Saturday, March 16, 2024

अधिसूचना जारी होने के साथ देश में आदर्श चुनाव संहिता लागू -अशोक “प्रवृद्ध”

 

अधिसूचना जारी होने के साथ देश में आदर्श चुनाव संहिता लागू

-अशोक “प्रवृद्ध”

 

जैसा कि पूर्व से ही अंदेशा था कि पूर्व चुनाव आयुक्त अनूप चंद्र पांडे के सेवनिवृत होने और अरुण गोयल के अचानक इस्तीफ़े के बाद रिक्त पड़े चुनाव आयुक्तों के पद पर दो नए चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के पश्चात 16 मार्च दिन शनिवार को देश में आसन्न लोकसभा चुनाव 2024 के लिए अधिसूचना जारी कर दी जाएगी, ठीक वैसा ही हुआ और भारतीय प्रशासनिक सेवा के सेवनिवृत अधिकारी ज्ञानेश कुमार और सुखबीर सिंह संधू की चुनाव आयुक्त के पद पर नियुक्ति के बाद 16 मार्च को तीन बजे भारतीय चुनाव आयोग के द्वारा देश में लोकसभा चुनाव 2024 के लिए अधिसूचना जारी कर दी गई। इसके साथ ही चुनाव आयुक्त और लोकसभा चुनाव के समय के संबंध में छाई धुंध भी छँट गई है। 14 मार्च 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली उच्च-स्तरीय समिति ने चुनाव आयुक्तों के खाली पड़े पदों के लिए भारतीय प्रशासनिक सेवा के सेवनिवृत अधिकारी ज्ञानेश कुमार और सुखबीर सिंह संधू को चुना। और इससे संबिधित गजे़ट नोटिफ़िकेशन जारी किया गया जिसमें कहा गया कि राष्ट्रपति चुनाव आयुक्त के रूप में ज्ञानेश कुमार और सुखबीर सिंह संधू की नियुक्ति करते हैं। जारी अधिसूचना के अनुसार भारतीय चुनाव आयोग में उनके कार्यालय में कार्यभार ग्रहण करने की तिथि से उनकी नियुक्ति होगी। इससे पहले चुनाव आयुक्त की नियुक्ति को लेकर बनी तीन सदस्यों वाली समिति में विपक्ष के एकमात्र सदस्य कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने मीडिया को इस बारे में जानकारी दी थी। अधिसूचना के साथ ही भारतीय चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनाव 2024 के लिए तारीख़ों की घोषणा भी 16 मार्च शनिवार को कर दी है। यह लोकसभा चुनाव सात चरणों में होगा। ये चुनाव प्रक्रिया 20 मार्च से शुरू हो रही है और मतगणना चार जून को होगी। पहले चरण के लिए 20 मार्च को अधिसूचना जारी होगी। 19 अप्रैल को वोट डाले जाएंगे। दूसरे चरण के तहत 28 मार्च को अधिसूचना जारी होगी। 26 अप्रैल को मतदान होगा। तीसरे चरण के तहत सात मई, चौथे चरण के तहत 13 मई और पांचवे चरण में 20 मई को वोट डाले जाएंगे। छठे चरण में 25 मई को वोटिंग होगी। सातवें चरण में एक जून को मतदान होगा। आसन्न लोकसभा चुनाव 2024 के संबंध में जारी अधिसूचना में लोकसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा के साथ ही चार राज्यों के विधानसभा चुनाव अर्थात असेंबली इलेक्शन शेड्यूल की भी घोषणा की गई है। इसमें अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, उड़ीसा और आंध्र प्रदेश के विधानसभा चुनावों के कार्यक्रम की भी घोषणा शामिल हैं। अरुणाचल प्रदेश में 19 अप्रैल को चुनाव होगा। इसके लिए  20 मार्च को अधिसूचना जारी होगा। सिक्किम 19 अप्रैल को वोट डाले जाएंगे। आंध्र प्रदेश में चुनाव 13 मई को होगा। उड़ीसा में पहले चरण का चुनाव 13 मई और दूसरे चरण में 20 मई को वोट डाले जाएंगे। तीन चरणों में 26 विधानसभा सीटों पर उप चुनाव होंगे। ये चुनाव भी आम चुनावों के साथ होंगे।


उल्लेखनीय है कि मौजूदा लोकसभा का कार्यकाल 16 जून को खत्म होने वाला है। इस बीच नए निर्वाचन आयुक्त ज्ञानेश कुमार और सुखबीर सिंह संधू ने भी शुक्रवार को कमान संभालने के बाद अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन शुरू कर दिया है। चुनाव आयोग में मुख्य निर्वाचन आयुक्त के साथ-साथ दो निर्वाचन आयुक्त भी होते हैं। भारतीय चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनाव 2024 की तारीख़ों की घोषणा करते हुए लोकसभा चुनाव 2024 के लिए चार चुनौतियां बताईं हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने चुनाव की तैयारियों का ज़िक्र करते हुए चुनाव में चार चुनौतियां बताईं। उन्होंने इन चार चुनौतियों को 4 मसल्स की संज्ञा देते हुए कहा कि ये 4 मसल्स हैं- मसल्स अर्थात बाहुबल, मनी अर्थात धन, मिसइन्फ़र्मेशन अर्थात ग़लत सूचनाएं और चौथा एमसीसी अर्थात आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन। उन्होंने कहा कि चुनाव में इन चार चुनौतियों अर्थात 4 मसल्स से निपटना होगा। इसके लिए पर्याप्त संख्या में सीएपीएफ़ तैनात होंगे। इस बार मसल पावर को कम करने के लिए आयोग प्रतिबद्ध है। खून खराबा और हिंसा को नियंत्रित किया जाएगा। चाहे वह चुनाव से पहले, उसके दौरान या बाद में हो। हर ज़िले में नियंत्रण कक्ष अर्थात कंट्रोल रूम बनाए जाएंगे। एक वरीय आदिकारी अर्थात एक सीनियर अफसर मौजूद रहेगा। जहां से भी शिकायत मिलेगी, पूरे देश में उसका निराकरण होगा। जिला जजों को हिदायत दी गई है, जितने तीन साल से पुराने लोग हैं, उन्हें बदल दीजिए। ठेका कर्मचारियों को चुनाव प्रक्रिया में नहीं लगाए जाएगा। डबल वोटिंग की शिकायत आए तो उनके खिलाफ एक्शन लिया जाए। मनी अर्थात धन के संबंध में देखा जाए तो पिछले दो साल के चुनावों में 3400 करोड़ रुपये रोके गए। पैसे का गलत इस्तेमाल नहीं होने दिया जाएगा। प्रत्येक राज्य में  एनफोर्समेंट एजेंसियों से चौकन्ना रहने को कहा गया है। मुफ्त वितरण, पैसे बांटना आदि पर लगाम लगाई जाएगी। ड्रग्स को रोकने की कोशिश होगी। हवाई पट्टियों और हैलीपैड की निगरानी होगी। उतरने वाले सामानों की विस्तृत जांच होगी। मिसइन्फ़र्मेशन अर्थात लोकतंत्र में सोशल मीडिया में किसी की आलोचना के लिए स्वतंत्र हैं।  लेकिन यह तथ्यों पर आधारित होनी चाहिए। गलत सूचनाएं देकर अफवाह फैलाने को रोका जाएगा। सोशल मीडिया पोस्ट को हटाने के लिए प्रशासन आदेश दे सकता है। हर राज्य में नोडल अधिकारी बनाए जाएंगे। अगर कोई आलोचना की रेखा लांघता है या गलत न्यूज़ फैलाता है तो उस पर कार्रवाई होगी। एमसीसी अर्थात आदर्श आचार संहिता के संबंध में मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने कहा कि चुनाव के दौरान राजनीति के गिरते स्तर पर सुझाव जारी किए गए हैं। पिछले पांच साल में एमसीसी को इकट्ठा कर एक अंतिम सुझाव जारी किए हैं। पार्टियों को नोटिस दिया कि हर स्टार चुनाव प्रचारक को एमसीसी की गाइडलाइंस देनी होंगी। हम उनका इतिहास देखेंगे। नफरती भाषण, धार्मिक नफरत का भाषण, निजी टिप्पणियां, गलत जानकारियों वाला प्रचार अखबार में जो छपता है कि इसकी लहर या उसकी लहर.. इस पर विज्ञापन लिखना होगा। बच्चों को इस्तेमाल नहीं करना होगा। विकलांग लोगों के प्रति अपशब्द न बोलें।

 उल्लेखनीय है कि पिछली बार 2019 में 11 अप्रैल से 19 मई के बीच पूरे देश में 7 चरणों में मतदान हुआ था, जबकि 23 मई 2019 को चुनाव परिणाम घोषित किए गए थे। इस चुनाव में 303 सीटों के साथ भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर देश में उभरी थी और पार्टी ने अकेले के दम पर बहुमत पार कर लिया था। फिर भी चुनाव पश्चात  भारतीय जनता पार्टी ने अपने सहयोगी दलों के साथ ही रक्षत्रे जनतान्त्रिक गठबंधन की ही सरकार बनाई थी। चुनाव की तारीखों का ऐलान होते ही चुनावी आचार संहिता लागू हो गई है। अर्थात 16 मार्च से आचार संहिता लागू हो जाएगी, जो कि नतीजे आने तक लागू रहेगी। चुनाव के दौरान आचार सहिंता का पालन करना हर पार्टी और नेता के लिए अनिवार्य होता है। कोई पार्टी चुनाव प्रचार नहीं कर सकती है। सरकारी अधिकारियों का स्थानांतरण, पदस्थापन अर्थात ट्रांसफर और पोस्टिंग भी नहीं की जा सकती है। स्थिति के अनिवार्य होने की स्थिति में सरकार को चुनाव आयोग की स्वीकृति लेनी पड़ती है। चुनाव आयोग की अनुमति के बिना कोई भी राजनीतिक दल जुलूस अथवा रैली नहीं निकल सकती। बहरहाल आसन्न लोकसभा चुनाव 2024 की अधिसूचना के साथ ही देश में चुनाव की गहमागहमी दिखाई देने लगी है। भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस सहित सभी राजनीति पार्टियों की चुनाव तैयारियां जोरों पर है। सभी पार्टियां अपने उम्मीदवारों की धड़ाधड़ घोषणा करने में लगी हैं।

Sunday, April 19, 2020

प्रकृति से प्यार व लगाव नहीं रखने से वह निभाएगी ही दुश्मनी -अशोक “प्रवृद्ध”


प्रकृति से प्यार व लगाव नहीं रखने से वह निभाएगी ही दुश्मनी

                     -अशोक “प्रवृद्ध”
नया इंडिया दिनांक- 13 अप्रैल 2020 




जंगलो, पहाड़ों, नदी- नालों, सडकें, आकाश, समुद्र और समस्त संसार को अपना समझने वाला दुनिया का सर्वाधिक ताकतवर जीव मनुष्य आज एक छोटे से दिखाई नहीं पड़ने वाले सूक्ष्म जीव से डरकर घरों में कैद होने को विवश है । इतना सूक्ष्म कि सूक्ष्मदर्शी से भी दिखाई नहीं पड़ने वाले एक छोटे से महीन से विषाणु अर्थात वायरस से डरकर अमेरिका जैसी सुपर पॉवर दुबक गई है, दुनिया में सबसे बड़ी सेना रखने वाला चीन को घुटनों पर ला दिया । मनुष्य के समान दूसरा जीव बनाने की तैयारी में लगे इटली के डॉक्टर अब अपने देश के इंसानों को भी नहीं बचा पा रहे है । भगवान तक को नहीं मानने वाले स्पेन के नास्तिक खौफ में हाथ जोड़े खड़े है कि अब ईश्वर ही किसी तरह स्पेन के लोगों को बचा सकता है। दुनिया को मिटाने की बात करने वाला उत्तर कोरिया का तानाशाह आज अपने ही लोगों नहीं बचा पा रहा है और खुद को इस्लाम का रहनुमा बताने वाला ईरान अपने देश के मुसलमानों के शवों को छिपा रहा है । अपनी ताकत के बल के अहंकार में जीने वाला मनुष्य यह सोचने लग जाता है कि वही सबसे बड़ा है और वह बहुत कुछ कर सकता है । लेकिन आसन्न वैश्विक महामारी चीनी (कोरोना) विषाणु ने यह सिद्ध कर दिया है कि कोरोना तो अभी एक ट्रेलर मात्र है और इसे देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रकृति से खिलवाड़ करने के परिणाम स्वरूप होने वाली दुष्प्रभाव  के अंजाम की पूरी फिल्म की तस्वीर आखिर कैसी होगी? क्योंकि इसके छोटे से ट्रेलर में ही संसार के सारे रिश्ते- नातों और सम्बन्धों के पैर उखड़ते दिखाई दे रहे हैं । पुत्र अपनी माता से दूर भाग रहा है, पत्नी अपने पति से कह रही है, आप बाहर से आये हैं मुझसे और बच्चों से दूर ही रहिए । विदेश अथवा प्रदेश में रह रहे कोरोना पीड़ित बेटे को माँ कह रही है सीधा घर मत आना पुत्र, कुछ दिन कहीं बाहर समय व्यतीत कर लेना । प्रेमिका का हाथ पकड़कर सात जन्मों तक साथ निभाने के वादे करने वाला प्रेमी अचानक गायब हो गया ।  मित्र अपने मित्र को अपने घर नहीं बुला रहा है । यह कैसी खामोशी है? प्रत्येक घर में सन्नाटा पसरा है, लोग अलग-अलग कमरों में बैठे हैं । जिन जगहों पर कभी इन्सान घुमा करते  थे, वहां उन सड़कों पर आज कोरोना घूम रहा है । किसी पुलिस वाले की चालान काटने की हिम्मत नहीं हो रही है । रफाल, अपाचे, चिनूक, जैसे लड़ाकू विमान, मिसाइल, परमाणु बम लिए संसार की सभी सेनाएं बेबस नजर आ रही हैं । प्रायः सभी जगह लॉकडाउन है । गाँव बंद, कस्बे बंद, शहर बंद, घर- दूकान बंद,  बाग़- बगीचा बंद, क्रीडा स्थल बंद, बस बंद, ट्रेन हवाई जहाज सब कुछ बंद है । बिल्कुल मध्यकाल और फिर भारतवर्ष विभाजन के समय की भांति राजधानी दिल्ली और अन्य शहरों में आजीविकोपार्जन हेतु बाहर से आये लोग सैकड़ों किलोमीटर दूर वापिस अपने घरों के लिए पैदल जा रहे हैं । सिर पर लिबड़ी बर्तना ढोए अर्थात अपने जीवन जीने की सभी सामग्रियां लिए बाल बच्चों के साथ पैदल ही अपने घर गाँव के लिए निकल पड़े हैं । उधर इसी महामारी के कारण  पाश्चात्य विज्ञान लाचार है, विद्र्शों में बड़ी- बड़ी वाहनें खडी की खडी हैं, आलीशान महंगे भवन खाली पड़े हैं, धर्मस्थल बंद हैं, उनमें धार्मिक क्रिया- कलाप बंद हैं, दुनिया के दुःख हरने वाला पोप अपने ही देश में मास्क लगाकर रहम की भीख मांग रहा है, रोम का पादरी वेंटिकन सिटी में अकेले खड़ा ईसा मसीह से प्रार्थना कर रहा है । भारत में चंगाई सभा लगाकर मरीजों का इलाज करने वाले और पवित्र जल का छीटा देकर गंभीर रोगों को भगाने का ढोंग करने वाले इसाई पादरी सेनेटाईजर का इस्तेमाल कर रहे है । अर्थात सभी प्रकार के ढोंग की पोल खुल गई और  सबकी अकड़ की हवा निकल गई । और लोग पाश्चात्य जीवन शैली का त्याग कर सनातन वैदिक धर्म की ओर पुनर्वापसी करते हुए नमस्कार, वैदिक मन्त्र का उच्चारण, यज्ञ, योग, समाधि,  हवन आदि सनातन वैदिक जीवन पद्धति की ओर आकर्षित होने लगे हैं और इन सब वैदिक पद्धति को अपनी जीवन में शामिल करने को आतुर नजर आने लगे हैं । कारण यह है कि मानव द्वारा निर्मित सभी कृत्रिम सुख व आराम के तरीके इस महामारी के समक्ष परास्त हैं और यह सूक्ष्म सा विषाणु पूर्व में हुए दो विश्व युद्धों की तरह लाशें गिनवा रहा है, दूसरी ओर इन्सान द्वारा आविष्कृत सम्पूर्ण विज्ञान की ताकत खड़े- खड़े उस विनाश लीला को देखने के लिए अभिशप्त नजर आ रहा है । अधिकांश जन दृश्य -श्रव्य माध्यमों पर बताये जा रहे मृतकों के आंकड़े, संक्रमितों की संख्या, और शेष जीवित मनुष्यों को बचाने की होने वाली कवायदों को देखने में दिन व्यतीत कर रहे हैं, लेकिन यह आखिर कब तक चलेगा?  अगर अभी भी हमने प्रकृति से अपनी लड़ाई नहीं छोड़ी अर्थात सनातन प्रकृति के विरुद्ध जीवन जीने की अपनी आदत नहीं छोडी तो वह दिन दूर नहीं जब हमारी मृत्यु पर मृत्योपरान्त की जाने वाली सनातन कर्म करने के लिए भी लोग नहीं बचेंगे अर्थात इस ट्रेलर के बाद की पूरी चलचित्र की अभी कल्पना भी नहीं किया जा सकता ।

उल्लेखनीय है कि कोरोना वायरस एक निर्जीव पदार्थ है। उसे ज्ञान नहीं है कि किसी निर्दोष व्यक्ति को इसका शिकार बनाना ठीक नहीं है। वह वायरस प्रकृति में घटने वाले नियमों के अनुसार छूत का रोग बन कर वायरस के सम्पर्क में आने वाले व्यक्तियों को रोग का शिकार बनाता है। इस प्रकार संक्रमित हुए लोगों का जीवन खतरे में पड़ जाता हैं। विश्व के तीन चौथाई  देशों में यह रोग पहुंच चुका है। चीन तथा इटली में इसका प्रभाव सर्वाधिक है। इटली के लोगों ने आरम्भ में कुछ असावधानियां की जिससे वहां के अधिक लोग इस रोग से मृत्यु के ग्रास बने हैं। इन मृतकों में  60 वर्ष की आयु से अधिक उम्र के लोग अधिक थे। युवाओं में भी इस रोग का प्रभाव हो रहा है, परन्तु यह युवाओं में वृद्धों की अपेक्षा कम होता है।
इस रोग का ऐसा आतंक है कि सारा संसार इस रोग से पीड़ित होकर रह गया है और उन देशों के निवासियों का सामान्य जीवन अस्त व्यस्त हो गया है। भारत में भी इस रोग के कुछ रोगी हैं। यह रोग उन भारतीयों से भारत पहुंचा है जो मुख्यतः चीन व इटली आदि देशों से भारत आये हैं। अमेरिका एक विकसित राष्ट्र है। वहां सभी प्रकार की चिकित्सा आदि की सुविधायें उपलब्ध हैं, परन्तु इस रोग ने अमेरिका को भी त्रस्त किया है। देश -विदेश के लोग अपने कार्यालयों में न जा कर घर पर रहकर ही अपने दायित्वों का निर्वाह कर रहे हैं। यही स्थिति भारत में भी है। देश के लोग न तो स्वयं संक्रमित हों और न दूसरों को संक्रमित करें, यह सोचकर भारत सरकार ने ऐसे अनेक आपातकालीन उपाय किये हैं। सरकार को इस वायरस व संक्रमण रोग का पता चलते ही उसने सभी सावधानियां बरतनी आरम्भ कर दी थी। जिससे हमारे देश में मृतकों की संख्या अन्य कुछ देशों की अपेक्षा कम है, जबकि हमारे देश की जनसंख्या चीन के बाद विश्व में सर्वाधिक है। देश में गरीबी व भुखमरी भी है, लेकिन सरकार के उपायों से संक्रमण निर्बल व दुर्बल जनता तक नहीं पहुंच पाया। इसका प्रभाव प्रायः शहरों एवं महानगरों में अधिक हैं जहां हवाई अड्डे हैं और लोग जहां से विदेश अधिक आते जाते हैं। आश्चर्यजनक यह भी है कि विज्ञान ने प्रायः सभी प्रकार के रोगों की ओषधियां बनाई हैं, परन्तु इस वायरस का उपचार अभी तक किसी को पता नहीं है। भारतीय सरकारी प्रचार तन्त्र पर यह स्पष्ट बताया जा रहा है कि इस चीनी विषाणु का कोई उपचार उपलब्ध नहीं है। इसका उपचार करने वाली वैकसीन अभी बनी नहीं है। रोग के लक्षणों के अनुसार इन्फैक्शन दूर करने की ओषधियां दी जा रही हैं। कुछ लोगों को उनकी शारीरिक शक्ति, सामथ्र्य व इम्यूनिटी के अनुरूप लाभ हो रहा है।  

निष्कर्षतः वर्तमान संसार में प्रचलित चिकित्सीय पद्धतियों और इलाज के तरीकों से इस चीनी विषाणु से लड़ाई में मिली अल्प सफलता से यह सिद्धप्राय है कि हमें अभी ही सम्भल जाने की आवश्यकता है, क्योंकि एक दिन शंख, घंट, ताली अथवा थाली बजाकर इस चीनी विषाणु से लड़ रहे चिकित्सकों, देश की सेवा अथवा विधि व्यवस्था में लगे सैनिकों, पुलिसकर्मियों व अन्यान्य सरकारीसेवकों को धन्यवाद ज्ञापित तो किया जा सकता है, लेकिन इस वैश्विक महामारी को लम्बी अवधि तक चकमा नहीं दिया जा सकता है । यह परम सत्य है कि जब तक हम समस्त संसार को अपना मानते हुए इस चराचर जगत में निवास करने वाले सभी जीव- जन्तुओं को अपना समझकर उससे प्राकृतिक लगाव अनुभव नहीं करेंगे, तब तक प्रकृति भी हमें अपना समझ हमसे लगाव नहीं करेगी और हमसे दुश्मनागत निभाएगी ही, वह अपना बदला लेगी ही, और झटके में मानव के अहंकार, इन्सान के गुरुर को तोड़ेगी ही, इसमें कोई शक नहीं । क्योंकि प्रकृति भी भला अपने दुश्मन को अपना क्यों समझेगी?

Wednesday, April 15, 2020

वेद अर्थात ज्ञान से संयुक्त हैं सभी भारतीय सम्प्रदाय व पन्थ

वेद अर्थात ज्ञान से संयुक्त हैं सभी भारतीय सम्प्रदाय व पन्थ





वेद का शाब्दिक अर्थ ज्ञान है और सृष्टि के आरम्भिक काल में सभी मानव सनातन वैदिक धर्म पद्धति पर ही आलम्बित थे अर्थात परमेश्वरोक्त ग्रन्थ वेद में कहे अनुसार ही चलते थे। आदिकाल से ही शाश्वत्त रूप से चली आ रही इस सनातन वैदिक धर्म का ही सत्प्रभाव है कि भारत के वैदिक धर्म में से धर्म के जितने सम्प्रदाय, पंथ अथवा मजहब निकले अर्थात जन्म हुए, वे सब आज भी स्वयं को वेद के शाब्दिक अर्थ ज्ञान से सम्बद्ध रखा है और अपने आपको किसी न किसी प्रकार से ज्ञान से बांधे हुए रखा हुआ है। जैन धर्म का मूल जैन शब्द ज्ञान का ही अपभ्रंश रूप है अर्थात ज्ञान से ही बिगड़कर बना है । ध्यातव्य है कि संस्कृत में ज्ञान शब्द ज्यांन बोला जाता है, संस्कृत के जानकार विद्वान उसे ग्यान नहीं बोलते । ज्यांन और जैन में बहुत समरूपता को देखते हुए आसानी से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि इसी ज्यांन से जैन शब्द बना है । इसी प्रकार बौद्ध धर्म में बोध अर्थात ज्ञान से ही बौद्ध शब्द बना है, और फिर बुद्ध । बोधगया नामक स्थान में प्रयुक्त शब्द बोध यह स्पष्ट करता है कि यहीं पर अहिंसा के गुण गाने वाले महात्मा बुद्ध को बोध प्राप्त हो गया था। स्पष्ट है कि इसी लिए इस स्थान का नाम बोधगया नाम रखा । इससे यह भी स्पष्ट ही है कि बोध अर्थात महात्मा बुद्ध को इस स्थान पर ज्ञान हुआ था , और ज्ञान होते ही उन्होंने अपने धर्म का नाम भी ज्ञान के समानार्थक बौद्ध ही रखा। इसी प्रकार पंजाब में ज्ञान से ही सिक्ख अर्थात शिष्य धर्म की उत्पत्ति हुई है। शिष्य और ज्ञान का परस्पर अन्योन्याश्रित संबंध है । इसका अभिप्राय है कि ज्ञान की देवी की पूजा करना और ज्ञानार्जन कर संसार का उपकार करना प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति का मौलिक उद्देश्य रहा है । यही कारण रहा कि हमारे सभी प्राचीन भारतीय शासक ज्ञान के उपासक रहे ।
हमारे गौरवमयी भारत के इन ऐतिहासिक तथ्यों को, उनकी सनातनता को, उनके वैदिक रहस्यों को हमें समझने की आवश्यकता है, पुरातन भारत की सनातन वैदिक धर्मिता को समझाने के लिए अर्थात प्राचीन भारतीय इतिहास के गौरवपूर्ण पक्ष को स्पष्ट करने के लिए कोई विदेशी या भारत से द्वेष भाव रखने वाला विधर्मी इतिहासकार या लेखक हमें समझाने नहीं आएगा कि इन वैदिक ज्ञान का अर्थ क्या है ?

Friday, April 10, 2020

लापरवाही की आदत पड़ सकती है महंगी और बन सकती है आफत -अशोक “प्रवृद्ध”


लापरवाही की आदत पड़ सकती है महंगी और बन सकती है आफत

-अशोक “प्रवृद्ध”

राष्ट्रीय सागर , दिनांक- 9 अप्रैल 2020


सम्पूर्ण विश्व की भांति हमारे देश पर कोरोना का गंभीर खतरा मंडरा रहा है, लेकिन अभी भी हमारे देश के लोग अर्थात भारत के निवासी इस खतरे की अनदेखी करते हुये निर्देशों की अवहेलना कर रहे हैं। ऐसा नहीं कि भारत के ये लोग   निरक्षर व नादान हैं मगर उन्हें नियमों को ताक पर रखकर चलने की पक्की आदत हो गयी है। इसके अनेक जीते -जागते प्रमाण और साक्षात उदाहरण सम्पूर्ण देश में देखने के लिए मिलते हैं। यातायात नियमों, परिवहन अनुज्ञप्तियों के उल्लंघन को लोग अपनी शान समझते हैं । यहां पेशाब करना मना है, का सूचना पट्ट मोटे और बड़े अक्षरों में अंकित होने के बाद भी दीवार के साथ खड़े हो कर लोग लघुशंका करने से बाज नहीं आते । भारत के अधिकांश व्यक्ति किसी भी कार्य के लिए पंक्ति लगाने के, कतारबद्ध खड़े होने के आदि नहीं हैं और अगर कभी मजबूरन उन्हें कतार में इंतजार करने के लिए खड़ा होना पड़े तो वे कोई न कोई जुगाड़ लगा कर आगे पहुंच कर अपना प्रतीक्षा समय कम कर लेते हैं। ऐसा करना उनके स्वभाव का अभिन्न अंग बन गया है। नयी पीढ़ी भी इन अप्रिय संस्कारों की कायल हो रही है। दूसरे शब्दों में इसे गैर- जिम्मेदाराना व्यवहार कहा जा सकता है। ऐसे व्यवहार के कारण हमारे देश को कोरोना का बड़ा दंश लग सकता है। अगर ऐसा हुआ तो यह तबाही से कम नहीं होगा। कोरोना को लोग अब तक हल्के में ले रहे हैं और बचाव के उपाय करने में अपनी हेठी अर्थात तौहीन समझते हैं। न तो लोग घरों में टिके रहने को तैयार हैं और न ही वे बार- बार हाथ साफ करने की जहमत ही उठा सकते हैं । इतना ही नहीं वे अलग- थलग रखे जाने पर वहां से फरार होने को अपना बहादुरी का काम मानते हैं और इसके बाद घर के आस- पास दर्जनों या सैंकड़ों लोगों को संक्रमित कर देते हैं। लोग अब भी गले मिलने और हाथ मिलाने की आदत को शिष्टाचार का पुनीत कर्त्तव्य मान रहें हैं। आज भी बाग़- बगीचों, पार्कों में प्रेमी तन्हाई का फायदा उठा कर अपनी अंग स्पर्श की परंपरा दोहराते दिखाई देते हैं। गाँव, कस्बा, शहर सर्वत्र लोग ताश खेलते झुण्ड में दिखाई दे रहे हैं। इसके साथ ही कई  और अन्य प्रकार के खेल सर्वत्र निरंतर जारी है। अगर ऐसा बदस्तूर जारी रहा तो भारत में मातम का दायरा को सीमित करना कठिन ही नहीं बल्कि असंभव हो जायेगा। 1975 के बाद से विभिन्न योजनाओं से प्रतिवर्ष करोड़ों आवास बनाये जाने के बाद भी आज भारत की लगभग एक तिहाई से अधिक आबादी झुग्गी झोपडी में रहती है । अगर यहां संक्रमण की आंधी चली तो झुग्गी- झोपडी वाली भारत कैसी लगेगी, यह कल्पना ही नहीं की जा सकती। ऐसे युग में अनपढ़ इतना तो जानते हैं कि अगर जान पर खतरा मंडरा रहा हो तो कुछ न कुछ सावधानी रखने में अवश्य ही भलाई होगी, परन्तु लोग इसको समझने को तैयार नहीं हैं और सरकार द्वारा निर्देशित नियमों का अवहेलना कर देश के परम्परागत सौहार्द पूर्णता और विभाजित भारत के संविधान में किये गये प्रावधानों का भी खुल्लमखुल्ला उल्लंघन करने में लगे हैं। दुःख, खेद व क्षोभ का विषय है कि लोग अब भी चीन, इटली और ईरान में हुये जानी नुकसान से सबक नहीं ले रहे। उनकी लापरवाही की आदत उनको बड़ी मंहगी पड़ सकती है। उन्हीं की लापरवाही का नतीजा है कि आज देश की राजधानी दिल्ली समेत सम्पूर्ण भारत को लॉकडाउन और कर्फ्यू के दिन देखने पड़ रहे हैं। अब भी समय है, भारत वासी संभल सकते हैं। सरकार कारगर कदम उठा रही है, अगर इस गौरवमयी ऐतिहासिक सनातन वैदिक धर्मावलम्बी बहुसंख्यक भारत के लोग जिम्मेदार बनेंगे तो इस देश की सनातन चहल -पहल और इसके सर्वांगीण विकास को कोई नुकसान नहीं होगा, वरना जो होगा, उसे हम देख नहीं पायेंगे।



उल्लेखनीय है कि देश की राजधानी दिल्ली के शाहीन बाग़ इलाके में इस वर्ष के फरवरी- मार्च महीने में एक विशेष समुदाय के द्वारा की गई दहशत और वहशत की कोशिशों से देशवासी बुरी तरह से दहशत में पहले से थे, और ऐसी कोशिशों ने देश के सर्व धर्म एकता समन्वय व सद्भाव के बंधन को तार- तार कर दिया था। इतना ही नहीं देश और विदेशों में दिल्ली के साथ ही सम्पूर्ण देश के गौरव को इतना दागदार किया कि दाग के ये निशान हटाने में बरसों लग सकते हैं।  और इसी बीच इसी की आड़ में मार्च के महीने में चीन से आयातित वायरस ने देश की राजधानी सहित पूरे देश को बदहाल कर दिया है और देश भर में शिशुओं तथा बुजुर्गों के साथ ही आम जन जीवन पर गम्भीर खतरा मंडरा रहा है। जिसके कारण सम्पूर्ण देशवासियों की जिन्दगी सहमी-सहमी, ठहरी-ठहरी दिखाई दे रही है। भले ही इस संक्रमण से देश में मृत्यु के कम ही मामले सामने आये हैं मगर चीन, इटली और यूरोप में कोरोना को लेकर मचे हाहाकार को देखते हुए सम्पूर्ण देश वासी घबराये हुए हैं। जहां तक केन्द्र सरकार के प्रयासों की बात की जाय तो कहना होगा कि सरकार द्वारा इस चीनी वायरस के फैलाव को रोकने और रोगियों के उपचार तथा संदिग्ध रोगियों को अलग-थलग रखने और उन्हें सरकारी खर्च पर उपचार और सभी सुविधाएं उपलब्ध कराये जाने की नीति  की सराहना की जानी चाहिये। न केवल सरकार ने चीन, ईरान, इटली तथा जापान में योकोहामा में एक क्रूज में फंसे भारतीयों को निकाल कर लाने का साहस दिखाया है, अपितु चीन जैसै देश को मानवीय सहायता भी दी है। यहाँ तक कि विश्व के चौधराहट का दावा करने वाले अमेरिका को उसके राष्ट्रपति के गुहार पर मलेरिया समेत कई अन्य प्रकार की दवाओं व चिकित्सीय सुविधा के माध्यम से सहायता की है ।  सार्क देशों की सहायता के लिये कोष के गठन का प्रधानमंत्री का निर्णय भारत की उदारता का परिचायक है। एक राजनीतिक पार्टी के अध्यक्ष के परम्परागत ट्रस्टी सदस्य के मनमानी से सहायता कार्य में होने वाली झंझट से बचाने के लिए प्रधानमन्त्री राहत कोष की भांति ही प्रधानमन्त्री रिलीफ फंड का निर्माण कराया है, जिसका कोई भी ट्रस्टी किसी भी राजनीतिक पार्टी का नहीं होगा, बल्कि सिर्फ सरकार में शामिल तत्कालीन राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री व अन्यान्य लोग ही होंगे ।


कोरोना के कारण अगर भारत के दर्द की बात की जाय तो हर भारतीय आज इस आशंका से परेशान है कि कहीं उसे कोरोना अपने चंगुल में जकड़ कर लील तो नहीं जायेगा। आज स्थिति यह है कि किसी भी व्यक्ति को कोरोना के रत्ती भर लक्षण महसूस होते ही वह इसकी जांच करवाने की कोशिश करने में लग जाता है, जो केवल कोरोना के स्पष्ट लक्षण और संदिग्ध रोगियों और विदेश से आने वाले लोगों के लिए ही सामान्य तौर पर अभी तक उपलब्ध है। मन्दिर व अन्यान्य देवस्थल, पर्व- त्योहार व समारोहों के सामूहिक आयोजन,  स्कूल, कॉलेज, क्रीडा स्थल, जिम, बाजार, थोक बाजार आदि  बंद किये जाने और सार्वजनिक परिवहनों, बसों, रेलवे, मेट्रो, हवाई अड्डों में किसी के साथ किसी का अंग स्पर्श होने के बाद का डर तथा बेकरारी न उसे जीने देती है न मरने। अनाज मंडी, सब्जी मंडी, हाट - बाजार, मॉल और वीकली मार्केट बंद होने के कारण देश वासियों की अपने घरों में राशन, फल सब्जियां भर कर रखने की होड़ से दाम पहुंच के बाहर हो रहे हैं। वर्क टू होम की वजह से घरों में 24 घंटे बैठे पुरुषों के कारण स्त्रियों की स्वतन्त्रता संकुचित हो रही है, और उस पर बच्चों की चिल पौं अलग से । मनोरंजन के सभी केन्द्र बंद होने से भी दिल को कुछ-कुछ हो रहा है। लोग डरे-डरे हैं और इस परेशानी में लोग बचाव के उपाय भूल जाते हैं। कुल मिला कर वैसी ही घबराहट है जैसी दंगों के दौरान लगे कर्फ्यू से होती रही है। फिर भी अपनी और अपनों की जान के फ़िक्र में सरकार व स्वास्थ्य बिभाग द्वारा निर्देशित नियमों को पालन करते हुए लोग घरों में सुख प्राप्त करने की कोशिशों में लगे हैं । अब देखना यह है कि इस कठिनाई की घड़ी से मुक्ति के लिए लोगों को क्या -क्या और कौन- कौन से दिन देखना पड़ता है? तब तक भारतवासियों के लिए सनातन वैदिक जीवन जीते हुए “एकान्ते सुखमास्यताम्”  में ही सुख ढूँढने में भलाई है


Wednesday, January 22, 2020

शंकर और गंगा

                                                           शंकर और गंगा 




जो परिवार में, राष्ट्र में और फिर समस्त संसार में शान्ति लाये, समृद्धि लाये,वही शंकर है। ऐसा व्यक्ति ही परिवार, राष्ट्र और फिर समस्त संसार का शंकर हो सकता है। उसकी व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए जो परिवार, राष्ट्र और संसार में सुख - शान्ति की वर्षा कर सके। ऐसा व्यक्ति ही सत्य अर्थों में शंकर है। शंकर का एक प्रतीक है उसकी जटाओं में बहने वाली गंगा। इसके सम्बन्ध में प्रचलित बहुत सी प्रचलित भ्रांतियों के मध्य. किम्बदन्तियों व कथाओं, लोकोक्तियों के मध्य यह पौराणिक मान्यता है कि शंकर की जटाओं से गंगा निकली है। परन्तु वेद वेदोत्तर ग्रन्थों के समीचीन अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि यह मात्र कल्पना है वास्तव में ऐसा नहीं है। उसकी जटाओं में गंगा का प्रवाहित होना इस बात का प्रतीक है कि वही व्यक्ति शंकर हो सकता है जिसके मस्तिष्क में ज्ञान की गंगा बहती हो। जिस प्रकार गंगा का पानी निर्मल और पवित्र है उसी प्रकार उसके मस्तिष्क में उपजे ज्ञान से प्रदत्त व्यवस्था निर्मल हो पवित्र हो उसमें अन्याय अथवा पक्षपात का धब्बा कहीं नहीं हो। जिस प्रकार गंगा का जल अपना ऊंचा स्थान छोडक़र नीचे खड्डे में गिरने में संकोच नहीं करता यह उसकी बलिदान की भावना को दर्शाता है यही गुण उस व्यक्ति में होना चाहिए जो शंकर बनना चाहता है। साथ ही यह शंकर गंगा का जल अपनी मूक भाषा में कहता है कि गंगा का जल जब तक आगे नहीं चलता तब तक वह खड्डे के जल स्तर को अपने समान नहीं कर सकता। अर्थात उसकी व्यवस्था में समानता होनी चाहिए ऊंच नीच, अपना पराया, जाति, धर्म क्षेत्र नहीं होना चाहिए। इससे बड़ा समाज वाद का उदाहरण कोई हो नहीं सकता।
यह शंकर के सहिष्णुता से पूर्ण होने का भी परिचायक है। उल्लेखनीय है कि जितने नदी- नाले गंगा में गिरते अर्थात पड़ते हैं इतने भारत अथवा संसार के किसी और नदी में नहीं पड़ते। गंगा किसी से मुख नहीं मोड़ती अपितु सबको साथ लेकर अपने गले से लगाकर समुद्र में समाहित हो जाती है। प्रतीक स्वरूप शंकर की जटाओं में बहने वाली गंगा जिन दिव्य गुणों की द्योत्तक है उन्हीं के कारण शंकर का व्यक्तित्व अद्वितीय, अभिनंदनीय व वंदनीय है।




जय शंकर !


सरल बाल सत्यार्थ प्रकाश

  सरल सत्यार्थ प्रकाश ओ३म् सरल बाल सत्यार्थ प्रकाश (कथा की शैली में सत्यार्थ प्रकाश का सरल बालोपयोगी संस्करण) प्रणेता (स्वर्गीय) वेद प्रकाश ...