आत्मा की हत्या अर्थात हनन करने वाले असुर लोक गामी होते हैं
अशोक "प्रवृद्ध"
जो लोग अपनी आत्मा की हत्या करते हैं , वे असुर लोक जाते हैं , जो अंधकार से ढंका हुआ है । अर्थात् आत्मा की हत्या अर्थात हनन करने वाले असुर लोक गामी होते हैं ।
ईशावास्योपनिषद में कहा है -
असुर्या नाम ते लोका अन्धेन तमसावृताः ।
ताSस्ते प्रेत्या भिगछन्ति ये के चात्महनो जनाः ।।
असुर योनियाँ घोर अंधकार से आच्छादित हैं । वे लोग जो परमात्मा पर विश्वास नहीं रखते , वे मरने के अनन्तर उन योनियों को प्राप्त होते हैं ।
असुर लोक का मतलब है वह योनि , जिसमें प्राणी इन्द्रियों के अधीन हो जाता है । उसमें मन और बुद्धि इतनी घटिया होती है कि वे इन्द्रियों पर काबू नहीं रख सकते । इन्द्रियां विषयों के पीछे भागती हैं। मन और बुद्धि दुर्बल होने से उनको रोक नहीं सकते । ये भोग योनियाँ कहाती हैं । जैसे - कीट , पतंग , कछुआ , बिच्छू आदि । पेड़ - पौधे भी असुर श्रेणी के प्राणी हैं ।
मनुष्य योनि में भी ऐसे समय आते हैं जब उनकी बुद्धि और संस्कारों को परास्त कर, इन्द्रियाँ उसको विनाश की ओर ले जाती हैं ।तब काम , क्रोध , लोभ , मोह इत्यादि मन के विकार मनुष्य की बुद्धि और मन से बलवान हो , उसको इन विकारों के अधीन कर देते हैं ।
अब प्रश्न उत्पन्न होता है कि असुर योनियाँ कौन - कौन सी हैं ? एक तो वे योनियाँ जिनमें घोर अंधकार है । अंधकार का अर्थ ज्ञान और ज्ञान से लाभ उठाने की असमर्थता । जिन योनियों में प्राणी का मन और इन्द्रियाँ मार्गदर्शन न कर सकें , जिनमें जीव स्वभाववश कार्य करता हो , खाना , पीना , सर्दी - गर्मी से बचना और संतानोत्पति करना । ये कर्म भी स्वभाववश ही होते हों । सोच - विचार कर पाप - पुण्य , हानि - लाभ को देखकर नहीं लिए जाते हों । उन योनियों को असुर योनियाँ कहते हैं । उदाहरण के रूप में कीट - पतंग इत्यादि आसुरी योनियाँ हैं । मानवों में भी कई लोग ऐसे होते हैं जो स्वभाववश भाग्य के प्रवाह में बहते चले जाते हैं । न तो उनमें विचार कर अपना मार्ग ढूँढने की शक्ति होती है , न ही इच्छा । ऐसे लोग असुर कहाते हैं । ये इन्द्रियों के विषय में रत्त रहते हैं और उन विषयों के पीछे भागते रहते हैं ।
इन योनियों में वे लोग जन्म लेते हैं जो परमात्मा के अस्तित्व में विश्वास नहीं रखते । परमात्मा सबको देखता है और सबके साथ न्याय करता है । परमात्मा के अस्तित्व को न मानने का अर्थ है किसी न्यायकर्ता के अस्तित्व को न मानना । ऐसे लोग , जब - जब भी पापाचार के लिए अवसर देखते हैं निःशंक होकर करते हैं ।उनका इन अधम योनियों में जाने का यही कारण है ।
इसलिए आत्मा की कथन को सुनने और तदनुसार व्यवहार करने को कहा गया है । आत्मा का हनन अर्थात आत्मा की कथन को नकारने का प्रयास नहीं करना चाहिए । अन्यथा असुरत्व व्यवहार करने और तदनुसार फल भोगने के तैयार रहना चाहिए ।
अशोक "प्रवृद्ध"
जो लोग अपनी आत्मा की हत्या करते हैं , वे असुर लोक जाते हैं , जो अंधकार से ढंका हुआ है । अर्थात् आत्मा की हत्या अर्थात हनन करने वाले असुर लोक गामी होते हैं ।
ईशावास्योपनिषद में कहा है -
असुर्या नाम ते लोका अन्धेन तमसावृताः ।
ताSस्ते प्रेत्या भिगछन्ति ये के चात्महनो जनाः ।।
असुर योनियाँ घोर अंधकार से आच्छादित हैं । वे लोग जो परमात्मा पर विश्वास नहीं रखते , वे मरने के अनन्तर उन योनियों को प्राप्त होते हैं ।
असुर लोक का मतलब है वह योनि , जिसमें प्राणी इन्द्रियों के अधीन हो जाता है । उसमें मन और बुद्धि इतनी घटिया होती है कि वे इन्द्रियों पर काबू नहीं रख सकते । इन्द्रियां विषयों के पीछे भागती हैं। मन और बुद्धि दुर्बल होने से उनको रोक नहीं सकते । ये भोग योनियाँ कहाती हैं । जैसे - कीट , पतंग , कछुआ , बिच्छू आदि । पेड़ - पौधे भी असुर श्रेणी के प्राणी हैं ।
मनुष्य योनि में भी ऐसे समय आते हैं जब उनकी बुद्धि और संस्कारों को परास्त कर, इन्द्रियाँ उसको विनाश की ओर ले जाती हैं ।तब काम , क्रोध , लोभ , मोह इत्यादि मन के विकार मनुष्य की बुद्धि और मन से बलवान हो , उसको इन विकारों के अधीन कर देते हैं ।
अब प्रश्न उत्पन्न होता है कि असुर योनियाँ कौन - कौन सी हैं ? एक तो वे योनियाँ जिनमें घोर अंधकार है । अंधकार का अर्थ ज्ञान और ज्ञान से लाभ उठाने की असमर्थता । जिन योनियों में प्राणी का मन और इन्द्रियाँ मार्गदर्शन न कर सकें , जिनमें जीव स्वभाववश कार्य करता हो , खाना , पीना , सर्दी - गर्मी से बचना और संतानोत्पति करना । ये कर्म भी स्वभाववश ही होते हों । सोच - विचार कर पाप - पुण्य , हानि - लाभ को देखकर नहीं लिए जाते हों । उन योनियों को असुर योनियाँ कहते हैं । उदाहरण के रूप में कीट - पतंग इत्यादि आसुरी योनियाँ हैं । मानवों में भी कई लोग ऐसे होते हैं जो स्वभाववश भाग्य के प्रवाह में बहते चले जाते हैं । न तो उनमें विचार कर अपना मार्ग ढूँढने की शक्ति होती है , न ही इच्छा । ऐसे लोग असुर कहाते हैं । ये इन्द्रियों के विषय में रत्त रहते हैं और उन विषयों के पीछे भागते रहते हैं ।
इन योनियों में वे लोग जन्म लेते हैं जो परमात्मा के अस्तित्व में विश्वास नहीं रखते । परमात्मा सबको देखता है और सबके साथ न्याय करता है । परमात्मा के अस्तित्व को न मानने का अर्थ है किसी न्यायकर्ता के अस्तित्व को न मानना । ऐसे लोग , जब - जब भी पापाचार के लिए अवसर देखते हैं निःशंक होकर करते हैं ।उनका इन अधम योनियों में जाने का यही कारण है ।
इसलिए आत्मा की कथन को सुनने और तदनुसार व्यवहार करने को कहा गया है । आत्मा का हनन अर्थात आत्मा की कथन को नकारने का प्रयास नहीं करना चाहिए । अन्यथा असुरत्व व्यवहार करने और तदनुसार फल भोगने के तैयार रहना चाहिए ।
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