ईश्वर सच्चिदानंद है
वैदिक ग्रंथों के अनुसार ईश्वर का लक्षण सच्चिदानंद है । सच्चिदानंद मे तीन पद है- सत्, चित् और आनन्द । सत् का अर्थ है भूत, भविष्य, वर्तमान इन तीनों कालों में एक रस रहने वाला दूसरे शब्दों में जिसमें किसी प्रकार का परिवर्तन न हो सके यह सत् है । ज्ञान वाले को 'चित्' कहते हैं और तीनों कालों में दुख के नितान्त अभाव का नाम 'आनन्द' है। ईश्वर सच्चिदानन्द इसलिए है कि उसमें परिवर्तन कभी नहीं होता । उसका ज्ञान कभी नष्ट नहीं होता और न कभी उसमें दुःख व्याप्त होता है । संसार के जितने भी साकार पदार्थ हैं, उन सब में परिवर्तन होता है । इसलिए वह 'सत्' नहीं। 'चित्' तो केवल आत्मा अथवा परमात्मा ही है, जो कि निराकार है। कोई भी साकार या शरीरधारी दुख से बच नहीं सकता । तीनों काल इसमें आनन्द नहीं रह सकता । सर्दी-गर्मी भूख-प्यास, भय, शोक, रोग, बुढापा, मृत्यु आदि प्रत्येक साकार या शरीरधारी को सताते हैं । ईश्वर इन दोनों से सर्वथा अलग है । अत: ईश्वर को साकार मानने में पहला दोष यह आता है कि वह 'सच्चिदानन्द' और 'निर्विकार' नहीं रहता । क्योकि प्रत्येक साकार पदार्थ में जन्म, वृद्धि, क्षय, जरा, मृत्यु आदि विकार मौजूद हैं । दूसरा दोष साकार मानने में यह है- ईश्वर 'सर्वव्यापक' नहीं रहता । क्योंकि प्रत्येक साकार पदार्थ एकदेशी अर्थात एक जगह रहने वाला होता है । तीसरा दोष यह आता है ईश्वर 'अनादि' और 'अनन्त' नहीं रहता क्योंकि प्रत्येक साकार या शक्ल वाला पदार्थ उत्पन्न होता है इसलिए उसका आदि होता है, वह अनादि नहीं होता है, और न अनन्त होता है जिसका आदि है उसका अन्त अवश्य है और जो उत्पन्न होगा वह नष्ट अवश्य होगा । जिसका एक किनारा है उसका दूसरा किनारा होता ही है । चौथा दोष यह आता है - ईश्वर सर्वज्ञ नहीं रहता । क्योकि जब आकार होया तो एक जगह होगा, सब जगह नहीं । जब सब जगह नहीं होगा तो सब जगह का ज्ञान भी नहींहोगा। एक जगह का होगा। फलत: ईश्वर 'अन्तर्यामी' भी न रहेगा,क्योकि वह प्रत्येक के मन की बात नहीं जान सकेगा । पाँचवा यह आता है ईश्वर नित्य नहीं रहता है अनित्य हो जाता है । नित्य उसे कहते है कि पदार्थ हो परन्तु उसका कारण कोई न हो । वह किसी के मेल से बना हुआ न हो साकार पदार्थ तत्वों के मेल से बना हुआ होता है। छठा दोष यह आता है- परमात्मा, सर्वाधार नहीं रहता 'पराधार' हो जाता है । परमात्मा 'सर्वाधार' इसलिए है कि सारा संसार उसी के सहारे चल रहा है । सारे ब्रह्माण्ड को उसी ने धारण जिया है । यदि परमात्मा को साकार माना जाये, तो वह किसी न किसी के सहारे रहेगा। यही कारण है कि मतवादियों ने ईश्वर को साकार मानकर उसके स्थान नियत किये है । किसी ने सातवाँ आसमान, किसी ने चौथा आसमान, किसी ने क्षीर सागर, किसी ने गोलोक, किसी ने बैकुंठलोक आदि स्थान उसके रहने के बतलाये हैं । जिस परमात्मा के आधार पर सारा जगत् है, लोगो ने उसे साकार मानकर जगत् को उसका आधार बना दिया । जब परमात्मा ही जगत् के सहारे हो जाया तो फिर जगत् किसके सहारे रहेगा? इसी प्रकार और भी बहुत से दोष साकार मानने में आते हैं ।
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