Tuesday, October 22, 2013

मूर्तिपूजक और मूर्तिभंजक

मूर्तिपूजक और मूर्तिभंजक

हिन्दुओं और मुग़लों के धार्मिक विश्वासों में बहुत बड़ा अन्तर है। मूर्ति- पूजन और भंजन का अन्तर तो कदाचित् कृत्रिम है। मुसलमान भी मकबरों, कब्रों में झुकते हैं, कदमबोसी करते हैं और दुआएँ माँगते हैं। वह मूर्तिपूजा का ही एक प्रकार है। अतः उनका मूर्ति- भंजक होना गाज़ीपन नहीं अपितु असहनशीलता का प्रतीक है। मनुष्य का यह स्वभाव है कि वह अन्य मतों की अपेक्षा अपने मत को श्रेष्ठ मानता है परन्तु अन्य मतावलम्बी को जीवन का अधिकार न देना, मुस्लिम विचारधारा का अभिन्न अंग रहा है।
इसके विपरीत हिन्दू विचारधारा सदैव समन्वयवादी रही है।
समायोजन भारतीय संस्कृति की प्रथम विशेषता मानी गयी है। किन्तु मुसलमानों ने उस समन्वय को स्वीकार नहीं किया किया। हिन्दू राजपूतों ने मुग़ल शासकों के साथ रोटी-बेटी का सम्बन्ध स्थापित कर दो सभ्यताओं में समायोजन का प्रयास किया था किन्तु मुसलमानों अथवा मुग़ल परिवारों ने अपनी कन्याएँ हिन्दुओं के साथ विवाहने का सदा विरोध किया। यही कारणहै कि मुग़ल शाही वंश की कन्याएँ अधिकांशतया कुँमारी रहकर हरमों में अनाचार फैलाती रही हैं ।

No comments:

Post a Comment

सरल बाल सत्यार्थ प्रकाश

  सरल सत्यार्थ प्रकाश ओ३म् सरल बाल सत्यार्थ प्रकाश (कथा की शैली में सत्यार्थ प्रकाश का सरल बालोपयोगी संस्करण) प्रणेता (स्वर्गीय) वेद प्रकाश ...