राँची, झारखण्ड से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र राष्ट्रीय खबर के सम्पादकीय पृष्ठ पर दिनांक- १० जून २०१५ को प्रकाशित लेख - आद्य सृष्टा, पितामह अर्थात प्रजापति -अशोक “प्रवृद्ध”
आद्य सृष्टा, पितामह अर्थात प्रजापति
-अशोक “प्रवृद्ध”
वैदिक ग्रंथों के अनुसार ब्रह्मा प्रजापति को कहते हैंl शतपथ ब्राह्मण के षष्ठ काण्ड के प्रथम अध्याय में प्रजापति की उत्पति के सम्बन्ध में उल्लेख करते हुए कहा गया है -
पहले सब असत् अर्थात अव्यक्त ही थाl वह असत् क्या था? असत् ऋषि ही थेl अव्यक्त रूप परमाणु थेl उनको ही ऋषि कहा हैl वे ऋषि कौन थे ? वे प्राण थेl इन्होने पहले इस सृष्टि को चाहा (परमाणुओं ने ही सृष्टि रचना चाही) l
प्राण मध्य में इन्द्र है l (परमाणुओं के मध्य में त्रिगुणात्मक शक्ति को इन्द्र कहा हैl) इन्द्र ने अपने पराक्रम से प्राणों को दीप्त (सक्रिय) किया lइन्द्र छिपा बैठा थाl दीप्त हुए प्राणों ने सात पुरुष बनाएl
उन्होंने (ऋषियों अर्थात परमाणुओं ने) कहा, इस प्रकार हम सृष्टि रचना नहीं कर सकेंगेl तब सात पुरूष मिलकर एक हो गए और एक पुरुष बना l
-शतपथ ब्राह्मण -6-1-1-1,2,3,4,,5,6,7
यह पुरुष प्रजापति हुआl आगे कहा है-
सोऽयं पुरुषः प्रजापतिरकामयत l भूयान्त्स्यां प्रजायेयेति सोऽश्राम्यत्सl तपोऽतप्यत स श्रान्तस्तेपानो, बहेव प्रथममसृजत त्रयीमेव विद्याँसै वास्मै प्रतिष्ठाऽभवत्तस्मादाहुर्ब्रह्मास्य सर्वस्यप्रतिष्ठेति तस्मादनूच्य प्रतितिष्ठति प्रतिष्ठा ह्येषा यद्ब्रह्म तस्यां प्रतिष्ठायां प्रतिष्ठतोऽतप्यतl l l
शतपथ ब्राह्मण 6-1-1-8
अर्थात- इस प्रजापति ने चाहा, मैं बहुत हो जाऊँ, मैं प्रजा को उत्पन्न करूँl उसने श्रम किया l उसने तप कियाl उसने श्रान्त और तप्त होकर ब्रह्मा अर्थात त्रयी विद्या (वेद) को उत्पन्न किया lवही उसकी प्रतिष्ठा (आधार) हुईl इसलिए कहते हैं इस सब (संसार) का आधार ब्रह्मा (प्रजापति ब्रह्माण्ड) हैl इससे मनुष्य प्रतिष्ठित होता हैlइससे प्रतिष्ठित हो उसने तप (परिश्रम) किया है l
इस ब्राह्मण का अभिप्राय है कि प्रकृति के परमाणुओं की त्रिगुणात्मक शक्ति से यह जगत बना है और वह जगत के बनाने वाला तत्व प्राण है जो पहले सात रूपों में था और फिर एक होकर रचना कार्य करता रहा हैl यह पुरुष प्रजापति अर्थात ब्रह्मा बनाl अर्थात जगत को बनाने वाली (त्रिगुणात्मक) शक्ति ही ब्रह्मा हैl वह चार वेदों को बोलती है, इसी कारण पुराणों में कहा है कि ब्रह्मा के चारों मुखों से चार वेद स्त्रवित हो रहे हैं l
अलंकार रूप में ब्रह्मा को चार मुख वाला बतलाते हुए कहा गया है कि उसके मुख से वेद निकल रहे हैंl
मनुस्मृति में स्मृतिकार मनु महाराज ने ब्रह्मा का अर्थ इस प्रकार किया है -
यत्तत्कारणं अव्यक्तं नित्यं सदसदात्मकम् ।
तद्विसृष्टः स पुरुषो लोके ब्रह्मेति कीर्त्यते । ।
-मनुस्मृति 1-11
वह जो अत्यंत प्रसिद्ध, सबका कारण,सत्-असत् रूप वाला है , उससे उत्पन्न पुरूष लोक में ब्रह्मा कहा जाता है l
प्रसिद्ध प्रकृति है जो दो रूपों में पायी जाती है l सत् (व्यक्त) और असत् (अव्यक्त) रूप में l इन प्रकृतियो से जो पुरूष उत्पन्न हुआ,वह ब्रह्मा है l
यहाँ पुरुष से अभिप्राय शक्तिमान तत्व है l
इस प्रकार ब्रह्मा,जैसा कि शतपथ ब्राह्मण भी पुष्टि करता है, त्रिगुणात्मक शक्ति है जो परमाणु के भीतर विद्यमान है और जो इस पूर्ण संसार के रचने में कारण है l
पुराणों ने इसे चार मुख वाला,मनुष्य की रूप-राशि युक्त शरीरधारी बना दिया गया हैl यह आलंकारिक वर्णन हैl यह इसी प्रकार है जैसे कोई चतुर कार्टूनिस्ट किसी विदेशी राजनीतिक को लोमड़ी के रूप में चित्रित कर देता है l
ब्रह्मा और कमल के विषय में महाभारत में इस प्रकार वर्णन मिलता है-
मानसों नाम विख्यातः श्रुतपूर्वों महर्षिभिःl
अनादिनिधनो देवस्तथाभेद्योऽजरामरःll
-महाभारत शान्तिपर्व 182-11
महर्षियों ने सुना था कि पहले एक मानस नाम का विख्यात पुरुष था, वह अनादि, अनन्त, अजर और अमर थाl यह परमात्मा के विषय में कहा हैl उसके आगे महाभारत शान्ति पर्व 182-13, 14 में कहा है कि उस मानस देव ने पहले (प्रकृति) से महत तत्व उत्पन्न कियाl उससे पञ्च महाभूत उत्पन्न हुएl
जब यह हो गया तो क्या हुआ इसका वर्णन भी महाभारत में है-
ततस्तेजोमयं दिव्यं पद्मं सृष्टं स्वयम्भुवा l
तस्मात् पद्मात समभवद् ब्रह्मा वेदमयो निधिः ll
अहंकार आईटीआई ख्यातः सर्वभूतात्मभूतकृत l
ब्रह्मा वै स महातेजा य एते पञ्च धातवःl l
-महाभारत शान्ति पर्व -182-15, 16
अर्थात- तब उस तेजोमय स्वयम्भुः (परमात्मा) ने एक पद्म (कमल) उत्पन्न किया और उससे ब्रह्मा उत्पन्न हुआ जो वेदों का निधि थाl
यह अहंकार नाम से विख्यात है ,जिससे ब्रह्मा उत्पन्न हुआ, जो सब पदार्थों और भूतों को बनाने वाला हैl
इस प्रकार स्पष्ट है कि महाभारत में भी, मनुस्मृति की भान्ति, निरामानाधीन जगत के बनाने वाले को ब्रह्मा कहा हैl इस प्रकार यह प्रमाणित हो जाता है कि पुराणों में सृष्टि रचना की चमत्कारिक घटना का वर्णन पुराणों में अलंकार रूप में किया गया है, और पुराणों में इन वर्णनों में एकरूपता भी हैl इन अलंकारों को न समझ कर कुछ लोगों के द्वारा पुराणों को गल्प मान हँसी उड़ाया जाना मुर्खता का ही परिचायक हैl l पुराणों में प्रक्षिप्त अंश वैसे भी बहुत हैं ,परन्तु इन प्रक्षिप्त अंशों को चिह्नित करने के पश्चात् उन्हें छोड़ इनमे जो इतिहास का अंश है,वह सत्य ही प्रतीत होता हैl पुराणों में पाँच विषय वर्णित किये गये हैं, उनमे एक विषय इतिहास भी हैl
पुराण उस काल के इतिहास का वर्णन करते हैं, जिस काल का अन्य कहीं इतिहास नहीं मिलताl अभिप्राय है जब अमैथुनीय सृष्टि हुईlयह स्पष्टतः प्रमाणित बात है कि जिस समय मनुष्य का निर्माण हुआ, उसी समय वेद जो पहले ही उर्जा की तरंगों में उच्चारित हो रहे थे, ऋषियों ने सुने और मनुष्यों को बतलाये l(इस सम्बन्ध में पृथक रूप से राँची, झारखण्ड से प्रकाशित दैनिक राष्ट्रीय खबर के सम्पादकीय पृष्ठ पर दिनाँक-17 और 18 नवम्बर 2014 को लेख – ‘वैदिक मान्यतानुसार ऐसे हुई छंदों की उत्पत्ति’ प्रकाशित हो चुके हैं) l इससे यह स्पष्ट है कि उस समय वेद की भाषा और मानवी भाषा अर्थात राष्ट्री भाषा एक ही थीl दूसरे शब्दों में, वैदिक काल मानव सृष्टि के आरंभ से ही कहा जाता है l
पुरातन ग्रंथों के अनुसार सर्वश्रेष्ठ त्रिदेवों में ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव की गणना होती है lइनमें ब्रह्मा का नाम सर्वप्रथम आता है, क्योंकि वे विश्व के आद्य सृष्टा, प्रजापति, पितामह तथा हिरण्यगर्भ हैं l पुराणों में जो ब्रह्मा का रूप अंकित मिलता है वह अलंकारिक रूप में है और वह वैदिक प्रजापति के रूप का विकास है l पुराणों में प्रजापति ब्रह्मा को मानव रूप प्रदान किया जाना विचित्रता का द्योत्तक है l पुराणों में प्रजापति की समस्त वैदिक गाथाएँ ब्रह्मा पर आरोपित कर ली गयी हैं l प्रजापति और उनकी दुहिता की कथा पुराणों में ब्रह्मा और सरस्वती के रूप में वर्णित हुई है l सावित्री इनकी पत्नी, सरस्वती पुत्री और हंस वाहन है l पौराणिक ग्रंथों के अनुसार क्षीरसागर में शेषशायी विष्णु के नाभिकमल से ब्रह्मा की स्वयं उत्पत्ति हुई, इसलिए ये स्वयंभू कहलाते हैं l घोर तपस्या के पश्चात इन्होंने ब्रह्माण्ड की सृष्टि की थी l वास्तव में सृष्टि ही ब्रह्मा का मुख्य कार्य है l ब्राह्म पुराणों में ब्रह्मा का स्वरूप विष्णु के सदृश ही निरूपित किया गया है l ये ज्ञानस्वरूप, परमेश्वर, अज, महान तथा सम्पूर्ण प्राणियों के जन्मदाता और अन्तरात्मा बतलाये गये हैं l कार्य, कारण और चल, अचल सभी इनके अन्तर्गत हैं l समस्त कला और विद्या इन्होंने ही प्रकट की हैं l ये त्रिगुणात्मिका माया से अतीत ब्रह्म हैं lये हिरण्यगर्भ हैं और सारा ब्रह्माण्ड इन्हीं से निकला है l वैदिक ग्रंथो और प्रक्षिप्त अंशों को छोड़ कर शेष बचे समस्त पुराणों तथा स्मृतियों में सृष्टि-प्रक्रिया में सर्वप्रथम ब्रह्मा के प्रकट होने का वर्णन मिलता है l वे मानसिक संकल्प से प्रजापतियों को उत्पन्न कर उनके द्वारा सम्पूर्ण प्रजा की सृष्टि करते हैं l इसलिये वे प्रजापतियों के भी पति कहे जाते हैं l पौराणिक ग्रंथों के अनुसार मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु, भृगु, वसिष्ठ, दक्ष तथा कर्दम- ये दस मुख्य प्रजापति हैं l
राष्ट्रीय खबर , दिनांक- १० जून २०१५ |
आद्य सृष्टा, पितामह अर्थात प्रजापति
-अशोक “प्रवृद्ध”
वैदिक ग्रंथों के अनुसार ब्रह्मा प्रजापति को कहते हैंl शतपथ ब्राह्मण के षष्ठ काण्ड के प्रथम अध्याय में प्रजापति की उत्पति के सम्बन्ध में उल्लेख करते हुए कहा गया है -
पहले सब असत् अर्थात अव्यक्त ही थाl वह असत् क्या था? असत् ऋषि ही थेl अव्यक्त रूप परमाणु थेl उनको ही ऋषि कहा हैl वे ऋषि कौन थे ? वे प्राण थेl इन्होने पहले इस सृष्टि को चाहा (परमाणुओं ने ही सृष्टि रचना चाही) l
प्राण मध्य में इन्द्र है l (परमाणुओं के मध्य में त्रिगुणात्मक शक्ति को इन्द्र कहा हैl) इन्द्र ने अपने पराक्रम से प्राणों को दीप्त (सक्रिय) किया lइन्द्र छिपा बैठा थाl दीप्त हुए प्राणों ने सात पुरुष बनाएl
उन्होंने (ऋषियों अर्थात परमाणुओं ने) कहा, इस प्रकार हम सृष्टि रचना नहीं कर सकेंगेl तब सात पुरूष मिलकर एक हो गए और एक पुरुष बना l
-शतपथ ब्राह्मण -6-1-1-1,2,3,4,,5,6,7
यह पुरुष प्रजापति हुआl आगे कहा है-
सोऽयं पुरुषः प्रजापतिरकामयत l भूयान्त्स्यां प्रजायेयेति सोऽश्राम्यत्सl तपोऽतप्यत स श्रान्तस्तेपानो, बहेव प्रथममसृजत त्रयीमेव विद्याँसै वास्मै प्रतिष्ठाऽभवत्तस्मादाहुर्ब्रह्मास्य सर्वस्यप्रतिष्ठेति तस्मादनूच्य प्रतितिष्ठति प्रतिष्ठा ह्येषा यद्ब्रह्म तस्यां प्रतिष्ठायां प्रतिष्ठतोऽतप्यतl l l
शतपथ ब्राह्मण 6-1-1-8
अर्थात- इस प्रजापति ने चाहा, मैं बहुत हो जाऊँ, मैं प्रजा को उत्पन्न करूँl उसने श्रम किया l उसने तप कियाl उसने श्रान्त और तप्त होकर ब्रह्मा अर्थात त्रयी विद्या (वेद) को उत्पन्न किया lवही उसकी प्रतिष्ठा (आधार) हुईl इसलिए कहते हैं इस सब (संसार) का आधार ब्रह्मा (प्रजापति ब्रह्माण्ड) हैl इससे मनुष्य प्रतिष्ठित होता हैlइससे प्रतिष्ठित हो उसने तप (परिश्रम) किया है l
इस ब्राह्मण का अभिप्राय है कि प्रकृति के परमाणुओं की त्रिगुणात्मक शक्ति से यह जगत बना है और वह जगत के बनाने वाला तत्व प्राण है जो पहले सात रूपों में था और फिर एक होकर रचना कार्य करता रहा हैl यह पुरुष प्रजापति अर्थात ब्रह्मा बनाl अर्थात जगत को बनाने वाली (त्रिगुणात्मक) शक्ति ही ब्रह्मा हैl वह चार वेदों को बोलती है, इसी कारण पुराणों में कहा है कि ब्रह्मा के चारों मुखों से चार वेद स्त्रवित हो रहे हैं l
अलंकार रूप में ब्रह्मा को चार मुख वाला बतलाते हुए कहा गया है कि उसके मुख से वेद निकल रहे हैंl
मनुस्मृति में स्मृतिकार मनु महाराज ने ब्रह्मा का अर्थ इस प्रकार किया है -
यत्तत्कारणं अव्यक्तं नित्यं सदसदात्मकम् ।
तद्विसृष्टः स पुरुषो लोके ब्रह्मेति कीर्त्यते । ।
-मनुस्मृति 1-11
वह जो अत्यंत प्रसिद्ध, सबका कारण,सत्-असत् रूप वाला है , उससे उत्पन्न पुरूष लोक में ब्रह्मा कहा जाता है l
प्रसिद्ध प्रकृति है जो दो रूपों में पायी जाती है l सत् (व्यक्त) और असत् (अव्यक्त) रूप में l इन प्रकृतियो से जो पुरूष उत्पन्न हुआ,वह ब्रह्मा है l
यहाँ पुरुष से अभिप्राय शक्तिमान तत्व है l
इस प्रकार ब्रह्मा,जैसा कि शतपथ ब्राह्मण भी पुष्टि करता है, त्रिगुणात्मक शक्ति है जो परमाणु के भीतर विद्यमान है और जो इस पूर्ण संसार के रचने में कारण है l
पुराणों ने इसे चार मुख वाला,मनुष्य की रूप-राशि युक्त शरीरधारी बना दिया गया हैl यह आलंकारिक वर्णन हैl यह इसी प्रकार है जैसे कोई चतुर कार्टूनिस्ट किसी विदेशी राजनीतिक को लोमड़ी के रूप में चित्रित कर देता है l
ब्रह्मा और कमल के विषय में महाभारत में इस प्रकार वर्णन मिलता है-
मानसों नाम विख्यातः श्रुतपूर्वों महर्षिभिःl
अनादिनिधनो देवस्तथाभेद्योऽजरामरःll
-महाभारत शान्तिपर्व 182-11
महर्षियों ने सुना था कि पहले एक मानस नाम का विख्यात पुरुष था, वह अनादि, अनन्त, अजर और अमर थाl यह परमात्मा के विषय में कहा हैl उसके आगे महाभारत शान्ति पर्व 182-13, 14 में कहा है कि उस मानस देव ने पहले (प्रकृति) से महत तत्व उत्पन्न कियाl उससे पञ्च महाभूत उत्पन्न हुएl
जब यह हो गया तो क्या हुआ इसका वर्णन भी महाभारत में है-
ततस्तेजोमयं दिव्यं पद्मं सृष्टं स्वयम्भुवा l
तस्मात् पद्मात समभवद् ब्रह्मा वेदमयो निधिः ll
अहंकार आईटीआई ख्यातः सर्वभूतात्मभूतकृत l
ब्रह्मा वै स महातेजा य एते पञ्च धातवःl l
-महाभारत शान्ति पर्व -182-15, 16
अर्थात- तब उस तेजोमय स्वयम्भुः (परमात्मा) ने एक पद्म (कमल) उत्पन्न किया और उससे ब्रह्मा उत्पन्न हुआ जो वेदों का निधि थाl
यह अहंकार नाम से विख्यात है ,जिससे ब्रह्मा उत्पन्न हुआ, जो सब पदार्थों और भूतों को बनाने वाला हैl
इस प्रकार स्पष्ट है कि महाभारत में भी, मनुस्मृति की भान्ति, निरामानाधीन जगत के बनाने वाले को ब्रह्मा कहा हैl इस प्रकार यह प्रमाणित हो जाता है कि पुराणों में सृष्टि रचना की चमत्कारिक घटना का वर्णन पुराणों में अलंकार रूप में किया गया है, और पुराणों में इन वर्णनों में एकरूपता भी हैl इन अलंकारों को न समझ कर कुछ लोगों के द्वारा पुराणों को गल्प मान हँसी उड़ाया जाना मुर्खता का ही परिचायक हैl l पुराणों में प्रक्षिप्त अंश वैसे भी बहुत हैं ,परन्तु इन प्रक्षिप्त अंशों को चिह्नित करने के पश्चात् उन्हें छोड़ इनमे जो इतिहास का अंश है,वह सत्य ही प्रतीत होता हैl पुराणों में पाँच विषय वर्णित किये गये हैं, उनमे एक विषय इतिहास भी हैl
पुराण उस काल के इतिहास का वर्णन करते हैं, जिस काल का अन्य कहीं इतिहास नहीं मिलताl अभिप्राय है जब अमैथुनीय सृष्टि हुईlयह स्पष्टतः प्रमाणित बात है कि जिस समय मनुष्य का निर्माण हुआ, उसी समय वेद जो पहले ही उर्जा की तरंगों में उच्चारित हो रहे थे, ऋषियों ने सुने और मनुष्यों को बतलाये l(इस सम्बन्ध में पृथक रूप से राँची, झारखण्ड से प्रकाशित दैनिक राष्ट्रीय खबर के सम्पादकीय पृष्ठ पर दिनाँक-17 और 18 नवम्बर 2014 को लेख – ‘वैदिक मान्यतानुसार ऐसे हुई छंदों की उत्पत्ति’ प्रकाशित हो चुके हैं) l इससे यह स्पष्ट है कि उस समय वेद की भाषा और मानवी भाषा अर्थात राष्ट्री भाषा एक ही थीl दूसरे शब्दों में, वैदिक काल मानव सृष्टि के आरंभ से ही कहा जाता है l
पुरातन ग्रंथों के अनुसार सर्वश्रेष्ठ त्रिदेवों में ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव की गणना होती है lइनमें ब्रह्मा का नाम सर्वप्रथम आता है, क्योंकि वे विश्व के आद्य सृष्टा, प्रजापति, पितामह तथा हिरण्यगर्भ हैं l पुराणों में जो ब्रह्मा का रूप अंकित मिलता है वह अलंकारिक रूप में है और वह वैदिक प्रजापति के रूप का विकास है l पुराणों में प्रजापति ब्रह्मा को मानव रूप प्रदान किया जाना विचित्रता का द्योत्तक है l पुराणों में प्रजापति की समस्त वैदिक गाथाएँ ब्रह्मा पर आरोपित कर ली गयी हैं l प्रजापति और उनकी दुहिता की कथा पुराणों में ब्रह्मा और सरस्वती के रूप में वर्णित हुई है l सावित्री इनकी पत्नी, सरस्वती पुत्री और हंस वाहन है l पौराणिक ग्रंथों के अनुसार क्षीरसागर में शेषशायी विष्णु के नाभिकमल से ब्रह्मा की स्वयं उत्पत्ति हुई, इसलिए ये स्वयंभू कहलाते हैं l घोर तपस्या के पश्चात इन्होंने ब्रह्माण्ड की सृष्टि की थी l वास्तव में सृष्टि ही ब्रह्मा का मुख्य कार्य है l ब्राह्म पुराणों में ब्रह्मा का स्वरूप विष्णु के सदृश ही निरूपित किया गया है l ये ज्ञानस्वरूप, परमेश्वर, अज, महान तथा सम्पूर्ण प्राणियों के जन्मदाता और अन्तरात्मा बतलाये गये हैं l कार्य, कारण और चल, अचल सभी इनके अन्तर्गत हैं l समस्त कला और विद्या इन्होंने ही प्रकट की हैं l ये त्रिगुणात्मिका माया से अतीत ब्रह्म हैं lये हिरण्यगर्भ हैं और सारा ब्रह्माण्ड इन्हीं से निकला है l वैदिक ग्रंथो और प्रक्षिप्त अंशों को छोड़ कर शेष बचे समस्त पुराणों तथा स्मृतियों में सृष्टि-प्रक्रिया में सर्वप्रथम ब्रह्मा के प्रकट होने का वर्णन मिलता है l वे मानसिक संकल्प से प्रजापतियों को उत्पन्न कर उनके द्वारा सम्पूर्ण प्रजा की सृष्टि करते हैं l इसलिये वे प्रजापतियों के भी पति कहे जाते हैं l पौराणिक ग्रंथों के अनुसार मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु, भृगु, वसिष्ठ, दक्ष तथा कर्दम- ये दस मुख्य प्रजापति हैं l
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