Tuesday, November 12, 2013

स्वतन्त्रता के लिए प्रत्येक प्रकार का त्याग और तपस्या के लिए तैयार रहती है आर्य सनातन वैदिक धर्मावलम्बी हिन्दू जाति - अशोक "प्रवृद्ध"

स्वतन्त्रता के लिए प्रत्येक प्रकार का त्याग और तपस्या के लिए तैयार रहती है आर्य सनातन वैदिक धर्मावलम्बी हिन्दू जाति
अशोक "प्रवृद्ध"

आर्य सनातन वैदिक धर्मावलम्बी हिन्दू जाति अर्थात हिन्दू कौम की यह विशेषता रही है कि वह स्वतन्त्रता के लिए प्रत्येक प्रकार का त्याग और तपस्या के लिए तैयार रहती है । मुसलमानों के आने से पहले और बाद में भी हिन्दू अपनी आत्मिक , मानसिक और शारीरिक स्वतंत्रता के लिए लड़ता रहा है । इसने मुस्लमान से स्वतंत्रता प्राप्त कर ली थी , परन्तु उसी समय अंग्रेज आ गए । तब अंग्रेजों को भी सफलतापूर्वक चुनौती देने वाले भी हिन्दू ही थे । वैदिक विचार के क्रान्तिकारी हिन्दुओं ने उन्हें मार भगाया , परन्तु जाते - जाते वे अपने आत्मज काले अंग्रेजों खान्ग्रेसियों अर्थात् कान्ग्रेसियों को अपना राज - पाट एक संधि के तहत सौंप गए । जिसका खामियाजा आज तक भारतवासी भुगत रहे हैं।

वर्तमान में इन काले अंग्रेजों की चांडाल चौकड़ी की नेतृत्व छद्म स्वाधीन भारतवर्ष में पैदा हुए राजपरिवार के एक चरित्रहीन राजकुमार को अपने इश्क - जाल में फंसाकर देश में दाखिल हुई एक विदेशी दुष्टा रोम्कन्या सोनिया कर रही है। इन विदेशी मानसिकता वाले खानाग्रेसियों की दासता से राष्ट्र को मुक्त करने के लिए भी हिन्दू दशकों से संघर्षशील हैं , परन्तु इस विदेशी राष्ट्र्घातक राजनीति की उपज छद्म धर्मनिरपेक्षता अर्थात सेकुलरवाद इसमें आड़े आ रहा है । इसके बावजूद आर्य सनातन वैदिक धर्मावलम्बी हिन्दू लड़ रहे हैं और उन्हें सम्पूर्ण विश्वास है कि वे विदेशी मानसिकता वाली सरकार को धुल चटाकर स्वराज्य प्राप्त कर ही दम लेंगे ।

भारतवर्ष में आर्य सनातन वैदिक धर्मावलम्बी हिन्दू ही विदेशी मानसिकता वाले छद्म धर्मनिरपेक्षवादी खान्ग्रेसियों को हटाकर स्वराज्य स्थापित करने के योग्य हैं , और वे प्रयत्न भी कर रहे हैं ।
परन्तु उनके मन में ऐसी हीन भावना उत्पन्न कर दी गई है कि सौ करोड़ जनसँख्या का होते हुए भी वे समझने लगे हैं कि वे अकेले हैं और अति दुर्बल हैं और अकेले कुछ नहीं कर सकेंगे ।
इस हीन भावना का कारण एक तो यह है कि इस देश में हिन्दू , जाति - पाँति , ऊँच - नीच , प्रान्त - प्रान्त की भावना और छूत - अछूत के भेद - भाव में फंसा हुआ प्राणी है । यह तुरत दूर होनी चाहिए।
दूसरे हिन्दू किसे कहते हैं ? इस विषय में सब सहमत नहीं हैं । कोई चोटी रखना हिन्दू होने का लक्षण समझता है । कोई तिलक लगाना हिन्दू का लक्षण मानता है । किसी का हिन्दूपन धोती पहनने में दिखाई देता है इत्यादि। ये सब लक्षण हिन्दू के नहीं हैं । हिन्दू तो वह जन समुदाय है जो इस देश को अपनी जन्म - भूमि तथा पुण्यभूमि मानता है । शेष सब लक्षण सामाजिक , स्थानीय और गौण हैं ।
भारतवर्ष अर्थात हिंदुस्तान को अपनी पुण्यभूमि मानने में यहाँ का इतिहास , यहाँ के रीति - रिवाज , यहाँ की परम्पराएं , यहाँ का साहित्य और धर्म हमारे उत्कट प्रेम का विषय हो जाते हैं ।तब यदि कोई हमारे इतिहास को गलत माने अथवा हमारे पूर्वजों को हीन , दीन ,अशिक्षित कहे तो हम इसको गाली समझें आदि ।
तीसरे यह कि धर्म , विशेष रूप में आर्य सनातन वैदिक हिन्दू धर्म क्या है, यह जान लेने से हिन्दू संगठन बन सकेगा। हिन्दू - मूर्ति पूजक हैं , हिन्दू , ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य तथा  शूद्र  हैं, हिन्दू शिवजी का उपासक है , हिन्दू विष्णु का उपासक है , इत्यादि भावनाएं मिथ्या हैं । इन बातों का सम्प्रदाय से सम्बन्ध है । आर्य सनातन वैदिक हिन्दू धर्म इन सब से भिन्न है । ये बातें रह सकती हैं , परन्तु वास्तविक बात है कि यहाँ के रहने वालों के आचार - विचार ही , जिनका स्त्रोत वैदिक शास्त्र हैं , हमारे धर्म के सूचक हैं ।
इस समय करनीय कार्य है - छुआछुत एव्म् जन्म - जात वर्णाश्रम धर्म को समाप्त करना । पिछड़ी जाति की कल्पना को समाप्त करना । सब बराबर है , सबको उन्नति करने के अवसर सामान हों और जो इस देश को जन्मभूमि , पुण्यभूमि मानते हैं , उनका संगठन हो । जो ऐसा नहीं मानते , जो इसके लिए अपना सब कुछ न्योछावर करना नहीं चाहते , वे हिन्दू नहीं हैं । हिंदुस्तान उनका देश नहीं है । वे यहाँ के राष्ट्र के अंग नहीं हैं ।

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