Monday, October 7, 2013

मदिरा पान का प्रचलन बुद्धि की अवहेलना का परिचायक - अशोक "प्रवृद्ध"

मदिरा पान का प्रचलन बुद्धि की अवहेलना का परिचायक
           अशोक "प्रवृद्ध"

वर्तमान काल में मदिरा अर्थात शराब का प्रयोग बढ़ रहा है। यद्यपि बहुत ही प्राचीन काल से ही इसका प्रयोग प्रचलित रहा है , तथापि इसकी मात्र अत्यंत न्यून थी। अधिक प्राचीन काल की बात न भी की जाये तो भी आज से बीस - तीस वर्ष पूर्व हमारे ढाई सौ परिवार के मोहल्ले में भी प्रत्यक्ष रूप में एक परिवार का मात्र एक ही घटक अर्थात व्यक्ति ऐसा दिखाई देता था जो मद्यपान करता था। वह कभी - कभी पीकर झूमता हुआ मोहल्ले में लड़ाई - झगडा करता भी दिखाई देता था। उस समय नगर भर में एक - दो दुकानें ही हुआ करती थी जहाँ शराब बोतलों में बिका करती थीं। खुली बोतलों वाली शराब की दुकान की ओर लोग जाना भी पसंद नहीं करते थे ।

उस समय फ़्रांस की प्रसिद्ध शैम्पेन की बोतल भी सौ रूपये से कम में ही मिल जाया करती थी। तदपि मद्यपान करने वालों की संख्या नगण्य ही हुआ करती थी।
धीरे - धीरे समाज के घटकों में बुद्धि का नियंत्रण ढीला होने से मद्यपान करने वालों की संख्या में वृद्धि होंने लगी और अब नगर के किसी भी मोहल्ले में शराब की दुकान एकं अनिवार्यता हो गई है । यहीं हाल गाँवों की भी है। गाँवों में भी शराब की दुकाने खुल गई हैं । चुलाई की शराब की दुकाने अलग से हैं। राज्य अर्थात सरकार ने शराब पर कर अर्थात टैक्स बढ़ा दिया है। प्रत्येक दुकान और शराब बनाने वाली कम्पनियाँ प्रति वर्ष लाखों - करोड़ों रूपये टैक्स देती हैं । इस पर भी शराब का दुकानदार और कम्पनियाँ दिन - प्रतिदिन उन्नति कर रहे हैं। अर्थात उनका धन बढ़ता ही जा रहा है।

भारतवर्ष का कोई भी प्रदेश ऐसा नहीं है जो कि शराब की बिक्री से होने वाली आय को छोड़ने की बात सोचता हो। छद्म स्वराज्य मिलने पर तो शराब का प्रचार कम हुआ था परन्तु कुछ कालोपरांत पीने वाले और शराब उत्पादकों के सम्मिलित प्रयास का यह परिणाम हुआ कि अब महीने में करोड़ों - अरबों। रुपयों की शराब की बिक्री होने लगी है। सरकारी टैक्स के आधिक्य के कारण अनियमित शराब का उत्पादन भी प्रचूर मात्रा में होता है और वह भी खूब बिकती है। उसको पीने से प्रतिवर्ष लाखों लोग मृत्यु का ग्रास बनते हैं । यह सब होने पर भी शराब का प्रचलन दिन - प्रतिदिन बढ़ता हो जा रहा है।

यदि इसका विश्लेषण किया जाये तो पता चलेगा कि मदिरा पान से क्षणिक आनंद की उपलब्धि  होती है । किन्तु उस आनंद से जीवन का ह्रास भी होता है। मद्यपान करने वाले की बुद्धि न केवल क्षीण होने लगती है अपितु वह मलिन भी हो जाती है। परन्तु उस आनंद कें मोह में पीने वाला मन , बुद्धि और आयु का ह्रास सहर्ष स्वीकार कर पान करता जाता है । इस प्रकार दिनानुदिन शराब का प्रयोग बढ़ता ही जा रहा है। 

विद्वानों के मतानुसार मद्यपान करने से बुद्धि , आयु और बल का ह्रास होता है। परन्तु राज्याधिकारी कहते हैं कि इससे अरबों रूपयों का राजस्व प्राप्त होता है। अब कुछ ऐसे भी लोग सम्मुख आने लगे हैं जो मद्यपान को व्यक्तिगत प्रश्न कहकर उसकी स्वतंत्रता के नाम पर छूट चाहने लगे हैं। ये सब आनंद प्राप्ति के बहाने मात्र हैं । कतिपय मद्यपान करने वालों की इच्छा इतनी प्रबल हो जाती है कि वे बुद्धि की चेतावनी को अवहेलना कर जाते हैं। मन की। कल्पना , जो जीवात्मा की सुख की इच्छा के समर्थन में प्रस्तुत होती है , को जीवात्मा की स्वीकृति मिल जाती है और पूर्ण समाज विकृत होकर विनाश की ओर उन्मुख होने लगता है और उन्मुख हो रहा है। 
मित्रों ! जब बुद्धि की चेतावनी की अवहेलना की जाती है तो मन की चंचलता को उच्छ्रिन्खलता  करने का अवसर सुलभ हो जाता है।

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