खाङ्ग्रेस अर्थात काँग्रेस कभी भारतीय हो ही नहीं सकती ।
जिस व्यक्ति के हाथ 1857 के संग्राम में भारतीय क्रांतिकारियों के खून से रंगे हों, उन्हें अपने संस्थापक रूप में पाने वाली खाङ्ग्रेस अर्थात कांग्रेस भारतीय हो ही नहीं सकती । इसके बावजूद भी अधिकांश भारतीय भेंड की रेंड़ की भांति एक के बाद एक उस पर गिरकर अर्थात मतदान के समय उसे अपना मत देकर भारत , भारतीय और भारतीयता को नष्ट करने पर तुले हुए हैं ।
ध्यातव्य हो कि ईस्ट इंडिया कम्पनी की प्रशासनिक सेवा के एक अधिकारी, जो बाद में (1870-1879) ब्रिटिश भारत सरकार के एक सचिव भी रहे, खाङ्ग्रेस अर्थात कांग्रेस के जनक माने जाते हैं। उनका नाम था- एलेन ऑक्टैवियन ह्यूम। उस समय भारत के अंग्रेज गवर्नर जनरल लॉर्ड डफरिन की सोच ही मूलरूप से कांग्रेस स्थापना के पीछे मौजूद थी। डफरिन ने ह्यूम को निर्देशित किया। इतना ही नहीं, उन्हें कांग्रेस-स्थापना से पहले इंग्लैण्ड भेजकर भारत के अनेक पूर्व अंग्रेज गवर्नर जनरलों से इस विषय पर बात करने को कहा। ह्यूम ने ब्रिटेन जाकर लॉर्ड रिपन, लॉर्ड डलहौजी आदि से वार्ता कर निर्देश तथा समझ प्राप्त की। उसके बाद 28 दिसम्बर 1885 को मुम्बई में कांग्रेस का जन्म हुआ।
जिस व्यक्ति के हाथ 1857 के संग्राम में भारतीय क्रांतिकारियों के खून से रंगे हों, उन्हें अपने संस्थापक रूप में पाने वाली कांग्रेस अपने आपको भारतीय कहे अर्थात अपना डीएनए भारतीय कहे, यह आश्चर्य ही नहीं, आपत्ति का विषय है। कांग्रेस के प्रारंभिक वर्षों में कई अंग्रेज इसके अध्यक्ष रहे। डेविड यूल (1988), विलियम वैडरबर्न (1889 और 1910), अल्फ्रैउ वैब (1894) और हेनरी कॉटन (1904) ऐसे ही नाम हैं। लगभग 20 साल तक कांग्रेस अधिवेशनों में ब्रिटिश राष्ट्रगान 'गॉड सेव द किंग' गाया जाता था। अधिवेशनों को निर्देशित करने के लिए हर वर्ष अनेक ब्रिटिश सांसद भारत आते थे। चार्ल्स ब्रॉडलो, पैथविक लॉरेंस, डब्ल्यू एस केन आदि दर्जनों नाम हैं। ये लोग कांग्रेस में पारित होने वाले प्रस्तावों की भाषा बनवाते थे। कांग्रेस को ब्रिटिश नियंत्रण में रखने के लिए यह जरूरी समझा गया था। इसी काम के लिए लंदन में एक 'ब्रिटिश कांग्रेस कमेटी' बनायी गयी थी। इस कमेटी का सारा खर्चा कांग्रेस उठाती थी। इसके लिए प्रतिवर्ष 10,000 रुपए से 60,000 रुपए तक भारत से लंदन जाते थे (उन दिनों जब सोना 20 रु. तोला था)।
1905 के बाद लोकमान्य तिलक, लाला लाजपत राय और विपिन चन्द्र पाल के कारण कांग्रेस अपनी पूर्व निर्धारित राह से हटने की प्रवृत्ति दिखाने लगी। पर अंग्रेजों ने वैसा होने नहीं दिया। भारत छोड़कर जाने से पहले अंग्रेजों ने अपने संरक्षण में 'अंतिम अंग्रेज' जवाहरलाल नेहरू को सत्ता सौंपी, जो लॉर्ड मैकाले की कल्पना के अनुरूप मात्र रक्त व रंग से भारतीय थे पर 'सोच, रुचि, नैतिकता तथा कर्म' में अंग्रेज। अंग्रेजी डीएनए वाली, अंग्रेजी संस्थापक वाली, अंग्रेजी नाम वाली कांग्रेस सदा अंग्रेजी या पश्चिमी हितों को तरजीह देकर चली है। भारत विभाजन की ब्रिटिश योजना की कांग्रेस कमेटी द्वारा स्वीकृति (15 जून 1947) से लेकर अमरीका से यूरेनियम समझौते और एफडीआई संबंधी निर्णय तक अनेक मिसालें हैं। पश्चिमी दबाव में रहने के कारण ही कांग्रेस की पाकिस्तान नीति घुटनाटेक है।
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