Thursday, December 26, 2013

भारतीय समाज-शास्त्र में समाज का चार वर्गों में विभक्ति ईश्वरीय विभाजन है । - अशोक "प्रवृद्ध"

भारतीय समाज-शास्त्र में समाज का चार वर्गों में विभक्ति ईश्वरीय विभाजन है ।
अशोक "प्रवृद्ध"

भारतीय समाज-शास्त्र में समाज को चार वर्गों में विभक्ति किया गया है। यह विभाजन ईश्वरीय है।

चातुर्वर्ण्या मया सृष्टं गुण कर्म विभागशः।

परमात्मा ने जब मानव की सृष्टि की तो उसको गुण, कर्म तथा स्वभाव से चार प्रकार का बनाया। ये वर्ण भारतीय शब्द कोष में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र नाम से जाने जाते हैं।
शासन करना और देश की रक्षा करना क्षत्रियों का कार्य है। ब्राह्मण स्वभाववश क्षत्रिय का कार्य करने के अयोग्य होते हैं। ब्राह्मण का कार्य विद्या का विस्तार करना है। मानव समाज में ये दोनों वर्ग श्रेष्ठ माने गये हैं। वर्तमान युग में ब्राह्मण और क्षत्रिय, मानव समाज का प्रतिनिधि राज्य है और राज्य स्वामी है क्षत्रिय वर्ग का भी और
ब्राह्मण वर्ग का भी। शूद्र उस वर्ग का नाम है जो अपने
स्वामी कि आज्ञा पर कार्य करे और उस कार्य के भले-बुरे परिणाम का उत्तरदायी न हो। आज उत्तरदायी राज्य है। ब्राह्मण (अध्यापक वर्ग) और क्षत्रिय (सैनिक) वर्ग राज्य की आज्ञा का पालन करते हुए भले-बुरे परिणाम के उत्तरदायी नहीं हैं। इसी कारण वे शूद्र वृत्ति के लोग बन गये हैं।

यह बात भारत-चीन के सीमावर्ती झगड़े से और भी स्पष्ट हो गई है। मंत्रिमण्डल जिसमें से एक भी व्यक्ति, कभी किसी सेना कार्य में नहीं रहा, 1962 की पराजय तथा 1952-1962 तक के पूर्ण पीछे हटने के कार्य का उत्तरदायी है और राज्य-संचालन में क्षत्रियों (सेना) का तथा ब्राह्मणों (अध्यापक वर्ग) का अधिकार नहीं है।भारत का विधान ऐसा है कि इसमें ‘अँधेरे नगरी गबरगण्ड राजा, टके सेरभाजी टके सेर खाजा’ वाली बात है। एक विश्व-विद्यालय के वाइस- चांसलर अथवा उच्चकोटि के विद्वान को भी मतदान का भी अधिकार है। उसी प्रकार उसके घर में चौका-बासन करने वाली कहारन को भी मतदान
का अधिकार है। देश में अनपढ़ और मूर्खों और अनुभव
विहीनों की संख्या बहुत अधिक है। वयस्क मतदान से राज्य
इन्हीं लोगों का है। दूसरे शब्दों में ब्राह्मण वर्ग (पढ़े-लिखे विद्वान) और क्षत्रिय वर्ग के लोग इनके दास हैं।

यह कहा जाता है कि यही व्यवस्था अमरीका, इंग्लैंड इत्यादि देशों में भी है। यदि वहाँ कार्य चल रहा है तो यहाँ क्यों नहीं चल सकता ?  परन्तु हम भूल जाते हैं कि प्रथम और द्वितीय विश्व व्यापी युद्ध और उन युद्धों के परिणामस्वरूप संधियाँ एवं युद्धोपरान्त की निस्तेजता इसी कारण हुई थी कि इन देशों के राज्य जनमत से निर्मित संसदों के हाथ में था। प्रथम युद्ध में सेनाओं ने जर्मनी को परास्त किया, परन्तु संधि के समय
अमरीका तो भाग कर तटस्थ हो बैठ गया। वुडरो विलसन
चाहता था कि अमरीका ‘लीग ऑफ नेशंज़’ में बैठकर विश्व की राजनीति में सक्रिय प्रकार भाग ले, परन्तु अमरीका की जनता ने उसको प्रधान नहीं चुना। इसी प्रकार वे वकील जो योरोपियन राज्यों के प्रतिनिधि बन वारसेल्ज की संधि करने बैठे तो उनमें न ब्राह्मणों की-सी उदारता थी, न क्षत्रियों का-सा तेज। वे बनियों (दुकानदारों) और शूद्रों (मजदूर वर्ग) के प्रतिनिधि वारसेल्ज जैसी अन्यायपूर्ण, अयुक्तिसंगत और अदूरदर्शिता-
पूर्ण संधि पर हास्ताक्षर कर बैठे। दूसरे युद्ध का एक कारण वारसेल्ज की संधि थी और इंग्लैंड की पार्लियामेंट तथा फ्रांस की कौंसिल की मानसिक और व्यवहारिक दुर्बलता दूसरा कारण थी। द्वितीय विश्व युद्ध में अमरीकन मिथ्या नीति के कारण ही स्टालिन मध्य और पूर्वी योरोप तथा चीन पर अपने पंख फैला सका था।

इस समय भी प्रायः संसदीय प्रजातंत्रात्मक देशों में शूद्र और बनिये राज्य करते हैं। हमारा कहने का अभिप्राय है, वे लोग राज्य करते हैं जो शूद्र और बनियों को प्रसन्न करने की बातें कर सकते हैं। और क्षत्रियतो इन नेताओं के सेवक मात्र (वेतनधारी दास) हो गये अनुभव करते हैं । यही कारण है कि दिन-प्रतिदिन विश्व की दशा बिगड़ती जाती है। संसार में दुष्ट लोगों का अभाव नहीं हो सकता। आदि सृष्टि से लेकर कोई
ऐसा काल नहीं आया, जब आसुरी प्रवृत्ति के लोग निर्मूल हो गये हों।

इसका स्वाभाविक परिणाम यह निकलता है कि संसार में युद्ध निःशेष नहीं किये जा सकते। युद्ध इन आसुरी प्रवृत्ति के
मनुष्यों की करणी का फल ही होते हैं। अतः दैवी सम्पत्ति के मानवों को, उन असुरों को नियंत्रण में रखने के हेतु सदा युद्ध के लिए तैयार रहना चाहिए। युद्ध में विजय क्षत्रिय स्वभाव के लोगों में शौर्य, शारीरिक तथा मानसिक बल और ईश्वरीय-परायणता के कारण प्राप्त होती है।

इसी प्रकार जाति की शिक्षा तथा नीति का संचालन देश के
ब्राह्मणों (विद्वानों) के हाथ में होना चाहिए। उनके कार्य में बनियों औरशूद्रों का हस्ताक्षेप, यहाँ कि क्षत्रियों का नियन्त्रण भी, विनाशकारी सिद्ध होता है। देश का संविधान ऐसा होना चाहिए कि गुण कर्म स्वभाव से ये मानव वर्ग अपने–अपने क्षेत्र में स्वतन्त्र कार्य करते हुए भी, देश के न्याय-
शास्त्रियों द्वारा समन्वय से कार्य करें। न्याय परायण लोग सदा यह देखें कि कोई वर्ग किसी दूसरे वर्ग-क्षेत्र में अनुचित हस्तक्षेप न कर सके।

युद्ध लड़े जाते हैं। शान्ति स्थापना के लिए, परन्तु शान्ति काल में वैश्य तथा शूद्र प्रवृत्ति के लोग ब्राह्मण और क्षत्रिय वर्ग पर प्रभुत्व जमा कर पुनः युद्घ के लिए क्षेत्र की तैयारी में लग जाते हैं। ये दोनों वर्ग युद्ध से भयभीत आसुरी प्रवृत्ति के मनुष्यों को नियंत्रण में रखने में अशक्त होते हैं। ऐसे शान्ति काल में असुर-फलते-फूलते हैं और श्रेष्ठ लोगों को कष्ट देना अपना अधिकार मानने लगते हैं।

सर्वत्र और सदा शान्ति, मानव समाज में श्रेष्ठ प्रवृत्ति के लोगों के निरंतर अधिकार से प्राप्त हो सकती है। श्रेष्ठता, ब्राह्मणत्व, क्षत्रियत्व, वैश्य-वृत्ति और शूद्रों में संतुलन के लिए शान्ति-प्रिय लोगों को यत्नशील रहना चाहिए। इस संतुलन को रखने में न्याय शास्त्री ब्राह्मण ही योग्य हैं, परन्तु ये वयस्क मतदान से न तो निर्माण होते हैं न ही निर्वाचित होते हैं।

1 comment:

  1. Hello sir mai blogger par nya hu to kya ap meri thodi help kr skte
    Maine work m ek article hindi m type krke apne blog pr paste krke published kiya lekin jb koi b ya m b use apne phone me open krta hu to wo english letter m convert ho jata h
    Mai kaiss apni new post ke screen m formatting box m hindi ad kr skta hu sir
    And jo side wala hindi ka option h usme english me type krne pr hindi hota h
    M word me devlys and kruti dev font me type krta hu to meri aadat whi h.
    To m us side wale hindi ke option se type nhi kr skta plz help me

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