Tuesday, September 23, 2014

आरक्षित झारखण्ड की विचित्र कथा

आरक्षित झारखण्ड की विचित्र कथा

हमारे झारखण्ड प्रांत की भी विचित्र कथा है ! यहाँ के चिकित्सीय शिक्षण संस्थानों में आरक्षित वर्ग अनुसूचित जनजाति के विद्यार्थियों के नामांकन हेतु चालीस प्रतिशत न्यूनतम अंक निर्धारित की गई है , लेकिन इस अत्यल्प न्यूनतम अंक सीमा को भी प्राप्त करने वाले अनुसूचित जनजाति वर्ग के विद्यार्थी राज्य में ढूंढें से भी नहीं मिल रहे . जिसके कारण राज्य की शिक्षण संस्थाओं के शताधिक आरक्षित सीटें वर्षों से रिक्त पड़ी हैं . परिणामस्वरूप झारखण्ड सरकार हैरान - परेशांन है . उसने इस मामले को लेकर झारखण्ड उच्च न्यायलय में चल रहे एक मामले में न्यायालय से गुहार लगाईं है कि रिक्त पड़े चिकित्सीय शिक्षण संस्थाओं की सीटों को अन्य जाति वर्ग के सुयोग्य उम्मीदवारों से नहीं भर कर अनुसूचित जनजाति वर्ग के ही विद्यार्थियों का नामांकन सुनिश्चित कराने के लिए अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए न्यूनतम अंक सीमा और भी कम कर देने की अनुमति देने की कृपा की जाए ताकि अनुसूचित जनजातीय बहुल क्षेत्रों के निवासियों के इलाज हेतु आरक्षित वर्ग के इन चिकित्सकों की नियुक्ति भविष्य में की जा सके. झारखण्ड सरकार ने न्यायलय को बतलाया कि उसने यह गुहार केन्द्र सरकार से भी लगाईं है कि अनुसूचित जनजाति वर्ग के विद्यार्थियों की चिकित्सीय संस्थानों में नामांकन सुनिश्चित करने हेतु इनके न्यूनतम अंक सीमा को और भी घटाकर अत्यल्प कर दिया जाये ताकि झारखण्ड सरकार की मंशा पूर्ण हो सके . उधर जानकार सूत्रों का कहना है कि अनुसूचित जनजाति वर्ग के चालीस प्रतिशत अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों की प्रान्त में कमी तो है ही लेकिन असली बात है कि प्रान्त के कुछ विधायिका व कार्यपालिका के कुछ प्रतिष्ठितों के बिगडैल संतानॉन का नामांकन चिकित्सीय संस्थानों में सुनिश्चित करने के लिए यह सारा हथकंडा रचा गया है .

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