बाल्मीकि रामायण के अनुसार त्रेतायुगीन ऋषि विश्रवा पुत्र रावण प्रकांड विद्वान् , वेद ज्ञानी के साथ साथ अच्छा वास्तुकार ओर संगीतज्ञ भी था। रावण कृत शिव तांडव स्त्रोत इसका अच्छा उदाहरण है । विद्वानों के अनुसार रावण वॉयलिन बजाता था । कतिपय रामायणों के मुताबिक रावण वॉयलिन बजाता ही नहीं था बल्कि उसने 'कृष्ण यजुर्वेद' के भाष्य के अलावा वॉयलिन का आविष्कार भी किया था ।
रावण हत्था प्रमुख रूप से राजस्थान और गुजरात में प्रयोग में लाया जाता रहा है। यह राजस्थान का एक लोक वाद्य है। झारखण्ड के नागपुरी भाषा के कुछ पुराने ढंग के लोक गायकों के
द्वारा भी प्रयग में लाया जाता है । पौराणिक साहित्य और हिन्दू परम्परा की मान्यता है कि ईसा से सहस्त्राब्दियों वर्ष पूर्व लंका के राजा रावण ने इसका आविष्कार किया था और आज भी यह चलन में है। रावण के ही नाम पर इसे रावण हत्था या रावण हस्त वीणा कहा जाता है। यह संभव है कि वर्तमान में इसका रूप कुछ बदल गया हो लेकिन इसे देखकर ऐसा लगता नहीं है। विद्वानों , लेखकों द्वारा इसे वायलिन का पूर्वज भी माना जाता है।
इसे धनुष जैसी मींड़ और लगभग डेढ़-दो इंच व्यास वाले बाँस से बनाया जाता है। एक अधकटी सूखी लौकी या नारियल के खोल पर पशुचर्म अथवा साँप के केंचुली को मँढ़ कर एक से चार संख्या में तार खींच कर बाँस के लगभग समानान्तर बाँधे जाते हैं। यह मधुर ध्वनि उत्पन्न करता है।
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