वेद का अर्थ है ज्ञान
वेद शब्द संस्कृत भाषा के “विद्” धातु से बना है । “विद्” का अर्थ है: जानना, ज्ञान इत्यादि । ‘वेद’ हिन्दू धर्म के प्राचीन पवित्र ग्रंथों का नाम है, इससे वैदिक संस्कृति प्रचलित हुई । ऐसी मान्यता है कि इनके मन्त्रों को परमेश्वर ने प्राचीन ऋषियों को अप्रत्यक्ष रूप से सुनाया था । इसलिए वेदों को श्रुति भी कहा जाता है । वेद प्राचीन भारत के वैदिक काल की वाचिक परम्परा की अनुपम कृति है जो पीढी दर पीढी पिछले चार-पाँच हज़ार वर्षों से चली आ रही है । वेद ही हिन्दू धर्म के सर्वोच्च और सर्वोपरि धर्मग्रन्थ हैं । वेद के असल मन्त्र भाग को संहिता कहते हैं ।
वेद शब्द का अर्थ है - ज्ञान।
वेद --मन्त्रों को ऋचा कहते हैं । अन्य ग्रंथों के मन्त्रों को ऋचा नहीं कहा जा सकता ।जो विद्वान किसी वेद मंत्र का नया अर्थ ढूंढ़ निकाले उसे ऋषि कहते हैं ।
प्रत्येक ऋचा के अनेक अर्थ हो सकते हैं। एक विद्वान एक ऋचा से किसी एक ज्ञान को प्राप्त करता है, उसका एक अर्थ निकालता है ।परन्तु एक दूसरा विद्वान जब उसी ऋचा को पढ़ता है तब उसे एक नए अर्थ , नए ज्ञान की प्राप्ति होती है ।अतः ये दोनों विद्वान ऋषि कहलाएंगे । उसी ऋचा का कोई तीसरा विद्वान एक अन्य नया अर्थ निकालता है नए ज्ञान को प्राप्त करता है तो उसे भी ऋषि कहा जाएगा। इस प्रकार एक ही ऋचा के अनेकों ऋषि हो सकते हैं । उन ऋषियों ने एक ही वेद मंत्र के अलग -अलग , नए - नए अर्थ निकाले हैं ।
एक ही ऋचा के भिन्न -भिन्न अनेक अर्थ हो सकते हैं । परन्तु उनका अर्थ परमात्मा के गुण- कर्म और स्वभाव के विपरीत नहीं होना चाहिए ।
प्रत्येक वेद- मंत्र का देवता भी होता है ।देवता कहते हैं उस वेद मंत्र में प्रतिपादित विषय को ।अर्थात उस मंत्र में किस विषय का ज्ञान दिया गया है ।
एक ऋचा के अनेक देवता हो सकते हैं ।
एक ही ऋचा के अर्थ जब भिन्न- भिन्न ऋषि करते हैं ,तब उनके अर्थों में भिन्नता आ जाती है ।अर्थ अलग -अलग होने से विषय भी अलग हो जाते हैं ।विषय की भिन्नता के कारण एक ही ऋचा के कई देवता हो सकते हैं ।
वेद उन ग्रंथों को कहते हैं जिनमें ज्ञान -विज्ञानं की सभी बातें बीज रूप में हैं ।
बीज रूप में कहने का अर्थ है---वेद में ज्ञान -विज्ञानं की सारी बातें बहुत कम शब्दों में कही गई है । अर्थात छोटे में कही गई है । बड़े - बड़े विद्वान वेद पढ़ कर उसमें निहित गूढ़ ज्ञान को समझ लेते हैं और अपने शिष्यों को समझते हैं ।
जैसे बीज में पूरा पेड़ समाया होता है ,जब बीज को मिटटी में बोया जाय , उसे पानी मिले , तब उससे अंकुर निकलता है और विशाल पेड़ बन जाता है। वैसे ही जब वेद मन्त्रों को ऋषियों की मस्तिष्क रुपी ऊर्वरा भूमि मिलती है , वे उन मन्त्रों पर विचार करते हैं तब उस वेद मंत्र में निहित ज्ञान को समझ लेते हैं और व्याख्या करते हैं । इस प्रकार शिष्यों को वेद का ज्ञान प्राप्त होता है ।
वेद चार हैं । उनके नाम हैं -----ऋग्वेद , यजुर्वेद , सामवेद और अथर्ववेद ।
वेद का ज्ञान परमपिता परमेश्वर ने दिया है । परमेश्वर ने वेद का ज्ञान मानवी - सृष्टि के आदि काल में ही दिया ।
परमात्मा ने सृष्टि के आदि काल में स्वयं उत्पन्न चार ऋषियों को वेद का ज्ञान दिया । उन चार ऋषियों के नाम थे ---अग्नि , वायु , आदित्य और अंगिरा।ऋग्वेद का ज्ञान अग्नि ऋषि को , यजुर्वेद का ज्ञान वायु ऋषि को , सामवेद का ज्ञान आदित्य ऋषि को और अथर्ववेद का ज्ञान अंगिरा ऋषि को दिया गया ।
निराकार ईश्वर ने ऋषियों को वेद का ज्ञान दिया ।
जैसे एक योगी अपना सन्देश दूर स्थित किसी दूसरे योगी के हृदय तक पहुंचा देता है उसी प्रकार परमयोगी परमात्मा ने वेद का ज्ञान उन चारों ऋषियों के हृदय में पहुंचा दिया ।
उन चारों ऋषियों ने वेद ज्ञान का उपदेश ब्रह्मा नाम के एक ऋषि को दिया । ब्रह्मा ने वेद का उपदेश अपने शिष्यों को दिया । उनके शिष्यों ने अपने शिष्यों को । इस प्रकार वेद का ज्ञान मानव समाज को गुरु - शिष्य परंपरा से प्राप्त होता रहा ।
उन चारों ऋषियों ने वेद को लिखा नहीं था ।
उनहोंने वैदिक ज्ञान का उपदेश ब्रह्मा के प्रति किया ।
ब्रह्मा ने सुनकर याद कर लिया ।
ब्रह्मा ने उसका उपदेश अपने शिष्यों के प्रति किया ।
शिष्यों ने सुनकर याद कर लिया और पुनः उन्होंने अपने शिष्यों को उसका उपदेश किया ।
इस प्रकार वेद का ज्ञान गुरु द्वारा शिष्य को सुनकर प्राप्त होता रहा । इसीलिए वेद को श्रुति भी कहते हैं ।
द्वापर युग के अन्तिम दिनों में वेद को लिपिबद्ध किया गया ।
वेद को ऋषिवर व्यास ने लिपिबद्ध किया ।
महर्षि व्यास ने देखा कि वेद के अध्ययन में अब लोग प्रमाद करने लगे हैं । लोगों में वेद पढ़ने की रूचि नहीं रह गई है ।
अतः कुछ समय पश्चात् वेद का ज्ञान लुप्त हो जाएगा ।
इसीलिए उन्होंने वेद को लिपिबद्ध किया ।
इस प्रकार वेद का ज्ञान सदा के लिए सुरक्षित हो गया ।
वेद व्यास को वेद के सारे मंत्र कंठस्थ नहीं थे ।
परन्तु जब उन्होंने वेदों का संकलन करने का निश्चय काया तब ऋषियों के पास जा -जा कर उन्होंने वेद मन्त्रों का संग्रह किया ।
परमात्मा ने मानव को इस धरती पर सुखपूर्वक जीवन निर्वाह कर सकने तथा मोक्ष प्राप्त कर सकने के लिए करुणा पूर्वक वेद का उपदेश दिया ।
मानव जीवन के लक्ष्य ---धर्मं , अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति के लिए परमात्मा ने वेद का उपदेश दिया ।
वेद मन्त्रों को पढ़कर उसे सभी व्यक्ति नहीं समझ सकते हैं ।
जिसने वेदांग , अर्थात शिक्षा , कल्प , व्याकरण , निरुक्त , ज्योतिष और छंद का विधिवत अध्ययन किया हो वही वेद मन्त्रों के अर्थ समझ सकता है । वेद के विद्वान ऋषियों द्वारा वेद के भाष्य किए गए हैं ।उन्हें पढ़कर जन साधारण वैदिक शिक्षा से लाभ उठा सकता है ।
वेद शब्द संस्कृत भाषा के “विद्” धातु से बना है । “विद्” का अर्थ है: जानना, ज्ञान इत्यादि । ‘वेद’ हिन्दू धर्म के प्राचीन पवित्र ग्रंथों का नाम है, इससे वैदिक संस्कृति प्रचलित हुई । ऐसी मान्यता है कि इनके मन्त्रों को परमेश्वर ने प्राचीन ऋषियों को अप्रत्यक्ष रूप से सुनाया था । इसलिए वेदों को श्रुति भी कहा जाता है । वेद प्राचीन भारत के वैदिक काल की वाचिक परम्परा की अनुपम कृति है जो पीढी दर पीढी पिछले चार-पाँच हज़ार वर्षों से चली आ रही है । वेद ही हिन्दू धर्म के सर्वोच्च और सर्वोपरि धर्मग्रन्थ हैं । वेद के असल मन्त्र भाग को संहिता कहते हैं ।
वेद शब्द का अर्थ है - ज्ञान।
वेद --मन्त्रों को ऋचा कहते हैं । अन्य ग्रंथों के मन्त्रों को ऋचा नहीं कहा जा सकता ।जो विद्वान किसी वेद मंत्र का नया अर्थ ढूंढ़ निकाले उसे ऋषि कहते हैं ।
प्रत्येक ऋचा के अनेक अर्थ हो सकते हैं। एक विद्वान एक ऋचा से किसी एक ज्ञान को प्राप्त करता है, उसका एक अर्थ निकालता है ।परन्तु एक दूसरा विद्वान जब उसी ऋचा को पढ़ता है तब उसे एक नए अर्थ , नए ज्ञान की प्राप्ति होती है ।अतः ये दोनों विद्वान ऋषि कहलाएंगे । उसी ऋचा का कोई तीसरा विद्वान एक अन्य नया अर्थ निकालता है नए ज्ञान को प्राप्त करता है तो उसे भी ऋषि कहा जाएगा। इस प्रकार एक ही ऋचा के अनेकों ऋषि हो सकते हैं । उन ऋषियों ने एक ही वेद मंत्र के अलग -अलग , नए - नए अर्थ निकाले हैं ।
एक ही ऋचा के भिन्न -भिन्न अनेक अर्थ हो सकते हैं । परन्तु उनका अर्थ परमात्मा के गुण- कर्म और स्वभाव के विपरीत नहीं होना चाहिए ।
प्रत्येक वेद- मंत्र का देवता भी होता है ।देवता कहते हैं उस वेद मंत्र में प्रतिपादित विषय को ।अर्थात उस मंत्र में किस विषय का ज्ञान दिया गया है ।
एक ऋचा के अनेक देवता हो सकते हैं ।
एक ही ऋचा के अर्थ जब भिन्न- भिन्न ऋषि करते हैं ,तब उनके अर्थों में भिन्नता आ जाती है ।अर्थ अलग -अलग होने से विषय भी अलग हो जाते हैं ।विषय की भिन्नता के कारण एक ही ऋचा के कई देवता हो सकते हैं ।
वेद उन ग्रंथों को कहते हैं जिनमें ज्ञान -विज्ञानं की सभी बातें बीज रूप में हैं ।
बीज रूप में कहने का अर्थ है---वेद में ज्ञान -विज्ञानं की सारी बातें बहुत कम शब्दों में कही गई है । अर्थात छोटे में कही गई है । बड़े - बड़े विद्वान वेद पढ़ कर उसमें निहित गूढ़ ज्ञान को समझ लेते हैं और अपने शिष्यों को समझते हैं ।
जैसे बीज में पूरा पेड़ समाया होता है ,जब बीज को मिटटी में बोया जाय , उसे पानी मिले , तब उससे अंकुर निकलता है और विशाल पेड़ बन जाता है। वैसे ही जब वेद मन्त्रों को ऋषियों की मस्तिष्क रुपी ऊर्वरा भूमि मिलती है , वे उन मन्त्रों पर विचार करते हैं तब उस वेद मंत्र में निहित ज्ञान को समझ लेते हैं और व्याख्या करते हैं । इस प्रकार शिष्यों को वेद का ज्ञान प्राप्त होता है ।
वेद चार हैं । उनके नाम हैं -----ऋग्वेद , यजुर्वेद , सामवेद और अथर्ववेद ।
वेद का ज्ञान परमपिता परमेश्वर ने दिया है । परमेश्वर ने वेद का ज्ञान मानवी - सृष्टि के आदि काल में ही दिया ।
परमात्मा ने सृष्टि के आदि काल में स्वयं उत्पन्न चार ऋषियों को वेद का ज्ञान दिया । उन चार ऋषियों के नाम थे ---अग्नि , वायु , आदित्य और अंगिरा।ऋग्वेद का ज्ञान अग्नि ऋषि को , यजुर्वेद का ज्ञान वायु ऋषि को , सामवेद का ज्ञान आदित्य ऋषि को और अथर्ववेद का ज्ञान अंगिरा ऋषि को दिया गया ।
निराकार ईश्वर ने ऋषियों को वेद का ज्ञान दिया ।
जैसे एक योगी अपना सन्देश दूर स्थित किसी दूसरे योगी के हृदय तक पहुंचा देता है उसी प्रकार परमयोगी परमात्मा ने वेद का ज्ञान उन चारों ऋषियों के हृदय में पहुंचा दिया ।
उन चारों ऋषियों ने वेद ज्ञान का उपदेश ब्रह्मा नाम के एक ऋषि को दिया । ब्रह्मा ने वेद का उपदेश अपने शिष्यों को दिया । उनके शिष्यों ने अपने शिष्यों को । इस प्रकार वेद का ज्ञान मानव समाज को गुरु - शिष्य परंपरा से प्राप्त होता रहा ।
उन चारों ऋषियों ने वेद को लिखा नहीं था ।
उनहोंने वैदिक ज्ञान का उपदेश ब्रह्मा के प्रति किया ।
ब्रह्मा ने सुनकर याद कर लिया ।
ब्रह्मा ने उसका उपदेश अपने शिष्यों के प्रति किया ।
शिष्यों ने सुनकर याद कर लिया और पुनः उन्होंने अपने शिष्यों को उसका उपदेश किया ।
इस प्रकार वेद का ज्ञान गुरु द्वारा शिष्य को सुनकर प्राप्त होता रहा । इसीलिए वेद को श्रुति भी कहते हैं ।
द्वापर युग के अन्तिम दिनों में वेद को लिपिबद्ध किया गया ।
वेद को ऋषिवर व्यास ने लिपिबद्ध किया ।
महर्षि व्यास ने देखा कि वेद के अध्ययन में अब लोग प्रमाद करने लगे हैं । लोगों में वेद पढ़ने की रूचि नहीं रह गई है ।
अतः कुछ समय पश्चात् वेद का ज्ञान लुप्त हो जाएगा ।
इसीलिए उन्होंने वेद को लिपिबद्ध किया ।
इस प्रकार वेद का ज्ञान सदा के लिए सुरक्षित हो गया ।
वेद व्यास को वेद के सारे मंत्र कंठस्थ नहीं थे ।
परन्तु जब उन्होंने वेदों का संकलन करने का निश्चय काया तब ऋषियों के पास जा -जा कर उन्होंने वेद मन्त्रों का संग्रह किया ।
परमात्मा ने मानव को इस धरती पर सुखपूर्वक जीवन निर्वाह कर सकने तथा मोक्ष प्राप्त कर सकने के लिए करुणा पूर्वक वेद का उपदेश दिया ।
मानव जीवन के लक्ष्य ---धर्मं , अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति के लिए परमात्मा ने वेद का उपदेश दिया ।
वेद मन्त्रों को पढ़कर उसे सभी व्यक्ति नहीं समझ सकते हैं ।
जिसने वेदांग , अर्थात शिक्षा , कल्प , व्याकरण , निरुक्त , ज्योतिष और छंद का विधिवत अध्ययन किया हो वही वेद मन्त्रों के अर्थ समझ सकता है । वेद के विद्वान ऋषियों द्वारा वेद के भाष्य किए गए हैं ।उन्हें पढ़कर जन साधारण वैदिक शिक्षा से लाभ उठा सकता है ।
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