Thursday, September 5, 2013

भारतीय साहित्य में विज्ञानं की परिभाषा

भारतीय साहित्य में विज्ञानं की परिभाषा भारतीय साहित्य में विज्ञान का अर्थ विशेष ज्ञान लिया गया है। संसार के दिखाई देने वाले तथा न दिखाई देने वाले पदार्थों के विषय में, जानकारी को ज्ञान कहते हैं। जैसे वायु, जिसमें सांस लेते हैं, जल, जो प्यास लगने पर पिया जा ता है, अन्न, फल, मूल, कन्द इत्यादि जिनसे भूख मिटाई जाती है, पृथिवी जिस पर हम टिके हुए हैं, जिस पर मकान कल-कारखाने लगे हुए हैं, सूर्य जो दिन भर प्रकाश देता है और ऊष्मा तथा शक्ति प्रदान करता है, चाँद जो शीतलता सौम्यता प्रदान करता है और मन में उल्लास उत्पन्न करता है,अभिप्राय यह कि सब पदार्थ, अन्तरिक्षके नक्षत्रादि से लेकर अति शक्तिशाली क्षुद्रबीन से देखे जाने वाले कीटाणु तथा पदार्थों के अणु तक के विषय की सब बातें ज्ञान के अन्तर्गत हैं। इस सब को भारतीय साहित्य में कार्य-जगत् कहते हैं। विज्ञान का अर्थ है विशेष ज्ञान। यह सब जगत कैसे उत्पन्न हुआ ? उसके कारण पदार्थ की जानकारी को विज्ञान कहते हैं। उदाहरण से बात स्पष्ट हो जावेगी। हम पीने वाला जल लें। जब हम जल के विषय में यह जानकारी प्राप्त करते हैं यह तरल है, पारदर्शक है, भार रखता है, इसका तुलनात्मक गुरुत्व (Specific gravity) एक है, यह हृदय है पोषक है और प्राणी के जीवन के लिये एक अत्यावश्यक पदार्थ है इत्यादि; तो हमज्ञान के क्षेत्र में ही हैं। अर्थात् जल के विषय में इन और ऐसी बातों का जानना ज्ञान प्राप्त करना कहलाता है। परन्तु जब हम जल का विश्लेषण कर यह जान जाते हैं कि यह दो प्रकार के वायुरूप पदार्थों से बना है। इनमें से एक पदार्थ का नाम हाइड्रोजन और दूसरे कानाम ऑक्सीजन है; फिर हम यह जानने का प्रयत्न करते हैं कि दो भाग हाइड्रोजन और एक भाग ऑक्सीजन के संयोग से जल बनता है। इसके साथ ही जब हम यह देखते हैं कि हाइड्रोजन रासायनिक विचार से एक प्रारम्भिक पदार्थ है और जल की भांतिदो पदार्थों के संयोग से नहीं बना; औरयह हाइड्रोजन बहुत ही बारीक-बारीक कणों से बनी है, इनको रासायनिक परमाणु (atom) कहते हैं। इससे भी आगे जब हम यह पता करते हैं कि एक हाइड्रोजन का रासायनिक परमाणु भी तीन प्रकार के कणों से बना है। उन कणों को इलेक्टौन, प्रोटौन और न्यूट्रौन कहते हैं, और कुछ लोग तो इससे भी दूर जाने का दावा करते हैं। वे कहते हैं कि ये तीनों कण शक्ति से उत्पन्न हुए हैं। तो इस प्रकार की खोज को भारतीय साहित्य में विज्ञान की ओर जाना कहा जाता है। विज्ञान कार्य-जगत् के पदार्थों में कारण-पदार्थ के ज्ञान का नाम है। पूर्ण जगत् के कारण-पदार्थ अर्थात् मूल पदार्थ के ज्ञान को विज्ञान का नाम दिया है। मूल पदार्थ तीन हैं। आदि प्रकृति, आत्मा और परमात्मा। कुछ भारतीय विद्वान यह भी कहते हैं कि अन्त में ये तीनों मूल पदार्थ भी एक ही पदार्थ के तीन रूप हैं। अतएव चर-अचर जगत, जो दृष्टिगोचर होता है इसको कार्य-जगत् कहते हैं और भारतीय साहित्य में इस कार्य-जगत् कीजानकारी को ज्ञान कहते हैं। और इस कार्य-जगत के कारण पदार्थ अथवा पदार्थों की जानकारी को प्राप्त करना विज्ञान माना जाता है। परन्तु आजकल का सायंस शब्द इससे भिन्न अर्थ रखता है। उदाहरण के रूप में खनिज पदार्थों की विद्या को, समुद्र जल के गुणों को तथा इसी प्रकार की वस्तुओं की जानकारी प्राप्त करने को भी सायंस (Science) का नाम दिया जाता है और आधुनिक हिन्दी में सायंस का अर्थ विज्ञान लिया जाने लगा है। भारतीय साहित्य में इसको ज्ञान के नाम से पुकारा जाता है। भगवान जाने आजकल के हिन्दी के विद्वानों ने क्यों सायंस का अर्थविज्ञान किया है। कदाचित् उनको भारतीय साहित्य में विज्ञान-शब्द के यथार्थ अर्थ का ज्ञान नहीं होगा। भारतीय साहित्य में विज्ञान का सम्बन्ध विद्या अर्थात् ब्रह्मज्ञान से है। यहां तक समझ लेनाचाहिए कि ब्रह्म के अर्थ उन तीन मूल पदार्थों से हैं जिनसे यह पूर्ण कार्य-जगत बना और चल रहा है। वे तीन मूल पदार्थ हैं, मूल प्रकृति (Primordial matter) ,आत्मा (Soul) और परमात्मा (God)। यह ठीक है कि कई भारतीय इन तीन मूल पदार्थों को एक ही मूल पदार्थ के तीन रूप मानते हैं। परन्तु यह भी सत्य है कि अनेक अन्य विद्वान हैं जो इस पूर्ण जगत के मूल में दो और कई विद्वान तीन पदार्थों का होना स्वीकार करते हैं।

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