Sunday, November 2, 2014

हिन्दू समाज ने घोर पाप किया है , जिससे इस समाज को कई सौ वर्षों से दासता की बेड़ियों को सहन करना पड़ रहा है

हिन्दू समाज ने घोर पाप किया है , जिससे इस समाज को कई सौ वर्षों से दासता की बेड़ियों को सहन करना पड़ रहा है .


जैसे व्यक्ति अपने कर्मों का फल भोगता है , वैसे ही जातियाँ भी अपने कर्मों का फल भोगती है . जैसे व्यक्ति आदि सनातन वैदिक धर्म का उल्लंघन कर पापी बन जाते हैं ,वैसे ही जातियाँ भी आदि सनातन वैदिक धर्म का उल्लंघन कर पाप का भागी बनती हैं .
हिन्दू समाज ने घोर पाप किया है , जिससे इस समाज को कई सौ वर्षों से दासता की बेड़ियों को सहन करना पड़ रहा है . भारतवर्ष विभाजन के पश्चात तथाकथित स्वाधीनता प्राप्ति के अरसठ वर्षों के बाद भी इस स्थिति में कोई बदलाव नहीं आ सका है और हम आज भी वैचारिक मानसिक स्थिति पर परतंत्रता की बेड़ी में जकड़े हुए हैं . प्रश्न उत्पन्न होता है कि किस सनातन धर्म का उल्लंघन हो गया है हिन्दू समाज से . जिसका इतना भयंकर दण्ड समाज को मिल रहा है ? यह तो हिन्दू समाज को मटियामेट कर रख देगा ??

पुरातन भारतीय ग्रंथों के अध्ययन से इस सत्य का सत्यापन होता है कि सबसे बड़ा पाप तो यह है कि समाज के किसी भी प्राणी को कर्म का विचार छोड़ हिन्दू बड़ा – छोटा मानते हैं . राजा - रईस तो अपने धन पद के मद में कुछ भी मान लें , परन्तु ब्राह्मण , जिनको अपनी सरलता के लिए विख्यात होना चाहिए , वे भी परमात्मा के बनाए मनुष्यों को छोटा – बड़ा मानें तो भयंकर परिणाम ही होने चाहए . ब्राह्मण समाज के मुखिया रहे और जब ये ही पापी हो जाये तो पूर्ण समाज ही पापी हो गया मानना चाहिए . यह ध्यातव्य है कि राज्य की ओर से आन्दोलन नहीं चलाये जा सकते , राज्य को तो पक्षपात से रहित होकर अपने धर्म का पालन करना चाहिए .यह ब्राह्मण वार्ग का ही कम था कि समाज की मनोवृति को तजिक रखते , परन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया प्रत्युत्त इसके विपरीत ही आचरण ही किया . इस पर भी समाज ब्राह्मणों को धन तथा प्रतिष्ठा देता रहा है . इस कारण समाज भी पापी हो गया है .

इसलिए जन्मजात ब्राह्मण न बनाओ वरण समाज में ब्राह्मण ऐसे बनाओ , जो योग्य हों , बुद्धिशील हों , विद्वान हों , कर्मठ हों ,धर्मपरायण हों और धर्म के वास्तविक अर्थों को जानने वाले हों . इससे जन – जन में धर्म की स्थापना होगी , फिर अधर्म उस समाज में पनप नहीं सकेगा . स्मरण रखें यह बात उन साधू –संतों के करने से नहीं हो सकेगी , जो यह कहते – फिरते हैं कि वेद पढ़त ब्रह्मा मरे चरों वेद कहानी , या यह उनलोगों के करने भी नहीं होगा जो कर्म करने को पाप मानते हैं , जिनको नैष्कर्म्य के अर्थ घर छोड़ कर संन्यास ले लेना समझ आता है 

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