Wednesday, January 29, 2014

वैदिक भाष्य और और वेद के मुख्य भाष्य

वैदिक भाष्य और वेद के मुख्य भाष्य

पुरातन काल में वेदों के अनेक भाष्य प्रचलित थे । परन्तु आज कोई प्राचीन भाष्य नहीं मिलता है । हाँ ! इधर मध्य काल के तीन भाष्य अवश्य मिलते हैं ---उव्वट का भाष्य , महीधर का भाष्य और सायण का भाष्य । परन्तु आधुनिक युग में नव जागरण के अग्रदूत महान पुरोधा महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती ने जब वेदों का भाष्य किया तब उव्वट , महीधर और सायण के वेद भाष्य स्वामी दयानंद के वेद भाष्य के सामने धूमिल पड़ गए ।

 उव्वट , महीधर और सायण के वेद भाष्य के रहते हुए भी महर्षि दयानंद को वेद भाष्य करने की आवश्यकता पड़ी । इन भाष्यकारों द्वारा किए गए भाष्यों में अनेक गलतियाँ हैं ।वे वैदिक मन्त्रों का गलत अर्थ करते हैं ।जिससे वेद की महत्ता बहुत घट जाती है और वे अश्लील ग्रन्थ बन जाते हैं ।उन में ज्ञान विज्ञान की बातें कम हो जाता है ।ऐसी परिस्थिति में वेद मन्त्रों के ठीक -ठीक अर्थ बतलाने के लिए , वेद की महत्ता स्थापित करने के लिए , वेद ज्ञान -विज्ञान के ग्रन्थ हैं यह प्रमाणित करने के लिए , वेद में किस्से कहानियां , अश्लील बातें आदि नहीं हैं यह प्रमाणित करने के लिए महर्षि दयानंद को वेद- भाष्य करने की आवश्यकता पड़ी । महर्षि दयानंद ने अपने वेद- भाष्य की भूमिका में स्पष्ट रूप से लिखा है--- यह भाष्य ऐसा होगा कि जिससे वेदार्थ से विरुद्ध अबके बने भाष्य और टीकाओं वेदों में भ्रम से जो मिथ्या दोषों के आरोप हुए हैं वे सब निवृत्त हो जाएंगे ।

महर्षि दयानंद ने वेदों का अध्ययन किया था ।वेदांग अर्थात शिक्षा , कल्प , व्याकरण , निरुक्त , ज्योतिष और छंद का अध्ययन किया था ।अन्य वैदिक शास्त्रों का भी गहन अध्ययन किया था । वेद में निहित ज्ञान कीगहराई को समझा था ।यही महर्षि दयानंद की विशेषता थी ।

उव्वट , महीधर और सायण में ये विशेषताएँ नहीं थीं ।
उव्वट , महीधर और सायण वेदों के विद्वान नहीं थे। इसलिए उनका वेद-भाष्य अनेक गलतियों , भ्रमों एवं असंगतियों से भरपूर है ।उन्होंने वेद के गहन अध्ययन के बिना ही वेद -भाष्य किया है ।अतः वेद में बतलाए गए ज्ञान को भी आगे और पीछे की बातों में मेल न दिखा सके ।


वे पुराणों के विद्वान थे । अतः जो भी वेद मंत्र उनके सामने होता था उसमें वे पौराणिक गाथाओं को ढूंढा करते थे । उनके वेद-भाष्य का आधार पुराण और पुराणों की कहानियां थी ।वे शिक्षा , कल्प , व्याकरण , निरुक्त , ज्योतिष ,और छंद के आधार पर वेद मन्त्रों का अर्थ नहीं कर सकते थे ।

महर्षि दयानंद ने वेद -भाष्य के लिए पुराण और पुराणों की कहानियों का सहारा नहीं लिया ।
महर्षि दयानंद के वेद -भाष्य की अनेक विशेषताएँ हैं ।उन्होंने शिक्षा , कल्प , व्याकरण , निरुक्त , ज्योतिष और छंद के आधार पर वेदों का भाष्य किया है ।इनके वेद -भाष्य में किसी प्रकार का आतंरिक विरोध नहीं दिखाई देता है , पूर्वापर पूर्णतया सामंजस्य है । महर्षि दयानंद के वेद -भाष्य द्वारा स्पष्ट रूप से ईश्वर की मान्यता के सम्बन्ध में , देवताओं के सम्बन्ध में , कर्मफल , पुनर्जन्म और मोक्ष के सम्बन्ध में , कर्त्तव्याकर्त्तव्य के सम्बन्ध में , भक्ति और उपासना के सम्बन्ध में , ज्ञान -विज्ञान के सम्बन्ध में निश्चित ज्ञान प्राप्त होता है । आधुनिक युग के ज्ञान -विज्ञान की सभी शाखाओं -उपशाखाओं का वेद में प्रतिपादन है ,यह स्पष्ट हो जाता है ।इस भाष्य से वेदों का सच्चा ईश्वरीय ज्ञान प्रकट हो गया है , वेदों का सर्वोपरीमहत्व प्रमाणित हो गया है ।

महर्षि दयानंद ने ऋग्वेद के सातवें मंडल के चौथे अनुवाक , इकसठवें सूक्त के मंत्र संख्या दो तक और पूरे यजुर्वेद का भाष्य किया है ।

ईश्वर एक है ,निराकार है , जन्म -मृत्यु के बंधन में नहीं आता है , वह सत् ,चित्त और आनंद है , सर्वशक्तिमान है , सृष्टि का कर्ता ,पालकऔर उपसंहार कर्ता है , वही सारी सृष्टि का स्वामी है , सर्व सद्गुण सम्पन्न है , सभी दुर्गुणों से रहित है , वह कर्मफल का भोक्ता नहीं है , आदि -आदि ।


ऋषि दयानंद ने वेद भाष्य में बतलाया है की ---जिनमें दिव्य शक्तियां हों वे देवता है : देवता चेतन या जड़ दोनों प्रकार के हो सकते है। देव का अर्थ विद्वान भी होता है ।सभी प्रकार की दिव्य शक्तियां ईश्वर में पुर्णरूपेण हैं । अतः ईश्वर ही सबसे बड़ा देव है , महादेव है । इन्द्र , वरुण , अग्नि , वायु जहाँ जड़ दिव्य शक्तियों के नाम हैं वहीँ विषय भेद से ईश्वर के नाम भी हो सकते है । माता , पिता , गुरु आदि साक्षात् चेतन देवी देवता हैं ।


महर्षि दयानंद के वेद -भाष्य के अनुसार वेद में सारी सत्य विद्याएँ भरी हैं , ज्ञान - विज्ञान की सभी बातें वेद में हैं , या यों कहें कि ज्ञान -विज्ञान की सारी बातें वेद से ही निकली हैं ।


दयानंद के वेद -भाष्य के आधार पर--- कर्मफल का भोग अवश्य होता है ;कर्मफल का भोग कर्ता को ही होता है ; ईश्वर से क्षमा याचना , प्रार्थना अथवा भोग आदि चढ़ा कर कर्मफल के भोग से नहीं बचा जा सकता है ; एक के द्वारा किए गए शुभ या अशुभ कर्मों के फलदूसरे को अर्पण नहीं किए जा सकते ।

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