Monday, November 11, 2013

ब्राह्मण वर्ग के सर्वथा लोप हो जाने के कारण आर्य सनातन वैदिक धर्मावलम्बी हिन्दू को अपने हित - अहित का ज्ञान नहीं - अशोक "प्रवृद्ध"

ब्राह्मण वर्ग के सर्वथा लोप हो जाने के कारण आर्य सनातन वैदिक धर्मावलम्बी हिन्दू को अपने हित - अहित का ज्ञान नहीं
अशोक "प्रवृद्ध"

पुरातन काल में सम्पूर्ण ज्ञान का मूल वेद को मान वेद और वैदिक धर्म पर लोगों के आरूढ़ रहने के कारण आर्यावर्त अर्थात भारतवर्ष सपूर्ण विश्व में सर्वश्रेष्ठ और विश्वगुरू था , परन्तु आर्य जन अर्थात भारतीय जन के वैदिक ज्ञान से दूर होने , वंचित होने के कारण आज आर्य सनातन वैदिक धर्मावलम्बी हिन्दू समाज को अपने हित और अहित का ज्ञान नहीं रहा । इसका कारण है , ब्राह्मण वर्ग सर्वथा लोप हो चूका है।
पुरातन अर्थात प्राचीन काल में जब आर्य सनातन वैदिक धर्मावलम्बी हिन्दू संसार भर के नेता थे , तब इसके सर्वश्रेष्ठ , त्यागी , तपस्वी , विद्वान और अनुभवी लोग ब्राह्मण वर्ग में होते थे , और पूर्ण समाज उनके कथनानुसार अपना व्यवहार निश्चय करता था । परन्तु एक समय आया , जब मूर्ख मीमांसकों ने युक्ति कर , दो सिद्धांत प्रतिपादित किये । एक यह कि कर्म बंधन है । मोक्ष ज्ञान है । इन मीमांसकों की बात साहित्यकारों , कथाकारों और पुराणलेखकों ने तोते की भांति रटनी आरम्भ कर दी । परिणाम यह हुआ कि जाति के सब श्रेष्ठ त्यागी - तपस्वी अकर्मण्य होकर बैठ गए ।उन्होंने ज्ञान में रत्त रहना ही मोक्ष प्राप्ति के पर्याप्त समझा । जन साधारण का नेतृत्व विद्वान , अनुभवी श्रेष्ठ वर्ग के हाथ से निकलकर मूर्खों के हाथ में आ गया।
एक दूसरा सिद्धांत भी उन्होंने प्रतिपादित किया । जब जाति पर विपति आती है , तब परमात्मा अवतार लेता है और मानव संकट मिट जाता है । अतः जब - जब जाति पर विपति आई , जाति के मूर्ख नेताओं ने मंदिरों में घंटे बजाने आरम्भ कर दिए । इसका परिणाम यह हुआ कि भीड़ के समय अर्थात संकट काल में जाति बुद्धि और पौरूष से काम करने का अभ्यास ही छोड़ बैठी है ।

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