Thursday, September 19, 2013

वैदिक ग्रंथों के अनुसार वर्षा का कारण सूर्य और वायु

वैदिक ग्रंथों के अनुसार वर्षा का कारण सूर्य और वायु

आधुनिक विज्ञान के अनुसार वर्षा का मुख्य कारण वायु है, वायु के प्रवाहित होने के कारण मेघ बनते हैं और मेघ वर्षा करते हैं । वायु सूर्य की किरणों के प्रभाव से
मेघ बन जाती है । सूर्य की किरणें वाष्पन विधि से जल व वायु का मिलाप करा देती हैं और फिर बादल बन जाते हैं ।
हमारे आदिग्रंथ वेद में परमात्मा के द्वारा उपर्युक्त बातें सहस्त्राब्दियों पूर्व ही , जब सृष्टि रचना हुई, उद्घाटित की गई हैं। ऋग्वेद 1/6/4 में अन्न की उत्पति हेतु वायु के द्वारा बार - बार मेघ का रूप धारण कर लेने का वर्णन अंकित है । ऋग्वेद 1/6/4 में कहा गया है -

आदह स्वधामनु पुनर्गर्भत्वमेरिरे । दधाना नाम यज्ञियम् ।। ऋग्वेद 1/6/4
अर्थात - यज्ञीय नाम वाले , धारण करने में समर्थ मरूत् वास्तव में अन्न की कामना से बार-बार मेघ रूपी गर्भ धारण करते हैं ।
अर्थात् अन्न की उत्पत्ति हेतु ही वायु बार-बार मेघ का रूप धारण कर लेती है । मेघ बनकर जब वह बरसती है तो फसलें तैयार होती हैं ।।
इसी प्रकार ऋग्वेद 1/22/6 कहा है कि -

अपां नपातमवसे सवितारमुप स्तुहि । तस्य व्रतान्युश्मसि । । ऋग्वेद 1/22/6
अर्थ - हे ऋत्विज । आप हमारी रक्षा के लिये सविता देवता की स्तुति करें । हम उनके लिये सोमयागादि कर्म सम्पन्न करना चाहते हैं । वे सवितादेव जलों को सुखाकर पुन: सहस्रों गुना बरसाने वाले हैं ।
इस मन्त्र में सविता (सूर्य) देवता द्वारा जलों को सुखाकर पुन: सहस्रों गुना बरसाने की बात कही गयी है । इसमें तो सम्भवत: मुझे अपनी ओर से कुछ कहने की आवश्यकता नहीं ही है ।
यह सर्वविदित है कि सूर्य का वर्षा में क्या योग है ।
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि जो त्थ्य आज वैज्ञानिक प्रमाणित करते हैं वो तो स्वयं वेद भगवान सहस्त्राब्दियों पूर्व आदि काल में ही प्रमाणित कर चुके हैं । वेदों की सत्ता परम है और आज तक मात्र अपनी इन्ही भगवत्ता के कारण ही वेद अखण्ड बने हैं और अखण्ड ही बने हुए रहेंगे।

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