Sunday, September 29, 2013

नागपुरी कविता -बीच सभा में खड़ायके द्रौपदी कहे संकट आवल भारी हो कन्हईया। - अशोक "प्रवृद्ध"

                                 नागपुरी कविता
बीच सभा में खड़ायके द्रौपदी कहे संकट आवल भारी हो कन्हईया।
                         रचनाकार - अशोक "प्रवृद्ध"
बीच सभा में खड़ायके द्रौपदी कहे संकट आवल भारी हो कन्हईया।पांडव वंश भेलक पौरूषहीन दुशासन खींचथे साड़ी हो कन्हईया।।
द्वारिका नाथ नी देब जे साथ हमके देखब उघरे हो कन्हईया।
इ बिपत से कोनो बिपत नी बेसी परी पति होय गेलयं जुआड़ी हो कन्हईया।।

पगरी इज्जत कर उतइर गेलक हो भईया।
सजना जुवाड़ी हमर हमके हाइर गेलयं हो भईया।।

केश  खुलल है धोवलो नखे साड़ी।
बाबा आउर दादा सभे देखथयं उघारी।
सभा कर मती केउ माइर गेलक हो भईया।
सजना जुवाड़ी हमर हमके हाइर गेलयं हो भईया ।।

जेकर बटे कखनो सुरूज़ नी ताके।
चंदा भी देखे जेके बहुते लजाय के।
उक्र मुंह के अन्हरो आइंख फाईड़के निहारथयं होे भईया ।
सजना जुवाड़ी हमर हमके हाइर गेलयं हो भईया ।।

साड़ी बइनके आजा तीनों लोक कर राजा।
हाइर जाए दुशासन साड़ी एतना बढ़ाय जा।।
सजना जुवाड़ी हमर हमके हाइर गेलयं हो भईया।
सजना जुवाड़ी हमर हमके हाइर गेलयं  हो भईया।।

टेर सुइन के देरी नी  करलयं कन्हाई।
देलयं आकास से तुरंत चुनरी बढ़ाय।।
द्रौपदी हांसलयं बैरी हाइर गेलयं हो भईया ।
सजना जुवाड़ी हमके हाइर गेलयं हो भईया ।।

सुइनके द्रौपदी कर टेर नी करलयं तनिको हरी देर हो राम।
हाथे लेईके साड़ी कर थान प्रभु जी हुवाँ आय गेलयं हो राम।।
साड़ी खींचत दुराचारी प्रभु जी हुवाँ आय गेलयं हो राम।
देइख के साड़ी कर ढेइर दुषाशन हड़बड़ाय गेलक हो राम।।

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