एकात्मता मंत्र
प्राचीन किताबों के ढेर में से मेरे स्व .पितामह के हस्तलेख में एक
पुरानी पीली पड़ चुकी कागज में किसी अज्ञात कवि की संस्कृत
में लिपिबद्ध पंक्तियाँ प्राप्त हुई ,जिसमें उसका मत्रार्थ
भी किया हुआ है , वह आपके साथ साझा करता हूँ -
एकात्मता - मंत्र
यं वैदिक मन्त्रदृश: पुराना
इन्द्रं यमं मातरिश्वानामाहु:
वेदान्तिनोस्निर्वचनीयमेकं
यं ब्रह्मशब्देन विनिर्दिश्न्ति !! (१)
शैवा यमिशं शिव इत्यवोचन यं वैष्णवा विष्णुरिति स्तुवन्ति !
बुद्ध स्तथा ह्र्न्निती बौद्धजैना: सत-श्री-अकालेती च सिक्ख संत: !! (२)
शास्तेति केचित कतिचित कुमार: स्वामीति मातेति पिटती भक्त्या !
यं प्रार्थयन्ते जग्दीशितारम स एक एव प्रभुर्द्वितीय: !! (३)
अर्थात -प्राचीन काल के मंत्र द्रष्टा ऋषियों ने जिसे इन्द्र, यम,
मत्रिश्वान कहकर पुकारा और जिस एक अनिर्वचनीय
का वेंदंती ब्रह्म शब्द से निर्देश करते हैं !
शैव जिसकी शिव और विष्णु जिसकी विष्णु कहकर स्तुति करते हैं,
बौद्ध और जैन जिसे बुद्ध और अरहंत कहते हैं, ठाठ सिक्ख जिसे सत
श्री अकाल कहकर पुकारते हैं !
जिस जगत के स्वामी को कोई शास्ता, तो कोई कुमार
स्वामी कहतें हैं, कोई जिसको स्वामी, माता, पिता कहकर
भक्तिपूर्वक प्रार्थना करते हैं, वह प्रभु एक ही है, और अद्वितीय
है, अर्थात उसका कोई जोड़ नहीं है !!!
ॐ शांति: शांति: शांति:
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