मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का जन्म का उद्देश्य लोक कल्याण
वाल्मीकि रामायण के अनुसार जब राजा दशरथ सन्तान के लिए विचार करने लगे कि रावण और राक्षस राज्य, जो उस समय महान् शक्तिशाली हो गया था, वह अत्यन्त अत्याचार और अनाचार करने लगा है। यहाँ यह स्मरण रखना चाहिए कि केवल एक रावण ही दोषी नहीं था, वरन् उसके नाना के परिवार के लोग रावण के सहायक और सम्मतिदाता माली, मुराली और माल्यवान ने भी भारी अनर्थ रचाया था। अतः देव, गन्धर्व और ऋषि, जो यज्ञ पर आए हुए थे, वे केवल रावण की ही बात नहीं कर रहे थे, वरन् लंका में राक्षस-राज्य की भी चर्चा चला रहे थे।
मंदोदरी के पति रावण से पहले वहां माल्यवान इत्यादि राजा थे और वे भी राक्षस कहाते थे। उनके उपरान्त लंका का राजा रावण हुआ और फिर राम-रावण युद्ध के उपरान्त लंका का राजा विभीषण बनाया गया था। विभीषण को राक्षस नहीं कहा गया।
अतः दशरथ के पुत्र्येष्टि यज्ञ के समय जब विद्वान् लोग विचार करने लगे तो यही विचार हो रहा था कि लंका का राजा रावण घोर तपस्या से महान् शक्ति-शाली हो गया है। वह भले लोगों को बहुत कष्ट देने लगा है। तपस्या से अभिप्राय यही लेना चाहिए कि कार्य करने में कुशलता प्राप्त कर चुका था। विचार यह किया जा रहा था कि उसका निराकरण कैसे किया जाए।
रावण और उससे पूर्व माल्यवान, माली और सुमाली बलशाली कैसे हो गए थे ? यह कहा जाता है कि उन्होंने भी घोर तपस्या की थी। उस तपस्या से बल का संचय किया था।
जब हम यह पढ़ते है कि जर्मनी सन् 1920-33 में अति दुर्बल राज्य था और सन् 1933 से सन् 1938 में यह यूरोप में एक महान् शक्तिशाली राज्य बन गया तो यह भली भाँति समझ में आ सकता है कि रावण भी अपने काल में कैसे तपस्या से अजेय हो गया होगा। उसने सैन्यशक्ति का संचय किया था और उस शक्ति से वह मार-धाड़ करता हुआ। देवलोक तक चला गया था।
देवलोक के वर्णन में ऐसा प्रतीत होता है कि यह उत्तरी ध्रुव के समीप एक देश था। सम्भवतः आजकल का उत्तरी मंगोलिक अथवा अलास्का आदि स्थान हो।
लंका के अधिपति रावण को निस्तेज करने की योजना उस यज्ञ के समय बनाई जा रही थी। इस योजना में राजा दशरथ सम्मिलित नहीं थे। देव, गन्धर्व ऋषि-मुनि बैठकर योजना बनाते रहे।
यह कहा गया है कि उनकी गोष्ठियां ब्रह्मा जी की उपस्थिति में हुईं। ब्रह्मा देवताओं के गुरु थे। प्रभु (परमात्मा) का चिन्तन करने पर उनको आभास हुआ कि विशिष्ट औषध देवलोक के वैद्यों से तैयार कराई जाए और उसे इस यज्ञ में दशरथ की रानियों को खिलाया जाए। ऐसा ही किया गया और इसके फलस्वरूप कौशल्या के गर्भ में राम तथा सुमित्रा के गर्भ से लक्ष्मण विशेष गुणों वाले बालक उत्पन्न हुए।
वाल्मीकि रामायण के अनुसार जब राजा दशरथ सन्तान के लिए विचार करने लगे कि रावण और राक्षस राज्य, जो उस समय महान् शक्तिशाली हो गया था, वह अत्यन्त अत्याचार और अनाचार करने लगा है। यहाँ यह स्मरण रखना चाहिए कि केवल एक रावण ही दोषी नहीं था, वरन् उसके नाना के परिवार के लोग रावण के सहायक और सम्मतिदाता माली, मुराली और माल्यवान ने भी भारी अनर्थ रचाया था। अतः देव, गन्धर्व और ऋषि, जो यज्ञ पर आए हुए थे, वे केवल रावण की ही बात नहीं कर रहे थे, वरन् लंका में राक्षस-राज्य की भी चर्चा चला रहे थे।
मंदोदरी के पति रावण से पहले वहां माल्यवान इत्यादि राजा थे और वे भी राक्षस कहाते थे। उनके उपरान्त लंका का राजा रावण हुआ और फिर राम-रावण युद्ध के उपरान्त लंका का राजा विभीषण बनाया गया था। विभीषण को राक्षस नहीं कहा गया।
अतः दशरथ के पुत्र्येष्टि यज्ञ के समय जब विद्वान् लोग विचार करने लगे तो यही विचार हो रहा था कि लंका का राजा रावण घोर तपस्या से महान् शक्ति-शाली हो गया है। वह भले लोगों को बहुत कष्ट देने लगा है। तपस्या से अभिप्राय यही लेना चाहिए कि कार्य करने में कुशलता प्राप्त कर चुका था। विचार यह किया जा रहा था कि उसका निराकरण कैसे किया जाए।
रावण और उससे पूर्व माल्यवान, माली और सुमाली बलशाली कैसे हो गए थे ? यह कहा जाता है कि उन्होंने भी घोर तपस्या की थी। उस तपस्या से बल का संचय किया था।
जब हम यह पढ़ते है कि जर्मनी सन् 1920-33 में अति दुर्बल राज्य था और सन् 1933 से सन् 1938 में यह यूरोप में एक महान् शक्तिशाली राज्य बन गया तो यह भली भाँति समझ में आ सकता है कि रावण भी अपने काल में कैसे तपस्या से अजेय हो गया होगा। उसने सैन्यशक्ति का संचय किया था और उस शक्ति से वह मार-धाड़ करता हुआ। देवलोक तक चला गया था।
देवलोक के वर्णन में ऐसा प्रतीत होता है कि यह उत्तरी ध्रुव के समीप एक देश था। सम्भवतः आजकल का उत्तरी मंगोलिक अथवा अलास्का आदि स्थान हो।
लंका के अधिपति रावण को निस्तेज करने की योजना उस यज्ञ के समय बनाई जा रही थी। इस योजना में राजा दशरथ सम्मिलित नहीं थे। देव, गन्धर्व ऋषि-मुनि बैठकर योजना बनाते रहे।
यह कहा गया है कि उनकी गोष्ठियां ब्रह्मा जी की उपस्थिति में हुईं। ब्रह्मा देवताओं के गुरु थे। प्रभु (परमात्मा) का चिन्तन करने पर उनको आभास हुआ कि विशिष्ट औषध देवलोक के वैद्यों से तैयार कराई जाए और उसे इस यज्ञ में दशरथ की रानियों को खिलाया जाए। ऐसा ही किया गया और इसके फलस्वरूप कौशल्या के गर्भ में राम तथा सुमित्रा के गर्भ से लक्ष्मण विशेष गुणों वाले बालक उत्पन्न हुए।
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