Monday, June 8, 2015

लुप्त सरस्वती आखिर मिल ही गई -अशोक “प्रवृद्ध”

राँची झारखण्ड से प्रकाशित दैनिक स अमाचार पत्र राष्ट्रीय खबर के सम्पादकीय पृष्ठ पर दिनांक - ८ जून २०१५ को प्रकाशित लेख - लुप्त  सरस्वती आखिर मिल ही गई  -अशोक “प्रवृद्ध”
राष्ट्रीय खबर , दिनांक- ६ जून २०१५ 

लुप्त  सरस्वती आखिर मिल ही गई 
-अशोक “प्रवृद्ध”

ऋग्वेदादि वैदिक व पौराणिक ग्रंथों में अब तक सिमटी प्राचीनतम और हजारों वर्ष पूर्व लुप्त हो चुकी सरस्वती नदी का आदिबद्री के गाँव मुगलवाली (हरियाणा के महेंद्रगढ़ /यमुनानगर जिला का मुगलावाली गाँव) में उद्गम होना ऐतिहासिक, पुरातात्विक और भौगोलिक दृष्टि से एक अत्यंत महत्वपूर्ण घटना है और इस खोज से भारतीय इतिहास की कई महत्वपूर्ण लुप्त कड़ियों के फिर से जुड़ सकने की आशा बलवती हो गई हैं। मुगलवाली के इस क्षेत्र में भू-जल स्तर काफी नीचे है और उसके आसपास लगे पानी के कई ट्यूबवैलों में भूमिगत जलस्तर 85 फुट से नीचे है, परन्तु यह एक हैरतअंगेज बात है कि जहाँ पर सरस्वती नदी मिली है वहाँ मात्र आठ फुट नीचे ही खुदाई करने पर सरस्वती का जल निकल आने से सरस्वती नदी के  इस क्षेत्र में विराजमान होने की पुष्टि हो गई है । इससे क्षेत्र के लोगों में उत्साह के साथ एक नया विश्वास भी पैदा हो गया और उनका कहना है कि जिस सरस्वती के बारे में कहानियों में सुनते थे, वैदिक-पौराणिक ग्रंथों में पढ़ते थे, अब उस सरस्वती के साक्षात दर्शन भी हो गए हैं।उत्साहित जन कहते हैं सरस्वती आखिर मिल ही गई।  पुरातन भारतीय संस्कृति के विद्वानों का कहना है कि यमुना नगर के मुगलावाली में जिस तरह के ऐतिहासिक, पुरातात्विक और भूगर्भशास्त्रीय प्रमाण मिले हैं, उनसे यह बात सिद्ध हो जाती है कि वैदिक सरस्वती इसी क्षेत्र की विशाल नदी थी, जो भूगर्भीय हलचलों के कारण  विलुप्त-प्राय हो गई थी , जिसके साक्ष्य वैदिक-पौराणिक ग्रंथों में मिलते हैं । सरस्वती की भौगोलिक स्थिति , भारतीय संस्कृति में महता और सभ्यता-संस्कृति में इसके सहयोग का विस्तृत उल्लेख ऋग्वेद, महाभारत, ऐतरेय ब्राह्मण, भागवत पुराण, विष्णु पुराण आदि पुरातन ग्रंथों में अंकित है। ऋग्वेद में सप्तसिंधु क्षेत्र की महिमा को प्रस्तुत करते हुए जिन सात नदियों का वर्णन किया गया है, उनमें से एक सरस्वती है।परन्तु विगत एक शताब्दी से भी ज्यादा पुराना एक विचार यह भी है कि हाकरा घघ्घर नदी ही प्राचीन वैदिक सरस्वती है, जो कभी एक विशाल नदी थी और हिमालय से शुरू होकर राजस्थान में समुद्र में मिल जाती थी। किसी समय राजस्थान और गुजरात का रेगिस्तानी इलाका हरा-भरा था, परन्तु भूगर्भीय हलचलों से यह इलाका धरती के नीचे आ गया और बाद में रेगिस्तान में परिवर्तित हो गया। भूकंपों की वजह से सरस्वती का अपने उद्गम से सम्बन्ध कट गया और वह सूख गई, जो आज भी भूगर्भ के भीतर बह रही है।(इस सम्बन्ध में दिनांक- 23 मार्च 2015 को राँची झारखण्ड से प्रकाशित दैनिक राष्ट्रीय खबर के सम्पादकीय पृष्ठ पर एक पृथक व विस्तृत लेख – सरस्वती आखिर कहाँ गई? प्रकाशित हो चुका है।)
वैदिक कालीन नदी सरस्वती के अस्तित्व और उसकी भूगर्भ में अंगड़ाई ले रही जलधारा को लेकर भूगर्भशास्त्री, पुरातत्ववेत्ता और इतिहासकारों में लम्बे समय से मतभेद बना हुआ है , और यह भी सर्वविदित है कि भारतवर्ष में इतिहास और संस्कृति विचारधारा की लड़ाई के अति संवेदनशील मैदान हैं, जहाँ  सदैव ही वामपंथी और दक्षिणपंथी अपनी धींगामुश्ती की लड़ाई लड़ते रहते हैं। सरस्वती नदी भी भारतवर्ष की धर्म=अध्यात्म, इतिहास व संस्कृति से जुड़ा एक ऐसा ही मुद्दा है, जिसके बारे में वामपंथियों का कहना और मानना है कि यह हिन्दुत्ववादियों का षड्यंत्र है। इसके ठीक विपरीत दक्षिणपंथियों का मानना है कि भूगर्भीय हलचलों से जमीन में सदियों पूर्व समा चुकी वैदिक सरस्वती को वे फिर से बहाकर ही दम लेंगे। नई खबर यह है कि हरियाणा की भारतीय जनता पार्टी सरकार ने वैदिक सरस्वती के लुप्त प्रवाह को खोजने की मुहिम शुरू कर दी है और यमुना नगर जिले के मुगलवाली गाँव में जमीन में आठ फीट नीचे ही मीठे पानी की धारा मिली है। भूगर्भ विज्ञानी मानते हैं कि जहाँ खोदा गया है, वहाँ जमीन के अंदर मिट्टी-पानी इन इलाकों के मिट्टी-पानी से अलग है, इसलिए बहुत सम्भव है कि यह प्राचीन सरस्वती की ही धारा हो।



सदियों पूर्व लुप्त हो चुकी एक मृतप्राय सरस्वती नदी का खुदाई करके नदी का प्रवाह मार्ग ढूँढने का यह काम प्रारम्भ तो हुआ मनरेगा के तहत, परन्तु इसकी महता को देखते हुए शीघ्र ही यह काम कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के पुरातत्व विभाग की देखरेख में आगे बढ़ा। अब इसमें भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण, इसरो और तेल और प्राकृतिक गैस आयोग के शामिल होने की आशा है। कुरुक्षेत्र में इस परियोजना पर छह साल से काम हो रहा है। दिलचस्प यह भी है कि 1886 में आर.डी. ओल्डहम सहित अनेक इतिहासकारों की भी सरस्वती परियोजना में दिलचस्पी थी। इस शोध और उत्खनन से जुडे़ जानकार ए.के. चौधरी सहित कई अन्य जानकारों का कहना है कि इस इलाके में जहाँ मात्र छह से दस फुट की गहराई पर पानी का एक आंतरिक प्रवाह दिखता है उससे लुप्त हो चुकी वैदिक सरस्वती की पुष्टि होती है। वैदिक सरस्वती की खोज में अकबर कालीन दस्तावेजों का भी सहारा लिया गया है। सरस्वती नदी को लेकर किए गए सर्वेक्षण में कई आश्चर्यजनक तथ्य भी सामने आए हैं। सरस्वती नदी को धरातल पर लाने के चलते जब राजस्व अभिलेख अर्थात रिकॉर्ड खंगाला गया तो भू अभिलेखों में सरस्वती नदी के बहने का स्थान मौजूद मिला। सर्वेक्षण में राजस्व विभाग, पंचायती विभाग और सिंचाई विभाग की मदद ली गई। इसके अतिरिक्त उपग्रह व अन्य तकनीकी सुविधाओं से भी जमीन को खंगाला गया। इस दौरान रिकॉर्ड में पाया गया कि जिले के कई गाँवों में सरस्वती के लिए आज भी रास्ता छोड़ा गया है। जहाँ से होकर प्राचीन समय में सरस्वती नदी गुजरती थी। स्थानीय अधिकारियों ने समाचार माध्यमों को दिए गए जानकारी में बताया कि सरस्वती नदी का सर्वेक्षण उद्गम स्थल से जिला यमुनानगर के कुरुक्षेत्र के साथ लगते अंतिम गाँव तक किया गया है। इसरो के मुताबिक सरस्वती की जलधारा अब भी जमीन के नीचे बहती है, जिसका नक्शा उपग्रह के माध्यम से गूगल पर देखा जा सकता है। अगर ऐसा है तो यह बिल्कुल नई चीज है। इन सबकी वैज्ञानिक जाँच से विभिन्न सतहों और कंकड़-पत्थर-बजरी की उम्र का पता करना मुश्किल नहीं है।

ध्यातव्य है कि सरस्वती नदी शोध संस्थान के अध्यक्ष दर्शनलाल जैन ने सरस्वती नदी के महत्व को वर्षों पूर्व समझा और इसे धरा पर लाने का संकल्प लिया था । यह कार्य उन्होंने 1999 के दौरान अपने हाथ में लिया था, जब केन्द्र में राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठ्बन्धन की सरकार थी और जगमोहन केन्द्रीय पर्यटन मंत्री हुआ करते थे, तो करोड़ों रुपया खर्च करके देश के कई भागों में सरस्वती की खोज में खुदाई का कार्य प्रारम्भ हुआ था। लेकिन संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन सरकार ने सता में आते ही इस नेक कार्य को ठंडे बस्ते में डाल दिया।  इससे भारतीय सभ्यता-संस्कृति को समझने की एक सार्थक कार्य ही नहीं रुक गया बल्कि करोड़ों रुपए का खर्च बेकार हो गया। अब केन्द्र व प्रदेश में सरकार बदली और भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी तो यह काम देहरादून की एक प्रयोगशाला और अन्य संस्थाओं के सहयोग से फिर से शुरू हो गया तथा उसके सार्थक परिणाम भी शीघ्र मिलने शुरू हो गए हैं, और न केवल हरियाणा के यमुनानगर जिले के आदिबद्री में सरस्वती का उद्गम स्थल खोज लिया गया है, बल्कि मुगलवाली गाँव में धरातल से सात फीट नीचे तक खुदाई करने से नदी की जलधारा भी फूट पड़ी है। इस धारा का रेखामय प्रवाह तीन किलोमीटर की लम्बाई में नदी के रूप में सामने आया है और आगे खुदाई का कार्य अभी जारी है। एक मृत पड़ी नदी के इस पुनर्जीवन से उन सब अटकलों पर विराम लगा है, जो वेद-पुराणों में वार्णित इस नदी को या तो मिथकीय ठहराने की कोशिश करते थे या इसका अस्तित्व अफगानिस्तान की हेलमन्द  नदी के रूप में मानते थे। इससे एक बार फिर यह सिद्ध हुआ है कि ऋग्वैद आदि ग्रंथों में उल्लेखित सरस्वती का भूगोल आधारहीन कल्पना नहीं है।  इस सम्बंध में दर्शनलाल जैन ने कहा कि यह पहला कदम है, और अभी काफी काम होना है। सरस्वती नदी संजीवनी बनेगी, इससे पानी की कमी तो पूरी होगी ही, साथ ही बरसात के दिनों में बाढ़ का प्रकोप कहर नहीं बरपा पाएगा। उन्होंने इसके लिए केन्द्र व राज्य सरकार की कार्यशैली की सराहना की।

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