Sunday, November 17, 2013

जो उस देश के धर्मयुक्त हितों को समझ उसको संपन्न करने में लगे रहते हैं , वही राष्ट्रवादी हैं और जो राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करते , वे अराष्ट्रवादी हैं । - अशोक "प्रवृद्ध"

जो उस देश के धर्मयुक्त हितों को समझ उसको संपन्न करने में लगे रहते हैं , वही राष्ट्रवादी हैं और जो राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करते , वे अराष्ट्रवादी हैं ।
अशोक "प्रवृद्ध"


जो राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करते , वे अराष्ट्रवादी हैं । राष्ट्र एक भौगोलिक क्षेत्र में रहने वाले लोगों के समुदाय का नाम है । जो उस देश के धर्मयुक्त हितों को समझ उसको संपन्न करने में लगे रहते हैं , वही राष्ट्रवादी हैं ।

आत्मनः प्रतिकुलानि परेषां न समाचरेत्  ।

यह राष्ट्रवाद है। यही धर्मयुक्त हित भी है ।

केवल मुसलमानों को प्रभुता मिलेगी अथवा राष्ट्र में बहुसंख्य्स्क के हितों की अनदेखी कर सिर्फ मुसलमानों को प्रश्रय देना , और उनके सुख - सुविधा और मजहबी कृत्यों को बढ़ावा देना , अनुदान उपलब्ध कराना , यह राष्ट्रीयता के अनुकूल नहीं है । यह सिर्फ और सिर्फ राष्ट्रीयता विरोधी कृत्य है , अन्य कुछ नहीं । परन्तु अत्यंत दुखद और खेद की बात है कि छद्म स्वाधीन भारतवर्ष में अधिकांश समय तक केंद्र की सत्ता में काबिज रहने वाली खाङ्ग्रेस पार्टी खुल - ए - आम राष्ट्रीयता - विरोधी कृत्य करते हुए मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति के तहत बहुसंख्यकों के मुकाबले मुस्लिमों को अतिरिक्त मजहबी छूट के साथ ही अनुदान और अन्यान्य सुविधाएँ उपलब्ध करा रही है और बहुसंख्यक तालाब किनारे मछली के इन्तजार में खड़े बगुले की भांति टुकुर - टुकुर देखने में ख़ुशी महसूस कर रहे हैं ।
मुसलमानों ने भारतवर्ष में कभी भी अपने व्यवहार से अपना राष्ट्रवादी हाेना सिद्ध नहीं किया अर्थात राष्ट्र के अंग होने का परिचय नहीं दिया । इक्के - दुक्के अप्रख्यात मुसलमानों को छोड़ बहुसंख्यक मुसलमानों ने कभी भी एक जाति के रूप में देश में देशवासियों सा व्यवहार नहीं किया । मुसलमान सदा राष्ट्रविरोधी व्यवहार चलाते रहते हैं ।

अठारह सौ संतावन के स्वतन्त्रता - संग्राम में मुसलमान सम्मिलित हुए । वह केवल इसी कारण कि बहादुर शाह जफ़र को वे पुनः भारतवर्ष का सम्राट बनाना चाहते थे । 1921 - 22 के आन्दोलन में भी मुसलमान सम्मिलित हुए थे , परन्तु वह भी एक ओर मुसलमानों के लिए विशेषाधिकार की शर्त करके और दूसरे खिलाफत को बहाल कराने के लिए । इन दो अवसरों के अतिरिक्त मुसलमानों ने भारतवर्ष में स्वराज्य - प्राप्ति के लिए कुछ भी यत्न नहीं किया । इसके बाद भी अंग्रेजों के द्वारा भारतवर्ष छोड़ भागने के समय मुसलमानों को भारतवर्ष का विभाजन करके पुरस्कारस्वरूप अलग इस्लाम राष्ट्र दिया गया और फिर शेष भारतवर्ष को भी इस्लामी राष्ट्र के रूप में तब्दील करने का अघोषित ठेका अंग्रेजों ने और फिर छद्म स्वाधीन भारतवर्ष में अंग्रेजों के आत्मज काले अंग्रेजों , खान्ग्रेसियों ने दे दिया ।

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