Wednesday, November 13, 2013

विकासवाद अाज तक सिद्धांत नहीं बन पाया , यह सिर्फ वाद है । - अशोक "प्रवृद्ध"

विकासवाद अाज तक सिद्धांत नहीं बन पाया , यह सिर्फ वाद है ।
अशोक "प्रवृद्ध"
वर्तमान युग का सबसे बड़ा छलना अर्थात फ्रॉड है डार्विन का विकासवाद । विकासवाद एक महान गल्प है । इसको न तो वैज्ञानिक माना जा सकता है और न ही इसमें कोई प्रमाण है । विकासवाद अाज तक सिद्धांत नहीं बन पाया , यह सिर्फ वाद है । डार्विन ने इस संसार के लोगों पर एक बहुत बड़ी छलना खेली है । उसका परिणाम ही है कि मानव समाज की दृष्टि से सत्य लोप होकर असत्य ही सत्य प्रतीत होने लगा है ।

विकासवाद को दो भागों में बांटा जा सकता है ।  एक विचार यह है कि सब जन्तु एक प्रकार के एक कोशीय (सिंगल सेल्लुलर) प्राणी अमीबा से उत्पन्न हुए हैं । परन्तु संसार में नियमनुसार निरन्तर घट रहे घटनाओं के अध्ययन से इस सत्य का सत्यापन होता है कि एक जन्तु से दूसरे प्रकार का जन्तु नहीं बन सकता और न ही कभी बनता देखा गया है ।

दूसरे भाग का सम्बन्ध इस विकासवाद के मनुष्य पर प्रयोग किये जाने से है । परन्तु मानव इतिहास के अध्ययन से इस तथ्य की ही पुष्टि होती है कि विकासवाद से सम्बंधित यह कथन मिथ्या है कि मनुष्य में शारीरिक , मानसिक अथवा आत्मिक विकास हुआ है ।

इस तथ्य से सहमत नहीं होने वाले वैज्ञानिक अथवा व्यक्ति जब किसी दिन किसी बन्दर को मनुष्य बनाकर दिखला देंगे , तब उस दिन डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत के वैज्ञानिक होने पर विचार किया जा सकगा । हाँ , मानव मन के विषय में स्पष्टतः कहा जा सकता है कि सृष्टि के आदि काल से लेकर आज तक इसमें रंच - मात्र भी परिवर्तन नहीं हुआ है । भारतीय इतिहास यही बतलाता है ।

वर्तमान युग की बड़ी - बड़ी मशीनें और रेलगाड़ियाँ , बड़े - बड़े जहाज और उड़नखटोले (वायुयान) व अन्य सुख -सुविधा के साधन भी मन के विकास को प्रकट नहीं करते और न ही मन के विकास के साथ ये सम्बंध रखते हैं । हाँ , इन आविष्कारों का बुद्धि से सम्बन्ध है । बुद्धि वह् यंत्र है जिसको आङ्ग्ल - भाषा में ब्रेन कहते हैं । यह शरीर के हाथ , पाँव इत्यादि अंगों की भांति ही एक अंग है ।जैसे हाथ पाँव को कोई भी मनुष्य व्यायाम से अधिक सबल कर सकता है , इसी प्रकार बुद्धि को भी व्यायाम कराने से सुदृढ़ अथवा दुर्बल किया जा सकता है ।

बुद्धि का विकासवाद के साथ सम्बन्ध नहीं , इसका प्रयोग और अभ्यास के साथ सम्बन्ध है । एक ही जन्म में शिक्षा और अभ्यास से बुद्धि विकसित हो सकती है अथवा उसका ह्रास हो सकता है ।

विकास अर्थात वे परिवर्तन जो मानव जाति में पीढ़ी के अनन्तर पीढ़ी तक चलते हैं , वे कहीं दिखाई नहीं देते । मानव मन के विकार  -  काम , क्रोध , लोभ , अहंकार - जैसे मनुष्य में सृष्टि के आदि काल में थे वैसे आज भी हैं । प्राणियों में किसी प्रकार का अंतर होता हुआ दिखाई नहीं देता । इन्सान आज भी वैसे की वैसे ही है जैसे आज से पांच सहस्त्र वर्ष था अथवा आदि काल में था । उन्नति तो हुई नहीं , बल्कि उसमे घटियापन ही आया है । चोर , बलात्कार करने वाले , क्रोध से सर्वनाश करने वाले अथवा लोभ में संसार को बेच देने वाले तो वैसे की वैसे ही हैं । तब ये बैलगाड़ी पर यात्रा करते थे , अब रेलगाड़ी में जाते हैं । परन्तु चोर , डाकू , कामी तो वैसे के वैसे ही हैं । नेपोलियन और चार्ल्स तो आदि काल में भी थे । उस समय उनके नाम हिरण्याक्ष और रावण थे , कंस और दुशासन थे ।

इतिहास तो मनुष्य के इन विकारों और उनको परास्त करने की कहानी है । यह बार - बार उसी रूप में चलती है , जिसमें सदा चलती आई है । इस कारण इतिहास महान विद्या है । इसको भली प्रकार समझ कर मनुष्य सुख और शांति प्राप्त कर सकता है ।

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