Wednesday, November 26, 2014

मदिरा पान का प्रचलन बुद्धि की अवहेलना का परिचायक - अशोक "प्रवृद्ध"

राँची , झारखण्ड से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र राष्ट्रीय खबर में दिनांक - २४ / ११ / २०१४ को सम्पादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित लेख - मदिरा पान का प्रचालन बुद्धि की अवहेलना का परिचायक


मदिरा पान का प्रचलन बुद्धि की अवहेलना का परिचायक
          - अशोक "प्रवृद्ध"

किसी भी राष्ट्र के उज्जवल , बेहतर और स्वर्णिम भविष्य के लिए उस देश के लोगों का स्वस्थ , सबल , मेघावी , दीर्घायु और उत्साही होना नितान्त आवश्यक है , लेकिन यह विडम्बना ही है कि वर्तमान में हमारे देश भारतवर्ष का युवा नशे के जाल में फँसता चला जा रहा है , जो न केवल उन्हें पतन और विनाश के गर्त में ढकेल रहा है वरन समाज व राष्ट्र के भविष्य पर भी प्रश्नचिह्न लगा रहा है । हमारे देश में सभी प्रकार के मादक पदार्थों का प्रचलन द्रुतगति से दिनानुदिन बढ़ता ही जा रहा है , जिसमें प्रमुख रूप से मदिरा अर्थात शराब , अफीम , डोडा-पोस्त , तम्बाकू , चरस , गाँजा , भाँग एवं नशीली दवाईयों के अतिरिक्त धूम्रपान (सिगरेट,बीड़ी) तो अपनी चरम सीमा पर पहुँच चुका है। महँगी और सर्वसुलभ नहीं होने के कारण नशे की अन्य वस्तुओं तक सबकी पहुँच थोड़ी कठिन है , इसलिए वर्तमान काल में मदिरा अर्थात शराब का प्रयोग बढ़ रहा है। यद्यपि बहुत ही प्राचीन काल से ही इसका प्रयोग प्रचलित रहा है , तथापि इसकी मात्रा अत्यंत न्यून थी। अधिक प्राचीन काल की बात न भी की जाये तो भी आज से बीस - तीस वर्ष पूर्व हमारे ढाई सौ परिवार के मोहल्ले में भी प्रत्यक्ष रूप में एक परिवार का मात्र एक ही घटक अर्थात व्यक्ति ऐसा दिखाई देता था जो मद्यपान करता था। वह कभी - कभी पीकर झूमता हुआ मोहल्ले में लड़ाई - झगडा करता भी दिखाई देता था। उस समय नगर भर में एक - दो दुकानें ही हुआ करती थी जहाँ शराब बोतलों में बिका करती थीं। खुली बोतलों वाली शराब की दुकान की ओर लोग जाना भी पसंद नहीं करते थे ।

उस समय फ़्रांस की प्रसिद्ध शैम्पेन की बोतल भी सौ रूपये से कम में ही मिल जाया करती थी। तदपि मद्यपान करने वालों की संख्या नगण्य ही हुआ करती थी। धीरे - धीरे समाज के घटकों में बुद्धि का नियंत्रण ढीला होने से मद्यपान करने वालों की संख्या में वृद्धि होंने लगी और अब नगर के किसी भी मोहल्ले में शराब की दुकान एकं अनिवार्यता हो गई है । यहीं हाल गाँवों की भी है। गाँवों में भी शराब की दुकाने खुल गई हैं । चुलाई की शराब की दुकाने अलग से हैं। राज्य अर्थात सरकार ने शराब पर कर अर्थात टैक्स बढ़ा दिया है। प्रत्येक दुकान और शराब बनाने वाली कम्पनियाँ प्रति वर्ष लाखों - करोड़ों रूपये टैक्स देती हैं । इस पर भी शराब का दुकानदार और कम्पनियाँ दिन - प्रतिदिन उन्नति कर रहे हैं। अर्थात उनका धन बढ़ता ही जा रहा है।

भारतवर्ष का कोई भी प्रदेश ऐसा नहीं है जो कि शराब की बिक्री से होने वाली आय को छोड़ने की बात सोचता हो। भारतवर्ष विभाजन के पश्चात तो शराब का प्रचार थोड़ा कम हुआ था , परन्तु कुछ कालोपरान्त पीने वाले और शराब उत्पादकों के सम्मिलित प्रयास का यह परिणाम हुआ कि अब महीने में करोड़ों - अरबों। रुपयों की शराब की बिक्री होने लगी है। सरकारी टैक्स के आधिक्य के कारण अनियमित शराब का उत्पादन भी प्रचुर मात्रा में होता है और वह भी खूब बिकती है। उसको पीने से प्रतिवर्ष लाखों लोग मृत्यु का ग्रास बनते हैं । यह सब होने पर भी शराब का प्रचलन दिन - प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। मदिरा पान अर्थात नशे की प्रवृति हर आयु वर्ग के लोगों में व्याप्त होती जा रही है । बच्चे , युवा , वृद्ध और महिलाएँ भी इससे अछूती नहीं रही है । युवा वर्ग तो विशेष रूप से इससे प्रभावित है । वर्तमान में राष्ट्र के समक्ष सर्वाधिक ज्वलन्त और महत्त्वपूर्ण मुद्दा यह है कि क्या भावी पीढ़ी नशा - ख़ोर होकर रह जाएगी ?  ऐसे में क्या देश में कोई नीति कायम नहीं की जानी चाहिए , जिससे नशे की इस घातक - प्रवृति पर प्रभावशाली अंकुश लगाया जा सके ? नशा चाहे किसी भी प्रकार का हो और चाहे किसी भी आयु वर्ग के लोगों द्वारा किया जाता हो , वह न केवल स्वास्थ्य के लिए ही अपितु सम्पूर्ण जीवन के लिए अत्यन्त घातक है। मदिरा पान अर्थात नशा करने वाले अक्सर नशे के दुष्परिणामों को जानते हुए भी अंजान बने रहते हैं और कुछ नासमझी में तो कुछ जान - बूझकर नशा करते हैं । लेकिन जान - बूझकर नशा करके अपनी मौत को बुलाना कहाँ की बुद्धिमानी है ?


यदि इसका विश्लेषण किया जाये तो पता चलेगा कि मदिरा पान से क्षणिक आनन्द की उपलब्धि  होती है । किन्तु उस आनन्द से जीवन का ह्रास भी होता है। मद्यपान करने वाले की बुद्धि न केवल क्षीण होने लगती है अपितु वह मलिन भी हो जाती है। परन्तु उस आनन्द कें मोह में पीने वाला मन , बुद्धि और आयु का ह्रास सहर्ष स्वीकार कर पान करता जाता है । इस प्रकार दिनानुदिन शराब का प्रयोग बढ़ता ही जा रहा है। 

विद्वानों के मतानुसार मद्यपान करने से बुद्धि , आयु और बल का ह्रास होता है। परन्तु राज्याधिकारी कहते हैं कि इससे अरबों रूपयों का राजस्व प्राप्त होता है। अब कुछ ऐसे भी लोग सम्मुख आने लगे हैं जो मद्यपान को व्यक्तिगत प्रश्न कहकर उसकी स्वतंत्रता के नाम पर छूट चाहने लगे हैं। ये सब आनंद प्राप्ति के बहाने मात्र हैं । कतिपय मद्यपान करने वालों की इच्छा इतनी प्रबल हो जाती है कि वे बुद्धि की चेतावनी को अवहेलना कर जाते हैं। मन की। कल्पना , जो जीवात्मा की सुख की इच्छा के समर्थन में प्रस्तुत होती है , को जीवात्मा की स्वीकृति मिल जाती है और पूर्ण समाज विकृत होकर विनाश की ओर उन्मुख होने लगता है और उन्मुख हो रहा है। 
वस्तुस्थिति यह है कि किसी व्यवहार विशेष से सुख अथवा आनन्द की प्राप्ति होती है l जीवात्मा सुख की प्राप्ति की प्रबल कामना करता है l वह बुद्धि की चेतावनी की अवहेलना करके मन को आज्ञा देता है कि अमुक शराब पीओं , इतना गिलास अथवा पैग पीओं l 
मित्रों ! जब बुद्धि की चेतावनी की अवहेलना की जाती है तो मन की चंचलता को उच्छृंखलता  करने का अवसर सुलभ हो जाता है । अतः जातीय उत्थान अथवा राष्ट्रोत्थान के लिए जातीय अथवा राष्ट्र के घटकों में बुद्धि को इतना बलवान बनाया जाए कि वह आत्मा की कामनाओं को उचित दिशा देने में समर्थ हो l इसके साथ ही आत्मा के स्वभाव को बदला जाए जिससे वह इच्छाओं और कामनाओं में बह न सके l


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