Monday, November 18, 2013

अधिकारी से अधिकार लेकर अयोग्य को योग्य पद देना राष्ट्रघातक और घोर सांप्रदायिक कार्य है । अशोक "प्रवृद्ध"

अधिकारी से अधिकार लेकर अयोग्य को योग्य पद देना राष्ट्रघातक और घोर सांप्रदायिक कार्य है ।
अशोक "प्रवृद्ध"


 देश की प्रगति तो हिन्दू - मुसलमान अथवा भारतवर्ष के सभी जातियों की बराबर - बराबर अर्थात सामान रूप से तरक्की से ही होती है और होनी चाहिए ।अयोग्यों को योग्य पदों अर्थात पदवियों पर नियुक्त करने से देश की प्रगति रूकती है । अयोग्यों को योग्य पदों अर्थात पदवियों पर नियुक्त करना अर्थात योग्यता न रखने के बावजूद किसी खास समूह अर्थात जाति को जबरन फायदा पहुँचाने के उद्देश्य से नियुक्त करना साम्प्रदायिकता है । यह बहुसंख्यकों के लिए अहितकर है , यह काम इस देश में चलेगा नहीं ।

 हिन्दू - मुसलमानों में फिरकापरस्ती के बिनाह पर कोई काम न हो अर्थात समूह और जाति के आधार पर कोई नियुक्ति , कोई योजना , कोई अधिनियम , कोई कानून , कोई कार्य नहीं होनी चाहिए , अपितु योग्यता और आवश्यकता के आधार पर ही होनी चाहिए ।

मनुष्य एक विचारशील प्राणी है । वह विचार करेगा ही । कोई इसे रोक नहीं सकता । मनुष्य जब विकार करेगा तो उसे दूसरों के समक्ष प्रकट भी अवश्य करेगा । इससे अनेकों से उसका विचार - एक्य नहीं होगा , तब विचार के आधार पर श्रेणियाँ बन जाएँगी । यह कोई रोक नहीं सकता । मजहबी आर्थिक , भौगोलिक , भाषा और अन्य विषयों के सम्प्रदाय यो रहेंगे ही ।  जो करने की बात है , वह यह कि सम्प्रदाय - परिवर्तन बल , छल , कपट से न हो । संप्रदाय वालों को प्रत्येक प्रकार की स्वतंत्रता हो , परन्तु उनको किसी दुसरे स्व अधिक स्वतंत्रता न हो । अर्थात कोई संप्रदाय किसी दुसरे के अधिकार को छिन्न न चाहे । अभिप्राय यह है कि सम्प्रदाय बनेंगे ही । खराबी तो तब होती है , जब किसी को छल - बल से सम्प्रदाय - परिवर्तन के लिए कहा जाता है और झगडे तब होते हैं , जब एक सम्प्रदाय वाले दूसरे से विशेषाधिकार माँगने लगते हैं ।

अर्थात सम्प्रदायों के रहने से कोई हानि नहीं । हानि तो तब होती है , जब सम्प्रदाय वालों को सम्प्रदाय के आधार पर अधिकार और  शक्ति मिलने लगे , और यही भारतवर्ष में हो रहा है ।

मुसलमान बने रहें , नमाज पढ़ते रहें , कुरान की तलावत करते रहें , अथवा उनकी मजहबी रस्म होती रहें , इसाई भी अपनी मजहबी रस्म अदा करते रहें । अनुसूचित जनजाति के सदस्य भी अपनी आदिवासिता निभाते रहें । लेकिन जब आर्थिक , सामाजिक , नागरिक अथवा राजनीतिक अधिकारों का बंटवारा हो , तब साप्रदायिकता घातक हो जाएगी । किसी पिछड़ी श्रेणी को शिक्षा , चिकित्सा अथवा अन्य सुविधाएँ मिले , तो एक बात है ,परन्तु बिना योग्यता के अधिकार देना तो एक दूषित साम्प्रदायिकता होगी । 

अधिकारी से अधिकार लेकर अयोग्य को योग्य पद देना राष्ट्रघातक और घोर सांप्रदायिक कार्य है ।
मुसलामानों को विशेषाधिकार देने की बात सदैव ही करने और कहने वाले मोहनदास करमचन्द गाँधी , जवाहर लाल नेहरू इत्यादि इसी दूषित साम्प्रदायिकता के घोर पक्षपाती थे और उनकी दूषित साम्प्रदायिकता की नीति से भारतवर्ष भारी मुसीबत में फंस गया है , जिससे मुक्ति मिलने की कोई उम्मीद भारतवर्ष को निकट भविष्य में दिखलाई नहीं देती । 

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