Sunday, September 15, 2013

सौ बरीस जीयब या उकर से बेसी जीयब लेकिन स्वाधीन होयके जीयब।। - अशोक "प्रवृद्ध"

सौ बरीस जीयब या उकर से बेसी जीयब लेकिन स्वाधीन होयके जीयब।।
नागपुरी में प्रार्थना - अशोक "प्रवृद्ध"

ॐ तच्चक्षुर्देवहितं पुरस्ताचछुक्रमुच्चरत ! पश्येम शरदः शतं जीवेम शरदः शतं श्रणुयाम शरदः शतं प्रब्रवाम शरदः शतमदीनाः स्याम शरदः शतं भूयश्च शरदः शतात !! (यजु. ३६.८,१०,१२,१७,२४)

सुरूज भगवान् आउर उनकर प्रकाश , दुनिया में दिखेक रहेक तक जीयब।
सौ बरीस जीयब या उकर से बेसी जीयब लेकिन स्वाधीन होयके जीयब।।
उगथयं प्राज्ञ दिशा में
पहिले से ही पूरूब दिशा में !
देलयं द्रष्टि एहे रवि सबके
द्रीश्य होवैना निशा उषा में !
हे ईश सूर्य भव विश्व पूर्य, हमरे होयके "प्रवृद्ध" भय हीन जीयब!
सौ बरीस जीयब या उकर से बेसी जीयब लेकिन स्वाधीन होयके जीयब ।।
सूरूज भगवान विश्व प्रिय मनभावन
सौ बरीस तक देखब पावन !
सौ बरीस तक इनके जी लेब
सौ बरीस सुनब श्रुति कर गायन !
सौ बरीस बोल व्याख्यान करब ,  गुण गान भगवान् में लबलीन होय जाब।
सौ बरीस जीयब या उकर से बेसी जीयब लेकिन स्वाधीन होयके जीयब ।।
ना होंवब दीन सौ बरीस में
या अधिका आयु कर आकर्ष में ।
हर्ष - उत्साह , उत्कर्ष कर साथ जीयब
होयके विजय सब संघर्ष में ।।

हमरे जतना भी जीवन पावब , भगवान से कइरके  हृदय विलीन जीयब।
सौ बरीस जीयब या उकर से बेसी जीयब लेकिन स्वाधीन होयके जीयब ।।

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