्रवाहित होती हुई समुद्र में प्रभाष क्षेत्र में मिलती हैlइसकी स्थिति यमुना और शतुद्रि के मध्य (ऋग्वेद १०/७५/५) किन्तु दृषद्वती (चितांग) के पश्चिम (ऋग्वेद ७/९५/२) कही गई हैlइसकी उत्पति दैवी (असुर्या ऋग्वेद ७/९६/१) भी मानी गई हैlब्राह्मण ग्रन्थों,श्रौतसूत्रों एवं पुराणादि ग्रन्थों में सरस्वती का उद्गम स्थान प्लक्ष प्राश्रवण कहा गया हैlयमुना नदी के उद्गम स्थल को प्लाक्षावतरण कहा गया हैlऋग्वेद में सरस्वती सम्बन्धी (करीब) पैंतीस मन्त्र अंकित हैं,जिनमें से तीन ऋग्वेद ६/६१,ऋग्वेद ७/९५ और ७/९६ स्तुतियाँ हैंlविविध मन्त्रों में सरस्वती की अपरिमित जलराशि,अनवरत बदलती रहने वाली प्रचण्ड वेगवती धारा,भयंकर गर्जना,उससे होने वाले संभावित खतरों,महनीयता आदि के भी जीवन्त वर्णन हैंl(ऋग्वेद ६/६१/३, ६/६१/८, ६/६१/११,६/६१/१३)सरस्वती प्रचण्ड वेगवाली होने के साथ ही सर्वाधिक जलराशि वाली होने के कारण बाढ़ के समय इसका पाट इतना चौड़ा और विस्तृत हो जाता है कि यह आक्षितिज फैली हुई प्रतीत होती हैlऋग्वेद६/६१/७ में अंकित है कि सरस्वती कूल किनारों को तोड़ती हुई बहुधा अपना प्रवाह बदल लेती हैl

प्रसविणी सरस्वती 
ऋग्वेद १०/६४/९ में में सरस्वती,सरयू सिन्धु की गणना बड़े नदों में हुई है जिसमें ऋग्वेद ७/३६/३ में सरस्वती ही सरिताओं की प्रसविणी कही गई हैlऋग्वेद ६/६१/१२ में अंकित है कि सरस्वती में सात नदियों के मिलने के कारण सप्तधातु एवं ऋग्वेद ६/६१/१० में सप्तस्वसा कही गई हैlऋग्वेद ७/९६/३ के अनुसार सरस्वती सदा कल्याण ही करती हैlसरस्वती का जल सदा और सबको पवित्र करने वाला हैlयह पूषा की तरह पोषक अन्न देने वाली हैlअन्यान्य नदियों की तुलना में यह सबसे अधिक धन-धान्य प्रदायिनी हैlऋग्वेद ७/९६/३ में यह अन्नदात्री, अन्न्मयी एवं वाजिनीवती कही गई हैlधन, समृद्धि, ज्ञान प्रदायिनी होने के कारण ही सरस्वती को वाजिनीवती कहा गया हैlसरस्वती के माध्यम से नहुष ने अकूत धन-सम्पदा अर्जित की थीlइसी कारण धन-धन्य प्राप्ति के लिये सरस्वती की प्रार्थना करने की परिपाटी बाद में चल पड़ीlसरस्वती का जल स्वच्छ एवं सुस्वादु होने के कारण अन्नोत्पादिका होने के परिणामस्वरूप यह कल्याणकारिणी एवं धन-धान्य प्रदायिनी कही गई हैlसरस्वती अग्रजन्माओं की भूमि प्रदायिनी कही गई हैlऋग्वेद ६/६१/३ एवं ८/२१/१८ के अनुसार सारस्वत प्रदेश की प्राचीनता सिद्ध होती हैlसरस्वती के तट पर एक प्रसिद्द राजा और पञ्चजन निवास करते हैं जिन तटवासियों को सरस्वती स्मृद्धि प्रदान करती हैlऋग्वेद ६/६१/७ के अनुसार वृत्र का संहार सरस्वती तट पर हुआ था जिसके कारण इसकी नाम वृत्रघ्नी भी हुईlसर्वप्रथम यज्ञाग्नि सरस्वती तट पर प्रज्वलित हुई थीlतटवासी भरतों ने सर्वप्रथम अग्नि जलाई थीlइसी कारण सरस्वती का एक नाम भारती भी हुईlसरस्वती तट से ही अग्नि का अन्यत्र विस्तार भी हुआlफलतः सरस्वती के साथ ही दृषद्वती और आपया के तटों पर भी यज्ञों का संपादन होने लगाlनदियों में सरस्वती की इतनी महिमा मणि गई है कि इसे नदीतमे ही नहीं अम्बितमे और देवितमे भी घोषित करते हुए कहा गया है – 
अम्बितमे नदीतमे देवितमे सरस्वती l
प्रशस्ता इव स्मसि प्रशस्तिम्ब नस्कृधि ll
-ऋग्वेद २/४१/६

ऋग्वेद ७/९६/१ में सरस्वती की महता गायन करने वशिष्ठ को आदेश देते हुए ऋषि कहते हैं, हे वशिष्ठ! तुम नदियों से बलवती सरस्वती के लिये वृहद स्तोत्र का गायन करोlऋग्वेद ६/६१/१० के अनुसार सरस्वती के स्तुतिगायकों ने अपने पूर्वजों द्वारा भी इसके स्तुति का उल्लेख किया है l इससे भी सरस्वती तट पर वैदिकों के निवास की प्राचीनता का संकेत मिलता हैlकतिपय विद्वान कहते हैं, भरतों की आदिम वासभूमि सरस्वती तटवर्त्ती भूमि (सारस्वत प्रदेश) ही थी जहाँ उन्होंने सर्वप्रथम यज्ञाग्नि जलाई थीlमैकडानल के अनुसार भी सूर्यवंशियों की प्राचीन वासभूमि भी जलाई थी, किन्तु विद्वानों के अनुसार सरस्वती के उद्गम स्थान पर हिमराशि का गलकर समाप्त हो जाने, जलग्रहण क्षेत्र से ही अन्य नदियों के द्वारा सरस्वती के जल का कर्षण कर लिये जाने आदि भौगोलिक कारणों से ख्य्यातिप्राप्त और पुण्यतमा सरस्वती का प्रवाह बहुधा परिवर्तित होता रहता थाlसम्भवतः उद्गम स्थल से सरस्वती का जल यमुना ने ही सबसे अधिक कर्षित किया होगाlइसी कारण यह मान्यता बनी कि प्रयाग में यमुना के साथ ही गुप्त रूप से सरस्वती भी गंगा में मिलती हैlभौगोलिक कारणों से सरस्वती वैदिक काल में ही क्षीण होते-होते सूखने भी लगी थीlफलतः उस समय तक उसका जो धार्मिक-आध्यात्मिक महत्व कायम हो चुका था वह तो आगे भी मान्य रहा,परन्तु उसका सामाजिक-आर्थिक,आधिभौतिक महत्व घटता गयाlउत्तर वैदिक कालीन साहित्यों में धार्मिक-आध्यात्मिक दृष्टियों से सरस्वती एवं उसके तटवर्ती स्थानों के उल्लेख अंकित हैं,लेकिन आधिभौतिक महत्व के साक्ष्यों का प्रायः अभाव ही हैlलाट्टायानी श्रौतसूत्र में कहा है –

सरस्वती नाम नदी प्रत्यकस्त्रोत प्रवहति, तस्याः प्रागपर भागौसर्वलोके प्रत्यक्षौ ,
मध्यमस्तभागः भूम्यन्तःनिमग्नः प्रवहति,नासौ केनचिद् तद्धिनशनमुच्यते ll
- लाट्टायन श्रौतसूत्र १०/१५/१
अर्थात - सरस्वती पश्चिमोभिमुख हो प्रवाहित होती हैlउसका आरम्भिक एवं अन्तिम भाग सबके लिये दृश्य हैlमध्यभाग पृथ्वी में अन्तर्निहित है जो किसी को भी दिखलाई नहीं पड़ताlलाट्टायन श्रौतसूत्र में उद्धृत इस सन्दर्भ से सरस्वती के लुप्त होने का संकेत मिलता हैlसरस्वती के मरुभूमि में समाहित होने अथवा सूखने के काल के सम्बन्ध में विद्वानों का अनुमान है कि ब्राह्मण ग्रन्थों के काल में रेतीले स्थलों में अन्तर्निहित हो गईlकुछ विद्वान यह भी कहते हैं कि ऐतरेय ब्राह्मण के काल में अथवा उसके पूर्व ही सरस्वती सुख चुकी थीlविज्ञान के अनेकानेक नवीन सोच भी इस तथ्य की पुष्टि करते हैंlब्राह्मण ग्रन्थों एवं श्रौत सूत्रों से ज्ञात होता है कि सरस्वती के तट पर धार्मिक-आध्यात्मिक कृत्यों का संपादन भी किया जाता है,थाlसरस्वती एवं दृषद्वती (चिनांग)के संगम पर भी अपां नपात इष्टि में पक्वचरू की आहुति देने का विधान भी अंकित हैlकात्यायन श्रौतसूत्र २४/६/६ के अनुसार सरस्वती दृषद्वती का संगम दृशद्वात्याय्यव कहा जाता थाlकात्यायन श्रौतसूत्र के ही २३/१/१२-१३ में अंकित है कि उक्त संगम पर ही अग्निकाम इष्टि भी संपादित होती थीlताण्ड्य ब्राह्मण २५/१६/११-१२ आपस्तम्ब के अनुसार सरस्वती तट पर तीन सारस्वत सत्र मित्र एवं वरुण के सम्मान में, इन्द्र एवं मित्र के सम्मान में, अर्यमा के सम्मान में किये जाते थेl

उद्गम स्थान 
सरस्वती का उद्गम स्थान जैमिनीय ब्राह्मण ४/२६/१२ के अनुसार प्लक्ष प्रास्त्रवन, एवं आश्वलायन श्रौतसूत्र १२/६/१ के अनुसर प्लाक्ष प्रस्त्रवन कहा जाता हैlयमुना का उद्गम स्थल प्लाक्षावतरणभी इसके पास ही थाlमहाभारत वनपर्व १२९/१३-१४-२१-२३ से स्पष्ट भाष होता है कि यमुना क्ले उद्गम स्थल प्लाक्षातरण के निकट ही सरस्वती भी प्रवाहित थी, जसी स्थान पर सरस्वती भूमि के गर्त्त में अन्तर्निहित हुई वह ताण्डय ब्राह्मण २५/१०/६ के अनुसार विनशन (सम्प्रति कोलायत, बीकानेर के दक्षिण-पश्चिम-दक्षिण) कहा जाता थाlसरस्वती-प्रवाह के लुप्त होने को विनशन तथा कई बार इसकी धारा पुनः प्रकट हो जाती थी,जिसे उद्भेद कहा जाता थाlसरस्वती प्रवाह के लुप्त हो जाने की स्थिति में सरस्वती के सूखे तट पर विनशन में किसी धार्मिक अनुष्ठन अथवा यज्ञादि के दीक्षा लेने का विधान थाlकात्यायन श्रौतसूत्र में अंकित है कि दीक्षा शुक्ल पक्ष की सप्तमी को होती थीlसरस्वती के लुप्त होने के स्थान विनाशन से प्लक्ष प्रास्त्रवन की दूरी उन दिनों घुड़सवारी के माध्यम से चौवालीस दिनों में पूरी की जाती थीlअनुष्ठान करने वाले प्लक्ष प्रास्त्रवन पहुँच कर ही अनुष्ठान समाप्ति एवं कारपचव देश में प्रवाहित यमुना में (सरस्वती में जल होने पर भी उसमें नहीं) अवभृथ स्नान करने का विधान थाlकात्यायन श्रौतसूत्र १०/१०/१ के अनुसार कुरुक्षेत्र के परीण नामक समुद्रतटीय स्थान पर श्रौतयज्ञ किये जाते थेlआश्वलायन श्रौतसूत्र के अनुसार विनशन से प्रक्षिप्त शय्या की दूरी पर यजमानों के द्वारा एक दिन में व्यतीत किया जाता थाlऐतरेय ब्राह्मण ८/१ की गाथानुसार सरस्वती तट विनशन पर ऋषियों द्वारा सम्पादित सत्र से  जन्म लिये (उत्पन्न) कवष नामक दासीपुत्र को प्यास से तड़प-तड़प कर मर जाने के लिये मरुभूमि में छोड़ दिए जाने पर कवष ने अपां नपात (ऋग्वेद १०/३०) स्तुति की जिससे प्रसन्न होकर उसके रक्षार्थ सरस्वती उसे घेरते हुए प्रकट हुई उसे परिसरक नाम से जाना जाता हैlमहाभारत वनपर्व ८३/७५ एवं वामन पुराण सरोवर महात्म्य १५/२० में सरक कहा गया हैlमहाराज मनु के समय में सरस्वती एवं दृषद्वती के मध्य का प्रदेश देवकृतयोनि के नाम से जाना जाता हैl

पुराणादि ग्रन्थों में सरस्वती के नदी रूप की अपेक्षा देवतारूप को अत्यधिक महत्व प्रदान करते हुए कहा गया है कि सरस्वती का प्रवाह हालाँकि सूख गया था फिर भी उसका परम्परागत महत्व पौराणिक काल में भी कायम थाlभौगोलिक कारणों से सरस्वती के प्रवाह क्रम में हुए परिवर्तन को पुराणादि ग्रन्थों में शाप तथा वरदान की कथाओं से महिमामण्डित करने के साथ ही धार्मिक स्वरुप प्रदान किया गया हैlसरस्वती तटवर्ती कई स्थानों को तीर्थ रूप में वर्णन करते हुए उनके यात्राओं का जिक्र किया गया हैlमहाभारत में धौम्य पुलस्त्य, पाण्डव और बलराम की तीर्थयात्राएँ भी पुराणों की साक्ष्यता को ही प्रमाणित एवं पुष्ट करती हैlसरस्वती के नदी रूप का वर्णन महभारत वनपर्व अध्याय ८३, ८४, १२९ एवं शल्य पर्व अध्याय ३५-५५, एवं वामन पुराण सरोवर महात्म्य, ब्रह्म पुराण,कूर्म पुराण , पद्म पुराण, वृह्न्नारदीय पुराण, स्कन्द पुराण, वृह्द्धर्म पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण (प्रकृति खण्ड) आदि ग्रन्थों में अंकित हैंlमहभारत में पाण्डव तीर्थयात्रा के क्रम में कहा गया है कि यमुना के उद्गम स्थल प्लाक्षवतरण से पुण्यसलिला सरस्वती दिखलाई पडती हैlइससे स्पष्ट पत्ता चलता है कि सरस्वती का उद्गम स्थल प्लक्ष प्रास्त्रवण यमुना के उद्गम स्थल प्लाक्षावतरण के नजदीक ही थीlवामन पुराण सरोवर महात्म्य ११/३ एवं महाभारत वनपर्व ८४/७ एवं शल्य पर्व ५४/११ के अनुसार सरस्वती की उत्पति के सम्बन्ध सौगन्धिक वन के आगे प्लक्ष (पांकड़) वृक्ष की जड़ की बांबी प्लक्ष प्रास्त्रवण से कही गई हैl महाभारत शल्य पर्व ४२/३० एवं वामन पूर्ण सरोवर महात्म्य १९/१३ में सरस्वती को ब्रह्मा की सरोवर से उत्पन्न होना भी कहा हैl

पुराणों में वेदों की भान्ति प्लक्ष प्रास्त्रवण तीर्थरूप में स्वीकृत है लेकिन ब्रह्मा का सरोवर इस रूप में मान्य न हो सका हैlब्रह्म पुराण में सरस्वती नदी को अग्नि ने स्पष्टतः ब्रह्मा की कन्या तान्देवान्कन्या कहा है इसके साथ ही ब्रह्मा ने इसे स्वीकार भी किया हैl(ब्रह्म पुराण १०/२०१, २०३, २०४) l महाभारत शल्य पर्व ३५/७७ एवं वन पर्व ८२/६० के अनुसर ब्रह्मा के सरोवर से उद्भुत पश्चिमाभिमुख हो प्रवाहित होती हुई सरस्वती पश्चिमी समुद्र में जिस स्थान पर मिलती थी,वह सरस्वती समुद्र संगम तीर्थ के नाम से विख्यात थाlब्रह्म पुराण १०१/२१० के अनुसार भी अग्नि को समुद्र तक ले जाने की पौराणिक आख्यान से भी सरस्वती का समुद्र से मिलना सिद्ध होता हैlसरस्वती के द्वारा अग्नि को समुद्र तक पहुँचाये जाने की यह कथा थोड़े अन्तर से ब्रह्मपुराण में भी अंकित है तथा सरस्वती के सूखने का एक कारण अग्नि को समुद्र तक पहुँचाया जाना भी माना गया हैl

ऋग्वेद की भान्ति ही पुराणों में भी सरस्वती को महानदी,हजारों पर्वतों को विदीर्ण करने वाली,सर्व लोगों की माता आदि कहा गया हैlमहाभारत शल्य पर्व ३८/२२ एवं वृहन्नारदीय पुराण १/८४/८० के अनुसार सरस्वती का उद्गम स्थल हिमालय किवां हिमालय का रमणीय शिखर हैlवामन पुराण सरोवर महात्म्य १३/६-८ एवं वृहन्नारदीय पुराण २/६४/१९ मे अंकित है कि सरस्वती पहाड़ों से उत्तर द्वैतवन से होती हुई कुरुक्षेत्र के रन्तुक नामक स्थान से पश्चिमोभिमुख होकर प्रवाहित होती हैlकुरुक्षेत्र में प्रवाहित होने वाली अन्य नदियाँ बरसाती हैं लेकिन सरस्वती में सालों भर जल प्रवाहित रहता हैlविद्वानों के अनुसार कुरुक्षेत्र से पश्चिमी समुद्र के बीच सरस्वती का प्रवाह रेगिस्तान में खो चुका था,फिर भी अनेकानेक स्थलों पर उपलब्ध उसके अवशेषों को तीर्थों की मान्यता मिल चुकी थीlप्राचीन समय में द्वारावती से कुरुक्षेत्र तक जाने का प्रमुख मार्ग सरस्वती तट के साथ-साथ ही थाlभागवतपुराण में दो बार श्रीकृष्ण के हस्तिनापुर से द्वारिका और दूसरी बार द्वारिका से हस्तिनापुर आने के समय इस मार्ग का वर्णन अंकित हैlबलराम की द्वारिका से कुरुक्षेत्र की तीर्थयात्रा का मार्ग भी यही रहा हैlइन यात्राओं के क्रम में प्रभास तीर्थ, चमसोद्भेद, शिवोद्भेद, नागोद्भेद, शशयान,उद्पान अथवा सरस्वती कूप,विनशन, सुभूमिक अथवा गन्धर्ववती तीर्थ, गर्गस्त्रोत, शंखतीर्थ, द्वैतवन,नागधन्वा, द्वैपायन सरोवर तीर्थ आदि का नाम महाभारत के वनपर्व एवं शल्य पर्व में अंकित हैंlइन तीर्थों में चमसोद्भेद,शिवोद्भेद और नागोद्भेद ऐसे स्थल हैं जहाँ लुप्त सरस्वती पुनः प्रकट हुई थीlविद्वान कहते हैं, सरस्वती का पराचिन मार्ग यही है जो सूख जाने पर भी कतिपय विशिष्टताओं के कारण तीर्थ रूप में मान्य हो गयेlउद्पान अथवा सरस्वती कूपतीर्थ के सम्बन्ध में महाभारत शल्य पर्व ३५/९० के अनुसार वहाँ औषधियाँ (वृक्ष लताओं) की स्निग्धता और भूमि आर्द्रता से सरस्वती का अनुमान होता हैl शल्य पर्व के अध्याय ४२ के अनुसार वशिष्ठोद्वाह (सरस्वती-अरुणा संगम) से सरस्वती तीर्थ (विश्वामित्र आश्रम) तक सरस्वती द्वारा वशिष्ठ को प्रवाहित कर ले जाने से इसके वेगवती होने का प्रमाण मिलता है लेकिन विश्वामित्र के शाप से वशिष्ठोद्वाह में सरस्वती का जल एक वर्ष के लिये अपवित्र एवं रक्तयुक्त हो जाता हैlमहाभारत शल्यपर्व ४३/१६ एवं वामन पुराण (स० म०) १९/३० के अनुसार ऋषियों के वरदान से सरस्वती नदी पुनः पवित्र और शुद्ध हो गईlइसी प्रकार महाभारत शल्य पर्व ४३/६ एवं वमन पुराण सरोवर महात्म्य १९/३० में पश्चिम-दक्षिण अभिमुखी सरस्वती के वैसे ही किसी घटना के कारण नागधन्वा तीर्थ से पूर्वाभिमुख होने की कथा भी अंकित हैlइसे आलंकारिक रूप में नैमिषारण्यवासी ऋषियों पर सरस्वती की कथा के रूप में महाभारत शल्य परत्व ३७/३६-६० में कहा गया हैl 


विद्वानों के अनुसार सरस्वती-प्रवाह के किन्हीं भौतिक कारणों के परिणामस्वरुप सूख जाने, दूषित एवं शुद्ध होने की कथाओं को पुराणों में शाप एवं वरदान की कथाओं से महिमामण्डित किया गया हैlब्रह्मपुराण १०१/११ के अनुसार उर्वशी के आग्रह पर ब्रह्मसुता सरस्वती पुरुरवा से मिलीlपुरुरवा के साथ सरस्वती के मेल-जोल और उनके घर आने-जाने की बात ब्रह्मा )पिता को अनुचित लगीlइस पर उन्होंने सरस्वती को महानदी होने का शाप दे दियाlइसी अध्याय के सोलहवें श्लोक में ब्रह्मा के शाप से शाप-मोचन हेतु प्राप्त वरदान के कारण सरस्वती के दृश्य एवं अदृश्य दो रूपों की हो जाने की कथा हैlब्रह्मवैवर्त पुराण में अंकित है कि देवी सरस्वती को गंगा के शाप के कारण नदी रूप में अवतरित होना पद थाlमहाभारत शल्य पर्व ३७/१-२ में विनशन तीर्थ के वर्णन में सरस्वती-प्रवाह के सूखने का कारण दुष्कर्म परायण शूद्रों और आभीरों के प्रति द्वेष की कथा अंकित हैlशान्ति पर्व १८५/१५ में सरस्वती के चारों वर्णों के लिये एकमात्र देवी कहा गया हैlमहाभारत में ही अन्यत्र सरस्वती के सूखने का कारण उतथ्य ऋषि का शाप भी कहा हैlमहाभारत पुराणादि ग्रन्थों में ऋषियोंके आह्वान पर विभिन्न स्थानों पर सरस्वती के प्रकट होने की कथा कही गई हैlइसके साथ ही विविध स्थानों प्रकट उन छोटी नदी-कल्याओं को सरस्वती नदी की पवित्रता, महता आदि के साथ जोड़ा गया हैlमहाभारत शल्य पर्व अध्याय ३८ एवं वामन पुराण सरोवर महात्म्य अध्याय १६ में ब्रह्मा के आह्वान पर पुष्कर में सुप्रभा,सत्रयाजी मुनियों के कहने पर नैमिशारण्य में कांचनाक्षी, गय के आह्वान पर गया में विशाला, उद्दालक आदि ऋषियों के आह्वान पर उत्तर कोशल में मनोरमा, कुरु के आह्वान पर कुरुक्षेत्र में सुरेणु तथा दक्ष के आह्वान पर गंगाद्वार, वाशिष्ठ के आह्वान पर कुरुक्षेत्र में ओधवती तथा ब्रह्मा के आह्वान पर हिमालय में विमलोदका नाम से सरस्वती के प्रकट होने की कथा अंकित हैlमंकणक ऋषि ने उपर्युक्त सातों सरस्वतियों (नदियों) को कुरुक्षेत्र में आह्वान कर जिस स्थान पर स्थापित किया था वह सप्त सरस्वती तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध हैl

वैदिक साहित्यों में अंकित सरस्वती नदी को पौराणिक काल में सूख जाने के पश्चात पुराणादि ग्रन्थों में अनेकानेक स्थानों पर पुण्यसलिला एवं सरित्श्रेष्ठ कहते हुए अत्यन्त महता प्रदान की गई है तथा पुराणों में ही सरस्वती के देवी रूप में मान्यता भी पूर्णता को प्राप्त होती हैlअनेक ऋषियों के स्तुति इसके प्रमाण ही हैंlमहाभारत शल्य पर्व अध्याय ४२ एवं वामन पुराण सरोवर महात्म्य अध्याय १९ में वशिष्ठ ऋषि सरस्वती नदी को स्तुति करते हुए उसे पुष्टि,कीर्ति, धृत्ति, बुद्धि, उमा,वाणी और स्वाहा,क्षमा, कान्ति,स्वधा आदि जगत् को अपने अधीन रखने वाली एवं सभी प्राणियों में चार रूपों- परा, पश्यन्ति, मध्यमा और बैखरी में निवास करने वाली कहा हैlयह स्तुति सरस्वती को नदी रूप की अपेक्षा देवता रूप को ही महिमामण्डित करता हैl

वेद-पुराणादि ग्रन्थों में अंकित इन वर्णनों से कतिपय विद्वानों के अनुसार सरस्वती मूलतः नदी थी जो हिमालय से निकलकर  पश्चिमी समुद्र में जा मिलती थीlकालान्तर में भौगोलिक कारणों से सरस्वती सूख गई फिर भी उसकी दृश्य भौतिक नदी रूप से होने वाले अनगिनत लाभों को देखते हुए वैदिक एवं पौराणिक श्लोकों में उसे नदीतमे और अम्बितमे ही नहीं देवितमे भी स्वीकार किया गया हैlधीरे-धीरे सरस्वती नदी रूप की अपेक्षा देवता रूप में ही अधिक स्वीकृत, अंगीकृत और आत्मार्पित की गई,इसके साथ ही सरस्वती की देवी रूप ही प्रमुखता प्राप्त कर लोक आराध्या बन गई और वर्तमान में मार्ग शीर्ष अर्थात माघ मास के पञ्चमी,जिसे वसन्तपञ्चमी के नाम से जाना जाता है, को अत्यन्त धूम-धाम के साथ समारोहपूर्वक देवी सरस्वती की प्रतिमा स्थापित कर पूजा-अर्चा की जाती है l

Thursday, June 4, 2015

झारखण्ड में कृषि रकबा बढ़ाने की कृषि विभाग की कवायद -अशोक “प्रवृद्ध”

नॉएडा से प्रकाशित होने वाली समाचार पत्र दैनिक उगता भारत के सम्पादकीय पृष्ठ पर दिनांक- २५ जून २०१५ को प्रकाशित लेख -
झारखण्ड में कृषि रकबा बढ़ाने की कृषि विभाग की कवायद 
-अशोक “प्रवृद्ध”
उगता भारत , २५ जून २०१५ 


राँची झारखण्ड से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र राष्ट्रीय खबर के सम्पादकीय पृष्ठ पर दिनांक- ४ जून २०१५ को प्रकाशित  लेख-कृषि रकबा बढाने की कवायद- अशोक "प्रवृद्ध"
राष्ट्रीय खबर , दिनांक- ४/६/२०१६५ 

कृषि रकबा बढ़ाने की कृषि विभाग की कवायद 
-अशोक “प्रवृद्ध”

हमारे देश भारतवर्ष की उन्नति और समग्र विकास तथा देश की अर्थव्यवस्था में कृषि का अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण स्थान है और भारतवर्ष में आवश्यक खाद्यान्न की लगभग पूरी की पूरी आपूर्ति कृषि के माध्यम से ही की जाती है । आदिकाल से ही भारतीय कृषि देश के निवासियों के लिये जीवन-निर्वाह का सबसे महत्त्वपूर्ण साधन रही है और आज भी है। भारतवर्ष विभाजन के पश्चात देश में धआँधार औद्योगिकीकरण , शहरीकरण के बावजूद वर्तमान में भी कृषि उद्योग भारतवर्ष की अधिकांश जनता को रोज़गार प्रदान करती है, और आज भी देश की 52 प्रतिशत आबादी प्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है।  कृषि की महता इससे भी प्रमाणित होती है कि देश के कुल निर्यात व्यापार में कृषि उत्पादित वस्तुओं का प्रतिशत काफ़ी अधिक रहता है। देश में दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही बेरोज़गारी की समस्या की स्थिति में कृषि कार्य में रोजगार मिलना बहुत महत्त्वपूर्ण हो जाता है । यद्यपि हरित क्रान्ति के पश्चात फसलोपज में हुई आशातीत वृद्धि से देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानी जाने वाली भारतीय कृषि देश की उन्नति ,समृद्धि और खुशहाली के लिए अत्यन्त लाभदायक व आवश्यक सिद्ध हुई है ,परन्तु हरित क्रान्ति में हुई फसलोपज में अधिकाधिक वृद्धि के पश्चात अब कृषि भूमि की उपज क्षमता में एक प्रकार से ठहराव आ गयी है। इस स्थिरता अर्थात ठहराव की समस्या को दूर करने के लिए कृषि वैज्ञानिकों के सलाह पर देश में बेकार पड़ी भूमि को कृषि योग्य बनाने, फसलाच्छादन क्षेत्रफल बढाने आदि के कार्य किये जाने आवश्यक हो जाते हैं ताकि देश की भावी पीढ़ी के पेट भरने की दिशा में आवश्यक संसाधन अधिकाधिक मात्र में उपलब्ध कराने की दिशा में कदम बढ़ाया जा सके ।
 ऐसी परिस्थिति में कृषि भूमि की उपज क्षमता में एक प्रकार से ठहराव आ जाने की समस्या के स्थायी निराकरण के लिए झारखण्ड के कृषि विभाग के द्वारा क्रमबद्ध तरीके से प्रदेश की बेकार पड़ी भूमि को कृषि योग्य बनाने का बीड़ा उठाये जाने का प्रदेश के कृषि से जुड़े लोगों ने हर्षपूर्वक स्वागत किया है । लोगों का कहना है कि प्रदेश की कृषि उत्पादकता में आ चुकी एक प्रकार की स्थिरता की समस्या को दूर करने के लिए मौजूदा कृषि रकबे को बढ़ाने की दिशा में वर्तमान सरकार के द्वारा प्रयास शुरू किया जाना एक प्रशंसनीय कदम है । कृषि योग्य भूमि में वृद्धि से कृषि उत्पादन तो बढ़ेगा ही साथ ही प्रदेश के किसानों को लाभ भी प्राप्त होगा। झारखण्ड प्रदेश में कुल 38 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि है, जिसमें से सिर्फ 25-26 लाख हेक्टेयर भूमि में ही वर्तमान में खेती की जा रही है। अर्थात 12-13 लाख हेक्टेयर भूमि खेती योग्य होने के बावजूद बेकार पड़ी है, जिसमें खेती नहीं होती । झारखण्ड के कृषि विभाग ने अब क्रमबद्ध तरीके से इस बेकार पड़ी भूमि को कृषि योग्य बनाने का अर्थात उत्पादन क्षेत्रफल बढाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। जिसका जानकार क्षेत्रों में व्यापक स्वागत किया जा रहा है । बेकार पड़ी भूमि को कृषि योग्य बनाने के क्रम में वर्तमान वित्तीय वर्ष 2015-16  में  1.20 लाख हेक्टेयर परती भूमि को कृषि योग्य भूमि में तब्दील किये जाने का निर्णय सरकार के स्तर से लिया गया है । इसके तहत प्रदेश के प्रत्येक जिले में औसतन 5000 हेक्टेयर परती भूमि को कृषि योग्य भूमि में बदला जाएगा। उत्पादन क्षेत्रफल बढ़ाने के लिए फसल आच्छादन क्षत्रफल अर्थात कवरेज एरिया बढ़ाने के क्रम में शुरुआती दौर में इन क्षेत्रों में कम पानी की फसलों मसलन अरहर, कुल्थी व सरगुजा की खेती किये जाने की योजना बनाई गई है । बाद में इसे धान व अन्य फसलों के उपयोग में लाया जाएगा। कृषि योजना अर्थात प्लान के तहत भूमि सर्वे का काम शुरू कर दिया गया है। सर्वे में कृषक मित्रों की मदद ली जा रही है। विभाग की योजना इस खरीफ काल में खरीफ फसल के दौरान इस क्षेत्र को उपयोग में लाने की है। झारखण्ड प्रदेश के कृषि निदेशक जटाशंकर चौधरी के द्वारा किये गए घोषणा के अनुसार गाँवों में कलस्टर बनाकर परती भूमि को कृषि योग्य भूमि में तब्दील किये जाने की योजना है। इसके लिए कृषि पदाधिकारियों को कलस्टर के लिए गाँवों का चयन करने का निर्देश भी दे दिया गया है। कोशिश यह होगी कि जिस गाँव का चयन किया जाए वहाँ की बेकार पड़ी सारी जमीन को कृषि योग्य भूमि में तब्दील किये जाने का कार्यक्रम बनाया जाए। औसतन एक कलस्टर 500 हेक्टेयर का होगा और प्रत्येक जिले में दस कलस्टर होंगे । कलस्टर के चयन से योजना की मोनिटरिंग की भी सुविधा होगी। प्रदेश के लोगों ने और फिर कृषि पदाधिकारियों ने भी यह स्वीकार किया कि लक्ष्य बड़ा है लेकिन मौजूदा खेती को बढ़ाने के लिए इस दिशा में प्रयास तो करना ही होगा।




दिलचस्प यह है कि झारखण्ड में कृषि विभाग के द्वारा प्रदेश की बेकार पड़ी भूमि को कृषि योग्य बनाने की योजनाओं का क्रियान्वयण कोई नई बात नहीं है, और कृषि उत्पादन लक्ष्य बढ़ाने के लिए सरकार कृषि भूमि के क्षेत्रफल में विस्तार का ताना-बाना वर्षों से तैयार करती रही है। झारखण्ड में कृषि उत्पादकता का मानक 116 प्रतिशत है, अर्थात राज्य में 100 एकड़ में मात्र 16 हेक्टेयर में ही खेती की जाती रही है। सरकार की मंशा इसे राष्ट्रीय औसत 37 हेक्टेयर तक ले जाने की है। इसके लिए वित्तीय वर्ष 2011-12 में रबी कार्यक्रम के तहत 215 हजार हेक्टेयर भूमि में गेहूँ, 30 हजार हेक्टेयर में मक्का, 344 हजार हेक्टेयर में दलहन और 310 हजार हेक्टेयर में तेलहन आच्छादित करने का लक्ष्य रखा गया था ।यह पिछले वर्ष 2 010- 2011 की अपेक्षा वर्ष 2011-12 में 50 फीसदी आच्छादन क्षेत्रफल बढाने का कृषि विभाग का लक्ष्य था । इसके लिए वर्ष 2011-12 में 50 हजार हेक्टेयर में अगहनी धान की खेती का भी लक्ष्य रखा गया था । रबी 2011-12 के लिए किसानों को 50 फीसदी अनुदान पर 69370 क्विंटल गेहूँ, 2660 क्विंटल मसूर, 4150 क्विंटल मटर, 6600 क्विंटल सरसों का बीज वितरित करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था ।



उल्लेखनीय है कि झारखण्ड के कृषि विभाग ने वित्तीय वर्ष 2012-13 में ही ऐसी परती भूमि को कृषि कार्य के लिए उपयोग में लाने की योजना तैयार की थी, जहाँ उस समय तक खेती नहीं की गई थी । कृषि का रकबा बढ़ाने की जुगत में जुटे कृषि विभाग ने वित्तीय वर्ष 2012-13 में 38,372 हेक्टेयर परती भूमि पर खेती की योजना बनाई थी । उस समय सरकार द्वारा प्रदत्त आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में कुल 22,72,845 हेक्टेयर भूमि में खेती की जा रही थी, तथा कुल 16,36,817 हेक्टेयर ऐसी परती भूमि थी, जिस पर कृषि कार्य नहीं किया जा रहा था । योजना के अंतर्गत परती भूमि को कृषि भूमि में रूपान्तरित करने के लिए सरकार के स्तर से किसानों को 4000 रुपये प्रति हेक्टेयर की दर से प्रोत्साहन राशि देने की घोषणा की गई थी । दो चरणों में दी जाने वाली इस राशि से प्रथम चरण में गहरी जुताई, मेड़़बंदी तथा सूक्ष्म समतलीकरण के प्रोत्साहन के तौर पर 2500 रुपये प्रति हेक्टेयर तथा दूसरे चरण में बीज, खाद, उर्वरक तथा कीटनाशक के लिए 1500 रुपये प्रति हेक्टेयर की दर से राशि का भुगतान करने की व्यवस्था की गई थी । वित्तीय वर्ष 2012-13 में किसानों को प्रोत्साहित करने वाली स्वयं सेवी संस्थाओं व अन्य चयनित संस्थाओं को भी 200 रुपये प्रति हेक्टेयर की दर से भुगतान किया भी किया था और किसान विकास केन्द्र अर्थात केवीके को नियमित मानीटरिंग के लिए 100 रुपये प्रति हेक्टेयर की दर से प्रोत्साहन राशि दी गयी थी । अब यह अलग शोद्ध व अनुसंधान की बात है कि सरकारी की इस सारी कवायद का धरातल पर कितना लाभ पहुँच पाया ? यह भी नहीं मालूम कि शुरुआती दौर में ऐसी परती भूमि पर दलहन, तेलहन, मकई व सोयाबीन की खेती सुनिश्चित करने के लिए भी पृथक रूप से आवंटित की गई राशि से कितनी नयी निर्मित कृषि योग्य भूमि पर इन फसलों की खेती की गई थी और उससे कितनी फसलोपज प्राप्त की जा सकी ?परन्तु यह भी सत्य है कि इस दिशा में सार्थक पहल किये जाने से कृषि योग्य भूमि के क्षेत्रफल में वृद्धि होने से फसलोपज में वांछित लक्ष्य पाने की आशा बलवती हो सकती है ।

Wednesday, June 3, 2015

झारखण्ड में कृषि रकबा बढ़ाने की कृषि विभाग की कवायद -अशोक "प्रवृद्ध"

झारखण्ड में कृषि रकबा बढ़ाने की कृषि विभाग की कवायद



झारखण्ड में कृषि रकबा बढ़ाने की कृषि विभाग की कवायद -अशोक "प्रवृद्ध"

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 -अशोक “प्रवृद्ध”-            


agriculture

हमारे देश भारतवर्ष की उन्नति और समग्र विकास तथा देश की अर्थव्यवस्था में कृषि का अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण स्थान है और भारतवर्ष में आवश्यक खाद्यान्न की लगभग पूरी की पूरी आपूर्ति कृषि के माध्यम से ही की जाती है । आदिकाल से ही भारतीय कृषि देश के निवासियों के लिये जीवन-निर्वाह का सबसे महत्त्वपूर्ण साधन रही है और आज भी है। भारतवर्ष विभाजन के पश्चात देश में धुआँधार औद्योगिकीकरण, शहरीकरण के बावजूद वर्तमान में भी कृषि उद्योग भारतवर्ष की अधिकांश जनता को रोज़गार प्रदान करती है, और आज भी देश की 52 प्रतिशत आबादी प्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है।  कृषि की महता इससे भी प्रमाणित होती है कि देश के कुल निर्यात व्यापार में कृषि उत्पादित वस्तुओं का प्रतिशत काफ़ी अधिक रहता है। देश में दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही बेरोज़गारी की समस्या की स्थिति में कृषि कार्य में रोजगार मिलना बहुत महत्त्वपूर्ण हो जाता है । यद्यपि हरित क्रान्ति के पश्चात फसलोपज में हुई आशातीत वृद्धि से देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानी जाने वाली भारतीय कृषि देश की उन्नति ,समृद्धि और खुशहाली के लिए अत्यन्त लाभदायक व आवश्यक सिद्ध हुई है ,परन्तु हरित क्रान्ति में हुई फसलोपज में अधिकाधिक वृद्धि के पश्चात अब कृषि भूमि की उपज क्षमता में एक प्रकार से ठहराव आ गयी है। इस स्थिरता अर्थात ठहराव की समस्या को दूर करने के लिए कृषि वैज्ञानिकों के सलाह पर देश में बेकार पड़ी भूमि को कृषि योग्य बनाने, फसलाच्छादन क्षेत्रफल बढाने आदि के कार्य किये जाने आवश्यक हो जाते हैं ताकि देश की भावी पीढ़ी के पेट भरने की दिशा में आवश्यक संसाधन अधिकाधिक मात्र में उपलब्ध कराने की दिशा में कदम बढ़ाया जा सके ।



ऐसी परिस्थिति में कृषि भूमि की उपज क्षमता में एक प्रकार से ठहराव आ जाने की समस्या के स्थायी निराकरण के लिए झारखण्ड के कृषि विभाग के द्वारा क्रमबद्ध तरीके से प्रदेश की बेकार पड़ी भूमि को कृषि योग्य बनाने का बीड़ा उठाये जाने का प्रदेश के कृषि से जुड़े लोगों ने हर्षपूर्वक स्वागत किया है । लोगों का कहना है कि प्रदेश की कृषि उत्पादकता में आ चुकी एक प्रकार की स्थिरता की समस्या को दूर करने के लिए मौजूदा कृषि रकबे को बढ़ाने की दिशा में वर्तमान सरकार के द्वारा प्रयास शुरू किया जाना एक प्रशंसनीय कदम है । कृषि योग्य भूमि में वृद्धि से कृषि उत्पादन तो बढ़ेगा ही साथ ही प्रदेश के किसानों को लाभ भी प्राप्त होगा। झारखण्ड प्रदेश में कुल 38 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि है, जिसमें से सिर्फ 25-26 लाख हेक्टेयर भूमि में ही वर्तमान में खेती की जा रही है। अर्थात 12-13 लाख हेक्टेयर भूमि खेती योग्य होने के बावजूद बेकार पड़ी है, जिसमें खेती नहीं होती । झारखण्ड के कृषि विभाग ने अब क्रमबद्ध तरीके से इस बेकार पड़ी भूमि को कृषि योग्य बनाने का अर्थात उत्पादन क्षेत्रफल बढाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। जिसका जानकार क्षेत्रों में व्यापक स्वागत किया जा रहा है । बेकार पड़ी भूमि को कृषि योग्य बनाने के क्रम में वर्तमान वित्तीय वर्ष 2015-16  में  1.20 लाख हेक्टेयर परती भूमि को कृषि योग्य भूमि में तब्दील किये जाने का निर्णय सरकार के स्तर से लिया गया है । इसके तहत प्रदेश के प्रत्येक जिले में औसतन 5000 हेक्टेयर परती भूमि को कृषि योग्य भूमि में बदला जाएगा। उत्पादन क्षेत्रफल बढ़ाने के लिए फसल आच्छादन क्षत्रफल अर्थात कवरेज एरिया बढ़ाने के क्रम में शुरुआती दौर में इन क्षेत्रों में कम पानी की फसलों मसलन अरहर, कुल्थी व सरगुजा की खेती किये जाने की योजना बनाई गई है । बाद में इसे धान व अन्य फसलों के उपयोग में लाया जाएगा। कृषि योजना अर्थात प्लान के तहत भूमि सर्वे का काम शुरू कर दिया गया है। सर्वे में कृषक मित्रों की मदद ली जा रही है। विभाग की योजना इस खरीफ काल में खरीफ फसल के दौरान इस क्षेत्र को उपयोग में लाने की है। झारखण्ड प्रदेश के कृषि निदेशक जटाशंकर चौधरी के द्वारा किये गए घोषणा के अनुसार गाँवों में कलस्टर बनाकर परती भूमि को कृषि योग्य भूमि में तब्दील किये जाने की योजना है। इसके लिए कृषि पदाधिकारियों को कलस्टर के लिए गाँवों का चयन करने का निर्देश भी दे दिया गया है। कोशिश यह होगी कि जिस गाँव का चयन किया जाए वहाँ की बेकार पड़ी सारी जमीन को कृषि योग्य भूमि में तब्दील किये जाने का कार्यक्रम बनाया जाए। औसतन एक कलस्टर 500 हेक्टेयर का होगा और प्रत्येक जिले में दस कलस्टर होंगे । कलस्टर के चयन से योजना की मोनिटरिंग की भी सुविधा होगी। प्रदेश के लोगों ने और फिर कृषि पदाधिकारियों ने भी यह स्वीकार किया कि लक्ष्य बड़ा है लेकिन मौजूदा खेती को बढ़ाने के लिए इस दिशा में प्रयास तो करना ही होगा।











दिलचस्प यह है कि झारखण्ड में कृषि विभाग के द्वारा प्रदेश की बेकार पड़ी भूमि को कृषि योग्य बनाने की योजनाओं का क्रियान्वयण कोई नई बात नहीं है, और कृषि उत्पादन लक्ष्य बढ़ाने के लिए सरकार कृषि भूमि के क्षेत्रफल में विस्तार का ताना-बाना वर्षों से तैयार करती रही है। झारखण्ड में कृषि उत्पादकता का मानक 116 प्रतिशत है, अर्थात राज्य में 100 एकड़ में मात्र 16 हेक्टेयर में ही खेती की जाती रही है। सरकार की मंशा इसे राष्ट्रीय औसत 37 हेक्टेयर तक ले जाने की है। इसके लिए वित्तीय वर्ष 2011-12 में रबी कार्यक्रम के तहत 215 हजार हेक्टेयर भूमि में गेहूँ, 30 हजार हेक्टेयर में मक्का, 344 हजार हेक्टेयर में दलहन और 310 हजार हेक्टेयर में तेलहन आच्छादित करने का लक्ष्य रखा गया था ।यह पिछले वर्ष 2 010- 2011 की अपेक्षा वर्ष 2011-12 में 50 फीसदी आच्छादन क्षेत्रफल बढाने का कृषि विभाग का लक्ष्य था । इसके लिए वर्ष 2011-12 में 50 हजार हेक्टेयर में अगहनी धान की खेती का भी लक्ष्य रखा गया था । रबी 2011-12 के लिए किसानों को 50 फीसदी अनुदान पर 69370 क्विंटल गेहूँ, 2660 क्विंटल मसूर, 4150 क्विंटल मटर, 6600 क्विंटल सरसों का बीज वितरित करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था ।



उल्लेखनीय है कि झारखण्ड के कृषि विभाग ने वित्तीय वर्ष 2012-13 में ही ऐसी परती भूमि को कृषि कार्य के लिए उपयोग में लाने की योजना तैयार की थी, जहाँ उस समय तक खेती नहीं की गई थी । कृषि का रकबा बढ़ाने की जुगत में जुटे कृषि विभाग ने वित्तीय वर्ष 2012-13 में 38,372 हेक्टेयर परती भूमि पर खेती की योजना बनाई थी । उस समय सरकार द्वारा प्रदत्त आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में कुल 22,72,845 हेक्टेयर भूमि में खेती की जा रही थी, तथा कुल 16,36,817 हेक्टेयर ऐसी परती भूमि थी, जिस पर कृषि कार्य नहीं किया जा रहा था । योजना के अंतर्गत परती भूमि को कृषि भूमि में रूपान्तरित करने के लिए सरकार के स्तर से किसानों को 4000 रुपये प्रति हेक्टेयर की दर से प्रोत्साहन राशि देने की घोषणा की गई थी । दो चरणों में दी जाने वाली इस राशि से प्रथम चरण में गहरी जुताई, मेड़़बंदी तथा सूक्ष्म समतलीकरण के प्रोत्साहन के तौर पर 2500 रुपये प्रति हेक्टेयर तथा दूसरे चरण में बीज, खाद, उर्वरक तथा कीटनाशक के लिए 1500 रुपये प्रति हेक्टेयर की दर से राशि का भुगतान करने की व्यवस्था की गई थी । वित्तीय वर्ष 2012-13 में किसानों को प्रोत्साहित करने वाली स्वयं सेवी संस्थाओं व अन्य चयनित संस्थाओं को भी 200 रुपये प्रति हेक्टेयर की दर से भुगतान किया भी किया था और किसान विकास केन्द्र अर्थात केवीके को नियमित मानीटरिंग के लिए 100 रुपये प्रति हेक्टेयर की दर से प्रोत्साहन राशि दी गयी थी । अब यह अलग शोद्ध व अनुसंधान की बात है कि सरकारी की इस सारी कवायद का धरातल पर कितना लाभ पहुँच पाया ? यह भी नहीं मालूम कि शुरुआती दौर में ऐसी परती भूमि पर दलहन, तेलहन, मकई व सोयाबीन की खेती सुनिश्चित करने के लिए भी पृथक रूप से आवंटित की गई राशि से कितनी नयी निर्मित कृषि योग्य भूमि पर इन फसलों की खेती की गई थी और उससे कितनी फसलोपज प्राप्त की जा सकी ?परन्तु यह भी सत्य है कि इस दिशा में सार्थक पहल किये जाने से कृषि योग्य भूमि के क्षेत्रफल में वृद्धि होने से फसलोपज में वांछित लक्ष्य पाने की आशा बलवती हो सकती है ।

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