Thursday, January 2, 2014

मनुस्मृति वेद का सार है ।

मनुस्मृति वेद का सार है ।

स्वयंभू मनु पहले मनुष्य हैं। सारी धरती पर बसने वाले मनुष्य उसी एक पिता की सन्तान हैं। उस पिता को मनु कहा जाता है। मनुष्य शब्द में मनु जी का नाम समाहित है। उनका नाम न आए तो मनुष्य अपनी पहचान भी न जान पाए। अंग्रज़ी में मनुष्य को मैन कहा जाता है। इसमें भी मनु के नाम के 3 अक्षर मौजूद हैं। हिब्रू और अरबी में उन्हें आदम कहा जाता है और उनकी औलाद को बनी आदम कहा जाता है। आदम नाम की धातु ‘आद्य’ संस्कृत में आज भी पाई जाती है। वास्तव में स्वयंभू मनु और आदम एक ही शख्सियत के दो नाम हैं।

संस्कृत में मनुस्मृति के नाम से उनकी शिक्षाओं का एक संकलन भी मिलता है । उनकी शिक्षाओ के रचनाकाल अथवा उनकी शिक्षाओं के संकलन के रचनाकाल पर विचार करना ही इस आलेख का उद्देश्य है ।
स्वामी दयानन्द जी ने वेद की भांति मनुस्मृति को भी सृष्टि के आदि में हुआ माना है। सृष्टि के आदि विषय में स्वामी जी ने मनु को बताया है और मनुस्मृति को एक अरब छियानवे करोड़ आठ लाख बावन हज़ार नौ सौ छहत्तर वर्ष पुराना माना है। महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती ने सत्यार्थ प्रकाश में मनुस्मृति के विषय में कहा है -

‘यह मनुस्मृति जो सृष्टि के आदि में हुई है’ (सत्यार्थप्रकाश,एकादशसमुल्लास,पृ.187)

ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, अथ वेदोत्पत्ति., पृ.17 में स्वामी दयानंद सरस्वती ने कहा है -
‘यह जो वर्त्तमान सृष्टि है, इसमें सातवें (7) वैवस्त मनु का वर्त्तमान है, इससे पूर्व छः मन्वन्तर हो चुके हैं। स्वायम्भव 1, स्वारोचिष 2, औत्तमि 3, तामस 4, रैवत 5, चाक्षुष 6, ये छः तो बीत गए हैं और सातवां वैवस्वत वर्त्त रहा है.’ (ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, अथ वेदोत्पत्ति., पृ.17)


स्वामी जी ने बताया है कि एक मन्वन्तर में 71 चतुर्युगियां होती हैं। एक चतुर्युग में सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग होते हैं। सतयुग में 1728000 वर्ष, त्रेता में 1296000 वर्ष, द्वापर में 864000 वर्ष और कलियुग में 432000 वर्ष होते हैं। इन चारों युगों में कुल 4320000 वर्ष होते हैं। 71 चतुर्युगियों में कुल 306720000 वर्ष होते हैं। छः मन्वन्तर अर्थात 1840320000 वर्ष पूरे बीत चुके हैं और अब सातवें मन्वन्तर की 28वीं चतुर्युगी चल रही है। ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका लिखे जाते समय तक सातवें मन्वन्तर के भी 120532976 वर्ष बीत चुके थे। इस तरह स्वामी जी के अनुसार उस समय तक स्वयंभू मनु को हुए कुल 1960852976 वर्ष, एक अरब छियानवे करोड़ आठ लाख बावन हज़ार नौ सौ छहत्तर वर्ष बीत चुके थे।

स्वामी जी ने यही काल स्वयंभू मनु का बताया है, और उस काल के स्वयंभू मनु को मनु स्मृति का स्मृतिकार बतलाया है । उसमें जो श्लोक मनु के नाम से कहे गए हैं, वास्तव में उन्हें गुरू - शिष्य परम्परा में श्रुति - वाचिक प्रक्रिया के अंतर्गत पीढ़ी दर पीढ़ी स्मरण कर्तेभुये संरक्षित किया जा रहा था , जिसे बाद में लिपिबद्ध कर लिया गया ।  मनु स्मृति का स्वयंभू मनु से ही संबंध है। हालाँकि स्वामी दयानंद जी ने मनु स्मृति को प्रक्षिप्त मानकर उसके कुछ श्लोकों को नहीं माना है । उन्होंने कहा है कि मनुस्मृति के कुछ श्लोक प्रक्षिप्त हैं और उनका कुछ पता नहीं है कि उन्हें कब और किसने लिखा है?

भारतवर्ष में वेदों के उपरान्त सर्वाधिक मान्यताप्राप्त ग्रंथों में  ‘मनुस्मृति’ का ही नाम आता है। मनु महाराज के मनुस्मृति में चारों वर्णों, चारों आश्रमों, सोलह संस्कारों तथा सृष्टि उत्पत्ति के अतिरिक्त राज्य की व्यवस्था, राजा के कर्तव्य, भांति-भांति के विवादों, सेना का प्रबन्ध आदि उन सभी विषयों पर परामर्श दिया गया है जो कि मानव मात्र के जीवन में घटित होने सम्भव हैं यह सब धर्म-व्यवस्था वेद पर आधारित है।
महर्षि बाल्मीकि रचित रामायण और महर्षि वेदव्यास (कृष्णद्वेपायन ) रचित महाभारत में मनुस्मृति के श्लोक व् मनु महाराज कि प्रतिष्ठा अनेकों स्थानो पर आयी है किन्तु मनुस्मृति में रामायण , महाभारत व बाल्मीकि , व्यास जी का नाम तक नही । हाँ ! मनुस्मृति में मनु महाराज ने वेदों का जिक्र किया है और वेदों की महिमा का गान अनेक श्लोकों में किया है ।
वेद के सन्दर्भ में अनेक वचन मनु स्मृति में आये है बल्कि यह कहना उचित होगा मनुस्मृति वेद सार ही है । अतः वेद मनु से प्राचीन है -
अग्निवायुरविभ्यस्तु त्र्यं ब्रह्म सनातनम ।
दुदोह यज्ञसिध्यर्थमृगयु : समलक्षणम् ॥ मनु १/१३
जिस परमात्मा ने आदि सृष्टि में मनुष्यों को उत्पन्न कर अग्नि आदि चारो ऋषियों के द्वारा चारों वेद ब्रह्मा को प्राप्त कराये उस ब्रह्मा ने अग्नि , वायु, आदित्य और [तु अर्थात ] अंगिरा से ऋग , यजुः , साम और अथर्ववेद का ग्रहण किया ।

वेदोSखिलो धर्ममूलम् ।  मनु २/६
वेद सम्पूर्ण धर्म (कानून Law) का मूल है ।

यः कश्चित्कस्यचिधर्मो मनुना परिकीर्तित : ।
स सर्वोSभिहितो वेदे सर्वज्ञानमयो हि सः ॥ मनु २/९
मनु ने जिस किसी को जो कुछ भी धर्म कहा है वह सब वेद के अनुकूल ही है , क्योकि वेद सर्वमान्य है ।

नास्तिको वेदनिंदकः ।  मनु २/११
वेद कि निंदा करने वाले नास्तिक (अनीश्वरवादी) है


मनुस्मृति में वेदों का सार है । मनुमृति को बिना समझें उसकी निंदा करने वाले और उसे जलाने वाले धर्मद्रोहियों के लिए मनुस्मृति का यह श्लोक पठनीय है -
निषेकादिश्मशानान्तो मंत्रैर्यस्योदितों विधि: |
तस्य शास्त्रेsधिकारोsस्मिन्यज्ञेयो नान्यस्य कस्यचित | – मनुस्मृति
मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु तक के संस्कारों का वर्णन, वेद के जिस प्रकरण में है उसी को मनुस्मृति में लिया गया है , हमने उसके अतिरिक्त अपनी ओर से आँय कुछ भी नहीं कहा है !

मनुस्मृति में श्लोक ११/६ के माध्यम से कहा गया है कि वेद ही सर्वोच्च और प्रथम प्राधिकृत है। वेद किसी भी प्रकार के ऊँच-नीच, जात-पात, महिला-पुरुष आदि के भेद को नहीं मानते।

इत्यादि अनेक वचन है जो वेद के सन्दर्भ में मनु में आये है बल्कि यह कहना उचित होगा मनुस्मृति वेद सार ही है । अतः वेद मनु से प्राचीन है इसमें लेशमात्र भी संदेह नही ।
वैदिक व भारतीय पुरातन ग्रंथों के जानकारों कहना है कि मनुस्मृति में जहाँ कहीं भी वेद विरुद्ध आचरण दिखे वो प्रक्षेप (मिलावट ) है अतः त्याज्य है ।

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