Monday, December 2, 2013

भाग्य और पुरूषार्थ - अशोक "प्रवृद्ध"

भाग्य और पुरूषार्थ
अशोक "प्रवृद्ध"

पूर्व जन्मों के कर्मों का फल ही हमारा भाग्य और इस जन्म के कर्मों के फल को पुरूषार्थ का परिणाम माना जाता है ।

कार्य  से कारण माना जाता है । पुरूषार्थ करने पर भी जब कोई फल नहीं मिलता तो वह अज्ञात कर्मों के कारण ही माना जाता है । ये अज्ञात कर्म पूर्व जन्म के ही तो कर्म हैं ।

प्रत्येक कर्म प्रतिक्रिया (रिएक्शन) उत्पन्न करता है । यह प्रतिक्रिया वातावरण और काल के अधीन रहती है । जब ये अनुकूल होते हैं तो पुरूषार्थ का फल प्रचुर मात्रा में मिलता है और जब वातावरण प्रतिकूल होते हैं पुरूषार्थ का फल हीन अथवा नकारात्मक हो जाता है । अर्थात वातावरण , परिस्थिति और काल भाग्य से अनुकूल और प्रतिकूल होते हैं ।

कुछ लोगों के अनुसार वातावरण आदि तो निर्माण किये जाते हैं , जो निर्माण करने की योग्यता और बुद्धि रखेंगे उनको पुरूषार्थ फलयुक्त होगा । फिर भी प्रश्न उत्पन्न होता है कि योग्यता और बुद्धि जो वातावरणादि को निर्माण करती है , उसी में भेद क्यों होता है ? इसका उत्तर है कि जन्म के समय माता - पिता की शारीरिक , मानसिक तथा आर्थिक  परिस्थिति पर बुद्धि और योग्यता का निर्माण होता है और माता - पिता की इन अवस्थाओं में अंतर होता है ।

वास्तव में अनेकानेक भिन्न - भिन्न प्रकार के परिणाम आत्मा के भिन्न - भिन्न प्रकार के कर्मों के फल ही हैं ।ज्ञात कर्मों को पुरूषार्थ कहते हैं , और अज्ञात कर्मों को , जिनको हम इस जन्म के कर्मों के साथ जोड़ नहीं सकते , भाग्य कहते हैं । ये पूर्व जन्म के किये कर्म ही तो होंगे ।

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