खान्ग्रेस जैसी अराष्ट्रीय संस्था से निजात पाना ही देश के लिए प्रवृद्ध्कारी , कल्याणकारी और पजनोपयोगी होगा ।
अशोक "प्रवृद्ध"
जब तक हमारे देश में हम अपना नेता , भारतीय शिक्षा पद्धति से शिक्षित नहीं बनाते , तब तक देश - कल्याण सम्भव नहीं ।
अभारतीय पद्धति से पठित विद्वान तो मुसलमानों से देश को सात सौ वर्ष में भी स्वतंत्र नहीं करा सके थे। उस समय तक भारतीय शिक्षा - पद्धति समाप्त हो चुकी थी । हमारे विश्वविद्यालयों पर बौद्धों और विदेशियों का प्रभुत्व जम चुका था । उस समय भारतवर्ष में तीन बड़े विश्वविद्यालय थे । एक तक्षशिला , दूसरा नालन्दा विश्वविद्यालय और तीसरा मदुरा शिक्षा केंद्र । एक उज्जयिनी में भी था , परन्तु वह मुसलमानों के आने के बहुत पूर्व ही बंद हो चुका था । मदुरा का शिक्षा केंद्र नवीन वेदान्तियों के हाथ में जा चूका था और नवीन वेदान्ती प्रछन्न बौद्ध थे । तक्षशिला और नालन्दा तो पूर्ण रूप में बौद्धों के हाथ में हो गए थे । नालन्दा में ह्वेनसांग जैसे विदेशी अध्यापक बन गए थे ।
अशोक "प्रवृद्ध"
जब तक हमारे देश में हम अपना नेता , भारतीय शिक्षा पद्धति से शिक्षित नहीं बनाते , तब तक देश - कल्याण सम्भव नहीं ।
अभारतीय पद्धति से पठित विद्वान तो मुसलमानों से देश को सात सौ वर्ष में भी स्वतंत्र नहीं करा सके थे। उस समय तक भारतीय शिक्षा - पद्धति समाप्त हो चुकी थी । हमारे विश्वविद्यालयों पर बौद्धों और विदेशियों का प्रभुत्व जम चुका था । उस समय भारतवर्ष में तीन बड़े विश्वविद्यालय थे । एक तक्षशिला , दूसरा नालन्दा विश्वविद्यालय और तीसरा मदुरा शिक्षा केंद्र । एक उज्जयिनी में भी था , परन्तु वह मुसलमानों के आने के बहुत पूर्व ही बंद हो चुका था । मदुरा का शिक्षा केंद्र नवीन वेदान्तियों के हाथ में जा चूका था और नवीन वेदान्ती प्रछन्न बौद्ध थे । तक्षशिला और नालन्दा तो पूर्ण रूप में बौद्धों के हाथ में हो गए थे । नालन्दा में ह्वेनसांग जैसे विदेशी अध्यापक बन गए थे ।
इन विश्वविद्यालयों की शिक्षा अभारतीय हो गई थी । परिणामस्वरूप यह हुआ कि जब मध्य एशिया में तोपों का निर्माण हो रहा था तो भारतवर्ष में धनुष - वाणों को आग में फूंक - फूंक चने भूने जाने लगे थे ।
दोनों विश्वविद्यालय मुसलमानों ने तोड़ - फोड़ डाले । वहाँ के ज्ञान - भण्डार को फूंक - फूंक कर मुसलमान सिपाहियों ने रोटियाँ सेंक लीं और मदुरा में तो पिछली शताब्दियों तक संस्कृत में वेदान्त का अध्ययन होता रहा था । वैसे वेदान्त पूर्णतः भारतीय प्रतीत नहीं होता । जिसमें कर्म करना अविद्या का सूचक समझा जाये , वह उस इंद्र अथवा विष्णु की शिक्षा से मेल नहीं खा सकता , जो सदैव अपनी ब्रह्म - शक्ति अथवा सुदर्शन - चक्र को हाथ में लिए रहते थे ।
इसके बावजूद पुरातन अर्थात प्राचीन पराधीन हिन्दू सात सौ वर्ष तक मुसलमानों के राज्य का विरोध करते रहे , जबकि ईरान , मिश्र , तुर्की , इथोपिया , टुनिशिया , अल्जीरिया तथा मोरक्को इत्यादि दस वर्ष भी इस्लामी राज्य का विरोध न कर सके। ज़रा सोचिये ! यह छोटी बात है क्या? विरोध कर सकना एक बात है , और सेना का प्रयोग कर शासन करना दूसरी बात है । शिक्षा अभारतीयों के हाथ में जाने के बाद भी अपने पूर्व संस्कार के कारण हिन्दुओं ने इसका सफल विरोध किया था और सेना के बल अर्थात तलवार के भय से चलाया जाने वाला इस्लामी शासन असफल हो गया ।
भारतीय मित्रों !
वर्तमान भारतीय शिक्षा भी पूर्णतः अभारतीय है । बौद्ध काल के पूर्व से ही अभारतीय हो चुकी यहाँ की शिक्षा व्यवस्था को इस्लामी और आङ्ग्ल शासन काल में पूर्णतः नष्ट - भ्रष्ट कर दिया गया । एक विदेशी के सहयोग से अंग्रेज , अंग्रेजी और अंग्रेजियत के कायल काले अंग्रेजों द्वारा स्थापित खान्ग्रेस पार्टी ने भी छद्म स्वाधीन भारतवर्ष में भारतीय शिक्षा और भारतीय इतिहास को अभारतीयकरण करने में कोई कसर नहीं छोड़ी ।अपने स्थापना - काल से ही पूर्णतः अराष्ट्रीय संस्था रही खान्ग्रेस पार्टी ने छद्म स्वाधीन भारतवर्ष में भारतीय शिक्षा - प्रणाली , इतिहास यहाँ तक कि धार्मिक - आध्यात्मिक एवं पुरातात्विक ग्रंथों - स्थलों को भी अपने ही रंग में रंगने अर्थात अराष्ट्रीय अर्थात अभारतीय करने की ही कोशिश की है । इसलिए इस अराष्ट्रीय संस्था के द्वारा की गई दुष्कृत्यों से निजात पाने के लिए भारतीय परंपरा , इतिहास, सभ्यता - संस्कृति , भाषा और शिक्षा -पद्धति का सम्मान करने वाले भारतीय को ही भारतवर्ष का नेतृत्व प्रदान करना ही देश के लिए प्रवृद्धकारी , कल्याणकारी और जनोपयोगी होगा ।
No comments:
Post a Comment