Saturday, June 14, 2014

विवाह , परस्पर मैत्री सम्बन्ध एवं वेश्यावृति में वासना तृप्ति

विवाह , परस्पर मैत्री सम्बन्ध एवं वेश्यावृति में वासना तृप्ति

भारतीय समझ में और पुरातन भारतीय ग्रंथों में पुरूष - स्त्री के श्वास के लिए विवाह की अवस्था सर्वोत्तम मानी गई है । विवाह में पति - पत्नी में सामंजस्य आवश्यक है । दोनों में जीवन उद्देश्य में समानता होनी आवश्यक है । जीवन कार्य भिन्न - भिन्न हो सकते हैं  , परन्तु उन दोनों कार्यों में भी जीवन का उद्देश्य एक होना चाहिए । विवाह वासना - तृप्ति से कही अधिक विस्तृत योजना है । यह मनुष्य और पालतू कुत्ते की बात - मात्र नहीं ।

विवाह से उतारकर वासना - तृप्ति के लिए केवल मैत्री - सम्बन्ध भी क्षम्य है । इसमें भी एक शर्त है । वह है एक - दूसरे से मोह। मोह का अर्थ है अटैचमेंट । यह मोह अर्थात्  अटैचमेंट ऐसा होना चाहिए की कोई भी एक - दूसरे आधिपत्य ज़माने अथवा आर्थिक या किसी अन्य प्रकार का लाभ उठाने की भावना न रखे ।

इससे निकृष्ट है वेश्यावृति । इसमें वासना लाभ उठाने की साधन बन जाती है ।

विवाह में वासना एक विवशता है । विवाह सम्बन्ध समाज का ऋण उतारने के लिए है । मैत्री में वासना मुख्य है और परस्पर निर्भरता है । वेश्यावृति में वासना भी कम से कम एक अक्ष के लिए गुण हो जाती है । आर्थिक अथवा अन्य स्वर्तमय लाभ मुख्य हो जाते हैं ।

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