इस्लाम में ईश्वरीय कार्यों में अक्ल को दखल देना कुफ्र माना जाता है . इस कारण इस्लाम निरन्तर पतन की ओर जा रहा है
यद्यपि
मुसलमानी शासन कुछ परिवारों का ही शासन कहा जाता है तथापि वास्तव में ऐसा था नहीं .
मुसलमान शासक परिवार इस्लामी मजहबी नेताओं से भरपूर सहायता लेते थे और फिर इस्लामी
मुल्ला – मौलाना इस्लाम के विस्तार के लिए राजनीतिक प्रभुत्व का पूरा – पूरा लाभ
प्राप्त करते थे .
इस्लाम
अपने जन्म काल से ही दो टाँगों पर चलता रहा है . राजनीतिक शक्ति और मजहबी प्रचार .
यह माना जाता है कि इस्लामी पीरों का हिन्दू समाज पर अति न्यून प्रभाव था . इस पर
भी इन पीरों का देश में रहना दो काम तो करता ही था . एक तो मुसलमान सैनिकों की
क्रूरता को पवित्र बताते रहना और दूसरे
निम्न जाति के हिंदुओं को श्रद्धा में शिथिल करते रहना .
ध्यातव्य
है कि मजहब और धर्म भिन्न – भिन्न हैं. धर्म का सम्बन्ध व्यक्ति के आचरण से होता
है और मजहब कुछ रहन – सहन के विधि – विधानों और कुछ श्रद्धा सर स्वीकार की गई मान्यताओं
का नाम है. आचरण में भी जब बुद्धि का बहिष्कार कर केवल श्रद्धा के अधीन स्वीकार
किया जाता है तो यह मजहब ही कहाता है . मजहब कभी भी व्यक्ति की मानसिक तथा
आध्यात्मिक उन्नत का सूचक नहीं होता , वह सदा पतन का ही सूचक होता है . कभी संगठन
के लिए मजहबी मान्यताएं सहकायक हो जाती हैं , परन्तु वह सहायता सदा अस्थायी होती
है और जो मानसिक दुर्बलताएँ तथा मूढता उत्पन्न होती है , वह घोर पतन का कारण बनती
हैं .
श्रधा
पर आधारित समाज निरन्तर पतन की ओर ही जाता दिखाई देता है . जब श्रद्धा बुद्धि के
अधीन की जाती है अर्थात श्रद्धा की बातों को समय – समय पर बुद्धि कि कसौटी पर कस
के उसमें संशोधन किया जाता रहता है , वह बुद्धिवाद कहाता है . वह प्रगत्ति का सूचक
है .
इस्लाम
में ईश्वरीय कार्यों में अक्ल को दखल देना कुफ्र माना जाता है . इस कारण इस्लाम
निरन्तर पतन की ओर जा रहा है .इसमें विशेषता है कि बुद्धि हीनता के साथ बनी
श्रद्धा के साथ प्रत्येक प्रकार का बल सहायक होता है और इस बल का संचय करने के लिए
प्रत्येक प्रकार के इन्द्रिय सुखों का प्रलोभन दिया जाता है .
इस
प्रकार इस्लाम की गाड़ी दो चक्कों पर चल रही है . एक ओर सब प्रकार के इन्द्रिय
सुखों का प्रलोभन है और दूसरी ओर इस्लाम के नाम पर किये गये सब प्रकार के
अत्याचारों का पुरस्कार खुदा की ओर से बहिश्त दिया जाना बहुत बड़ी आशा है . यह गाड़ी
कब तक चलेगी , यह बता पाना कठिन है ? परन्तु वर्तमान बुद्धिशीलों के लिए यह एक
भयंकर भय व चिंता का कारण बना हुआ है . भय यह है कि श्रद्धा में बंधे हुए और
अज्ञानता में किये प्रत्येक प्रकार के पाप – कर्म का बहिश्त में मिलने वाले ऐश और
आराम का प्रलोभन भले लोगों की चीख – पुकार को कुंठित कर रहा है .
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