Thursday, September 5, 2013

मानव इतिहास के आदिकाल से चला आ रहा है वामपंथी विचारधारा

मानव इतिहास के आदिकाल से चला आ रहा है वामपंथी विचारधारा राजनीति में लैफ्टिस्ट (वामपक्षीय) भले ही ‘पार्लियामेन्टरी सिस्टम’ की उपज हों, वास्तव में वामपक्षीय विचार-धारा के लोग तो मानव-इतिहास के आदि काल से चले आ रहे हैं। जब से मनुष्य ने अपनी निज की, समाज की तथा संसार की समस्याओं पर विचार करना आरम्भ किया है, तब से ही दो प्रमुख विचार मनुष्य के मन को आन्दोलित करतेरहे हैं। वर्तमान और भविष्य ये उन दो विचारधाराओं की धुरी रहे है। लैफ्टिस्ट (वामपक्षीय) केवल वर्तमानकी ओर ध्यान रखने वाले रहे हैं। उनका दृष्टि-क्षेत्र सदा जन्म से मरण तक सीमित रहा है। राजनीति में सभी लैफ्टिस्ट सामयिक सफलता को ही मुख्य मानते हैं। प्रायः राजनीतिक लैफ्टिस्ट, जब सीमित काल में सफलता नहीं पा सकते, तो क्रान्ति की माँग करने लगते हैं। उन्हें सफलता में देरी असह्य हो जाती है। सफलता प्राप्त करने के लिए समय अल्प होने के कारण, वे उचित और अनुचित उपायों काविचार भी छोड़ बैठते हैं। इसके विपरीत राईटिस्ट (दक्षिण-पंथीयविचार के लोग) वर्तमान जीवन को विराट् जीवन का एक बहुत छोटा भाग मानते हैं। इनका दृष्टि-क्षेत्र अति दूर तक फैला हुआ और गम्भीर होता है। उनको सफलता प्राप्त करने के लिये घबराहट, उतावली, निराशा नहीं होती। वे क्रान्ति को आवश्यक और लाभदायक नहीं मानते और न ही वे सफलता करने मेंअनुचित उपाय प्रयोग करना उचित समझते हैं। निज, समाज की अथवा संसार की उन्नति उपादेय मानते हुए भी, उसको झूठ, दगा अथवा पाप के मार्ग से प्राप्त करने में हानि मानते हैं। यह है सिद्धान्तात्मक भेद वामपक्ष और दक्षिण पक्ष में। वाममार्ग मत, मज़हब के क्षेत्र में लैफ्टिज़्म (वामपक्ष) है। मज़हब मनुष्य के आचरण तथा मनुष्य और समाज के सम्बन्ध के विषय की बात बताता है। मनुष्य क्या है ? इसका आदि-अन्त कहाँ है ? संसार केसाथ इसका क्या सम्बन्ध है ? मानव-समाज और व्यक्ति के अधिकारों में सीमा कहाँ है ? इन सब और इसी प्रकार की अनेक अन्य बातों में विवेचना करने कि समय, जो मनुष्य जीवन को जन्म से मरण तक ही मानते हैं, न इसके पहले कुछ था, न इसके पश्चात कुछ रहने को है, अर्थात् संसार के बहते पानी पर एक बुदजबुदा-मात्र ही यह है, वे वाम-मार्ग के अनुयायी माने जाते हैं। इनके दृष्टिकोण में एक विशेषता यह आ जाती है कि वे जो कुछ भी शरीर के भोग हैं, उनको ही प्रमुख मानते हैं औरउनके भोगने के लिए एक अल्प समय ही अपने पास समझते हैं। इनके विपरीत शुद्ध विचारधारा मानने वाले शरीर को गौण मान आत्मा को अपना एक मुख्य अंग मानते हैं। आत्मा को अमर मानते हैं और एक जन्म के कर्मों का फल अगले जन्म तक चलने वाला मानते हैं। उनके लिये किसी दुस्तर–से-दुस्तर कार्य-साधन में भी, न तो उतावली की आवश्यकता होती है, न ही अनुचित उपायों के प्रयोग की। वे जन्मके पश्चात जन्म तक, किसी भले कार्य केफलीभूत होने की प्रतीक्षा कर सकते हैं। उनके लिये मरण, जीवन के अधिष्ठाता आत्मा के अन्त का सूचक नहीं। यह तो केवल जीर्ण वस्त्र बदलना-मात्र है।

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